‘‘आप समस्या का समाधान ढूंढ़ने के बजाय उसे और ज्यादा न उलझाइए, पापा.’’
‘‘हम ने अपनी बात कह दी है. न जेवर बिकेंगे, न फ्लैट.’’
‘‘फिर मेरा कर्ज कैसे उतरेगा, सीमा?’’ परेशान राकेश की आंखों में अपनी पत्नी से ये सवाल पूछते हुए डर के भाव साफ पढ़े जा सकते थे.
‘‘मुझे नहीं पता,’’ सीमा ने फर्श को ताकते हुए रूखे से स्वर में जवाब दे दिया.
‘‘ऐसा मत कहो, प्लीज. मेरी कमाई से ही तो जेवर और फ्लैट खरीदा गया है. आज बुरे वक्त में उन्हें बेचने की जरूरत आ पड़ी है, तो…’’
ये भी पढ़ें- जन्मदिन का तोहफा: सुमन आखिर कब तक सहती
‘‘आप भूल रहे हैं कि मैं भी नौकरी करती हूं. आज हर महीने मुझे भी 20 हजार की पगार मिलती है. जो भी हमारे पास है उस को हासिल करने में मेरा भी योगदान रहा है और वह सब मैं दोनों बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के काम में ही लाऊंगी.’’
‘‘अगर मैं कर्ज नहीं चुका पाया तो मुझे जेल जाना पड़ेगा. इतना भारी अपमान मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा, सीमा.’’
‘‘तब आप उस अपमान से बचने का रास्ता ढूंढ़ो. आप की समस्या को हल करने की काबिलीयत और समझ मुझ में नहीं है. न ही ऐसा करना मेरी जिम्मेदारी है,’’ बेहद गंभीर नजर आ रही सीमा अपना फैसला सुना कर झटके से उठी और मकान के अंदर चली गई.
राकेश अपने दोनों बच्चों से 5-10 मिनट बातें कर के लुटापिटा सा अपने ससुर के घर से बाहर निकल आया.
बाहर से खाना खाए बिना वह घर पहुंच गया. उस का मन बहुत दुखी और परेशान था. आंतरिक तनाव को कम करने के लिए उस ने शराब पीनी शुरू कर दी.
इस वक्त उसे अपना आर्थिक संकट नहीं बल्कि सीमा की बेरुखी और परायापन बहुत ज्यादा कष्ट पहुंचा रहे थे.
मैं ने कौन सा सुख सीमा को नहीं दिया? उस की खुशी की खातिर मैं ने अपने घर वालों से संबंध तोड़ दिए थे. आज इसी सीमा ने मुझे डूबने को अकेला छोड़ दिया. जेवरों और फ्लैट की खातिर उस ने पति का साथ न देने का फैसला कितनी आसानी से कर लिया. हमारा रिश्ता कितना कमजोर निकला. मुझे नफरत है उस से. ऐसे विचारों से उलझा राकेश एक के बाद एक शराब के गिलास खाली किए जा रहा था.
अचानक मोबाइल की घंटी बजी तो उसे उठा कर नंबर देखने लगा. गांव से उस की मां आरती का फोन था जो गांव में अपने सब से छोटे बेटे के पास रहती थीं.
नशे से थरथराती आवाज में राकेश ने अपनी मां से बातें कीं. मां की आवाज सुन कर राकेश अचानक ही बेहद भावुक हो उठा था.
‘‘तुम सब का क्या हालचाल है?’’ मां ने यह सवाल पूछ कर अपने बड़े बेटे के दिल पर लगे जख्म को और हरा कर दिया.
‘‘तेरा यह नालायक बेटा बहुत दुखी और अकेला महसूस कर रहा है, मां. आज तो मुझे अपनी जिंदगी ही सब से बड़ा बोझ लग रही है,’’ अचानक ही राकेश की आंखों में आंसू छलक आए तो वह खुद ही हैरान हो उठा था.
‘‘ऐसी गलत बात मुंह से मत निकाल, बेटा. बहू कहां है?’’
‘‘मर गई तुम्हारी बहू, मां.’’
‘‘चुप कर. मेरी बात करा उस से.’’
‘‘वह मुझे अकेला छोड़ कर अपने बाप के घर चली गई है, मां. दोनों बच्चे भी साथ ले गई…यह अकेला घर मुझे काट खाने को आ रहा है, मां.’’
‘‘अपने घर क्यों गई है वह? तुम में झगड़ा हुआ है क्या?’’
‘‘मां, वह अपने स्वार्थ के खातिर मुझे छोड़ गई. मेरा बिजनेस डूब रहा है, तो वह अब क्यों रहेगी मेरे पास? पहले जैसे मेरी गरीब मां और छोटे भाई उसे बोझ लगते थे, वैसे ही अब मैं उसे बोझ लगने लगा हूं. मां…वह मुझे अकेला छोड़ कर भाग गई है.’’
‘‘तू परेशान मत हो, मैं कल आ कर उसे समझाऊंगी तो फौरन वापस घर लौट आएगी.’’
‘‘मैं अब उस की शक्ल भी नहीं देखना चाहता हूं, मां. उसे अपने पति से नहीं, सिर्फ दौलत से प्यार है. उस ने मेरी सुखशांति को नजरअंदाज कर जेवर और फ्लैट चुना. समाज में तड़कभड़क वाली जिंदगी जीने की शौकीन उस औरत को मैं इस घर में कदम नहीं रखने दूंगा.’’
‘‘अपना गुस्सा थूक दे, राकेश. अपने बच्चों की खुशियों की खातिर तुम दोनों को साथ रहना ही होगा.’’
‘‘मां, तू उस औरत की तरफदारी क्यों कर रही है जिसे तू फटी आंख कभी नहीं भाई? जिस ने तेरा मेरे घर में घुसना बंद करा दिया, तू उस की चिंता क्यों कर रही है?’’
‘‘बच्चे नादानी करें तो क्या बड़े भी नासमझी दिखा कर उन का अहित सोचने लगें, बेटा?’’
‘‘मां, मुझे अपनी अतीत की गलतियां सोचसोच कर इस वक्त रोना आ रहा है. मैं सीमा के स्वार्थी स्वभाव को कभी पहचान नहीं पाया. उस के कहे में आ कर मुझे अपनी मां और छोटे भाइयों से दूर नहीं होना चाहिए था.’’
‘‘तू कहां हम से दूर है. तेरे दोनों भाई तेरी बड़ी इज्जत करते हैं. बहू से छिपा कर तू ने कई बार उन दोनों की रुपएपैसों से सहायता नहीं की है क्या?’’
‘‘आज रुपयापैसा भी नहीं रहा है मेरे पास, मां. सारा बिजनेस चौपट हो गया है. वह स्वार्थी औरत मेरे ही रुपयों से खरीदे जेवर और फ्लैट बेचने को तैयार नहीं है. उस की नजर तो इस मकान पर लगी है, पर मैं ऐसा स्वार्थी नहीं जो अपने छोटे भाइयों का हक मार कर यह मकान हड़प लूं…मुझे मर जाना मंजूर है, पर ऐसा गलत काम मैं कभी नहीं करूंगा, मां.’’
ये भी पढ़ें- समस्या का अंत : बेचारा अंबर, करे तो क्या करे
‘‘तू ने मरने की बात अब मुंह से निकाली तो तू मेरा मरा मुंह देखेगा.’’
‘‘ऐसा मत कह, मां.’’
‘‘तो तू भी गलत मत बोल.’’
‘‘नहीं बोलूंगा, मां.’’
‘‘देख बेटा, अब और शराब मत पीना. तुझे मेरी सौगंध है.’’
‘‘तुझे वचन देता हूं मां, अब और शराब नहीं पीऊंगा.’’
‘‘फ्रिज में कुछ रखा हो तो खा कर सो जा.’’
‘‘अच्छा, मां.’’
‘‘बेकार की बातें बिलकुल मत सोच. मैं कल सुबह तुम से मिलने आऊंगी.’’