यह सवाल थोडा़ गड़बडा़ने वाला था और मैं गड़बडा़या भी- अपनी स्मृति पर जोर देते हुए मैं ने बताया कि लगभग 3 महीने पहले एक साधारण होटल के पास उस से मुलाकात हुई थी और वहीं होटल की बेंच पर बैठ कर साथसाथ चाय पी थी- वह भी मुझे इस कारण याद है, क्योंकि वह दुकान वाला तो मुझे अच्छी तरह जानता था, मगर मारुति से उतरे लकदक कपडे़ पहने उस मनमोहक मंगल को देख कर अवाक था जो 4 निजी सुरक्षादस्तों से घिरा था और मुझ जैसे अदना आदमी के साथ सड़क की पटरी पर ही खडे़खडे़ कांच के साधारण गिलास में चाय पीने लगा था- मैं ने इस बात को हलके रूप में लिया था- मगर उस चाय वाले की नजर में मेरी इज्जत बढ़ गई थी-
आप की उस से क्या बातें हुईं?
कुछ खास नहीं- भला मैं उस से क्या बात करता, वह भी सड़क के फुटपाथ पर- हां, वह मेरे मध्यवर्गीय जीवन जीने पर व्यंग्य अवश्य कर रहा था- कुछ हंसीमजाक की बात हुई- बाद में चाय के पैसे चुकाने को कहा-
फ्और उस ने एक नोटों की गड्डी भी दी-
मैं अंदर से थोडा़ भयभीत तो था ही मगर अब चौंकने की बारी थी- तो इस इंस्पेक्टर को सबकुछ जानकारी है- फिर यह पूछताछ क्यों कर रहा है- मैं ने थोडा़ कडे़ लहजे में कहा, फ्दी नहीं, देना चाहता था- मगर मैं ने ली नहीं-
फ्क्यों?
फ्क्योंकि मैं मुपत की कमाई को हाथ नहीं लगाता-
फ्खूब फिलासफी झाड़ लेते हो-
फ्अपनीअपनी सोच है-
फ्हम आप से ज्यादा छेड़छाड़ न कर के वापस जा रहे हैं, इंस्पेक्टर उठते हुए बोला, फ्वैसे तो हमें नियमतः आप के घर की तलाशी लेनी थी, मगर फिलहाल, आप पर संदेह करने का कोई कारण नहीं बनता- तथापि आप को यह भी बता दें कि आजकल तथाकथित शरीफ और सफेदपोश लोग ही ज्यादा गड़बडि़यां करते हैं- मुझे ऐसा लग रहा है कि आप मंगल पांडे के बारे में कुछ खास बातें जानते हैं- फिर भी बताना नहीं चाहते. घ्यह आप की मरजीघ्है. घ्मगर जब भी मैं आप को तपतीश के लिए थाने बुलाऊं, आप अवश्य आएंगे-