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शाम कालिज से वापस आया तो खटखट की आवाज से पूरा घर गूंज रहा था. लपक कर पीछे बरामदे में गया. लकड़ी का बुरादा उड़उड़ कर इधरउधर फैल गया था. सोम का खाली दिमाग लकड़ी के बेकार पड़े टुकड़ों में उलझा पड़ा था. मुझे देख लापरवाही से बोला, ‘‘भाई, कुछ खिला दे. सुबह से भूखा हूं.’’

‘‘अरे, 5 घंटे कालिज में माथापच्ची कर के मैं आया हूं और पानी तक पूछना तो दूर खाना भी मुझ से ही मांग रहा है, बेशर्म.’’

‘‘भाई, शर्मबेशर्म तो तुम जानो, मुझे तो बस, यह कर लेने दो, बाबूजी का फोन आया है कि सुबह 10 बजे चल पड़ेंगे दोनों. शाम 4 बजे तक सारी कायापलट न हुई तो हमारी मेहनत बेकार हो जाएगी.’’

अपनी मस्ती में था सोम. लकड़ी के छोटेछोटे रैक बना रहा था. उम्मीद थी, रात तक पेंट आदि कर के तैयार कर देगा.

लकड़ी के एक टुकड़े पर आरी चलाते हुए सोम बोला, ‘‘भाई, मांबाप ने इंजीनियर बनाया है. नौकरी तो मिली नहीं. ऐसे में मिस्त्री बन जाना भी क्या बुरा है... कुछ तो कर रहा हूं न, नहीं तो खाली दिमाग शैतान का घर.’’

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मुझे उस पल सोम पर बहुत प्यार आया. सोम को नीलू से गहरा जुड़ाव है, बातबेबात वह नीलू को भी याद कर लेता.

नीलू बाबूजी के स्वर्गवासी दोस्त की बेटी है, जो अपने चाचा के पास रहती है. उस की मां नहीं थीं, जिस वजह से वह अनाथ बच्ची पूरी तरह चाचीचाचा पर आश्रित है. बी.ए. पास कर चुकी है, अब आगे बी.एड. करना चाहती है. पर जानता हूं ऐसा होगा नहीं, उसे कौन बी.एड. कराएगा. चाचा का अपना परिवार है. 4 जमातें पढ़ा दीं अनाथ बच्ची को, यही क्या कम है. बहुत प्यारी बच्ची है नीलू. सोम बहुत पसंद करता है उसे. क्या बुरा है अगर वह हमारे ही घर आ जाए. बचपन से देखता आ रहा हूं उसे. वह आती है तो घर में ठंडी हवा चलने लगती है.

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