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लेखक- अवनिश शर्मा

रास्ते में अर्चना ने उलझन भरे लहजे में पूछा, ‘‘मीना आंटी, क्या संदीप के विदेश जाने से पहले उस के साथ सगाई की रस्म हो जाने की मेरी जिद गलत है?’’

‘‘इस सवाल का सीधा ‘हां’ या ‘ना’ में जवाब नहीं दिया जा सकता है,’’ मैं ने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘मेरी समझ से इस समस्या के 2 महत्त्वपूर्ण पहलू हैं.’’

‘‘कौनकौन से, आंटी?’’

‘‘पहला यह कि क्या संदीप का तुम्हारे प्रति प्रेम सच्चा है? अगर इस का जवाब ‘हां’ है तो वह लौट कर तुम से शादी कर ही लेगा. दूसरी तरफ वह ‘रोकने’ की रस्म से इसलिए इनकार कर रहा हो कि तुम से शादी करने का इच्छुक ही न हो.’’

‘‘ऐसी दिल छू लेने वाली बात मुंह से मत निकालिए, आंटी,’’ अर्चना का गला भर आया.

‘‘बेटी, यह कभी मत भूलो कि तथ्यों से भावनाएं सदा हारती हैं. हमारे चाहने भर से जिंदगी के यथार्थ नहीं बदलते,’’ मैं ने उसे कोमल लहजे में समझाया.

‘‘मुझे संदीप पर पूरा विश्वास है,’’ उस ने यह बात मानो मेरे बजाय खुद से कही थी.

‘‘होना भी चाहिए,’’ मैं ने प्यार से उस की पीठ थपथपाई.

‘‘आंटी, मेरी समस्या का दूसरा पहलू क्या है?’’ अर्चना ने मुसकराने की कोशिश करते हुए पूछा.

‘‘तुम्हारी खुशी...तुम्हारे मन की सुखशांति,’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, आंटी.’’

‘‘अभी इस बारे में मुझ से कुछ मत पूछो. पर मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूं कि संदीप के विदेश जाने में अभी 2 सप्ताह बचे हैं और इस समय के अंदर ही तुम्हारी समस्या का उचित समाधान मैं ढूंढ़ लूंगी.’’

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ऐसा आश्वासन पा कर अर्चना ने मुझ से आगे कुछ नहीं पूछा.

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