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मां ने बेटी के इस बदलाव को सकारात्मक ढंग से लिया. उन्होंने सोचा कि शायद अमृता उन के धार्मिक क्रियाकलापों में रुचि लेने लग गई है. उन्होंने एक दिन गुरुजी को घर बुलाया. बड़ी मुश्किल से अमृता गुरुजी से मिलने को तैयार हुई थी. गुरुजी भी अमृता से मिल कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि एक सुंदर, पढ़ीलिखी युवती अगर उन के आश्रम से जुड़ जाएगी तो उन का भला ही होगा.

गुरुजी ने अमृता के मनोविचार भांपे और उस के शुरुआती विरोध को दिल से स्वीकारा. उन्होंने स्वीकार किया कि वाकई कुछ मामलों में उन का आश्रम बेहतर नहीं है. अमृता ने जो बातें बताईं वे अब तक किसी ने कहने की हिम्मत नहीं की थी इसलिए वह उस के बहुत आभारी हैं.

अमृता ने गुरुजी से बात तो महज मां का मन रखने को की थी पर गुरुजी का मनोविज्ञान वह भांप न सकी. गुरुजी उस की हर बात का समर्थन करते रहे. अब नारी की हर बात का समर्थन यदि कोई पुरुष करता रहे तो यह तो नारी मन की स्वाभाविक दुर्बलता है कि वह खुश होती है. अमृता बहुत दिन से अपने बारे में नकारात्मक बातें सुनसुन कर परेशान थी. उस ने गुरुजी से यही उम्मीद की थी कि वह उसे सारी दुनिया का ज्ञान दे डालेंगे, लेकिन गुरुजी ने सब्र से काम लिया और उस से सारी स्थिति ही पलट गई.

गुरुजी जब भी मिलते उस की तारीफों के पुल बांधते. अमृता का नारी मन बहुत दिन से अपनी तारीफ सुनने को तरस रहा था. अब जब गुरुजी की ओर से प्रशंसा रूपी धारा बही तो वह अपनेआप को रोक नहीं  पाई और धीरेधीरे उस धारा में बहने लगी. अब वह गुरुजी की बातें सुन कर गुस्सा नहीं होती थी बल्कि उन की बहुत सी बातों का समर्थन करने लगी.

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