नीचे सास आराम से बरगद पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठी पंडित जी से बतिया रही थीं.
आभा को डरने की बीमारी रही है शुरू से. जब से ब्याह कर आई थीं, इस मंदिर में शिव की पूजा कर के डर भगाने की कोशिश करती थीं. अब बहू है तो पूजा के लिए उसे ही ऊपर भेज पंडित जी से नाना तरह के डर भगाने के उपाय पूछा करती हैं. 10 सालों से सेवाराम पंडित इन के घर के पुरोहित हैं.
वे आएदिन इन्हें विधिविधान से पूजा बताते रहते और आभा नियम से पंडित सेवाराम से पूजा करवाती रहतीं. भले ये लोग कुर्मी जाति से हैं, पंडित जी को इस घर से सेवामेवा खूब हासिल होता.
आजकल पंडित जी का बेटा ही ऊपर मंदिर में सुबह की पूजा देख लेता है. उस के औफिस चले जाने के बाद 11 बजे तक पंडित जी ऊपर जा कर दर्शनार्थियों की पूजा का भार संभालते. पत्नी रही नहीं, 25 साल का बेटा क्षितिज सुबह 7 बजे से मंदिर की साफसफाई और पूजा का दायित्व संभालता है. साढ़े 10 बजे नीचे अपने घर वापस आ कर जल्दी तैयार हो कर कचहरी निकलता है. कचहरी यानी उस का औफिस.
जिन सीनियर वकील के अंतर्गत वह जूनियर वकील की हैसियत से काम सीख रहा है और कानून की पढ़ाई के अंतिम वर्ष का समापन कर रहा है, उन रामेश्वर की एक बात वह कतई बरदाश्त नहीं कर पाता.
रामेश्वर उसे उस के नाम 'क्षितिज' से न बुला कर भरी सभा में 'पंडी जी' कहते हैं.
एक तो पंडित कहलाना उसे यों ही नागवार गुजरता, कम नहीं झेला था उस ने कालेज में, तिस पर सब के सामने पंडी जी. लगता है, धरती फटे और वह सब लोगों को उस गड्ढे में डाल गायब हो जाए.