पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : तिजोरी एक तेजतर्रार और होशियार लड़की थी. वह अपने पिता के काम में हाथ बंटाती और भाई के साथ गुल्लीडंडा खेलती. गांव में बिजली महकमे का काम चल रहा था. कौंट्रैक्टर सुनील को तिजोरी भा गई और वह उस के साथ नजदीकियां बढ़ाने लगा. उस के इर्दगिर्द रहने लगा. अब पढि़ए आगे...
पानी की बोतलें ले कर तिजोरी के बारे में ही सोचते हुए जब सुनील श्रीकांत के पास पहुंचा, तब तक हाथों में डंडा लिए और गुल्ली को रखते हुए तिजोरी भी वहां पहुंच गई. वहां एक के ऊपर एक 9 खंभों की ऊंचाई की कुल 19 लाइनें थीं.
हाथ में लिए डंडे से तिजोरी ने ऊंचाई पर रखे खंभों को गिना, फिर चौड़ाई की लाइनों को गिन कर मन ही मन 19 को 9 से गुणा कर के बता दिया... कुल खंभे 171 हैं.
सुनील ने रजिस्टर से मिलान किया. स्टौक रजिस्टर भी अब तक आए खंभों की तादाद इतनी ही दिखा रहा था.
सुनील और श्रीकांत हैरानी से एकदूसरे का मुंह ताकने लगे, तभी तिजोरी सुनील से बोली, ‘‘चल रहे हो गुल्लीडंडा खेलने?’’
अपने भरोसेमंद शादीशुदा असिस्टैंट श्रीकांत को जरूरी निर्देश दे कर सुनील तिजोरी के पीछेपीछे उस खाली खेत तक आ गया, जहां महेश बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था.
सुनील को देख कर महेश भी पहचान गया. महेश के पास पहुंच कर तिजोरी बोली, ‘‘तुझे अगर प्यास लगी है, तो यह ले चाबी और गोदाम का शटर खोल कर पानी पी कर आ जा, फिर हम तीनों गुल्लीडंडा खेलेंगे.’’
‘‘नहीं, मुझे अभी प्यास नहीं लगी है. चलो, खेलते हैं. मैं ने यह छोटा सा गड्ढा खोद कर अंडाकार गुच्ची बना दी है, लेकिन पहला नंबर मेरा रहेगा.’’