मगर कुछ दिनों बाद जब दाग बिंदी से बाहर झांकने लगा तो सुखिया की पत्नी शांति का ध्यान उस पर गया. उस ने पूछा, ‘‘लक्ष्मी, यह तुम्हारे माथे पर दाग कैसा है?’’ ‘‘पता नहीं, यह कैसे हो गया. मैं ने तो कई देशी इलाज कर लिए मगर यह तो ठीक ही नहीं हो रहा, आगे से आगे बढ़ता ही जा रहा है,’’ कहते हुए लक्ष्मी रोंआसी सी हो गई.
‘‘अरे, बस इतनी सी बात. तुम नौलखा बाबा के नाम की तांती क्यों नहीं बांध लेती? इसे अपने दाएं हाथ पर बांध कर मन्नत मांग लो कि ठीक होते ही बाबा के दरबार में पैदल जा कर
धोक लगा कर आओगी… फिर देखो चमत्कार… सफेद दाग जड़ से न चला जाए तो कहना…’’ शांति ने दावे से कहा. ‘‘क्या ऐसा करने से यह दाग सचमुच ठीक हो जाएगा?’’ लक्ष्मी ने हैरानी से पूछा.
‘‘यही तो परेशानी है… रामदीन भैया की तरह तुम्हें भी बाबा पर भरोसा नहीं… अरे, बाबा तो अंधों को आंखें, लंगड़ों को पैर और बांझ को बेटा देने वाले हैं… देखती नहीं, हर साल लाखों भक्त कैसे उन के दर पर दौड़े चले आते हैं… अगर उन में कोई अनहोनी ताकत न होती तो कोई जाता क्या?’’ शांति ने उस की कमअक्ली पर तरस खाते हुए समझाया.
लक्ष्मी को अब भी सफेद दाग के इतनी आसानी से खत्म होने का भरोसा नहीं था. उस ने शक की निगाह से शांति की तरफ देखा. ‘‘मेरा अपना ही किस्सा सुन… मेरी शादी के बाद 4 साल तक भी मेरी गोद हरी नहीं हुई थी. हम सारे उपाय कर के निराश हो चुके थे. डाक्टर और हकीम भी हार मान गए थे. एक डाक्टर ने तो यहां तक कह दिया था कि मैं कभी मां नहीं बन सकती क्योंकि इन में ही कुछ कमी है. तब हमें किसी ने बाबा के दरबार में जाने की भली सलाह दी.
‘‘हारे का सहारा… नौलखा बाबा हमारा… और हम दोनों गिर पड़े बाबा के चरणों में… पुजारीजी से बाबा के नाम की तांती बंधवाई और सब दवादारू छोड़ कर हर महीने उन के दर्शनों को जाते रहे. और देखो बाबा का चमत्कार… अगले साल ही हरिया मेरी गोद में खेल रहा था,’’ शांति ने पूरे यकीन से कहा. शाम को अब रामदीन घर आया तो लक्ष्मी ने उसे अपने सफेद दाग के बारे में बताया और बाबा की तांती का भी जिक्र किया.
लक्ष्मी की सफेद दाग वाली बात सुन कर रामदीन के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उस ने पत्नी को समझा कर शहर के चमड़ी के किसी अच्छे डाक्टर को दिखाने की बात की मगर लक्ष्मी पर तो जैसे शांति की बातों का जादू चला हुआ था. लक्ष्मी ने कहा, ‘‘ठीक है. डाक्टर और अस्पताल अपनी जगह हैं और आस्था अपनी जगह… एक बार शांति की बात मान कर तांती बांधने में हर्ज ही क्या है? अगर फायदा न हुआ तो डाक्टर कहां भागे जा रहे हैं… बाद में दिखा देंगे.’’ रामदीन को गुस्से के साथसाथ हंसी भी आ गई. उस ने अपने बचपन का एक किस्सा लक्ष्मी को सुनाया कि उस की बड़ी बहन रानी की गरदन पर छोटेछोटे मस्से हो गए थे. मां ने उस की बांह पर तांती बांध कर मन्नत मांगी कि मस्से ठीक होते ही वे बाबा के मंदिर में 2 झाड़ू चढ़ा कर आएंगी. उन्हें बाबा के चमत्कार पर पूरा भरोसा था और सचमुच कुछ ही दिनों में रानी की गरदन से सारे मस्से गायब हो गए.
मां ने बहन के साथ बाबा के मंदिर में जा कर धोक लगाई और श्रद्धा से 2 झाड़ू वहां देवरे पर चढ़ाईं. मेरा हंसतेहंसते बुरा हाल हो गया था जब रानी ने मुझे बताया कि उस ने चुपकेचुपके चमड़ी के माहिर डाक्टर की सलाह पर दवाएं खाई थीं.
रामदीन को हंसता देख लक्ष्मी आगबबूला हो गई. शांति से होते हुए बात सुखिया तक पहुंची तो वह भी आया रामदीन को समझाने के लिए. मगर रामदीन ने वहां जाने से साफ इनकार कर दिया. लक्ष्मी ने उसे पति धर्म का वास्ता दिया और एक आखिरी बार अपनी बात मानने की गुजारिश की तो आखिर में रामदीन को रिश्तों के आगे झुकना ही पड़ा और वह न चाहते हुए भी अपनों का मन रखने के लिए सुखिया के साथ लक्ष्मी को ले कर नौलखा बाबा के देवरे पर जा पहुंचा.
मंदिर के पीछे ही बड़े पुजारी का बड़ा सा कमरा बना हुआ था. चूंकि वह सुखिया को पहले से ही जानता था इसलिए तुरंत ही उसे भीतर बुला लिया. बाहर खड़ा रामदीन कमरे का मुआयना करने लगा. एक ही कमरे में पुजारीजी ने सारी मौडर्न सुखसुविधाएं जुटा रखी थीं. गजब की ठंडक थी अंदर… रामदीन का ध्यान दीवार पर लगे एयरकंडीशनर की तरफ चला गया. दीवार पर एक बड़ा सा टैलीविजन भी लगा था.
अभी रामदीन अचंभे से सबकुछ देख ही रहा था कि सुखिया ने उसे और लक्ष्मी को अंदर आने का इशारा किया. पुजारी ने लक्ष्मी पर एक भरपूर नजर डाल कर देखा, फिर उस ने कुछ मंत्रों का जाप करते हुए लक्ष्मी के दाएं हाथ पर काले धागे की तांती बांध दी. तांती बांधते समय जिस तरह से पुजारी लक्ष्मी का हाथ सहला रहा था, उसे देख कर रामदीन की त्योरियां चढ़ गईं. लक्ष्मी भी थोड़ी परेशान हो गई तो पुजारी ने माहौल की नजाकत को भांपते हुए बाबा के चरणों में से थोड़ी सी भस्म ले कर उसे चटा दी और आशीर्वाद के बदले में एक मोटी रकम दक्षिणा के रूप में वसूल ली.
लक्ष्मी ने पूछा, ‘‘पुजारीजी, यह दाग कितने दिन में ठीक हो जाएगा?’’ ‘‘यह तो बाबा की मेहर पर है… और साथ ही ही भक्त के भरोसे पर भी… कृपा तो वे ही करेंगे… मगर हां, जिन के मन में बाबा के प्रति जरा भी शक हो, उन पर बाबा की मेहर नहीं होती…’’ लक्ष्मी उस की गोलमोल बातों से कुछ समझी कुछ नहीं समझी और पुजारी को प्रणाम कर के कमरे से बाहर निकल आई.
रास्तेभर जहां सुखिया तो बाबा की ही महिमा का बखान करता रहा वहीं रामदीन की आंखों के सामने पुजारी का लक्ष्मी का हाथ सहलाना ही घूमता रहा. 2 महीने हो गए मगर दाग मिटने या कम होने के बजाय बढ़ ही रहा था. हालांकि लक्ष्मी को तांती पर पूरा भरोसा था, मगर रामदीन को चिंता होने लगी. उस ने सुखिया के सामने अपनी चिंता जाहिर की और लक्ष्मी को भी डाक्टर के पास चलने को कहा, तो सुखिया उखड़ गया. वह बोला, ‘‘तुम्हारा यह अविश्वास ही भाभी की बीमारी ठीक नहीं होने दे रहा… तुम कल ही चलो मेरे साथ पुजारीजी के पास… तुम्हारा सारा शक दूर हो जाएगा.’’
‘‘तुम रहने दो, बेकार क्यों अपनी छुट्टी खराब करते हो… मैं और लक्ष्मी ही हो आएंगे,’’ रामदीन ने हथियार डालते हुए कहा. वह अपने दोस्त को नाराज नहीं करना चाहता था. रामदीन को वहां जाने के लिए छुट्टी लेनी पड़ी. लक्ष्मी की तनख्वाह से भी एक दिन नागा होने से मालकिन ने पैसे काट लिए.