स्तब्ध रह जाती थी मैं. कैसी बातें करती हैं भाभी. पहलेपहल तो सब मुझे शक से देखते रहे थे फिर धीरेधीरे समझ गए कि यह सब भाभी के ही दिमाग की उपज है.
भैया से 4-5 साल छोटी हूं मैं और मांबाप की लाड़ली, समझदार बेटी जो भाभी के आते ही चोर, चुगलखोर और पता नहीं क्याक्या बन गई थी.
‘यह क्या हो गया है तुम्हें चंदा, तुम भाभी से झगड़ा क्यों करती हो? उस का सामान भी उठा ले जाती हो और पैसे भी निकाल लेती हो. तुम तो ऐसी नहीं थीं. क्या भाभी से तालमेल बिठाना नहीं चाहती हो? तुम्हें भी तो एक दिन ससुराल जाना है और अगर तुम्हारी ननद भी ऐसा ही करे तुम्हारे साथ तो कैसा लगेगा तुम्हें?’ भैया ने अकेले में ले जा कर एक दिन पूछा था.
मेरे तो पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई थी. यह क्या कह रहे हैं भैया. तब समझ में आया भैया के खिंचे- खिंचे रहने का कारण.
‘मैं ने भाभी के पैसे निकाल लिए? नहीं तो भैया, जरूरत होगी तो आप से या पिताजी से मांग लूंगी. भाभी के पैसे चुराऊंगी क्यों मैं?’
‘तुम ने अपनी भाभी के 300 रुपए नहीं निकाल लिए? और वह शिकायत कर रही है कि उस का भारी दुपट्टा और सुनहरी वाली सैंडल भी...’
‘भैया, भारी दुपट्टा मेरे किस काम का और भाभी के पैर का नाप मेरे पैर में कहां आता है? कैसी बेसिरपैर की बातें करते हो तुम, जरा सोचो, दुलहन का सामान मेरे किस काम का?’
‘वह कहती है कि तुम उस का सामान चुरा कर अपने लिए संभाल रही हो.’
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