निशा को तंग करने के लिए मैं उस रात खाना बिलकुल न खाता पर ऐसा कर नहीं सका. उस ने मुझे बताया कि वह और पापा सीधे चाचाजी के घर गए थे. दोनों बाहर से कुछ भी खा कर नहीं आए थे. इन तथ्यों को जान कर मेरा गुस्सा गायब हो गया और हम दोनों ने साथसाथ खाना खाया.

अगले दिन निशा और मैं ने साथसाथ फिल्म देखी और खाना भी बाहर खा कर लौटे. यों घूमना उसे बड़ा भा रहा था और वह खूब खुल कर मेरे साथ हंसबोल रही थी. उस की खुशी ने मुझे गहरा संतोष प्रदान किया था.

पापा ने एक ही झटका दे कर मेरी देर से घर आने की आदत को छुड़ा दिया था. यारदोस्त मुझे रोकने की कोशिश में असफल रहते थे. मैं निशा को खुश और संतुष्ट रखने की अपनी जिम्मेदारी पापा को कतई नहीं सौंपना चाहता था.

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पापा की अजीबोगरीब हरकतों के चलते मां और शिखा भी बदले. ऐसा हुआ भी कि एक दिन पापा को पूरे घर में झाड़ू लगानी पड़ी. शिखा या मां ने उन्हें ऐसा करने से रोका नहीं था.

उस दिन शाम को चाचा सपरिवार हमारे घर आए थे. पापा ने सब के सामने घर में झाड़ू लगाने का यों अकड़ कर बखान किया मानो बहुत बड़ा तीर मारा हो. मां और शिखा उस वक्त तो सब के साथ हंसीं, पर बाद में पापा से खूब झगड़े भी.

‘‘जो सच है उसे क्यों छिपाना?’’ पापा बड़े भोले बन गए, ‘‘तुम लोगों को मेरा कहना बुरा लगा, यह तुम दोनों की प्रौब्लम है. मैं तो बहू का कैसे भी काम में हाथ बटाने से कभी नहीं हिचकिचाऊंगा.’’

‘‘बुढ़ापे में तुम्हारा दिमाग सठिया गया है,’’ मां ने चिढ़ कर यह बात कही, तो पापा का ठहाका पूरे घर में गूंजा और हमसब भी मुसकराने लगे.

इस में कोई शक नहीं कि पापा के कारण निशा की दिनचर्या बहुत व्यवस्थित हो गई थी. वह बहुत बुरी तरह से थकती नहीं थी. मेरी यह शिकायत भी दूर हो गई थी कि उसे घर में मेरे पास बैठने का वक्त नहीं मिलता था. धीरेधीरे मां और शिखा निशा का घर के कामों में हाथ बटाने की आदी हो गईं.

बहुत खुश व संतुष्ट नजर आ रहे पापा को एक दिन सुबहसुबह मां ने उन्हीं के अंदाज में झटका दिया था.

मां सुबहसुबह रजाई से निकल कर बाहर जाने को तैयार होने लगीं तो पापा ने चौंक कर उन से पूछा, ‘‘इस वक्त कहां जा रही हो?’’

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‘‘दूध लाने. ताजी सब्जियां भी ले आऊंगी मंडी से,’’ मां ने नाटकीय उत्साह दिखाते हुए जवाब दिया.

‘‘दूध लाने का काम तुम्हारे बेटे का है और सब्जियां लाने का काम तुम कुछ देर बाद करना.’’

‘‘ये दोनों जिम्मेदारियां मैं ने अब अपने कंधों पर ले ली हैं.’’

‘‘बेकार की बात मत करो, इतनी ठंड में बाहर जाओगी तो सारे जोड़ अकड़ कर दर्द करने लगेंगे. गठिया के मरीज को ठंड से बचना चाहिए. दूध रवि ही लाएगा.’’

पापा ने मुझे आवाज लगाई तो मैं फटाफट उन के कमरे में पहुंच गया. मां ने पिछली रात ही मुझे अपना इरादा बता दिया था. पापा को घेरने का हम दोनों का कार्यक्रम पूरी तरह तैयार था.

‘‘रवि, दूध तुम्हें ही लाना…’’

‘‘नहीं, दूध मैं ही लेने जाया करूंगी,’’ मां ने पापा की बात जिद्दी लहजे में फौरन काट दी.

‘‘मां की बात पर ध्यान मत दे और दूध लेने चला जा तू,’’ पापा ने मुझे आदेश दिया.

‘‘देखो जी, मेरे कारण आप रवि के साथ मत उलझो. मेरी सहायता करनी हो तो खुद करो. मेरे कारण रवि डांट खाए, यह मुझे मंजूर नहीं,’’ मां तन कर पापा के सामने खड़ी हो गईं.

‘‘मैं क्या सहायता करूं तुम्हारी?’’ पापा चौंक पड़े.

‘‘मेरी गठिया की फिक्र है तो दूध और सब्जी खुद ले आइए. रवि को कुछ देर ज्यादा सोने को मिलना ही चाहिए, नहीं तो सारा दिन थका सा नजर आता है. हां, आप को नींद प्यारी है तो लेटे रहो और मुझे अपना काम करने दो. रवि, तू जा कर आराम कर,’’ मां ने गरम मोजे पहनने शुरू कर दिए.

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पापा अपने ही जाल में फंस गए. मां मुझे ले कर वही दलील दे रही थीं जो पापा निशा को ले कर देते थे. जैसे निशा ने अपने कारण किसी अन्य से न झगड़ने का वचन हम सब से लिया था कुछ वैसी ही बात मां अब पापा से कर रही थीं.

‘‘तुम कहीं नहीं जा रही हो,’’ पापा ने झटके से रजाई एक तरफ फेंकते हुए क्रोधित लहजे में कहा, ‘‘मेरा आराम तुम्हारी आंखों को चुभता है तो मैं ही दूध लाने जाता हूं.’’

‘‘यह काम आप को ही करना चाहिए. इस से मोटापा, शूगर और बीपी, ये तीनों ही कम रहेंगे,’’ मां ने मुझे देख कर आंख मारी और फिर से रजाई में घुसने को कपड़े बदलने लगीं.

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पापा बड़बड़ाते हुए गुसलखाने में घुस गए और मैं अपने कमरे की तरफ चल पड़ा. वैसे एक बात मेरी समझ में उसी समय आई. मां ने जिस अंदाज में मेरी तरफ देखते हुए आंख मारी थी वैसा ही मैं ने पापा को निशा के जन्मदिन पर करते देखा था. यानी कि बहू और ससुर के बीच वैसी ही मिलीभगत चल रही थी जैसी मां और मेरे बीच पापा को फांसने के लिए चली थी. पापा के कारण निशा के ऊपर से गृहकार्यों का बोझ कम हो गया था और अब मां के कारण पापा का सवेरे सैर को जाना शुरू होने वाला था. इस कारण उन का स्वास्थ्य बेहतर रहेगा, इस में कोई शक नहीं था.

अपने मन की बात को किसी के सामने, निशा के भी नहीं, जाहिर न करने का फैसला मन ही मन करते हुए मैं भी रजाई में कुछ देर और नींद का आनंद लेने के लिए खुशीखुशी घुस गया था.

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