‘‘क्या मुसीबत है,’’ उन्होंने अचानक पूरी ताकत लगा कर पापा के हाथ से तश्तरी छीन ही ली और उन का हाथ पकड़ कर खींचती हुई रसोई से बाहर ले आईं.

‘‘आप को यह काम शोभा देगा क्या? जाइए, अपने कमरे में आराम कीजिए. मैं करवा रही हूं बहू के साथ काम,’’ मां मुड़ीं और किलसती सी निशा के पास पहुंच कर बरतन साफ कराने लगीं.

गुसलखाने से बाहर आते हुए मैं ने साफसाफ देखा पापा शरारती अंदाज में मुसकरा कर निशा की तरफ आंख मारते हुए जैसे कह रहे हों कि आ गया ऊंट पहाड़ के नीचे. फिर वे अपने कमरे की तरफ चले गए. मेरे देखते ही देखते शिखा भी रसोई में आ गई.

‘‘इतने से बरतनों को 3-3 लोग मांजें, यह भी कोई बात हुई. मुझे सुबह से पढ़ने का मौका नहीं मिला है. मां, जब भाभी हैं यहां तो तुम ने मुझे क्यों चिल्ला कर बुलाया?’’ शिखा गुस्से से बड़बड़ाने लगी.

‘‘मैं ने इसलिए तुझे बुलाया क्योंकि तेरे पिताजी के सिर पर आज बरतन मंजवाने का भूत चढ़ा था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो?’’ शिखा ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मैं सही कह रही हूं. अब सारी रसोई संभलवा कर ही पढ़ने जाना, नहीं तो वे फिर यहां घुस आएंगे,’’ कह कर मां रसोई से बाहर आ गईं.

उस दिन से निशा के वचन व पापा की अजीबोगरीब हरकत के कारण शिखा मजबूरन पहली बार निशा का लगातार काम में हाथ बटाती रही.

इस में कोई शक नहीं कि शादी के कुछ दिनों बाद से ही निशा ने घर के सारे कामों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी. हर काम को भागभाग कर करना उस का स्वभाव था. इस कारण शिखा और मम्मी ने धीरेधीरे हर काम से हाथ खींचना शुरू कर दिया था. इस बात को ले कर मैं कभीकभी शोर मचाता, तो मां और शिखा ढकेछिपे अंदाज में मुझे जोरू का गुलाम ठहरा देतीं. झगड़े में इन दोनों से जीतना संभव नहीं था क्योंकि दोनों की जबानें तेज और पैनी हैं. पापा डपट कर शिखा या मां को अकसर काम में लगा देते थे, पर इस का फल निशा के लिए ठीक नहीं रहता. उसे अपनी सास व ननद की ढेर सारी कड़वी, तीखी बातें सुनने को मिलतीं.

अगले दिन सुबह पापा ने झाड़ू उठा कर सुबह 7 बजे से घर साफ करना शुरू किया, तो फिर घर में भगदड़ मच गई.

‘‘बहू, तुम नाश्ता बनाती रहो. मैं 15-20 मिनट में सारे घर की सफाई कर दूंगा,’’ कह कर पापा फिर से ड्राइंगरूम में झाड़ू लगाने लगे.

‘‘ऐसी क्या आफत आ रही है, पापा?’’ शिखा ने अपने कमरे से बाहर आ कर क्रोधित लहजे में कहा, ‘‘झाड़ू कुछ देर बाद भी लग सकती है.’’

‘‘घर की सारी सफाई सुबह ही होनी चाहिए,’’ पापा ने कहा.

‘‘लाइए, मुझे दीजिए झाड़ू,’’ शिखा ने बड़े जोर के झटके से उन के हाथ से झाड़ू खींची और हिंसक अंदाज में काम करते हुए सारे घर की सफाई कर दी.

वह फिर अपने कमरे में बंद हो गई और घंटे भर बाद कालेज जाने के लिए ही बाहर निकली. उस दिन जबरदस्त नाराजगी दर्शाते हुए वह बिना नाश्ता किए ही कालेज चली गई. मां ने इस कारण पापा से झगड़ा करना चाहा तो उन्होंने शांत लहजे में बस इतना ही कहा, ‘‘पहले मैं शोर मचाता था और अब चुपचाप बहू के काम में हाथ बटाता हूं क्योंकि हमसब ने उसे ऐसा करने का वचन दिया है. शिखा को मेरे हाथ से झाड़ू छीनने की कोई जरूरत नहीं थी.’’

‘‘रिटायरमैंट के बाद भी लोग कहीं न कहीं काम करने जाते हैं. तुम भी घर में पड़े रह कर घरगृहस्थी के कामों में टांग अड़ाना छोड़ो और कहीं नौकरी ढूंढ़ लो,’’ मां ने बुरा सा मुंह बना कर उन्हें नसीहत दी तो पापा ठहाका लगा कर हंस पड़े.

उस शाम मुझे औफिस से घर लौटने में फिर देर हो गई. पुराने यारदोस्तों के साथ घंटों गपशप करने की मेरी आदत छूटी नहीं थी. निशा ने कभी अपने मुंह से शिकायत नहीं की, पर यों लेट आने के कारण मैं अकसर मां और पिताजी से डांट खाता रहा हूं.

‘‘बहू के साथ कहीं घूमने जाया कर. उसे रिश्तेदारों और पड़ोसियों से मिलवाना चाहिए तुझे. यारदोस्तों के साथ शादी के बाद ज्यादा समय बरबाद करना छोड़ दे,’’ बारबार मुझे समझाया जाता, पर मैं अपनी आदत से मजबूर था.

मैं उस दिन करीब 9 बजे घर में घुसा तो मां ने बताया, ‘‘तेरी बहू और पिताजी घूमने गए हुए हैं.’’

‘‘कहां?’’ मैं ने माथे पर बल डाल कर पूछा.

‘‘फिल्म देखने गए हैं.’’

‘‘और खाना भी बाहर खा कर आएंगे,’’ शिखा ने मुझे भड़काया, ‘‘हम ने तो कभी नहीं सुना कि नई दुलहन पति के बजाय ससुर के साथ फिल्म देखने जाए.’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और गुस्से से भरा अपने कमरे में आ घुसा. मैं ने खाना खाने से भी इनकार कर दिया.

वे दोनों 10 बजे के बाद घर लौटे. पिताजी ने आवाज दे कर मुझे ड्राइंगरूम में बुला लिया.

‘‘खाना क्यों नहीं खाया है अभी तक तुम ने?’’ पापा ने सवाल किया.

‘‘भूख नहीं है मुझे,’’ मैं ने उखड़े लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं बहू को घुमाने ले गया, इस बात से नाराज है क्या?’’

‘‘इसे छोड़ गए, यह नाराजगी पैदा करने वाली बात नहीं है क्या?’’ मां ने वार्त्तालाप में दखल दिया, ‘‘इसे पहले से सारा कार्यक्रम बता देते तो क्या बिगड़ जाता आप का?’’

‘‘देखो भई, बहू के मामलों में मैं ने किसी को भी कुछ बतानासमझाना बंद कर दिया है. जहां मुझे लगता है कि उस के साथ गलत हो रहा है, मैं खुद कदम उठाने लगा हूं उस की सहायता के लिए. अब मेरे काम किसी को अच्छे लगें या बुरे, मुझे परवा नहीं,’’ पापा ने लापरवाही से कंधे उचकाए.

‘‘मैं आप से कुछ कह रहा हूं क्या?’’ मेरी नाराजगी अपनी जगह कायम रही.

‘‘बहू से भी कुछ मत कहना. मेरी जिद के कारण ही वह मेरे साथ गई थी. आगे भी अगर तुम ने यारदोस्तों के चक्कर में फंस कर बहू की उपेक्षा करनी जारी रखी तो हम फिर घूमने जाएंगे. हाउसफुल होने के कारण आज फिल्म नहीं देखी है हम दोनों ने. कल की 2 टिकटें लाए हैं. तुझे बहू के साथ जाने की फुरसत न हो तो मुझे बता देना. मैं ले जाऊंगा उसे अपने साथ,’’ अपनी बात कह कर पापा अपने कमरे की तरफ बढ़ गए.

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