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‘‘खानेवाने का कैसे चलता है फिर?’’

‘‘जानकी रात का खाना बना कर रख जाती है, सवेरे मैं देर से जाती हूं इसलिए आसानी से कुछ बना लेती हूं.’’

‘‘फिर भी कभी कुछ काम हो तो मुरली से कह देना, कर देगा.’’

‘‘थैंक्यू, अंकल. आप को भी जब फुरसत हो यहां आ जाइएगा. मैं तो 7 बजे तक आ जाता हूं,’’ राहुल ने कहा.  आनंद के जाने के कुछ देर बाद कपिल आया. बोला, ‘‘माफ करना भाई, फ्लैट बदलने के चक्कर में तुम्हारे आने की तारीख याद…’’

‘‘लेकिन बैठेबिठाए अच्छाभला फ्लैट बदलने की क्या जरूरत थी यार?’’ राहुल ने बात काटी.

‘‘जब उस बालकनी की वजह से जिसे इस्तेमाल करने की हमें फुरसत ही नहीं थी, आनंद साहब मुझे उस फ्लैट की मार्केट वैल्यू से कहीं ज्यादा दे रहे थे तो मैं फ्लैट क्यों न बदलता?’’  राहुल ने खुद को कहने से रोका कि हमें तो अभी तुम्हारी कमी महसूस नहीं हुई और शायद होगी भी नहीं. उसे न जाने क्यों आनंद अंकल अच्छे या यह कहो अपने से लगे थे. सब से अच्छी बात यह थी कि उन का व्यवहार बड़ा आत्मीय था.

अगली सुबह जया ने कहा, ‘‘आनंद अंकल के नाश्ते के बरतन मैं जानकी से भिजवाना भूल गई. तुम शाम को जानकी से कहना, दे आएगी.’’

लेकिन शाम को राहुल खुद ही बरतन लौटाने के बहाने आनंद के घर चला गया. आनंद बालकनी में बैठे थे, उन्होंने राहुल को भी वहीं बुला लिया.  ‘‘स्वच्छ तो खैर नहीं कह सकते लेकिन खुली हवा यहीं बैठ कर मिलती है और चलतीफिरती दुनिया भी नजर आ जाती है वरना तो वही औफिस के वातानुकूलित कमरे या घर के बैडरूम, ड्राइंगरूम और टैलीविजन की दुनिया, कुछ अलग सा महसूस होता है यहां बैठ कर,’’ आनंद ने कहा, ‘‘सुबह का तो खैर कोई मुकाबला ही नहीं है. यहां की ताजी हवा में कुछ देर बैठ जाओ तो दिनभर स्फूर्ति और चुस्ती बनी रहती है.’’  ‘‘तभी आप ने बहुत ऊंचे दामों में कपिल से यह फ्लैट बदला है,’’ राहुल बोला.  आनंद ने उसे गहरी नजरों से देखा और बोले, ‘‘कह सकते हो वैसे बालकनी के सुख देखते हुए यह कीमत कोई ज्यादा नहीं है. चाहो तो आजमा कर देख लो. सुबह अखबार तो पढ़ते ही होगे?’’

‘‘जी हां, चाय भी पीता हूं.’’

‘‘तो कल यह सब बालकनी में बैठ कर करो, सारा दिन ताजगी महसूस करोगे.’’

अगले दिन जया और राहुल सवेरे ही आनंद अंकल की बालकनी में आ कर बैठ गए. आनंद की बात ठीक थी, राहुल और जया अन्य दिनों की अपेक्षा दिन भर खुश रहे इसलिए रोज सुबह बालकनी में बैठने और आनंद के साथ खबरों पर टिप्पणियां करने का सिलसिला शुरू हो गया.  एक रविवार की सुबह आनंद ने जया  को आराम से अखबार पढ़ते देख कर पूछा, ‘‘आज संडे स्पैशल बे्रकफास्ट बनाने का मूड नहीं है क्या?’’

जया ने इनकार में सिर हिलाया, ‘‘संडे को हम ब्रेकफास्ट करते ही नहीं अंकल, चलतेफिरते फल, नट्स आदि खाते रहते हैं.’’

‘‘मैं तो भई संडे को हैवी ब्रेकफास्ट करता हूं, भरवां परांठे या पूरीभाजी का और फिर उसे पचाने के लिए जी भर कर गोल्फ खेलता हूं. तुम्हें गोल्फ का शौक नहीं है, राहुल?’’  राहुल ने उन की ओर हसरत से देखा और कहा, ‘‘है तो अंकल, लेकिन कभी खेलने का या यह कहिए देखने का मौका भी नहीं मिला.’’

‘‘समझो मौका मिल गया. चलो मेरे साथ.’’ और आनंद ने मुरली को आवाज दे कर राहुल और जया के लिए भी नाश्ता बनाने को कहा. नाश्ता कर आनंद और राहुल गोल्फ क्लब पहुंचे.  राहुल और आनंद के जाने के बाद मुरली गाड़ी में जया को ब्यूटी पार्लर ले गया. आज उस ने रिलैक्स हो कर पार्लर में आने का मजा लिया.  राहुल की तो बरसों पुरानी गोल्फ क्लब जाने की तमन्ना पूरी हो गई. खेलने के बाद अंकल के दोस्तों के साथ बैठ कर बीयर पीना और लंच लेना, फिर घर आ कर कुछ देर इतमीनान से सोना.  यह प्रत्येक रविवार का सिलसिला बन गया. जया भी इस सब से बहुत खुश थी, मुरली बगैर कहे सफाई के अलावा भी कई और काम कर देता था. मुरली के साथ जा कर वह अपने उन रिश्तेदारों या परिचितों से भी मिल लेती थी जिन से मिलने में राहुल को दिलचस्पी नहीं थी. शाम वह और राहुल इकट्ठे गुजारते थे. संक्षेप में आनंद अंकल के पड़ोस में आने से उन की जिंदगी में बहार आ गई थी. जया अकसर उन की पसंद का गाजर का हलवा या नाश्ता बना कर उन्हें भिजवाती रहती थी, कभी पिक्चर या सांस्कृतिक कार्यक्रम में जाने के लिए बगैर पूछे अंकल का टिकट भी ले आती थी.

कुछ अरसे तक तो सब ठीक चला फिर राहुल को लगने लगा कि जया का झुकाव अंकल की तरफ बढ़ता ही जा रहा है. औफिस से जल्दी लौटने पर वह अंकल को जबरदस्ती घर पर बुला लेती थी, कभी उन्हें अपनी शादी का वीडियो दिखाती थी, कभी साहिल की शादी का या राहुल के बचपन की तसवीरें.  अंकल भी उसे खुश करने के लिए दिलचस्पी से सब देखते रहते थे. तभी राहुल को प्रमोशन मिल गया. जाहिर है, जया ने सब से पहले यह खबर आनंद अंकल को सुनाई और उन्होंने उसी रात इस खुशी में क्लब में पार्टी दी जिस में कपिल, पूजा और अपार्टमैंट में रहने वाले कुछ और लोगों को भी बुलाया. जब राहुल के औफिस वालों ने दावत मांगी तो राहुल ने किसी रेस्तरां में दावत देने की सोची लेकिन खर्च बहुत आ रहा था. जया ने कहा कि दावत घर पर ही करेंगे. मुरली भी साथ रहेगा.  ‘‘लेकिन अंकल शाम को गाड़ी नहीं चलाते. अगर मुरली यहां रहेगा तो वे क्लब कैसे जाएंगे, शनिवार की शाम उन्हें घर में गुजारनी पड़ेगी,’’ राहुल ने कहा.

‘‘कमाल करते हो, राहुल. हमारी पार्टी छोड़ कर अंकल क्लब जाएंगे या अपने घर में शाम गुजारेंगे, यह तुम ने सोच भी कैसे लिया?’’

‘‘यानी अंकल पार्टी में आएंगे?’’ राहुल ने हैरानी से पूछा, ‘‘तुम ने यह भी सोचा है जया कि यह जवान लोगों की पार्टी है. उस में अंकल को बुलाने से हमारा मजा किरकिरा हो जाएगा.’’

जया चौंक गई. उस ने आहत स्वर में पूछा, ‘‘हर रविवार को अंकल के साथ गोल्फ क्लब जाने या कभी शाम को जिमखाना क्लब जाने में तुम्हारा मजा किरकिरा नहीं होता?’’  खैर, पार्टी बढि़या रही, अंकल ने पार्टी के मजे में खलल डालने के बजाय जान ही डाली और औफिस के लोग राहुल के उच्चकुलीन वर्ग के लोगों से संपर्क देख कर प्रभावित भी हुए. लेकिन राहुल को जया का अंकल से इतना लगाव चिढ़ की हद तक कचोटने लगा था.

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