27 फरवरी को नरेश की हत्या हुई थी. जाहिर था, किसी ने पैसे मांगे थे. नरेश ने पैसे नहीं दिए तो उस ने उसे मार दिया. पैसे किसे देना था, कहां देना था, इस का पता लगाना अब मुश्किल था. क्योंकि काल डिटेल्स में ऐसा कोई नंबर नहीं मिला था, जिस पर इस तरह पैसे वसूलने का शक किया जाता. इंसपेक्टर शर्मा ने पूछा, ‘‘नरेश ने आप से इस बारे में कोई चर्चा की थी?’’
‘‘नहीं.’’ ऐश्वर्या ने संक्षिप्त सा जवाब दिया.
‘‘ऐसा कैसे हो सकता है, आप उन की पत्नी हैं. ऐसे मामलों में पति अपनी पत्नी से जरूर जिक्र करता है.’’
‘‘हो सकता है, वह मुझे परेशान न करना चाहते रहे हों.’’
बहरहाल, इंसपेक्टर शर्मा ने उस कागज के टुकड़े को सहेज कर रख लिया. वह बाहर निकले तो उन्हें गार्ड की याद आ गई. वह गार्डरूम में पहुंचे तो वह कहीं दिखाई नहीं दिया. उस की जगह दूसरा गार्ड था. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘यहां एक दूसरा गार्ड था, वह कहां गया?’’
‘‘सर, वह तो गांव चला गया.’’
‘‘अब वह कब तक लौट कर आएगा?’’ इंसपेक्टर शर्मा ने पूछा.
‘‘साहब, यह तो यहां के चेयरमैन साहब ही बता सकते हैं.’’
‘‘उस का नामपता तो मिल सकता है?’’
‘‘साहब, मैं उस के बारे में कुछ नहीं बता सकता. मैं तो नयानया आया हूं. आप चाहें तो चेयरमैन साहब से पूछ लें.’’
संयोग से तभी चेयरमैन की कार अंदर दाखिल हुई. गार्ड ने इशारा किया तो साथ के सिपाही ने कार रोकवा ली. चेयरमैन जैसे ही कार से बाहर आए, इंसपेक्टर शर्मा ने उन के पास जा कर कहा, ‘‘मैं पुराने गार्ड के बारे में जानना चाहता हूं. उस का नामपता मिल सकता है?’’