व्हाय चीट इंडिया : आत्मा विहीन फिल्म

रेटिंग : डेढ़ स्टार

भारतीय शिक्षा प्रणाली को लेकर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं, जिनमें बच्चों को किस तरह की शिक्षा दी जानी चाहिए, इस पर बातें की जा चुकी हैं. फिर चाहे ‘थ्री इडीयट्स’हो या ‘तारे जमीन पर हो’ या ‘निल बटे सन्नाटा’. मगर शिक्षा तंत्र को चीटिंग माफिया किस तरह से खोखला कर रहा है, इस मुद्दे पर अभिनेता से निर्माता बने इमरान हाशमी फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ लेकर आए हैं. कहानी के स्तर पर फिल्म में कुछ भी नया नही है. फिल्म में जो कुछ दिखाया गया है, उससे हर आम इंसान परिचित है. माना कि फिल्म हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में व्याप्त कुप्रथा, घोटाले, भ्रष्टाचार आदि को उजागर करती है, इमरान हाशमी ने इस अहम मुद्दे पर एक असरहीन फिल्म बनाई है. यह व्यंगात्मक फिल्म पूरे सिस्टम व शिक्षा प्रणाली के दांत खट्टे कर सकती थी. यह फिल्म शिक्षा संस्थानों को चलाने वालो के परखच्चे उड़ा सकती थी, मगर फिल्म ऐसा करने में पूरी तरह से असफल रही है.

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फिल्म की कहानी झांसी निवासी राकेश सिंह उर्फ रौकी (इमरान हाशमी) के इर्द गिर्द घूमती है. रौकी का अपना एक शालीन व सभ्य परिवार है. मगर रौकी अपने पिता व परिवार के सपनों के बोझ तले दबकर झांसी से जौनपुर आकर कोचिंग क्लास खोलकर शिक्षा तंत्र में चीटिंग के ऐसे व्यवसाय पर चल पड़ता है, जिसे वह सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी सही मानता है. रौकी पूरे उत्तर प्रदेश का बहुत बड़ा चीटिंग माफिया बन चुका है. उसने शिक्षा तंत्र में अपनी अंदर तक गहरी पैठ बना ली है और अब शिक्षा तंत्र की खामियों का भरपूर फायदा उठा रहा है. उसके संबंध विधायकों से लेकर मंत्रियों तक हैं. अपने चीटिंग के व्यवसाय में वह गरीब और मेधावी छात्रों का उपयोग करता है. इन छात्रों को एक धनराशि देकर खुद को अपराधमुक्त मान लेता है. फिर यह गरीब मेधावी छात्र अपनी बुद्धि व अपनी पढ़ाई के आधार पर नकारा व अमीर छात्रों के बदले परीक्षा देते हैं. रौकी इन्ही नकारा व अमीर बच्चों के माता पिता से एक मोटी रकम वसूलता रहता है.

एक दिन उसे पता चलता है कि उसके शहर का एक लड़का सत्येंद्र दुबे उर्फ सत्तू (स्निग्धादीप चटर्जी) कोटा से पढ़ाई करके इंजीनियिंरंग प्रवेश परीक्षा में काफी बेहतरीन नंबर लाता है. अब पूरे शहर में उसका जलवा हो जाता है. रौकी तुरंत सत्तू से मिलता है और उसे सुनहरे सपने दिखाते हुए एक लड़के के लिए इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा देने के लिए उसे पचास हजार रूपए देने की बात करता है. परिवार की आर्थिक हालत देखते हुए सत्तू उसकी बातों में फंस जाता है. धीरे धीर सत्तू की बहन नुपुर (श्रेया धनवंतरी) भी राकेश सिंह से प्रभावित हो जाती है और उसे अपने भावी पति के रूप में देखने लगती है. उधर रौकी धीरे धीरे सत्तू में ड्रग्स व लड़की सहित हर बुरी आदत का शिकार बना देता है. एक दिन कुछ अमीर लोगों की शिकायत पर पुलिस अफसर कुरैशी उसे पकड़ते हैं, मगर विधायक जी उसे छुड़ा लेते हैं. इसी बीच ड्रग्स लेने के चक्कर में सत्तू को कौलेज से निकाल दिया जाता है, तब रौकी उसे फर्जी डिग्री देकर भारत से बाहर कतार में नौकरी करने के लिए भेजकर सत्तू व उसके परिवार से संबंध खत्म कर लेता है. कतार में सत्तू की डिग्री फर्जी है यह राज खुल जाता है. सत्तू किसी तरह अपने घर वापस आकर घर के अंदर ही आत्महत्या कर लेता है. इसी बीच पुलिस अफसर कुरैशी की मुलाकात नुपुर से होती है. दोनों राकेश सिंह को सबक सिखाने की ठान लेते हैं. इधर राकेश सिंह ने अपने चीटिंग के व्यवसाय का जाल मुंबई में फैला लिया है. अब वह एमबीए का पर्चा लीक कर करोड़ो कमा रहा है. नुपर नौकरी करने के लिए मुंबई पहुंचती है और राकेश के संपर्क में आती है, दोनों के बीच प्रेम संबंध शुरू होते हैं. पर एक दिन नुपुर की ही मदद से कुरैशी, राकेश सिंह उर्फ रौकी को सबूत के साथ गिरफ्तार करता है. अदालत में रौकी खुद को रौबिनहुड साबित करने का प्रयास करते हुए शिक्षा तंत्र की बुराइयों पर भाषणबाजी करता है. रौकी को सजा हो जाती है. जेल में विधायक जी मिलते हैं. अंत में पता चलता है कि रौकी ने अपने पिता के नाम पर बहुत बड़ा इंजीनियरिंग कौलेज खोल दिया है. अब उसके पिता खुश हैं. तथा रौकी का धंधा उसी गति से चल रहा है.

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कमजोर पटकथा व विषय के घटिया सिनेमाई कारण के चलते पूरी फिल्म मूल मुद्दे को सही परिप्रेक्ष्य में पेश नहीं कर पाती है. निर्देशक सौमिक सेन ने फिल्म के हीरो इमरान हाशमी की एंट्री एक सिनेमाघर में गुंडों से मारपीट के साथ दिखायी है, जो कि बहुत ही घटिया है और यह काम उसके व्यवसाय से भी परे है. जबकि बिना मारपीट के भी इस दृश्य में एक धूर्त ,कमीने, चालाक व विधायकों से संबंध रखने वाले इंसान रौकी का परिचय दिया जा सकता था. पर सिनेमा की सही समझ न रखने वाले सौमिक सेन से इस तरह की उम्मीद करना ही गलत है. बतौर लेखक सौमिक सेन पुलिस औफिसर कुरैशी के किरदार को भी ठीक से चित्रित नहीं कर पाए. कितनी अजीब सी बात है कि फिल्म हर इंसान को चालाक होने यानी कि गलत काम करने की प्रेरणा देती है. फिल्म के अंत में जिस तरह रौकी अपने पिता के नाम पर कौलेज खोलकर अपना काम करता हुआ दिखाया गया है, उससे यही बात उभरती है कि बुरे काम का बुरा नतीजा नहीं होता. फिल्म में लालच व लालची होने का महिमा मंडन किया गया है. फिल्मकार इस बात के लिए अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि उन्होंने आम फिल्मों की तरह अपनी फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ में गलत इंसान का मानवीयकरण करते हुए उसे प्रायश्चित करते नहीं दिखाया.

फिल्मकार चीटिंग करने वालों के पकड़े जाने पर उनकी मानसिकता को गहराई से पकड़ने में बुरी तरह से नाकाम रहे हैं.

कथानक के स्तर पर काफी विरोधाभास है. रौकी के पिता का किरदार भी आत्मविरोधाभासी बनकर उभरता है, पूरी फिल्म में वह अपने बेटे के खिलाफ हैं, पर अंत में उनके नाम पर कौलेज के खुलते ही वह रौकी के सबसे बड़े प्रशंसक बन जाते हैं. कम से कम भारत जैसे देश में पुराने समय के लोगों की सोच इस तरह नही बदलती है. कुल मिलाकर पटकथा के स्तर पर इतनी कमियां हैं कि उन्हें गिनाने में कई पन्ने भर जाएंगे. फिल्मकार ने शिक्षा जगत की खामियों व चीटिंग माफिया जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को बहुत ही गलत ढंग से पेशकर इस मुद्दे की अहमियत को ही खत्म कर दिया.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो सत्तू के किरदार में स्निग्धदीप चटर्जी ने काफी अच्छा अभिनय किया है और उससे काफी उम्मीदें जगती हैं.. इमरान हाशमी बहुत प्रभावित नहीं करते, इसके लिए कुछ हद तक लेखक व निर्देशक भी जिम्मेदार हैं. वेब सीरीज ‘‘लेडीज रूम’’से अपनी प्रतिभा को साबित कर चुकीं अभिनेत्री श्रेया धनवंतरी को इस फिल्म में सिर्फ मुस्कुराने के अलावा कुछ करने का अवसर ही नहीं दिया गया, यह भी लेखक व निर्देशक की कमजोरियों के चलते ही हुआ. फिल्म खत्म होने के बाद सवाल उठता है कि फिल्मों में करियर शुरू करने के लिए श्रेया धनवंतरी ने ‘व्हाय चीट इंडिया’को क्या सोचकर चुना. छोटे किरदारों में कुछ कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है.

दो घंटे एक मिनट की अवधि वाली फिल्म  ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ का निर्माण इमरान हाशमी, भूषण कुमार, किशन कुमार, तनुज गर्ग, अतुल कस्बेकर और प्रवीण हाशमी ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक सौमिक सेन, संगीतकार रोचक कोहली, गुरू रंधावा, अग्नि सौमिक सेन, कुणाल रंगून, कैमरामैन वाय अल्फांसो रौय तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- इमरान हाशमी, श्रेया धनवंतरी, स्निग्धदीप चटर्जी.

वो जो था एक मसीहा-मौलाना आजाद : महज एक डाक्यूमेंट्री

रेटिंगः डेढ़ स्टार

इन दिनों बौलीवुड में बायोपिक फिल्मों का दौर चल रहा है. ऐसे ही दौर में लेखक, निर्माता, अभिनेता व सहनिर्देशक डा. राजेंद्र संजय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व देश के प्रथम शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की बायोपिक फिल्म लेकर आए हैं. फिल्म में उनके बचपन से मृत्यु तक की कथा का समावेश है, मगर मनोरंजन विहीन इस फिल्म में मौलाना आजाद का व्यक्तित्व उभरकर नही आ पाता. उनके जीवन की कई घटनाओं को बहुत ही सतही अंदाज में चित्रित किया गया है.

फिल्म पूर्ण रूपेण डाक्यूड्रामा नुमा है. मौलाना आजाद का पूरा नाम अबुल कलाम मुहियुद्दीन अहमद था. फिल्म की कहानी एक शिक्षक द्वारा कुछ छात्रों के साथ मौलाना आजाद की कब्र पर पहुंचने से शुरू होती है, पर चंद मिनटों में ही वह शिक्षक (लिनेश फणसे) स्वयं मौलाना आजाद (लिनेश फणसे) के रूप में अपनी कहानी बयां करने लगते हैं. फिर पूरी फिल्म में मौलाना आजाद स्वयं अपने बचपन से मौत तक की कहानी उन्ही छात्रों को सुनाते हैं.

मौलाना आजाद का बचपन बड़े भाई यासीन, तीन बड़ी बहनों जैनब, फातिमा और हनीफा के साथ कलकत्ता (कोलकाता) में गुजरा. महज 12 साल की उम्र में उन्होंने हस्तलिखित पत्रिका ‘नैरंग ए आलम’ निकाली, जिसे अदबी दुनिया ने खूब सराहा. हिंदुस्तान से अंग्रेजों को भगाने के लिए वे मशहूर क्रांतिकारी अरबिंदो घोष के संगठन के सक्रिय सदस्य बनकर, उनके प्रिय पात्र बन गए. जब तक उनके पिता जिंदा रहे, तब तक वह अंग्रेजी नही सीख पाए, मगर पिता के देहांत के बाद उन्होंने अंग्रेजी भी सीखी. उन्होंने एक के बाद एक दो पत्रिकाओं ‘अल हिलाल’और ‘अल बलाह’का प्रकाशन किया, जिनकी लोकप्रियता से डरकर अंग्रेजी हुकूमत ने दोनों पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद करा उन्हें कलकत्ता से तड़ीपार कर रांची में नजरबंद कर दिया. चार साल बाद 1920 में नजरबंदी से रिहा होकर वह दिल्ली में पहली बार महात्मा गांधी (डा. राजेंद्र संजय) से मिले और उनके सबसे करीबी सहयोगी बन गए.

उनकी प्रतिभा और ओज से प्रभावित जवाहरलाल नेहरू (शरद शाह) उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे. पैंतीस साल की उम्र में आजाद कांग्रेस के सबसे कम उम्र वाले अध्यक्ष चुने गए. गांधीजी की लंबी जेल यात्रा के दौरान आजाद ने दो दलों में बंट चुकी कांग्रेस को फिर से एक करके अंग्रेजों के तोडू नीति को नाकाम कर दिया. उन्होंने सायमन कमीशन का विरोध किया. 1944 व 1945 के दौरान जब वह कई दूसरे नेताओ के साथ जेल में बंद थे, तभी उनकी पत्नी जुमेला का निधन हुआ. देश को आजादी मिलने के बाद केंद्रीय शिक्षामंत्री के रूप में उन्होंने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में क्रांति पैदा करके उसे पश्चिमी देशों की पंक्ति में ला बैठाया. वह आजीवन हिंदू मुस्लिम एकता के लिए संघर्ष करते रहे.

सुशांत सिंह राजपूत करेंगे इस फाइटर का किरदार

बौलीवुड में मौलिक काम करने की बजाय सभी नकल करने पर आमादा रहते हैं. अब लगातार असफलता का दंश झेल रहे अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत भी उसी श्रेणी में आ गए हैं. वह पौढ़ी गढ़वाल के शहीद जसवंत सिंह रावत के जीवन पर फिल्म ‘राइफलमैन’ में राइफल मैन जसवंतसिंह रावत का किरदार निभाने जा रहे हैं. सवाल यह है कि सुशांत सिंह राजपूत को अब यह ख्याल क्यों आया?

ज्ञातव्य है कि 18 जनवरी को जसवंत सिंह रावत के जीवन व कृतित्व पर आधारित लेखक, निर्माता व निर्देशक अविनाश धानी की फिल्म ‘72 आवर्सः द मार्टीयर हू नेवर डाइड’ प्रदर्शित हो चुकी है. इस फिल्म में अविनाश धानी ने ही जसवंत सिंह रावत का किरदार निभाया है. मजेदार बात यह है कि यह फिल्म पिछले एक साल से सुर्खियों में रही है, मगर अब जब यह फिल्म सिनेमा घरों में पहुंची, तो सुशांत सिंह राजपूत ने इस किरदार को निभाने की घोषणा की.

सुशांत सिंह राजपूत का दावा है कि वह काफी लंबे समय से राइफलमैन जसवंत सिंह रावत पर शोधकार्य कर रहे थे.

कौन थे शहीद राइफलमैन जसवंत सिंह रावत

1962 में भारत-चीन युद्ध के समय अरूणाचल प्रदेश के नाफा बौर्डर पर तीन सौ चीनी सैनिकों के साथ लगातर 72 घंटे तक युद्ध करते हुए राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने शहादत पायी थी. पौढ़ी गढ़वाल निवासी राइफलमैन/सैनिक जसवंत सिंह रावत ने चीनी सैनिकों के खिलाफ जंग पर जाते समय कहा था-‘‘हम लोग लौटें ना लौटें, ये बक्से लौटें न लौटें, लेकिन हमारी कहानियां लौटती रहेंगी…’ उन्हे महावीर चक्र से भी नवाजा गया था.

फरहान के खुलासे को आप भी जानिए

खुद को हमेशा सूर्खियों में रखने की कला में माहिर अभिनेता, निर्माता व निर्देशक फरहान अख्तर ने एक बार फिर अपनी ऐसी नई खबर दी कि लोग कह रहे है ‘‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया.’’

जी हां! कुछ दिन पहले फरहान अख्तर ने सोशल मीडिया के अलावा पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था कि वह बहुत जल्द खुद से जुड़ा एक बहुत बड़ा खुलासा करने वाले हैं. तब से हर अखबार व टीवी चैनल पर फरहान अख्तर सूर्खियों में छाए हुए थे. हर जगह चर्चा थी कि फरहान अख्तर अपने खुलासे में शिबानी दांडेकर के संग अपने विवाह की तारीख घोषित करेंगे. इस खबर को फरहान अख्तर अपने अंदाज में जबरदस्त हवा देते रहे. उन्होने बीच में इंस्टाग्राम पर एक स्वींमंग पुल के अंदर शिबानी दांडेकर को अपनी बाहों में उठाए हुए फोटो पोस्ट करते हुए ऐसा कुछ लिखा जिससे यह बात पुख्ता हो रही है कि फरहान अख्तर जल्द ही शिबानी दांडेकर से विवाह करेंगे.

मगर आज 16 जनवरी की सुबह 9 बजकर 32 मिनट पर इंस्टाग्राम पर मशहूर फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट करते हुए अपने सबसे बड़े खुलासे को उजागर करते हुए फरहान अख्तर ने लिखा है- ‘‘थ्रिल्ड टू शेअर दैट सिक्स ईअर आफ्टर भाग मिल्खा भाग, राकेश ओमप्रकाश मेहरा एंड आई आर रीयुनाइटिंग टू क्रिएट तूफान हार्टफेल्ट स्टोरी आफ ए बाक्सर. (हम यह बताते हुए रोमांच अनुभव कर रहे हैं कि भाग मिल्खा भाग के छह साल बाद राकेश ओमप्रकाश मेहरा के साथ मिलकर तूफान लेकर आ रहे हैं, जो कि एक बाक्सर की कहानी है.)

सूत्रो के अनुसार फिल्म ‘तूफान’ का निर्माण फरहान अख्तर और रितेश सिद्धवानी अपने ‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’ के बैनर तले कर रहे हैं, जिसका निर्देशन राकेश ओमप्रकाश मेहरा करेंगे. फिल्म की पटकथा अंजुम राजाबली ने लिखी है. यह बायोपिक नहीं, बल्कि एक काल्पनिक कहानी है. इस फिल्म के किरदार के साथ न्याय करने के लिए फरहान अख्तर बाक्सिंग की ट्रेनिंग लेने वाले हैं.

#MeToo: हिरानी पर लगे आरोप पर बौलीवुड स्टार्स ने क्या कहा

हाल ही में बौलीवुड के फेमस डायरेक्टर राजकुमार हिरानी पर सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगा. राजकुमार की एक फीमेल असिस्टेंट ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया है. पीड़िता का आरोप है कि हिरानी ने उसके साथ करीब 6 महीने तक शोषण किया. इस आरोप से बौलीवुड के बहुत से लोग हैरान हैं. कई कलाकार हिरानी के सपोर्ट में भी आ गए हैं. आइए जानते हैं कि वो कौन से एक्टर्स हैं जो राजू के सपोर्ट में खड़े हैं और उन्होंने क्या कहा.

राजकुमार हिरानी के समर्थन में फिल्म प्रोड्यूसर बोनी कपूर आए. बोनी ने कहा कि राजकुमार बहुत ही अच्छे इंसान हैं, वो ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते. बोनी ने आगे कहा कि, मुझे इस आरोप पर विश्वास नहीं है। वह ऐसा कभी नहीं कर सकता, कभी भी नहीं.

एक्टर इमरान हाशमी ने कहा कि, यह सिर्फ आरोप हैं और जब तक यह आरोप साबित नहीं हो जाते हैं तब तक इस पर कुछ भी कहना सही नहीं होगा.

मुन्ना भाई सीरीज में हिरानी के साथ काम कर चुके अरशद वारशी का कहना है कि, एक इंसान और एक व्यक्तित्व के तौर पर राजू कैसे हैं तो मैं यही कहूंगा कि वे एक अद्भुत और सभ्य व्यक्ति हैं. मेरे लिए भी बाकी लोगों की तरह यह खबर शौकिंग है.

आलोक नाथ पर हैरेसमेंट का आरोप लगाने वाली विंटा नंदा ने इस प्रकरण पर खेद जताया है. विनता ने राजकुमार हिरानी के वकील आनंद देसाई के ट्वीट को री-ट्वीट करते हुए लिखा कि #MeToo का यह नया आरोप काफी परेशान करने वाला है. महिलाएं किस पर भरोसा करें?

क्या है राजकुमार हिरानी की प्रतिक्रिया

इन तमाम आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए राजू ने खुद जांच की मांग की है. उन्होंने कहा कि कि जब दो महीने पहले मुझे इन आरोपों के बारे में बताया गया तो मैं शौक्ड रह गया. मैंने कहा कि किसी भी समिति या कानूनी संस्था से मामले की जांच कराई जानी चाहिए. लेकिन शिकायतकर्ता ने मीडिया में जाने का विकल्प चुना. उन्होंने कहा कि मैं दृढ़ता के साथ कहता हूं कि ये सारे आरोप झूठे हैं और मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से इन्हें फैलाया गया है.

वर्सेटाइल कलाकार के लिए संगीत का ज्ञान बहुत जरुरी है: कंचन अवस्थी

कालेज दिनों में नाटकीय मंचन के दौरान पार्श्व में गीत गाने वाली कंचन अवस्थी ने कभी नहीं सोचा था कि वह एक दिन अभिनय को अपना करियर बनाएंगी. मगर संयोगवश उन्हे संत गाड़गे औडीटोरियम, लखनउ में एक दिन नाटक ‘‘यहूदी की बेटी’’ में राहिल की भूमिका निभाना पड़ा और फिर उनके अभिनय करियर की शुरुआत हो गयी. शबाना आजमी के साथ जीटीवी के सीरियल ‘अम्मा’ के अलावा कई नाटकों, टीवी सीरियलों व फिल्मों में अभिनय कर चुकी लखनउ निवासी कंचन अवस्थी इन दिनों अठारह जनवरी को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘फ्राड सैयां’ को लेकर चर्चा में हैं.

2019 में आपका करियर किस मुकाम पर नजर आ रहा है?

-अब मैं अपने करियर में काफी परिपक्व हो गयी हूं. मुझे लग रहा है कि अब मैं हर चीज को लेकर आत्म विश्वासी हो गयी हूं, फिर चाहे कैमरे का सामना करना हो, या एक्सप्रेशन देना हो या रिएक्शन देना हो. अब मुझे लग रहा है कि 2019 मेरा वर्ष है. इस वर्ष मेरी एक नहीं, बल्कि तीन तीन फिल्में सिनेमाघरों में पहुंचने वाली हैं. सबसे पहले 18 जनवरी को प्रकाश झा निर्मित फिल्म ‘फ्राड सैयां’ पहुंचेगी. इस तरह यह वर्ष मेरे लिए सबसे बेहतरीन वर्ष साबित होने वाला है.

देखिए, मैं गैर फिल्मी परिवार यानी कि लखनउ के मध्यमवर्गीय परिवार से आयी हूं. तो स्वाभाविक है कि मुझे बौलीवुड में सीखने में ढाई साल लग गए. पर इस दौरान भी मैंने काफी काम किया. मैं कभी घर पर खाली नहीं बैठी. मसलन मैंने 2016 में शबाना आजमी के साथ सीरियल ‘अम्मा’ किया था. ‘मैं खुदीराम बोस हूं’ और ‘भूत वाली लव स्टोरी’ जैसी फिल्में की. इसके अलावा मैं लगातार थिएटर भी करती आ रही हूं. मैंने दिल्ली के श्रीराम सेंटर में जय प्रकाश शंकर का ‘काशी का गुंडा’ नाटक किया था.

फिल्म ‘फ्राड सैयां’ से जुड़ना कैसे हुआ?

-जब लखनउ में मेरी पढ़ाई चल रही थी, तभी मुझे एक सीरियल में अभिनय करने का मौका मिला था. इस वजह से मेरा लखनउ व मुंबई आना जाना होता रहा था. मुंबई में मेरी बहन भी रहती हैं, पर मेरा यहां ज्यादा रूकना हुआ नहीं. एक बार जब मुंबई आयी, तो मुझे किसी ने बताया कि ‘प्रकाश झा प्रोडक्शन’ में फिल्म ‘फ्रौड सैयां’ के लिए औडीशन हो रहे हैं. तो मैंने भी औडीशन दिया. उस वक्त डरी सहमी हुई सी थी. पर अंदर से आत्मविश्वास था और आज भी है. तो मैंने पूरे आत्मविश्वास के साथ औडीशन दिया था. पर एक हफ्ते तक मुझे कोई जवाब नहीं मिला, तो मैने वापस लखनउ जाने का कार्यक्रम बना लिया. जिस दिन मुझे लखनउ वापस जाना था, उससे एक दिन पहले मुझे ‘प्रकाश झा प्रोडक्शन’ के औफिस में बुलाया गया. वहां पर मुझे पता चला कि फिल्म के लिए मेरा चयन हो गया है और फिर मेरे किरदार के बारे में बताया गया कि में इसमें नमिता का किरदार करने वाली हूं, जो कि अरशद वारसी की पत्नी है. मैं तो अरशद वारसी का नाम सुनते ही खुश हो गयी. क्योंकि मैं तो उनकी बहुत बड़ी फैन हूं. उन्होने एक नहीं कई सफल हास्य फिल्में दी हैं. किरदार सुनकर मैंने कहा मुझे करना है. उसके बाद मैंने मुंबई में ही रहने का निर्णय लिया.

फिल्म ‘फ्राड सैयां’ करीब तीन साल तक अटकी रही. तो उस दौरान आपके दिमाग में किस तरह की शंकाएं पैदा हो रहीं थी?

-यह स्वाभाविक है कि उस वक्त मेरे दिमाग में भी यही था कि फिल्म तुरंत सिनेमाघरों में पहुंचेगी, तो मुझे फायदा होगा. दूसरी अच्छी फिल्में जल्दी मिल जाएंगी. इसके अलावा मुझे सबसे ज्यादा जल्दी थी कि मेरे घर वालों को पता चले कि मैंने किसी फिल्म में अभिनय किया है. लेकिन कुछ वजहों से फिल्म सिनेमाघरों में नहीं पहुंची. अब तीन साल बाद आ रही है. पर मेरे मन में कोई शंका नहीं आयी. क्योंकि मुझे पता था कि एक अच्छी सोच के साथ, एक अच्छी फिल्म बनायी गयी है. तो प्रदर्शित जरूर होगी. फिर फिल्म के निर्माता प्रकाश झा जैसे महान फिल्मकार हैं. इसके अलावा इसी बीच मुझे दो दूसरी फिल्में व शबाना आजमी के साथ जीटीवी का सीरियल ‘अम्मा जी’ मिला. तो मैं काम में व्यस्त रही. इसलिए भी इस फिल्म को लेकर मेरे मन में कोई शंका नहीं आयी. मैं लगातार काम कर रही थी. मेरे मन में यह ख्याल कभी नहीं आया कि यदि यह फिल्म  प्रदर्शित नहीं हुई, तो मैं क्या करूंगी? इसके अलावा मैं थिएटर भी करती रही.

फिल्म ‘फ्राड सैयां’ के अपने किरदार नमिता को लेकर क्या कहेंगी?

-नमिता मेरी ही तरह उत्तर प्रदेश से है. वह एक टिपिकल पत्नी है, जो कि हमेशा पति को लेकर बहुत कंसर्न रहती है. कब आआगे? खाना खाया या नहीं, इस तरह के सवाल करती रहती है. बाकी फिल्म देखे तो मजा आएगा.

अरशद वारसी के साथ काम करने के आपके अनुभव क्या रहे?

-जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि मैं तो उनकी बहुत बड़ी फैन रही हूं. भोपाल में जिस दिन अरशद वारसी के साथ पहली बार मुझे शूटिंग करनी थी, उस दिन मैं बहुत नर्वस थी. अंदर से मैं बहुत घबरायी और डरी हुई थी. क्योंकि वह बहुत बड़े कलाकार हैं. पर सेट पर आते ही अरशद वारसी जिस ढंग से मुझसे मिले, मुझे लगा ही नहीं कि वह स्टार कलाकार है. उन्होंने सेट पर मुझे बहुत अच्छी अच्छी सलाह दी. वह हर सीन में मेरे साथ बैठकर रिहर्सल भी करते थे. वह मुझे इतना अधिक कम्फर्ट जोन में ले आए थे कि मेरे लिए उनके साथ काम करना बहुत आसान हो गया. वह कौमेडी के पंचेस देने में महान हैं. वह सेट पर यूं भी हम लोगों को हंसाया करते थे. उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला.

इसके बाद आपकी कौन सी फिल्में आ रही हैं?

-मुझे लगता हैं कि अभी उनके नाम बताना ठीक नहीं होगा.

इस फिल्म से आपको कितनी उम्मीदें हैं?

-बहुत उम्मीदें हैं. मुझे लगता है कि इस फिल्म को देखने के बाद हर फिल्मकार व दर्षक को अहसास होगा कि मैं एक बेहतरीन अभिनेत्री हूं. मैंने बहुत मेहनत की हैं और उस मेहनत का अच्छा परिणाम मुझे जरूर मिलेगा. फिर मैं तो अपने आपको स्टूडेंट ही मानती हूं. अभी भी सीख ही रही हूं. मेरे लिए बडे़ बजट की फिल्म या बड़े बैनर की फिल्म कोई मायने नहीं रखती. सिर्फ एक बेहतरीन फिल्म होनी चाहिए.

आपको नहीं लगता कि यदि फिल्म में लीड किरदार ना मिले, तो पहचान नहीं बन पाती हैं? फिल्म ‘फ्रौड सैयां’ में भी आपके साथ फ्लोरा सैनी सहित दूसरी अभिनेत्रियां भी हैं?

-मैं इस बात से इंकार करती हूं कि फिल्म में लीड किरदार जैसा कुछ होता है. और यह कहना भी गलत है कि जब तक आपको लीड के तौर पर किरदार नहीं मिलेगा, तब तक आपकी पहचान नहीं बनेगी. मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहती, पर तमाम ऐसे प्रतिभाशाली कलाकार हैं, जो कभी किसी फिल्म में हीरो या हीरोईन बनकर नहीं आए, पर उनकी पहचान कम नहीं है. मेरी राय में एक कलाकार की पहचान तब बनती है, जब उसे एक अच्छी विषयवस्तु वाली फिल्म में अच्छा लिखा हुआ किरदार निभाने का मौका मिलता है. उसके बाद बहुत कुछ फिल्म का प्रचार किस ढंग से होता है, उस पर भी निर्भर करता है. अब बहुत कुछ प्रचार और मार्केटिंग पर भी निर्भर हो गया है.

लेकिन पिछले दो तीन वर्षो में सिनेमा में जो बदलाव आया है, वह हम जैसे कलाकारों के लिए वरदान साबित हो रहा है. अब ‘राजी’ और ‘बधाई हो’ जैसी अलग तरह की विषयवस्तु वाली फिल्में सफलता के डंके बजा रही हैं. तो वहीं कई स्टारों की फिल्मों ने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा. इससे यह साबित होता है कि आज का दर्शक अच्छी कहानी देखना चाहता है ना कि स्टार कलाकार. दर्शक कहानी के आधार पर फिल्म देखने जाता है, ना कि कलाकार के नाम पर. मैं अपनी तरफ से अच्छी कहानीयों वाली फिल्म ही कर रही हूं.

फिल्म ‘फ्राड सैयां’ में ऐसा क्या हुआ कि निर्देशक ने अपना नाम देने से इंकार कर दिया?

-सर जी, मुझे भी इसकी वजह नहीं पता.

अब आप किस तरह के किरदार निभाना चाहती हैं?

-देखिए, मुझे किसी मीडियम से परहेज नहीं है. मुझे आज भी थिएटर टीवी व फिल्में करनी हैं. हर जगह मैं अलग अलग तरह के किरदार निभाना चाहती हूं. मैं खुद को दोहराना नहीं चाहती. आप यदि मेरे पिछले काम को देखें, तो मैंने कहीं सीधी सादी लड़की, कहीं कौलेज में पढ़ने वाली लड़की या शादीशुदा महिला का किरदार निभाया है. मैं अपने आपको किसी एक तरह के किरदार में बांध कर नहीं रखना चाहती. मैं हमेशा यह मानती हूं कि मुझे जो भी काम मिल रहा है, उसे मुझे पूरी शिद्दत के साथ करना है. बाकी तो सब दर्शक तय करेगा. जब हम मेहनत के साथ बेहतरीन काम करते हैं, तो वह अपने आप लोगों की जुबान पर आ जाता है.

गैर फिल्मी परिवारों से आने वाले कलाकारों को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है? आप ऐसे कलाकारां से क्या कहना चाहेंगी?

-मैं तो हर नई प्रतिभा से यही कहूंगी कि वह एक बार बौलीवुड में अपनी किस्मत जरूर आजमाए. वह निडरता के साथ यहां आए, लेकिन मेहनत करने और संघर्ष करने की तैयारी के साथ. यह कभी ना सोचे कि मुंबई पहुंचते ही उन्हें शाहरुख खान या किसी अन्य स्टार के साथ फिल्म करने का मौका मिल जाएगा. पर सपने उन्हें देखना चाहिए और उन सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत करने की तैयारी भी होनी चाहिए. जब आपके अंदर प्रतिभा हो ईमानदारी हो मेहनत करने का जज्बा हो, तो कायनात भी आपके सपनों को पूरा करने के लिए आ जाती है. सफलता का एकमात्र मूल मंत्र है- ईमानदारी से अपने काम को पूरी तत्परता के साथ अंजाम देना. सिर्फ भाग्य के भरोसे मत बैठो.

बौलीवुड में नेपोटिजम को लेकर लोग कई तरह की बातें करते हैं. आप क्या सोचती हैं?

-देखिए, बौलीवुड में अंततः हर कलाकार का काम बोलता है. स्टार सन या स्टार डौटर होने पर एक ब्रेक तो मिल जाता है, पर उन्हे भी खुद की प्रतिभा को साबित करना ही पड़ता है. मेरी राय में जिन्होंने बौलीवुड में जन्म लिया है, उनका हक भी बनता है कि उन्हें एक ब्रेक तो आसानी से मिल जाए. पर बिना मेहनत किए उन्हें भी सफतला नहीं मिलेगी. यदि आज मैं यह कहूं कि श्रीदेवी की बेटी होने के कारण जान्हवी कपूर को फिल्म ‘धड़क’ मिल गयी, तो मेरी यह सोच गलत है. क्योंकि उन्हें ‘धड़क’ में ब्रेक मिला, पर उसके बाद उसने अपनी मेहनत से अपनी पहचान बनाई. कैमरे के सामने तो आखिर जान्हवी कपूर को ही जाना पड़ा, एक्सप्रेशन व रिएक्शन तो उसे ही देने पड़े. इसलिए स्टार सन हो स्टार डौटर हो या गैर फिल्मी परिवार से आयी हुई प्रतिभाएं हों, अंततः उनके अंदर की प्रतिभा ही उन्हें आगे ले जाती है. देखिए, शाहरुख खान स्टार हैं, पर वह भी गैर फिल्मी परिवार से आए थे. कैमरे के सामने अभिनय करना आसान नहीं होता है. बहुत मेहनत करनी पड़ती है.

आपने संगीत में लंबे समय तक प्रशिक्षण हासिल किया और आपके करियर की शुरुआत संगीत से हुई थी. अब संगीत में क्या कर रही हैं?

-संगीत मेरी आत्मा में बसता है. संगीत के बिना हर इंसान का जीवन अधूरा है. मेरे घर में हमेशा शास्त्रीय संगीत का माहौल रहा है. जबकि मैं तो स्कूल व कौलेज में विज्ञान की छात्रा थी और अभिनय के बारे में तो कुछ सोचा ही नहीं था. पर संगीत में रूचि ने ही मुझे हर चीज समझने के लिए उकसाया. मैंने शास्त्रीय संगीत सीखा भी और अभी भी मैंने संगीत छोड़ा नहीं है. हर दिन संगीत का रियाज करती हूं. और मेरी नजर में एक वर्सेटाइल कलाकार के लिए संगीत का ज्ञान होना बहुत जरूरी है. फिलहाल मैंने अभी तक किसी फिल्म में पार्शवगायन नहीं किया है. लेकिन भविष्य में जब भी मौका मिलेगा, मैं जरूर करना चाहूंगी. हां!! मैं सोशल मीडिया पर एक दो मिनट के अपने स्वरबद्ध गानों को लोड करती रहती हूं. मेरा अपना खुद का यूट्यूब चैनल है, जिस पर मैं अपने गाने लोड करती रहती हूं.

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