उन की चेतना कानों में पड़ी बच्ची की आवाज से लौटी, ‘सर, व्हाट आर यू डूइंग?’ बच्ची इस अप्रत्याशित सी घटना से सहम गई थी. झटके से अपना हाथ छुड़ा कर वह कोने में जा कर खड़ी हो गई. बच्ची की आवाज सुन कर वे मानो सोते से जाग गए और सौरी कह कर एक गिलास पानी पी कर अपना सिर नीचा कर के वापस घर की ओर चल दिए.
क्षणिक आवेग ने उन का चरित्र, संस्कार और आत्मनियंत्रण सब तारतार कर दिया. आत्मग्लानि से मन स्वयं के प्रति ही वितृष्णा से भर उठा. पूरे रास्ते वे सिर झुका कर चलते रहे, मानो सड़क पर चलने वाले हर शख्स की नजरें उन्हें ही घूर रही हों. जैसे ही वे घर में घुसे, उन के चेहरे का उड़ा रंग देख कर छोटी बहन बोली, ‘क्या हुआ भैया, इतने घबराए हुए क्यों हो?’
‘नहीं, कुछ नहीं. तुम अपना काम करो. मैं छत पर हूं,’ कह कर वे छत पर आ गए थे.
छत पर खुली हवा में आ कर लंबी सांस ली. मानसिक अंतर्द्वंद्व चरम पर था. ‘कैसे अपना आपा खो दिया मैं ने. यदि उन लोगों ने एफआईआर लिखा दी तो कहीं का नहीं रहूंगा. आजकल तो घूरने तक पर कड़ी सजा का प्रावधान है. मेरी तो जिंदगी ही बरबाद हो जाएगी.’ यह सब सोचतेसोचते वे बेचैन हो उठे.
हालात जानने के लिए बच्ची की मां को फोन लगा दिया और बड़ी ही मासूमियत से बोले, ‘आंटी, शुक्रवार को कितने बजे आना है?’
???‘रोज के समय पर ही आ जाना बेटे.’ आंटी को उतने ही प्यार से बात करते देख वे आश्वस्त हो गए कि बच्ची ने आंटी को कुछ नहीं बताया है क्योंकि चलते समय उन्होंने बच्ची से सौरी बोल कर मां को कुछ न बताने की विनती की थी.
2 दिनों तक जब उधर से कोई फोन नहीं आया तो वे आश्वस्त हो गए कि मामला शांत हो गया है. तीसरे दिन सुबहसुबह जब वे नाश्ता कर के उठे ही थे कि मोबाइल बज उठा. मोबाइल स्क्रीन पर आंटी का नाम देखते ही उन के हाथ कांप उठे. किसी तरह साहस कर के उन्होंने ‘हैलो’ बोला. उधर से कड़कती आवाज आई, ‘तुम्हारे मातापिता ने संस्कार नाम की चीज से परिचित कराया है या नहीं. तुम्हें ऐसी हरकत करते हुए खुद पर शर्म नहीं आई?’
सामने छोटी बहन बैठी थी. सो, वे एकदम हड़बड़ा गए और कड़क स्वर में बोले, ‘क्या, क्या किया क्या है मैं ने. अपने शब्दों को लगाम दीजिए.’
‘यह भी मु झे ही बताना पड़ेगा कि तुम ने किया क्या है. बेशर्मी की भी हद होती है.’
‘नहींनहीं आंटी, वह मेरी बहन थी सामने, इसलिए. अब मैं छत पर आ गया हूं. सौरी आंटी, गलती हो गई. मैं हाथ जोड़ कर माफी मांगता हूं.’
‘क्यों, अपनी बहन की इतनी चिंता हो रही है. अपनी सगी बहन के अलावा दूसरी हर लड़की तुम लड़कों को अपनी इच्छापूर्ति का साधन लगती है और तुम उन्हें छेड़ना शुरू कर देते हो. कितनी गंदी मानसिकता है तुम्हारी. तुम्हारे जैसे आवारा कुछ नहीं कर सकते अपनी जिंदगी में. मैं अभी थाने जा रही हूं तुम्हारी रिपोर्ट करने. तुम्हें तो मैं कहीं का नहीं छोड़ूंगी.’
आंटी के क्रोध से वे बुरी तरह घबरा गए. और जब वे कुछ शांत हुईं तो धीरे से अपना बचाव करते हुए वे बोले, ‘आंटी, मैं आप के हाथ जोड़ता हूं, आप जो चाहे सजा दे लें. आप ही बताइए 2 वर्षों से मैं उसे पढ़ा रहा हूं, कभी ऐसा नहीं हुआ. दरअसल, आज उस ने कुछ अलग, अजीब से कपड़े पहने थे, सो, मैं डिस्ट्रैक्ट हो गया था.’
‘क्या कहा? कपड़े ऐसे पहने थे? तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? अब क्या लड़कियां अपनी मरजी के कपड़े भी नहीं पहन सकतीं, क्योंकि उन्हें देख कर लड़के अपनेआप पर काबू नहीं रख पाते. खुद को काबू नहीं कर सकते तो सड़क पर नजरें नीचे कर के चला करो या घर में बैठो. पर मेरी बेटी वही पहनेगी जो उस का दिल करेगा. क्या तुम्हारी बहन तुम से पूछ कर कपड़े पहनती है? क्या अपनी बेटी को भविष्य में तुम ऊपर से नीचे तक तन ढकने वाले कपड़े पहनाओगे?’
आंटी की तर्कयुक्त बातों के आगे उन की तो बोलती ही बंद हो गई. वे दबी आवाज में बोले, ‘नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है. मैं अपनी गलती मानता हूं. मैं बहक गया था. पर मेरा यकीन मानिए मैं ने ऐसावैसा कुछ नहीं किया.’
इतना सुनते ही आंटी फिर भड़क गईं और दहाड़ते हुए बोलीं, ‘और क्या करना चाहते थे मेरी बेटी के साथ? मन तो कर रहा है तुम्हें अभी ही पुलिस के हवाले कर दूं. जेल की सलाखों के पीछे सड़ोगे, तभी सम झ आएगा. मु झे शर्म आती है तुम्हारे मातापिता के संस्कारों पर. यदि उन्हें पता चल जाए तो अपनी परवरिश पर ही शर्म आने लगेगी उन्हें. तुम जानते हो तुम्हारे जैसे सैकड़ों, हजारों युवक बेरोजगार सड़कों पर क्यों घूम रहे हैं, क्योंकि उन के अंदर आत्मबल, आत्मविश्वास और आत्मनियंत्रण ही नहीं है. जिस दिन इन पर विजय पा लोगे, जिंदगी में कुछ बन जाओगे.’ यह कह कर आंटी ने फोन काट दिया.
वे बदहवास से मोबाइल को ही घूरने लगे. उन्हें काटो तो खून नहीं. आंटी ने कुछ ही मिनटों में उन्हें जमीन पर ला पटका था. सच पूछो तो वे घबरा कर रोने लगे थे. ‘क्या करूं, क्या जवाब दूंगा मातापिता को. मु झे क्या हो गया. मेरी एक बेवकूफी ने आज मेरे चरित्र को ही बरबाद कर दिया. यह मैं ने क्या कर दिया,’ सब सोचतेसोचते उन का सिर दर्द करने लगा. तभी बहन ने आवाज लगाई और वे नीचे आ गए.
बहन ने उन के सामने भोजन की थाली लगा दी थी. उन के हलक में तो थूक तक निगलने की गुंजाइश नहीं थी तो खाना कहां नीचे उतरता. सो, ‘भूख नहीं है बाद में खा लूंगा’ कह कर बहन से थाली उठाने को कह दिया. उसी समय उन के फोन की घंटी फिर बजी. फोन आंटी का ही था.
‘तुम्हारी बदतमीजी का फल तुम्हें खुद मिलेगा. मैं क्यों तुम्हारा वह जीवन खराब करूं जिस की अभी शुरुआत ही नहीं हुई है. जाओ, मैं ने तुम्हें अभयदान दिया. पर ध्यान रखना, अपने जीवन में सभी लड़कियों और महिलाओं की उतनी ही इज्जत करना जितनी अपनी मांबहन की करते हो. जीवन में यदि कुछ बन सकोगे तो समाज में इज्जत की दो रोटी खा पाओगे. वरना ऐसे ही सड़क पर चप्पलें चटकाते और लड़कियों को छेड़ते रहोगे,’ यह कह कर आंटी ने फोन काट दिया था.
उस के बाद की कई रातों तक ठीक से सो ही नहीं पाए वे. बारबार आंटी की बातें कानों में गूंजतीं. पर वह घटना उन के जीवन की टर्निंग पौइंट बन गई. उस के बाद के 2 साल तक उन्होंने जम कर मेहनत की. उसी मेहनत के परिणामस्वरूप अपने पहले ही प्रयास में उन्होंने आईपीएस की परीक्षा पास की और एसपी बने. 8 वर्ष पुरानी उस घटना को सोचतेसोचते उन का सिर दर्द से फटने लगा. मन एक बार फिर आत्मग्लानि से भर उठा.
तभी अचानक सृष्टि की आवाज उन के कानों में गूंज उठी.
‘‘क्या हुआ एसपी साहब, आज बड़ी जल्दी घर आ गए. तबीयत तो ठीक है न,’’ कह कर सृष्टि ने उन के माथे पर हाथ रख दिया और घबरा कर बोली, ‘‘अरे, तुम्हें तो तेज बुखार है. क्या हुआ, सुबह तो एकदम ठीक थे. अभी मैं डाक्टर को बुलाती हूं.’’ कह कर वह मोबाइल में नंबर खोजने लगी तो अमित ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘कोई जरूरत नहीं है. चाय पिला कर, बस दवाई दे दो, ठीक हो जाऊंगा.’’
सृष्टि चाय बनाने किचन में चली गई, तो वे फिर बेचैन हो उठे. तभी सृष्टि ने हाथ में चायनाश्ते की ट्रे के साथ कमरे में प्रवेश किया. चाय का कप हाथ में पकड़ाते हुए वह उन के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘क्या बात है, कुछ बेचैन और परेशान से लग रहे हो. औफिस की कोई परेशानी है क्या. मु झे बताओ, शायद मैं कोई हल निकाल सकूं.’’
‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं. बस, ऐसे ही मन कुछ उदास था. गोलू सो गई क्या? लाओ, उसे मेरे पास सुला दो.’’ कह कर अमित ने बात के रुख को बदलना चाहा. कुछ ही देर में सृष्टि गोलू को अमित की बगल में सुला कर चली गई. जैसे ही उन्होंने बगल में लेटी गोलू की तरफ देखा, तो सोचने लगे, ‘यदि कोई लड़का कभी मेरी गोलू के साथ ऐसी हरकत करेगा तो…तो मैं उसे जान से मार दूंगा. तो क्या मु झे भी उसी समय जान से मार दिया जाना चाहिए था?’ सोचतेसोचते कब आंख लग गई उन्हें भी नहीं पता.
सुबह जब सृष्टि ने उन्हें झक झोरा, तो उन की आंख खुली. चाय पीतेपीते सृष्टि बोली, ‘‘अमित, तुम कल से कुछ परेशान हो, बताओ तो हुआ क्या है? रात में भी तुम बड़बड़ा रहे थे. ‘नहीं, मु झे माफ कर दो. मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं. आंटी, मु झे माफ कर दो.’ प्लीज, मु झे बताओ इस तरह अकेले मत घुटो, हुआ क्या है. मैं साइकोलौजी की प्रोफैसर हूं, अवश्य तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊंगी.’’
अमित की आंखें भर आईं और वे दुखी स्वर में बोले, ‘‘सृष्टि मेरे जीवन की एक घटना है जिस ने मेरा जीवन तो बना दिया परंतु वह मेरे अब तक के सफल जीवन का एक काला धब्बा भी है. कल कुछ ऐसा हुआ कि मैं स्वयं की ही नजरों में गिरता जा रहा हूं. पहले तुम मु झ से वादा करो कि तुम मु झे गलत नहीं सम झोगी और मु झे इस झं झावात से निकलने का कोई उपाय बताओगी.’’