पूरे गांव में इतनी ऊंची चौखट किसी और घर की नहीं थी. जमीन से पूरे 12 हाथ ऊपर घर था. और होता भी क्यों नहीं… ठाकुर साहब की हवेली जो थी.
इस हवेली में ठाकुर साहब के बाद अगर किसी बाहरी आदमी का सब से ज्यादा आनाजाना था, तो वे थे गिरी बाबा.
गांव के पंडित गिरी बाबा आज एक बार फिर से इस हवेली की सीढि़यां चढ़ रहे थे. दो पल सांस लेने को रुके और फिर से चढ़ने लगे.
वैसे उन का सिर्फ नाम ही गिरी बाबा था, उन की उम्र तो महज 38 साल ही थी. बाबा शब्द तो उन्होंने अपने रोजगार को एक खास पहचान देने के लिए लगा लिया था.
इस हवेली में गिरी बाबा को बहुत इज्जत मिलती थी. ठाकुर साहब के खास सलाहकार थे गिरी बाबा.
ठाकुर के ही शब्दों में, ‘ये गिरी बाबा मुझे हर समस्या से बचा लेते हैं. इन के होते हुए मुझे किसी चीज की चिंता
नहीं है.’
गिरी बाबा ने ठाकुर साहब की हवेली के दरवाजे के अंदर प्रवेश किया और एक कमरे में जा कर एक गुदगुदे बिस्तर में धंस गए. तुरंत ही एक नौकर रबड़ी ले कर आ गया, जिसे गिरी बाबा ने बिना देर किए ही चट कर डाला और कुछ देर के लिए खामोश बैठ गए.
इस के बाद उस कमरे में ठाकुर साहब का प्रवेश हुआ और उन्होंने दोनों हाथ जोड़ कर गिरी बाबा को प्रणाम किया. बदले में गिरी बाबा ने भी ठाकुर साहब को अपना एक हाथ उठा कर भरपूर आशीर्वाद दिया.
‘‘गिरी बाबा, मुझ से अनजाने में ही एक छोटा सा पाप हो गया है… मुझे लगता है कि यह पाप करने से कहीं मेरा नाश न हो जाए… मैं बहुत परेशान हूं. मैं क्या करूं?’’
ठाकुर साहब की परेशानी सुन कर गिरी बाबा ने उन्हें परेशान न होने की सलाह दी और बताया कि चिंता चिता के समान होती है, इसलिये वे चिंता न कर के चिंतन करें.
‘‘देखिए, पाप हो जाए तो कोई बात नहीं, पर पाप के दोष से बचने के लिए दान कर देना चाहिए, तो दोष कम हो जाता है,’’ गिरी बाबा ने राय के रूप में ज्ञान बघारा.
‘‘तो गिरी बाबा, आप ही बताएं कि मैं पाप से मुक्ति के लिए क्या और कितना दान करूं?’’
‘‘यह तो पाप की प्रकृति पर निर्भर करता है,’’ गिरी बाबा ने कहा.
‘‘अरे गिरीजी, पंडिताई की भाषा में क्यों बात कर रहे हो… कुछ आसान कर के समझाओ न,’’ ठाकुर साहब थोड़ा झल्ला गए थे.
‘‘बताता हूं यजमान, पर मुझे आप यह तो बताओ कि जो पाप आप ने किया है, उस का प्रकार क्या है? मतलब, आप ने क्या गलत किया है?’’
ठाकुर साहब ने गिरी बाबा को बताया कि जब वे सुबह की सैर के लिए जा रहे थे, तब होरी की विधवा मिटिया खेत में काम कर रही थी. तभी अचानक से बारिश होने लगी. मिटिया की सफेद साड़ी उस के काले, पर मांसल और गदराए बदन से चिपक गई.
यह देख कर ठाकुर साहब के मुंह में पानी आ गया और उन के अंदर की ठाकुरियत जाग गई. वे आगे बढ़े और होरी की विधवा मिटिया को जकड़ लिया और अपने दांतों से उस के मुलायम अंगों को नोंचने लगे.
मिटिया ने आजाद होने की कोशिश की, लेकिन कामयाब न हो सकी… बलशाली ठाकुर ने जबरन मिटिया की इज्जत लूट ली.
ठाकुर साहब की करतूत सुन कर गिरी बाबा की आंखों में एक चमक सी आ गई और वे बोले, ‘‘वैसे तो आप ने एक जवान विधवा को शरीर का सुख दे कर उस पर अहसान ही किया है, पर यह आप की महानता है कि आप एक नीच जाति की औरत पर किए अहसान को पाप समझ रहे हो.’’
गिरी बाबा ठाकुर साहब की जी भर कर तारीफ कर रहे थे. उन्होंने आगे कहा कि इस पाप से बचने के लिए ठाकुर साहब को तुलादान करना होगा, जिस में उन्हें अपने वजन के बराबर अनाज दान करना होगा. ऐसा करने से उन का यह पाप धुल जाएगा.
ठाकुर साहब को भला और क्या चाहिए था… उन्होंने आंगन के बीचोंबीच एक बड़ा तराजू लगाने का आदेश दिया और अगले दिन शुभ मुहूर्त में गिरी बाबा की मौजूदगी में तुलादान का कार्यक्रम शुरू हो गया, जिस में ठाकुर साहब ने जी भर कर दान किया और ठकुराइन के हाथों से गिरी बाबा को दान भी करवा दिया.
गिरी बाबा बहुत खुशीखुशी घर पहुंचे. उन की पत्नी सुनीता उन का इंतजार ही कर रही थी. अपने पति को इतने सारे अनाज और पैसे के साथ आया देख कर वह बहुत खुश हुई और अनाज रखने के लिए घर में जगह बनाने लगी.
रात को जब गिरी बाबा सुनीता के पास में लेटे, तो सुनीता ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है? इन ठाकुर साहब का तो दानधर्म में बहुत विश्वास लगता है… बहुत नेकदिल हैं वे.’’
सुनीता की इस बात पर गिरी बाबा के चेहरे पर एक कुटिल मुसकान आ गई, जो अपने में कई रंग समेटे थी.
गिरी बाबा सोचने लगे कि यह पहली बार नहीं है, जब उन्होंने ठाकुर साहब को दानधर्म की महिमा और पाप का डर दिखा कर पैसा ऐंठा था.
वैसे तो गिरी बाबा ने दान में मिली चीजों से काफी पैसा इकट्ठा कर लिया था, पर वे शादी के 15 साल बाद भी अपनी पत्नी सुनीता को एक बच्चा देने में अभी तक नाकाम रहे थे. गांव की औरतें सुनीता की पीठ पीछे उसे ‘बांझ गिरियाइन’ कह कर ताने कसती थीं.
सुनीता ने कई बार गिरी बाबा से इलाज करवाने की बात कही, पर कंजूस और दान लेने के लोभी गिरी बाबा को पैसा खर्च करने के नाम से ही दिक्कत होने लगती थी, इसलिए वे इलाज करवाने के लिए टालमटोल करते रहे.
अभी पिछले साल की ही तो बात है. रामफल नाम का एक ग्वाला, जो ठाकुर साहब के यहां भैंसों की रखवाली करता था, उन के चारे का इंतजाम करता और शाम को उन का दूध निकालता था.
ठाकुर साहब की गायभैंसें रामफल के स्पर्श को इतना पहचानती और स्नेह करती थीं कि रामफल को बड़ी आसानी से दूध निकालने देती थीं. पूरे 12 सेर दूध दुहता था रामफल, पर उस दिन पता नहीं कैसे 10 सेर दूध ही निकल पाया था.
ठाकुर साहब ने रामफल को घुड़कते हुए पूछा, ‘‘आज दूध कम क्यों रे?’’
‘‘मालिक, बरसात के दिनों में हरा चारा नहीं मिल पा रहा है… जो भी हरा चारा बोया गया था, वहां पर बाढ़ का पानी घुस आने के कारण चारा नहीं मिल पाया, इसीलिए दूध भी कम हो गया.’’
इस बात को सुन कर ठाकुर साहब को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने रामफल को मारना शुरू किया और अपने डंडे से तब तक मारा जब तक रामफल बेहोश नहीं हो गया. उस के दोनों पैर तोड़ दिए गए थे.
रामफल के पैर तोड़ने के बाद ठाकुर को पछतावा हुआ, इसलिए उन्होंने अपना पाप कम करने लिए गिरी बाबा को बुला कर दान करने की बात कही.
गिरी बाबा ने बिना किसी लागलपेट के कह दिया था कि मामला रामफल, भैंस और उस के दूध का है, इसलिए ‘पापनाशक हवन’ करना होगा और दक्षिणा में 500 रुपए के अलावा एक चांदी की गाय की मूर्ति बनवा कर दान में देनी होगी.
ठाकुर साहब ने गिरी बाबा के कहे मुताबिक ‘पापनाशक हवन’ करवा लिया.
सुनीता को गिरी बाबा का यह पंडिताई का काम नहीं भा रहा था. वह चाहती थी कि वे दोनों शहर चले जाएं, जहां उस का इलाज हो सके और वह गोद में बच्चा खिला सके.
एक बार सुनीता ने मौका देख कर गिरी बाबा से कहा, ‘‘ये आप ठाकुर साहब के यहां से कभी राशन, तो कभी गायभैंस की मूर्ति आदि ले आते हैं, यह सब ठीक नहीं है.’’
‘‘अरे, इतनी मुश्किल से तो ठाकुर साहब के घर की यजमानी मिली है… मुझ से पहले तो ठाकुर साहब की चौखट को गोकुल पंडित ने जोंक की तरह जकड़ रखा था…’’ गिरी बाबा की आवाज में थोड़ी फुसफुसाहट सी आ गई थी, ‘‘वह तो अच्छा हुआ कि गोकुल पंडित ने अपनी बीवी समेत फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली, नहीं तो वही ठाकुर खानदान का पुरोहित बना रहता और हम जैसे को छोटेमोटे यजमान पर ही निर्भर रहना पड़ता.’’
‘‘पर अचानक गोकुल पंडित ने पत्नी समेत आत्महत्या कर क्यों ली? यह बात आज तक किसी की समझ में नहीं आई?’’ कहतेकहते गिरी बाबा चुप
हो गए.
ठाकुर साहब के पुरोहित गोकुल पंडित द्वारा आत्महत्या करने के बाद पहली बार गिरी बाबा को ठाकुर साहब ने अपनी हवेली पर बुलवाया था और गिरी बाबा से अनजाने में ही किए गए पाप का प्रायश्चित्त करने की युक्ति पूछी थी. तब से ही गिरी बाबा ने ठाकुर को अपने चंगुल में ऐसा फंसाया कि ठाकुर साहब ने उन्हें अपने परिवार का पुरोहित बना लिया.
पिछले कई दिनों से मूसलाधार बारिश हो रही थी. शहर में बने बांध से पानी छोड़ा गया था, जिस से गांव में बाढ़ आ गई थी. लोगों के घरों में पानी भर गया था. चूंकि पानी अचानक से आया था, इसलिए गांव वाले अपना राशन और जरूरत का सामान तक भी बचा नहीं पाए थे.
ऐसे समय में गांव के ठाकुर साहब उन सब के लिए अन्नदाता और प्राणरक्षक बन कर आए. पूरे गांव में मुनादी करा दी गई कि जिन गांव वालों को खानेपीने और रहने की समस्या हो, वे ठाकुरजी की हवेली पर आ सकते हैं. पर यह मौका सिर्फ गांव की औरतों और बच्चों के लिए ही दिया गया था. किसी मर्द को हवेली में घुसने की इजाजत नहीं थी.
हवेली के दरवाजे पर तैनात संतरी ने औरतों और बच्चों को एक तरफ जाने का इशारा किया. उस जगह पर ठाकुर साहब के जानवर बांधे जाते थे.
इसी भीड़ में एक चेहरा ऐसा भी था, जिसे जानवरों के गोबर से आता बदबू का भभका अच्छा नहीं लग रहा था और वह चेहरा और कोई नहीं, बल्कि गिरी बाबा की पत्नी सुनीता का था, पर अपने पास कोई चारा न देख कर वह शांत ही रही.
हवेली की छत से ठाकुर साहब चारों तरफ का जायजा ले रहे थे. आज उन के सामने गांव की सारी औरतें और लड़कियां थीं. उन की आंखों में हवस उतरने लगी थी.
सुबह होते ही ठाकुर साहब ने गिरी बाबा को हवेली पर बुलाया. सुनीता ने बताया कि वे तो बाढ़ का पानी आने से पहले ही दूसरे चले गांव गए थे और अब वहीं फंस कर रह गए हैं. अब जब पानी कम होगा, तब ही वे वापस आ पाएंगे.
3 दिन बाद ही बाढ़ का पानी निकल सका था. सारी औरतें और बच्चे अपने घर जा चुके थे.
ठाकुर साहब ने गिरी बाबा को बुलावा भेजा कि वे आएं और ऐसा अनुष्ठान कर दें, ताकि उन के गांव में फिर से बाढ़ न आए.
गिरी बाबा ने पूरे 2 घंटे तक अनुष्ठान करवाया और बाद में अपनी दक्षिणा मांगी.
ठाकुर साहब ने गिरी बाबा से फुसफुसा कर पूछा, ‘‘दक्षिणा तो बाद की बात है, पर आप मुझे यह बताएं कि मुझ से अगर कोई बड़ा पाप हो गया हो, तो क्या दान करने से उस पाप का असर कम हो सकता है?’’
गिरी बाबा बहुत दिन से ठाकुर साहब की चहेती गाय कालिंदी पर नजर लगाए हुए थे. उन्होंने सोचा कि यह मौका अच्छा है ठाकुर से गोदान कराने का.
गिरी बाबा ने तपाक से ठाकुर साहब से पूछा, ‘‘आप पहले यह बताएं कि पाप का शिकार किस जाति का हुआ है?’’
ठाकुर साहब द्वारा किए जाने वाले पापों के बारे में गिरी बाबा को एहसास था, इसलिए उन्होंने सीधे ही पूछ लिया.
‘‘वह शिकार ब्राह्मण जाति का है,’’ ठाकुर साहब ने कहा.
‘‘तब तो आप को अपनी कालिंदी गाय का दान करना पड़ेगा, तभी आप को पाप से मुक्ति मिलेगी.’’
ठाकुर साहब ने फौरन हामी भर ली और अपनी कालिंदी गाय गिरी बाबा को दान में दे दी.
गिरी बाबा बहुत खुश हुए कि चलो अब से रोज गाय का दूध पीने को मिलेगा. उन्होंने गाय की रस्सी पकड़ी और दान में मिली कालिंदी को घर की तरफ ले कर चल दिए.
घर पहुंच कर गिरी बाबा ने मारे खुशी के दरवाजे से ही अपनी पत्नी सुनीता को आवाज देना शुरू कर दिया. वह बाहर आई और कालिंदी को देखते ही बोली, ‘‘तो ठाकुर साहब ने अपने पाप का प्रायश्चित्त कर के तुम्हें गोदान कर
ही दिया…’’
‘‘पर, यह दान मुझे ठाकुर ने दिया है, यह तुम्हें कैसे पता?’’
सुनीता ने गिरी बाबा से कालिंदी को एक ओर बंधवाया और उसे अंदर बुलाया, फिर बोली, ‘‘उस दिन जब तुम दूसरे गांव गए थे, तो हम सब लोग ठाकुर साहब के मवेशियों के अहाते में रहने को मजबूर हो गए थे. उस रात जब मैं सोई हुई थी, तब ठाकुर साहब के आदमी मुझे उठा कर कमरे में ले गए थे.
‘‘वहां ठाकुर नशे में थे और उन्होंने मुझ से कहा था, ‘देखो सुनीता, गिरी बाबा तो तुम्हें आज तक बच्चा दे नहीं पाया है. तुम चाहो तो मैं तुम्हारे माथे से यह बांझपन का कलंक मिटा सकता हूं. बस, मेरे साथ एक बार सो जाओ और जिंदगी के मजे लो. हां, अगर तुम्हें मंजूर न हो, तो मैं जबरदस्ती नहीं करूंगा.’
‘‘पहलेपहल तो मुझे बहुत गुस्सा आया, पर कुछ देर सोचने के बाद मैं ने कहा, ‘पर, यह तो पाप है.’
‘‘तब ठाकुर साहब ने कहा था, ‘पाप से मुक्ति का इलाज तो गिरी बाबा जानता ही है… तू भी एक गौ दान कर देना.’’’
‘‘तो क्या तू ठाकुर के साथ सोई थी?’’ यह पूछते हुए गिरी बाबा की आंखें फैल गई थीं.
‘‘हां, मुझे बच्चा जो चाहिए था,’’ सुनीता ने हिम्मत से कहा.
गिरी बाबा सुनीता की बात सुन कर सन्न रह गए. वह यह सचाई जान कर दंग रह गए थे कि उन की पत्नी ठाकुर साहब के साथ अपनी इज्जत का सौदा कर के आई है.
‘‘वैसे, मैं इस घर की मालकिन हूं… इस घर की चीजों पर मेरा हक है, इसलिए यह कालिंदी गाय भी अब मेरी है… और हे गिरी बाबा, मुझ से जो पाप हुआ है, उस के लिए मैं यह गऊ तुम्हें दान में देती हूं,’’ सुनीता ने कालिंदी के गले की रस्सी गिरी बाबा को पकड़ाते हुए कहा.
गिरी बाबा की आंखों के सामने अचानक ही गोकुल पंडित का चेहरा घूम गया. उन्होंने कालिंदी की रस्सी पकड़ी और कंपकंपाते होंठों से गोदान लेने के लिए मंत्र पढ़ने लगा.