परी हूं मैं – भाग 4 : तरुण ने दिखाई मुझे मेरी औकात

विराज सब समझ कर भी पूर्ण समर्पण भाव से तरुण और अपनी शादी को संभाल रही थी. मेरे सीने पर सांप लोट गया जब मालूम पड़ा कि विराज उम्मीद से है, और सब से चुभने वाली बात यह कि यह खबर मुझे राजीव ने दी.

‘‘आप को कैसे मालूम?’’ मैं भड़क गई.

‘‘तरुण ने बताया.’’

‘‘मुझे नहीं बता सकता था? मैं इतनी दुश्मन हो गई?’’

विराज, राजीव से सगे जेठ का रिश्ता निभाती है. राजीव की मौजूदगी में कभी अपने सिर से पल्लू नीचे नहीं गिरने देती है, जोर से बोलना हंसना तो दूर, चलती ही इतने कायदे से है…धीमेधीमे, मुझे नहीं लगता कि राजीव से इस बारे में उस की कभी कोई बात भी हुई होगी.

लेकिन आज राजीव ने जिस ढंग से विराज के बारे में बात की , स्पष्टतया उन के अंदाज में विराज के लिए स्नेह के साथसाथ सम्मान भी था.

चर्चा की केंद्रबिंदु अब विराज थी. तरुण ने विराज को डिलीवरी के लिए घर भेजने के बजाय अपनी मां एवं नानी को ही बुला लिया था. वे लोग विराज को हथेलियों पर रख रही थीं. मेरी हालत सचमुच विचित्र हो गई थी. राजीव अब भी किताबों में ही आंखें गड़ाए रहते हैं.

और विराज ने बेटे को जन्म दिया. तरुण पिता बन गया. विराज मां बन गई पर मैं बड़ी मां नहीं बन पाई. तरुण की मां ने बच्चे को मेरी गोद में देते हुए एकएक शब्द पर जोर दिया था, ‘लल्ला, ये आ गईं तुम्हारी ताईजी, आशीष देने.’

बच्चे के नामकरण की रस्म में भी मुझे जाना पड़ा. तरुण की बहनें, बूआओं सहित काफी मेहमानों को निमंत्रित किया गया. कार्यक्रम काफी बड़े पैमाने पर आयोजित किया गया था. इस पीढ़ी का पहला बेटा जो पैदा हुआ है. राजीव अपने पुराने नातेरिश्ते से बंधे फंक्शन में बराबरी से दिलचस्पी ले रहे थे. तरुण विराज और बच्चे के साथ बैठ चुका तो औरतों में नाम रखने की होड़ मच गई. बहनें अपने चुने नाम रखवाने पर अड़ी थीं तो बूआएं अपने नामों पर.

बड़ा खुशनुमा माहौल था. तभी मेरी निगाहें विराज से मिलीं. उन आंखों में जीत की ताब थी. सह न सकी मैं. बोल पड़ी, ‘‘नाम रखने का पहला हक उसी का होता है जिस का बच्चा हो. देखो, लल्ला की शक्ल हूबहू राजीव से मिल रही है. वे ही रखेंगे नाम.’’

सन्नाटा छा गया. औरतों की उंगलियां होंठों पर आ गईं. विराज की प्रतिक्रिया जान न सकी मैं. वह तो सलमासितारे जड़ी सिंदूरी साड़ी का लंबा घूंघट लिए गोद में शिशु संभाले सिर झुकाए बैठी थी.

मैं ने चारोें ओर दृष्टि दौड़ाई, शायद राजीव यूनिवर्सिटी के लिए निकल चुके थे. मेरा वार खाली गया. तरुण ने तुरंत बड़ी सादगी से मेरी बात को नकार दिया, ‘‘भाभी, आप इस फैक्ट से वाकिफ नहीं हैं शायद. बच्चे की शक्ल तय करने में मां के विचार, सोच का 90 प्रतिशत हाथ होता है और मैं जानता हूं कि विराज जब से शादी हो कर आई, सिर्फ आप के ही सान्निध्य में रही है, 24 घंटे आप ही तो रहीं उस के दिलोदिमाग में.

इस लिहाज से बच्चे की शक्ल तो आप से मिलनी चाहिए थी. परिवार के अलावा किसी और पर या राजीव सर पर शक्लसूरत जाने का तो सवाल ही नहीं उठता. यह तो आप भी जानती हैं कि विराज ने आज तक किसी दूसरे की ओर देखा तक नहीं है. वह ठहरी एक सीधीसादी घरेलू औरत.’’

औरत…लगा तरुण ने मेरे पंख ही काट दिए और मैं धड़ाम से जमीन पर गिर गई हूं. मुझे बातबात पर परी का दरजा देने वाले ने मुझे अपनी औकात दिखा दी. मुझे अपने कंधों में पहली बार भयंकर दर्द महसूस होने लगा, जिन्हें तरुण ने सीढ़ी बनाया था, उन कंधों पर आज न तरुण की बांहें थीं और न ही पंख.

परिवर्तन – भाग 1 : राहुल और कवि की कहानी

‘‘पर कवि, भगवान तो है ही न.’’

‘‘मैं तुम्हें पहले भी कई बार कह चुकी हूं कि अपना भगवान अपने पास रखो,’’ कवि झुंझला कर बोली, ‘‘वह तुम्हारा है, सिर्फ तुम्हारा. तुम्हारी पत्नी होने के नाते वह मेरा भी है, यह तुम्हारी धारणा गलत है. मैं तुम से कई बार कह चुकी हूं कि तुम्हारा भगवान मंदिरों में ही ठीक लगता है जहां वह मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर इनसानों की दया पर निर्भर है. तुम्हें शायद याद नहीं, यही गुजरात है जहां के सोमनाथ मंदिर को महमूद गजनवी ने लूटा था. वह भी एक इनसान था और उस के हाथों पिटा तुम्हारा भगवान. सर्वशक्तिमान हो कर भी कुछ न कर सका. लुटवा दी सारी संपदा, तुड़वा दी अपनी मूरत.’’

‘‘कवि, तुम बातों को सहज रूप में नहीं लेती हो. तुम्हें तो जो तर्क की कसौटी पर सही लगता है उसे ही तुम सही मानती हो. तुम ईश्वर का अस्तित्व वैज्ञानिक धरातल पर तलाशती हो. पर इतना जरूर कहूंगा कि कोई ऐसी एक ताकत जरूर है जो इस संसार को गतिमान कर रही है.’’

‘‘यह तो प्रकृति है जो यहां पहले से ही मौजूद है. ये सब अनादि काल से ऐसा ही चल रहा है.’’

‘‘ठीक है, तो इन में जीवन का संचार कौन कर रहा है?’’

‘‘कौन से क्या मतलब? जीवन का संचार सूर्य से है. सूर्य से ही ऊर्जा मिलती है. गहरे अर्थों में जाओ तो हाइड्रोजन हीलियम में बदलती है और बदलाव से ऊर्जा मिलती है जो सूर्य के अंदर मौजूद है और ऊर्जा से ही यह सारा संसार चलता है.’’

‘‘पर तुम्हारा सूर्य भी तो किसी ने बनाया होगा?’’

‘‘तुम प्रश्न तो गढ़ते हो पर यह क्यों नहीं मानते कि ये चीजें पहले से ही यहां मौजूद हैं जो निरंतर विकास की अवस्था से गुजरते हुए, अनादि काल से बिना किसी भगवान के सहारे यहां तक पहुंची हैं और आगे भी इसी तरह कुदरती बदलावों के साथ चलती रहेंगी.

‘‘भगवान न कभी था, न है और न होगा. बस, उस के नाम पर धंधा करने वाले लोग एक ढोल बजा कर, भगवान है…भगवान है का शोर इसलिए मचा रहे हैं ताकि वे अपनी गलतियों को ढक सकें. कुछ गलत हो गया तो ‘भगवान की ऐसी ही इच्छा थी.’ जो नहीं जानते उस के लिए ‘भगवान ही जानें.’ कुछ बस में नहीं हुआ तो ‘भगवान’ को आगे कर दिया. कमजोर प्राणी ही भगवान की शरण ढूंढ़ता है.

‘‘हेमंत, तुम भगवान के प्रति इतनी आस्था मत रखा करो. तुम्हें खुद पर विश्वास नहीं है इसलिए तुम अपने टेस्टों में फेल होते हो. मेहनत नहीं कर पाते तो दोष भगवान के माथे मढ़ते हो.’’

‘‘रहने दो कवि, मैं मानता हूं कि मुझ में कहीं कोई कमी है. मैं तुम्हारे आगे हथियार डालता हूं. वैसे इस समय मैं सोने के मूड में हूं क्योंकि सारी रात राहुल ने सोने नहीं दिया है. कान दर्द बताता रहा.’’

‘‘यह कान दर्द भी तुम्हारे भगवान ने दिया होगा. यह क्यों नहीं कहते कि रात को स्टार मूवीज की गरमागरम फिल्म देख रहे थे और बहाना राहुल का बना रहे हो. इस में भी तुम्हारा कोई दोष नहीं क्योंकि भगवान के प्रति आस्था रखने वाले झूठ का सहारा तो लेते ही हैं.’’

‘‘कवि, राहुल उठ गया है उसे ले लो तो मैं थोड़ी देर तक दिल्ली में चल रही गणतंत्रदिवस परेड देख लूं.’’

राहुल को पालने में लिटा कर कवि उस के लिए दूध बनाने रसोईघर में घुसी. दूध बनाने के बाद बोतल से राहुल को दूध पिलाने लगी. घड़ी की टनटन की आवाज के साथ उस ने देखा तो  साढ़े 8 बज गए थे. वह सोचने लगी कि आया भी अभी तक नहीं आई. जाने कब आएगी. आती तो मुझे फुरसत मिलती इस राहुल से.

राहुल की आंखों में कवि की गोद में आने का आग्रह था, पर वह इस लालच में कभी पड़ी ही नहीं. उसे डर था कि यदि बच्चे को मां की गोद में रहने की आदत पड़ गई तो उस के लिए बड़ी दिक्कत हो जाएगी. राहुल हाथपैर हिलाहिला कर दूध पीता रहा.

कवि हेमंत के लिए चाय बना कर उसे प्याले में उड़ेलने लगी. यह क्या, चाय बाहर क्यों गिर रही है? मुझे किस ने धक्का दिया? कहीं मुझे चक्कर तो नहीं आ रहा है? राहुल पालने में जोरजोर से क्यों झूल रहा है? उसे कौन झुला रहा है और ये बरतन हिलते हुए दूसरी तरफ क्यों जा रहे हैं? ओह नो, भूकंप…

कवि घबराई हुई राहुल पर झपटी. उसे गोद में ले कर बेडरूम में भागी, हेमंत उठो, ‘‘भूकंप. गिरजा को लो.’’

शायद हेमंत भी स्थिति को समझ गया था. वह तेजी से गिरजा को गोदी में ले कर भागा. दोनों अपनीअपनी गोद में बच्चों को ले कर सीढि़यों की तरफ भागे. कवि ने देखा कि हेमंत 5-6 सीढि़यां ही उतर पाया था कि अचानक वह सीढि़यों के साथ नीचे गिरता चला गया. कवि के मुंह से चीख निकली, ‘‘हेमंत, बचो,’’ पर यह क्या मैं भी…और मेरे ऊपर भी दीवार भयानक ढंग से नीचे आ रही थी. कवि को बस, उस समय यही लगा था कि सारी बिल्ंिडग नीचे धंस रही है.

अचानक कवि जागी उसे लगा कि सिर और पैर में तेज दर्द है. सिर पर हाथ फिरा कर देखा तो कुछ चिपचिपा सा लगा. पैर में भी चोट आई थी. ‘मैं कहां हूं,’ कवि ने खुद से पूछा तो उसे याद आया कि वह तो राहुल को ले कर नीचे की ओर भागी थी…राहुल, वह कहां है?

अपने अगलबगल टटोला तो उस से थोड़ी ही दूरी पर राहुल पड़ा था. वह शायद सो रहा था. कवि ने उसे उठाया. सिर से पैर तक उस के अंगों को टटोल कर देखा. अचानक उस के मुंह से निकला, मेरे बच्चे, ‘तुम ठीक तो हो.’ और इस के बाद कवि उसे बेतहाशा चूमने लगी. यह बच्चे के जीवित रहने की खुशी थी जो प्यार बन कर उस के समूचे बदन को चूम रही थी. उस ने टटोल कर देखा तो बच्चे का अंगप्रत्यंग सलामत था. उस के बदन पर कहीं खरोंच तक न थी. मां के शरीर का स्पर्श पा कर राहुल जाग गया और उस के मुंह से निकला, ‘मां…’

कवि ने उसे अपने सीने से चिपका लिया. उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. अचानक उसे गिरजा का खयाल आया और किसी अनहोनी की आशंका से वह सिहर गई. ‘गिरजा…’ वह तो हेमंत के हाथों में थी. हेमंत सीढि़यों सहित नीचे जा गिरा था. वह कहां है, जिंदा भी है या…

और एक अज्ञात भय से

कवि कांप गई. जोर  से चिल्लाई, ‘‘हेमंत…हे…मं…त… गिरजा… गि… र… जा…हे…मं….त…’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें