मजाक: पटनिया एडवैंचर, कुसूरवार कौन

पटनिया एडवैंचर आटोरिकशा ट्रिप बचपन से ही मुझे एडवैंचर ट्रिप पर जाने का शौक रहा है. जान हथेली पर रख कर स्टंट द्वारा लाइफ के साथ लाइफ से खेलने या मजा लेने की इच्छाएं मेरे खून, दिल, गुरदे, फेफड़े वगैरह में उफान मारा करती थीं, लेकिन कमजोर दिल और कमजोर अर्थव्यवस्था के चलते अपने इस शौक को मैं डिस्कवरी चैनल, ऐक्शन हौलीवुड मूवी या रोहित शेट्टी की फिल्में देख कर पूरा कर लिया करता था.कहते हैं कि जिस चीज की तमन्ना शिद्दत से की जाए तो सारी कायनात उसे मिलाने की साजिश करने लगती है. कुछ इसी तरह की घटना मेरे साथ भी हुई.

कुदरत ने मेरी सुन ली और मुझे भी कम खर्च में नैचुरल एडवैंचर जर्नी का सुनहरा मौका मिल ही गया.पहली बार बिहार की राजधानी पटना जाना हुआ. फिर क्या था, साधारण टिकट ले कर रेलवे के साधारण डब्बे में सेंध लगा कर घुस गया.

सेंध लगाना मजबूरी थी, क्योंकि 103 सीट वाली अनारक्षित हर बोगी में तकरीबन 300 पैसेंजर भेड़बकरियों की तरह सीट, लगेज सीट, फर्श, टौयलैट और गेट पर बैठेखड़े, लटके या फिर टिके हुए थे.  मैं भी इमर्जैंसी विंडो के सहारे किसी तरह डब्बे में घुस कर अपने आयतन के अनुसार खड़ा रहने की जगह पर कब्जा कर बैठा. स्टेशनों पर चढ़नेउतरने वाले मुसाफिरों की धक्कामुक्की और गैरकानूनी वैंडरों की ठेलमठेल के बीच खुद को बैलेंस करते हुए 6 घंटे की रोमांचक यात्रा के बाद मैं आखिरकार पटना जंक्शन पहुंच ही गया.

इस के बाद मैं पटना जंक्शन से पटना सिटी के लिए आटोरिकशा की तलाश में बाहर निकला.पटना सिटी के लिए बड़ी आसानी आटोरिकशा मिल गया. ड्राइवर ने उस के पीछे वाली चौड़ी सीट पर 3 लोगों को बैठाया, जबकि आगे की ड्राइवर सीट वाली कम जगह पर अपने अलावा 3 दूसरे पैसेंजर को बड़ी ही कुशलता से एडजस्ट कर लिया.कमोबेश सभी आटोरिकशा ड्राइवर तीनों पैसेंजर के साथ खुद को सैट कर  टेकऔफ करने के हालात में नजर आ रहे थे.

कुछ ड्राइवर ड्राइविंग सीट पर बीच में बैठ कर तो कुछ साइड में शिफ्ट हो कर बैठे थे. समझ लो कि अपनी तशरीफ को 45 डिगरी के कोण पर सैट कर के आटोरिकशा हुड़हुड़ाने को तैयार था.ड्राइवर समेत कुल 4 सीट वाले आटोरिकशा में 7 लोगों के सफर करने का हुनर देख कर मुझे समझते देर न लगी कि पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर बेहतरीन मैनेजर होते हैं. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इस तरह का रोमांचक सीन आल इंडिया लैवल पर सिर्फ और सिर्फ पटना की सड़कों पर ही देखा जा सकता है.

पटना की सड़कों पर दोपहिया और चारपहिया के बीच तिपहिया की धूम के आगे रितिक रौशन और उदय चोपड़ा की ‘धूम’ भी फेल है.पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर समय का पक्का होता है. बसस्टैंड से पैसेंजर को बैठाने के चक्कर में ड्राइवर ने भले ही जितनी देरी की हो, पर पैसेंजर सीट फुल होने के बाद वह बाएंदाएं, राइट साइड, रौंग साइड, आटोरिकशा की मैक्सिमम स्पीड और तेज शोर के साथ राकेट की रफ्तार से मंजिल की ओर कूच कर गया.

भले ही इन लोगों के चलते सड़क पर जाम लग जाए, पर लाइन में रह कर समय बरबाद करने मे ये आटोरिकशा वाले यकीन नहीं रखते और अमिताभ बच्चन की तरह अपनी लाइन खुद तैयार कर लेते हैं.शायद आगे सड़क पर जाम था या पेपर चैकिंग मुहिम चल रही थी, पता नहीं, पर इस बात का ड्राइवर को जैसे ही अंदाजा हुआ, फिर क्या था… उस ने हम सब को पटना की ऐसी टेढ़ीमेढ़ी गलियों में गोलगोल घुमाया, जिन गलियों को ढूंढ़ पाना कोलंबस के वंशज के वश से बाहर था. मुझे समझते देर न लगी कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर आविष्कारक या खोजी सोच के होते हैं.

हम राकेट की रफ्तार से सफर का मजा ले ही रहे थे कि फ्लाईओवर पर पीछे से हुड़हुड़ाता हुआ एक आटोरिकशा काफी तेजी से हमारे आगे निकल गया. शायद सवारियों से ज्यादा मंजिल तक पहुंचने की जल्दी ड्राइवर को थी. इसी मकसद को पूरा करने के लिए वह तीखे मोड़ पर टर्न लेने के दौरान तेज रफ्तार से बिना ब्रेक लिए पलटीमार सीन का लाइव प्रसारण कर बैठा.हमारे खुद के आटोरिकशा की बेहिसाब स्पीड और रेस में आगे निकल रहे दूसरे आटोरिकशा का हश्र देख कर मेरे कलेजे के अंदर डीजे बजने लगा. समझते देर न लगी कि पटनिया सड़कों पर ड्राइवर के रूप में यमराज के दूत भी मौजूद हैं, जो अपनी हवाहवाई स्पीड और रेस से सवारियों को परिवार या परिचित तक पहुंचाने के साथसाथ अस्पताल से ऊपर वाले के दर्शन तक कराने में भी मास्टर होते हैं.

ऐसा नहीं है कि बिना सैंसर बोर्ड वाले वाहियात भोजपुरी गीत इंडस्ट्री की तरह पटनिया परिवहन बिना ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम वाली है.

सौ से सवा सौ मीटर पर यातायात पुलिस वाले मौजूद रहते हैं. ये पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर की औकात से ज्यादा सवारी ढोने और जिगजैग ड्राइविंग जैसे साहसिक कारनामे के दौरान धृतराष्ट्र मोड में, जबकि हैलमैट, सीट बैल्ट, कागजात वगैरह चैक करने के दौरान संजय मोड में अपनी जिम्मेदारी पूरी करते नजर आते हैं.बातोंबातों में एक बात बताना भूल ही गया कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर किराया मीटर या दूरी के बजाय पैसेंजर की मजबूरी के मुताबिक तय कर लेते हैं.

घटतेबढ़ते पैट्रोल के कीमत की तरह समय, स्टैंड पर आटोरिकशा की तादाद और मुसाफिरों के मंजिल तक पहुंचने की जरूरत के हिसाब से ड्राइवर को किराया तय करते देख और सफर के दौरान ब्लूटूथ स्पीकर से सवारियों को भोंड़े भोजपुरी गीत सुनवाने की इन की आदत से मुझे समझते देर न लगी कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर कुशल अर्थशास्त्री और संगीत प्रेमी भी हैं.

अगर आप भी रोहित शेट्टी के प्रोग्राम ‘खतरों के खिलाड़ी’ में नहीं जा सके हों और महंगाई के आलम में जान हथेली पर वाले एडवैंचर ट्रिप के शौक को पूरा करने से चूक गए हैं, तो महज 10 से 20 रुपए में पटनिया टैंपू ट्रैवल एडवैंचर ट्रिप का मजा किसी भी सीजन में ले सकते हैं. मेरी गारंटी है कि इस शानदार ट्रिप में आप को हर पल यादगार रोमांच हासिल होगा.

जात : एक पेंटर का दर्द

गांव में एक शानदार मंदिर बनाया गया. मंदिर समिति ने एक बैठक कर के मंदिर में रंगरोगन और चित्र सज्जा के लिए एक अच्छे पेंटर को बुलाना तय किया. सब ने शहर के नामचीन पेंटर को बुला कर काम करने की सहमति दी.दूसरे दिन मंदिर समिति द्वारा चुने गए 2 लोग शहर के नामचीन पेंटर की दुकान पर पहुंचे, जिस ने कई मंदिरों और दूसरी जगहों को अपनी कला से निखारा था.

मंदिर समिति के लोगों ने उस पेंटर को बताया कि मंदिर में कौनकौन सी मूर्तियां लगेंगी और उन देवीदेवताओं की लीलाओं से संबंधित चित्र बनाने हैं और रंगरोगन करना है.उस पेंटर ने हामी भरी, तो मंदिर समिति के सदस्यों ने उसे 2,000 रुपए एडवांस दे दिए.दूसरे दिन वह पेंटर अपने रंगों व ब्रश के अलावा दूसरे तामझाम के साथ गांव पहुंच गया.

मंदिर में सामान रख कर वह एक दीवार को चित्रकारी के लिए तैयार कर ही रहा था कि मंदिर समिति का एक सदस्य वहां आया और चित्रकार से बोला, ‘‘पेंटर साहब, बापू साहब ने कहा है कि अभी कुछ दिन काम नहीं करना है, इसलिए आप अभी जाओ. काम कराना होगा तो बुला लेंगे.’’वह पेंटर अपना काम रोक कर सामान को समेटते हुए वापस शहर अपनी दुकान पर लौट आया.

4-5 दिन बाद गांव के कुछ खास लोग उस की दुकान पर पहुंचे और उन में से एक बोला, ‘‘पेंटर साहब, अभी काम बंद रखना है, इसलिए मंदिर की तरफ से जो पेशगी दी थी, वह वापस दे दो.’’पेंटर ने उन्हें वह राशि लौटा दी. सब चले गए. दूसरे दिन शहर में मंदिर समिति का एक सदस्य दिखाई दिया,

तो उस पेंटर ने इज्जत के साथ बुला कर उस से काम न कराने की वजह जाननी चाही, तो उस सदस्य ने समिति में हुई चर्चा बताते हुए कहा, ‘‘आप छोटी जाति के हो और मंदिर में उन का घुसना मना है, इसलिए आप को मना किया व दूसरे पेंटर को काम दे दिया.’’यह सुन कर वह पेंटर बोला,

‘‘पर, मैं न तो शराब पीता हूं, न मांस खाता हूं और न ही बीड़ीसिगरेट पीता हूं… मैं तो दोनों समय मंदिर जाता हूं.’’इस पर वह आदमी बोला, ‘‘वह सब तो ठीक है और बहुत सारे मंदिरों में आप ने बहुत अच्छा काम भी किया है, पर हमारे यहां बापू साहब ने मना किया, तो किस की हिम्मत जो आप के लिए बोले.’’

जय बाबा सैम की

अंकिता ने अमित को अपने खास दोस्तों से मिलवाने के लिए अपनी सहेली महक के घर लंच पर बुलाया था. उन दोनों को वहां पहुंचे चंद मिनट ही हुए होंगे कि अंकिता की दूसरी प्रिय सहेली रिया भी अपने पति राजीव के साथ आ पहुंची.

महक के पति मोहित ने रिया पर नजर पड़ते ही उस की तारीफ की, ‘‘रिया, आज तो तुम्हें देख रास्ते में न जाने कितने लड़के गश खा कर गिरे होंगे.’’

‘‘एक भी नहीं गिरा,’’ रिया ने उदास दिखने का अभिनय किया.

‘‘मैं नहीं मान सकता. देखो, संसार की सब से खूबसूरत स्त्री को सामने देख कर मेरा दिल कितना तेज धड़क रहा है,’’ अपनी छाती पर रखने के लिए मोहित ने अचानक रिया का हाथ पकड़ लिया.

‘‘जय बाबा सैम की…’’ रिया ने अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास करने के बजाय शरारती अंदाज में नारा लगाया.

‘‘जय…’’ अंकिता और महक ने हाथ उठा कर जोशीली आवाज में नारा पूरा किया तो मोहित ने झेंपते हुए रिया का हाथ छोड़ दिया.

अमित को इन तीनों सहेलियों का व्यवहार अटपटा लगा.

‘‘यार, इस नए बंदे के सामने तो अपने बाबा सैम का गुणगान इतनी जल्दी शुरू मत करो,’’ मोहित ने बुरा सा मुंह बना कर टिप्पणी की.

‘‘हम मरते दम तक भी बाबा का गुणगान करना बंद नहीं करेंगे,’’ महक ने अपने पति के गाल पर प्यार से चिकोटी काटी.

‘‘उन्होंने हमें जो ज्ञान दिया है, उसे हम तीनों ने हमेशा के लिए गांठ बांध लिया है,’’ अंकिता ने महक की बात का समर्थन किया.

‘‘यह बाबा सैम कौन हैं?’’ अमित ने उत्सुकता दर्शाते हुए अंकिता से सवाल पूछा.

‘‘सैम का किस्सा तुम्हें जरा फुरसत में सुनाऊंगी अमित, पहले यह बताओ कि चाय पियोगे या कौफी?’’ महक ने टालते हुए कहा.

‘‘मैं चाय पिऊंगा.’’

सालभर पहले अंकिता अपनी इन दोनों करीबी सहेलियों महक और रिया से परिचित नहीं थी. एक रविवार की सुबह ये दोनों बिना कोई सूचना दिए पहली बार उस से मिलने कामकाजी महिलाओं के होस्टल में आ पहुंची थीं. महक ने अपना परिचय दिया तो पता चला कि वह मेरठ की रहने वाली है और वहां कालेज में समीर के साथ पढ़ा करती थी. समीर जौब करने दिल्ली आ गया था जबकि महक मेरठ में एक पब्लिक स्कूल में पढ़ा रही थी.

उस दिन महक ने गंभीर लहजे में अंकिता को बताया था, ‘‘किसी जानकार ने मुझे महीनाभर पहले बताया कि उस ने समीर को एक सुंदर लड़की के साथ फिल्म देख कर बाहर निकलते देखा था. यह सुन कर मेरा माथा ठनका, क्योंकि समीर ने मुझ से शादी करने का वादा कर रखा है. हम दोनों के बीच प्रेम का रिश्ता करीब 4 साल से चल रहा है. कहीं वह मुझे धोखा तो नहीं दे रहा, यह जानने के लिए मैं ने जब उस के पीछे एक प्राइवेट डिटैक्टिव लगाया तो पता चला कि जनाब दिल्ली में एक नहीं बल्कि 2-2 लड़कियों से चक्कर चला रहे हैं.’’

उस का इशारा अंकिता और रिया की तरफ था. अंकिता समीर की कंपनी में जौब कर रही थी जबकि रिया से उस का परिचय किसी दोस्त के माध्यम से एक विवाह समारोह में हुआ था.

उन तीनों ने आपस में खुल कर बातें कीं तो समीर की बेवफाई सामने आ गई. वह अंकिता और रिया के साथ भी प्यार का खेल खेल रहा था.

बहुत ज्यादा परेशान और गुस्से में नजर आ रही महक बोली, ‘‘हमारे लिए सब से पहले यह जानना जरूरी है कि समीर हम में से किसी का जीवनसाथी बनने लायक है भी या नहीं. अगर वह हम तीनों को बेवकूफ बना कर हमारी भावनाओं से खेल रहा है तो हिसाब बराबर करने के लिए हमें उसे तगड़ा सबक सिखाना चाहिए.’’

उन तीनों ने साथ बैठ कर समीर की असलियत उजागर करने के लिए योजना बनाई. फिर योजनानुसार पहले अंकिता ने फोन कर के समीर से कहा कि वह आज शाम उस के साथ गुजारना चाहती है. उस ने 6 बजे नेहरू पार्क में उसे मिलने के लिए बुलाया.

रिया ने भी उसी शाम समीर को अपने घर में 6 बजे चाय पीने के लिए बुलाया. बातोंबातों में वह उसे यह बताना नहीं भूली कि उस शाम उस के मातापिता भी घर पर नहीं होंगे.

आखिर में महक ने समीर को फोन कर के जानकारी दी कि वह एक रिश्तेदार को देखने आज दिल्ली आ रही है और रात 8 बजे के करीब वापस मेरठ लौट जाएगी. अत: उस ने 6 बजे उसे अपने मामा के घर मिलने के लिए बुलाया.

समीर ने उन तीनों से ही शाम 6 बजे मिलने का वादा कर लिया.

अमित ने चाय का पहला घूंट भरने के बाद जायकेदार चाय बनाने के लिए महक की दिल खोल कर तारीफ की.

महक ने प्रसन्न अंदाज में अमित से पूछा, ‘‘अब तुम यह बताओ कि हमारी अंकिता के साथ तुम ने इश्क का चक्कर कब, कहां और कैसे चलाया?’’

‘‘यह मेरे दोस्त नीरज की शादी में आई हुई थी. मैं तो पहली ही नजर में इसे अपना दिल दे बैठा था,’’ अमित ने कुछ शरमाते हुए सब को जानकारी दी.

‘‘पहली बार अंकिता को देख कर मुझ पर भी कुछ ऐसा ही प्रभाव पड़ा था, पर अफसोस कि तब तक मेरी बरात रिया के फार्म हाउस तक पहुंच चुकी थी,’’ राजीव के इस मजाक पर सब दिल खोल कर हंसे तो रिया ने चिढ़ाने वाले अंदाज में अपनी जीभ निकाली.

‘‘अच्छा, एक बात बताओ. क्या तुम किसी भी सुंदर लड़की को देख कर लाइन मारना शुरू कर देते हो?’’ महक ने एक ही झटके से यह टेढ़ा सवाल अमित से पूछा.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ अमित की आवाज में लड़खड़ाहट थी.

‘‘ऐसी बात हो भी तो फिक्र नहीं,’’ महक ने उस की टांग खींचना जारी रखा, ‘‘किसी भी सुंदर लड़की को देखते ही अगर तुम्हारे सिर पर लाइन मारने का भूत सवार हो जाता हो तो अपना यह शौक तुम रिया और मेरे साथ फ्लर्ट कर के पूरा कर लेना. हम दोनों ऐसी किसी छेड़छाड़ का बिलकुल बुरा नहीं मानेंगी.’’

‘‘वाह, क्या खुलेआम झूठ बोला जा रहा है यहां,’’ मोहित ने हंसते हुए अपनी पत्नी की बात का विरोध किया, ‘‘बहुत अच्छी हैं ये सालियां, हंसीमजाक करो और खाओ इन से गालियां… कितनी शानदार और बढि़या तुकबंदी की है न मैं ने, राजीव?’’ मोहित ने खुद ही अपनी तारीफ कर डाली.

राजीव के बोलने से पहले ही रिया ने उस की बात को खारिज करते हुए कहा, ‘‘बिलकुल झूठी बात है यह. सहेलियो, हम स्वस्थ हंसीमजाक का जवाब गालियों से बिलकुल नहीं देतीं लेकिन जब मामला शालीनता की सीमा तोड़ता नजर आए तो ही मजबूर हो कर यह नारा लगाती हैं, ‘‘बोलो, बाबा सैम की…’’

‘‘जय…’’ तीनों सहेलियों ने एकसाथ जोशीले अंदाज में ‘जय’ कहा, तो राजीव और मोहित से आगे कुछ कहते नहीं बना.

समीर के मन में खोट था और वह शाम को 6 बजे रिया या महक के बजाय अंकिता से मिलने पहुंच गया. घर में किसी और के न होने का फायदा उठाते हुए जब वह जबरदस्ती उस के कपड़े उतारने की कोशिश करने लगा तो बैडरूम में छिपी महक और रिया वहां से निकल कर उस के सामने ड्राइंगरूम में आ गईं. उन तीनों को एकसाथ सामने देख समीर की हालत एकदम से बेहद खस्ता हो गई. उस ने महक को सफाई देने की कोशिश की, पर उस का झूठ चला नहीं.

उन तीनों के तेज गुस्से को भांप उस ने अपनी जान बचा कर वहां से भागने की कोशिश की, पर तीनों गुस्साई शेरनियों के चंगुल से वह कैसे बच सकता था. तीनों ने उस चालबाज इंसान की पहले जम कर चप्पल व सैंडिलों से धुनाई की और फिर उसे एक झटके में अपनीअपनी जिंदगियों से निकाल कर फेंका.

महक और रिया उस रात अंकिता के घर में ही रुकीं. उस रात साथसाथ हंस और आंसू बहा कर सुबह तक वे तीनों अच्छी सहेलियां बन गई थीं. महक ने वार्त्तालाप को फिर से रास्ते पर लौटाते हुए इस बार अंकिता से पूछा, ‘‘क्या तू ने भी अमित को अपना भावी जीवनसाथी बनाने का फैसला उसी रात कर लिया था?’’

अंकिता ने प्यार से अमित का हाथ पकड़ कर जवाब दिया, ‘‘नहीं, मुझे तो इन जनाब को अपना भावी जीवनसाथी स्वीकार करने में महीना लग गया. वैसे मुझे नहीं लगता कि अमित दिलफेंक इंसान है. इसलिए तुम दोनों इसे ज्यादा तंग मत करो.’’

‘‘क्या हम तुम्हें तंग कर रही हैं?’’ महक ने अमित का हाथ थाम कर बड़ी अदा से पूछा.

‘‘नहीं तो,’’ उस के खुले व्यवहार ने अमित को शरमाने पर मजबूर कर दिया था.

‘‘शरमाओ मत, अमित. मौका मिलते ही अपनी इन दोनों सालियों से फ्लर्ट किया करो, क्योंकि किसी और लड़की के साथ फ्लर्ट करना तुम्हारे लिए अब ख्वाब बन कर रह जाएगा,’’ मोहित ने शरारती अंदाज में मुसकराते हुए अमित को सलाह दी.

‘‘लगे हाथ तुम्हें एक किस्सा और सुना देती हूं,’’ महक ने एकाएक संजीदा हो कर बोलना शुरू किया, ‘‘तुम्हें नेक सलाह देने वाले मेरे पति पर भी मात्र 6 महीने पहले शिखा नाम की एक खूबसूरत तितली से रोमांस करने का भूत चढ़ा था. जब हम तीनों को इन के रोमांस के बारे में पता चला…’’

मोहित ने अपनी पत्नी को टोकते हुए सफाई दी, ‘‘मुझ पर उस से इश्क लड़ाने का भूत नहीं चढ़ा था बल्कि शिखा ही इस स्मार्ट बंदे के पीछे हाथ धो कर पड़ गई थी.’’

उस के कहे कोअनसुना कर महक ने बोलना जारी रखा, ‘‘…तो हम तीनों शिखा से मिलने उस के फ्लैट पर पहुंच गईं. तुम अंदाजा लगा सकते हो कि हम तीनों गुस्साई शेरनियों ने शिखा का क्या हाल किया होगा. हम से उस ने थप्पड़ भी खाए और कुछ कीमती सामान भी हमारे हाथों तुड़वाया. मुझे विश्वास है कि हमारी शक्लें याद कर उसे महीनों ढंग से नींद नहीं आई होगी,’’ रिया अमित को यह बताते हुए काफी खुश लग रही थी.

मोहित ने झेंपे से अंदाज में मुसकराते हुए अमित को सफाईर् दी, ‘‘मेरे मन में कोई खोट नहीं था, पर इन्हें कौन समझाए. तुम ही बताओ कि किसी से मारपीट करना अच्छी बात है क्या?’’

‘‘बाबा सैम के साथ हुए अनुभव ने हमें उस मामले में बिलकुल सही राह दिखाई थी. बोलो, बाबा सैम की…’’

‘‘जय…’’ महक की आवाज में अपनी आवाज मिलाते हुए तीनों सहेलियों ने नारा लगाया और फिर जोर से हंसने लगीं.

समीर वाली घटना से सबक ले कर उस रात वे तीनों इस नतीजे पर पहुंचीं कि अधिकतर स्मार्ट, सुंदर और सफल युवक शादी होने के बाद भी अन्य खूबसूरत लड़कियों के साथ फ्लर्ट करेंगे. समस्या यह थी कि वे तीनों अपने भावी जीवनसाथी के रूप में ऐसे ही स्मार्ट, सुंदर और सफल  युवकों के सपने देखती थीं.

‘‘हमारे जीवनसाथी हमें अंधेरे में रख कर समीर की तरह मूर्ख बनाएं, हम ऐसी नौबत कभी आने ही नहीं देंगी. हम अपने पतियों की किसी गलत हरकत को कभी एकदूसरे से नहीं छिपाएंगी. उन्होंने अगर किसी अन्य लड़की से गलत रिश्ता बनाने की कोशिश की तो हम तीनों मिल कर उस अवैध प्रेम संबंध का समूल नाश करेंगी. चालाक और चरित्रहीन समीर आज से हमारे लिए ‘बाबा सैम’ हुआ और उस से मिले सबक को हम तीनों कभी नहीं भूलेंगी,’’ तीनों सहेलियों ने उस दिन से एकदूसरे के हितों का हमेशा ध्यान रखने की कसम खाई थी.

हंसी का दौर थम जाने के बाद महक ने अमित को बताया, ‘‘शिखा का हम ने जो बुरा हाल किया था, उस की खबर इश्क लड़ाने की शौकीन अन्य खूबसूरत तितलियों तक हम ने ही पहुंचाई. आज की तारीख में वे सब इन दोनों कामदेव के अवतारों से फ्लर्ट करने से डरती हैं.’’

राजीव ने अमित को भावुक लहजे में समझाने का नाटक करना शुरू किया, ‘‘अमित, मेरी मानो तो अंकिता के साथ शादी करने से बचो. शादी के बाद तुम्हें मन मार कर जीना पड़ेगा. जब भी कोई सुंदर लड़की तुम से हंसनाबोलना शुरू करेगी तो इन तीनों की सैम बाबा का नारा लगाती सूरतें आंखों के सामने आ कर तुम्हारी जबान को लकवा मार देंगी.’’

‘‘मेरे दिल में न अब खोट है, न कभी आएगा. अंकिता से शादी कर के मैं खुशीखुशी इन तीनों शेरनियों के साथ रिश्ता जोड़ने को तैयार हूं,’’ खुल कर मुसकराते अमित ने उस की सलाह को नजरअंदाज करते हुए अंकिता का हाथ चूम लिया.

अमित की आंखों में अपने लिए प्यार का सागर लहराते देख अंकिता खुश हो कर उस के गले लग गई.

‘‘मैं ने गाजर का हलवा बनाया है. हमारे गु्रप में एक समझदार इंसान के शामिल होने की खुशी में मैं सब का मुंह मीठा कराती हूं,’’ महक किचन की तरफ चली गई थी.

‘‘अमित, हमारे इतना समझाने के बावजूद तुम ने ‘आ बैल मुझे मार’ वाली कहावत सच साबित कर दी है,’’ मोहित ने यों अपना चेहरा लटका लिया मानो सचमुच बहुत दुखी हो, तो बाकी सब ने उस के इस बढि़या अभिनय पर जोरदार ठहाका लगाया.

कुछ देर बाद गाजर के हलवे का स्वाद चखते ही राजीव ने महक से कहा, ‘‘महक, जरा अपना हाथ इधर करो, मैं उसे चूमना चाहता हूं.’’

‘‘किस खुशी में?’’

‘‘बहुत स्वादिष्ठ हलवा बनाया है तुम ने.’’

‘‘मुंह से मेरी तारीफ कर देने से काम चल जाएगा.’’

‘‘पर हाथ चूम कर तारीफ करने का मजा ही कुछ और है,’’ कहते हुए राजीव ने महक का हाथ पकड़ लिया.

‘‘बोलो, बाबा सैम की…’’ महक ने हाथ छुड़ाने की कोशिश किए बिना नारा लगाने की शुरुआत की.

‘‘जय…’’ रिया और अंकिता नाटकीय अंदाज में आंखें तरेरती हुईं अपनी सहेली की सहायता करने को उठ खड़ी हुईं.

राजीव ने महक का हाथ छोड़ा और मोहित की तरफ देख कर मरे से स्वर में बोला, ‘‘बाबा सैम…’’

‘‘हाय… हाय…’’ मोहित ने बेहद दुखी इंसान की तरह अपना माथा ठोंकते हुए नारा पूरा करने में उस का साथ दिया तो बाकी सभी हंसतेहंसते लोटपोट हो गए.

चाहत के वे पल: पत्नी की बेवफाई का दर्द

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