सेक्स के बजाए ये बातें पुरुषों को ज्यादा रिझाती हैं

हमारे समाज में सेक्स को ले के एक अलग धारण बनी हुई है. सेक्स को ले कर पर्दा और हिचक ही कारण है कि लोगों में इसका पूरा ज्ञान नहीं है. हाल ही में एक शोध में ऐसी बात सामने आई है जो सेक्स को ले कर एक और मिथक को तोड़ती है.

ये बात आम है कि पुरुषों में सेक्स को ले कर ज्यादा उत्साह और जिज्ञासा होती है. एक हद तक इसे सही भी कहा जा सकता है, पर हाल में हुए एक शोध में ये बात सामने आई कि पुरुषों को सेक्स से ज्यादा प्यार से गले लगाने और किस में दिलचस्पी होती है. लड़के चाहते हैं कि उनका पार्टनर उन्हें प्यार से गले लगाए और किस करे. लम्बे समय तक चलने वाले रिश्तों पर किये एक अध्ययन में यह बात सामने आयी कि पुरुषों की खुशी और यौन संतुष्टि के लिए शारीरिक अंतरंगता होना बहुत जरूरी है.

इस शोध में शोधकर्ताओं ने जोड़ों के आपसी प्यार और अंतरंग संबंधों पर शोध किए. उसके बाद उन्होंने यह पता लगाने की कोशिश की कि यह सब उनकी खुशी और शारीरिक संतुष्टि को कैसे प्रभावित करती है. शोध में पाया गया कि जिन पुरुषों को उनकी महिला साथी बार बार किस करती हैं, गले लगती हैं और सेक्स के दौरान उनके साथ प्यार भरी छेड़छाड़ करती हैं, वे उन पुरुषों की तुलना में दोगुने खुश रहते हैं, जिन पुरुषों की पार्टनर उनके साथ ऐसे शारीरिक स्नेह नहीं जताती हैं.

प्रदूषण से बढ़ती हैं एलर्जी, जानें उपाय

प्रदूषण चाहे हवा का हो, पानी का हो या जमीन का, रोगों के पनपने का बड़ा कारण है. यह प्रकृति के नियमों में परिवर्तन करता है, प्रकृति के क्रियाकलाप में बाधा डालता है. प्रदूषण हवा, पानी, मिट्टी, रासायनिक पदार्थ, शोर या ऊर्जा किसी रूप में भी हो सकता है. इन सभी तत्त्वों का हमारे परिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर  पड़ता है जिस का प्रभाव मनुष्य के साथसाथ जानवरों और पेड़पौधों पर भी पड़ता है. चूंकि बच्चे और बुजुर्ग ज्यादा संवेदनशील होते हैं, इसलिए इन जहरीले तत्त्वों का असर उन पर सब से अधिक पड़ता है.

प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मिट्टी का प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण. इन से कई प्रकार की खतरनाक बीमारियां और एलर्जी भी होती है.

वायु प्रदूषण की मार

वायु प्रदूषण में सौलिड पार्टिकल्स और कई तरह की गैसें शामिल होती हैं. दरअसल, एयर पौल्युटैंट हमारे शरीर में रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट (श्वास नली) और लंग्स (फेफड़ों) द्वारा प्रवेश करते हैं. इन्हें रक्तवाहिकाएं सोख लेती हैं, जो शरीर के अन्य अंगों तक प्रसारित हो जाते हैं.

वायु प्रदूषण कई रोगों का कारण बनता है जिस की शुरुआत एलर्जी के रूप में आंख, नाक, मुंह और गले में साधारण खुजली या एनर्जी लेवल के कम होने, सिरदर्द आदि से हो सकती है. इस से गंभीर समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं.

  1. रेस्पिरेटरी और लंग्स डिजीज : किसी व्यक्ति में वायु प्रदूषण के चलते समस्या शुरू हो गई है तो उसे रेस्पिरेटरी और लंग्स डिजीज अपनी चपेट में ले सकती हैं.

इन के अंतर्गत अस्थमा अटैक, क्रोनिक औब्सट्रैक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), लंग्स का कम काम करना, पल्मोनरी कैंसर, (एक खास तरह का लंग कैंसर मेसोथेलियोमा जिस का संबंध आमतौर पर एस्बेस्टोस की चपेट में आने से है आमतौर पर इस की चपेट में आने के 20-30 साल बाद यह नजर आता है), निमोनिया आदि बीमारियां आती हैं.

2. कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज, हार्ट डिजीज और स्ट्रोक : सैकंडहैंड स्मोक के बारे में देखा गया है कि यह हृदय रोग को बढ़ाता है. कार्बन मोनोऔक्साइड और नाइट्रोजन डाईऔक्साइड भी इस में सहयोग देते हैं. वायु प्रदूषण को हृदय रोग का एक प्रमुख कारण माना जाता है क्योंकि एयर पौल्युटैंट लंग्स में प्रवेश करते हैं और रक्तवाहिकाओं में घुल जाते हैं जो इंफ्लेमेशन का कारण बनते हैं और हृदय की गति को बढ़ाते हैं. ये अस्थमा और लंग्स व सांस की एलर्जी का कारण बनते हैं.

3. न्यूरो बिहेवियरल (शारीरिक और मानसिक) डिसऔर्डर : वायु में उपस्थित विषाक्त तत्त्व जैसे मरकरी आदि न्यूरोलौजिकल समस्याएं और विकास में बाधा का कारण बनते हैं.

4. लिवर और दूसरे तरह का कैंसर : कार्सिनोजेनिक वोलाटाइल कैमिकल में सांस लेने से लिवर की समस्या और कैंसर हो सकता है. यह भी वायु प्रदूषण के चलते ही होता है.

एक अध्ययन के मुताबिक, धुएं और विभिन्न कैमिकल्स के चलते होने वाले वायु प्रदूषण के चलते प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है.

जल प्रदूषण के खतरे

जीवन के लिए जल जितना आवश्यक है उतना ही प्रदूषित जल हमारे जीवन के लिए खतरनाक साबित होता है. जल प्रदूषण से कई खतरनाक बीमारियां और एलर्जी होती हैं जो अकसर जानलेवा भी साबित होती हैं.

इंफेलाइटिस, पेट में मरोड़ और दर्द, उलटी, हेपेटाइटिस, रेस्पिरेटरी एलर्जी, लिवर का डैमेज होना आदि बीमारियां जल प्रदूषण के चलते हो सकती हैं. प्रदूषित जल में पाए जाने वाले कैमिकल्स के संपर्क की वजह से किडनी भी खराब हो सकती है.

दूषित जल के प्रयोग से कई प्रकार की एलर्जी भी हो सकती है जिस में त्वचा में जलन, लाल चकत्ते पड़ना और फुंसियां होना आम बात है.

  1. न्यूरोलौजिकल समस्याएं : पानी में आमतौर पर पैस्टिसाइड्स  (जैसे डीडीटी) जैसे कैमिकल्स की उपस्थिति के कारण नर्वस सिस्टम क्षतिग्रस्त हो सकता है.

2. प्रजनन संबंधी समस्या : प्रदूषित पानी के सेवन के चलते जिस्म के अंदरूनी तंत्र के क्षतिग्रस्त होने से लैंगिक विकास में बाधा, बांझपन, इम्यून फंक्शन का कमजोर होना, उर्वरता की क्षमता कम होना जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं.

जल प्रदूषण बढ़ने की वजह से मलेरिया का ब्रीडिंग ग्राउंड बन जाता है. यह मच्छरों द्वारा फैलता है. इसकी वजह से दुनियाभर में प्रतिवर्ष लगभग 10.2 लाख लोगों की मौत हो जाती है.

जल प्रदूषण के कारण कुछ सामान्य रोग भी होते हैं जो ज्यादा गंभीर नहीं होते, जैसे समुद्र प्रदूषित पानी में नहाना जिस से कई प्रकार की एलर्जी हो सकती है, जैसे रैशैज, कान में दर्द, आंखों का लाल होना आदि.

मिट्टी के प्रदूषण

हैवी मैटल्स, पैस्टिसाइड्स, सौल्वैंट्स और दूसरे मानव निर्मित कैमिकल्स, लेड और तेल की गंदगी आदि कुछ सामान्य तत्त्व हैं जो मिट्टी को प्रदूषित करने में अपना योगदान देते हैं. मिट्टी का प्रदूषण मिट्टी की प्राकृतिक गुणवत्ता को नष्ट कर देता है, उपयोगी सूक्ष्मजीवों को मार देता है और एक प्रकार से पैथोजैनिक सौइल इनवायरमैंट का निर्माण करता है.

मिट्टी प्रदूषण से होने वाले रोग प्रत्यक्षरूप से इस को प्रदूषित करने वाले तत्त्वों के संपर्क में आने से होते हैं, जैसे वायु में उत्पन्न तत्त्व में सांस लेना, फसलों पर ऐसे पानी का छिड़काव या ऐसी मिट्टी में फसल उगाना आदि. हालांकि मिट्टी प्रदूषण की चपेट में आना वायु और जल प्रदूषण की चपेट में आने जितना गंभीर नहीं होता. इसका खतरनाक असर बच्चों पर हो सकता है जो आमतौर पर जमीन पर खेलते हैं और इन जहरीले तत्त्वों के सीधे संपर्क में होते हैं.

प्रदूषित मिट्टी के कारण कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, जैसे सिरदर्द, चक्कर आना, थकान के अलावा त्वचा पर रैशेज, आंखों में खुजली और बाद में इन की गंभीर स्थिति वाली एलर्जी भी हो सकती है.

  1. मस्तिष्क को क्षति : जब बच्चे लेड से प्रभावित मिट्टी के संपर्क में आते हैं तो उन के मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम में क्षति हो सकती है. इस से उन के मस्तिष्क और न्यूरोमस्क्यूलर विकास प्रभावित होते हैं.

2. किडनी और लिवर को क्षति : मिट्टी में लेड की मिलावट लोगों को किडनी डैमेज के खतरे में डालती है. ऐसी मिट्टी के संपर्क में आना जिस में मरकरी और साइक्लोडाइन्स का मिश्रण हो, तो वह कभी न ठीक होने वाले किडनी रोग का कारण बन सकता है.

3. मलेरिया : जिन  क्षेत्रों में ज्यादा बारिश होती है और वहां पानी निकलने की ठीक से व्यवस्था नहीं होती तो वहां पानी के साथ मिट्टी मिल जाती है जिस से वहां के लोगों का प्रत्यक्षरूप से मलेरिया के संपर्क में आना सामान्य बात है. मलेरिया प्रोटोजोआ के कारण होता है जो मिट्टी में पैदा होता है. बरसात का पानी प्रोटोजोआ और मच्छरों को आगे बढ़ाने में मदद करता है जिस का परिणाम मलेरिया होता है.

ध्वनि प्रदूषण के साइड इफैक्ट्स

ध्वनि प्रदूषण मनुष्य को चिड़चिड़ा बना देता है. ध्वनि प्रदूषण का मनुष्य पर कई रूपों में प्रभाव पड़ता है.

  1. दक्षता की कमी : कई तरह के शोधों के बाद यह बात साबित हुई है कि मनुष्य के काम करने की क्षमता शोर के कम होने से ज्यादा बढ़ती है. कारखानों का शोर अगर कम कर दिया जाए तो वहां के काम करने वालों की दक्षता को बढ़ाया जा सकता है. इस से यह साबित होता है कि मनुष्य के काम करने की दक्षता का संबंध शोर से है.

2. एकाग्रता में कमी : कार्य के बेहतर परिणाम के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है. तेज आवाज की वजह से ध्यान भंग होता है. बड़े शहरों में आमतौर पर दफ्तर मुख्य मार्गों पर स्थित होते हैं, ट्रैफिक का शोर या विभिन्न प्रकार के हौर्न्स की तेज आवाजें दफ्तर में काम करने वाले लोगों की एकाग्रता को भंग करती हैं.

3. थकान : ध्वनि प्रदूषण के कारण लोग अपने काम में एकाग्रता नहीं ला पाते. परिणामस्वरूप उन्हें अपना काम पूरा करने में ज्यादा वक्त लगता है जिस की वजह से उन्हें थकान महसूस होती है.

4. गर्भपात : गर्भावस्था के दौरान शांत और सुकून देने वाला वातावरण आवश्यक होता है. अनावश्यक शोर किसी भी महिला को चिड़चिड़ा बना सकता है. कई बार शोर गर्भपात की भी वजह बनता है.

5. ब्लडप्रैशर : शोर व्यक्ति पर कई प्रकार से हमला करता है. यह व्यक्ति के मस्तिष्क की शांति पर हमला करता है. आधुनिक जीवनशैली के चलते पहले से तनाव में रह रहे व्यक्ति के शोर तनाव को बढ़ाने का काम करता है. तनाव की वजह से कई प्रकार के रोग पैदा होते हैं, जैसे ब्लडप्रैशर, मानसिक रोग, डायबिटीज के अलावा दिल की बीमारी आदि. इसलिए तनाव से व्यक्ति को दूरी बना लेने में ही भलाई है.

6. अस्थायी या स्थायी बहरापन : मैकेनिक्स, लोकोमोटिव ड्राइवर्स, टैलीफोन औपरेटर्स आदि सभी को कानों में तेज ध्वनि सुननी पड़ती है. हम सभी लगातार शोर की चपेट में रहते हैं. 80 से 100 डैसिबिल की ध्वनि असुरक्षित होती है. तेज आवाज अस्थायी या स्थायी बहरेपन का कारण भी बन सकती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कराए गए एक अध्ययन के अनुसार, हृदय रोगों के लिए जिम्मेदार कारकों में से एक ध्वनि प्रदूषण को माना जाता है. इस के अलावा ध्वनि प्रदूषण के कारण अनिद्रा और गंभीर चिड़चिड़ापन जैसे रोग भी होते हैं. एक अध्ययन के अनुसार, हर प्रकार के संक्रामक रोग में से 80 प्रतिशत जल प्रदूषण के कारण होते हैं. जल प्रदूषण के कारण दुनियाभर में लगभग 2.5 करोड़ लोगों की मौत हो जाती है.

प्रदूषण के जानलेवा आंकड़े

वायु प्रदूषण के चलते प्रतिवर्ष 30 लाख लोगों की मौत होती है.

– 80 से 100 डैसिबिल की ध्वनि, ध्वनि प्रदूषण की खतरनाक श्रेणी में आती है.

– दुनिया में हर साल 2.5 करोड़ लाख लोगों की मौत के पीछे की वजह जल प्रदूषण है.

– लगातार ध्वनि प्रदूषण की चपेट में रहने से शरीर में स्ट्रैस हार्मोंस जैसे एड्रेनालाइन, नोराड्रेनालाइन और कार्टीसोल का स्तर बढ़ जाता है. स्ट्रैस, जैसा कि माना जाता है, हार्ट फेलियर, इम्यूनिटी समस्या, हाइपरटैंशन और स्ट्रोक का कारण बनता है.

भोजन से जुड़ी अच्छी आदतें

भोजन करना हमारी बुनियादी जरूरत है. इस के बगैर काम करने की हमारी ताकत पर बुरा असर पड़ता है. ज्यादा दिनों तक भूखा रहने से सेहत पर बुरा असर पड़ता है. क्या आप जानते हैं कि भोजन करना भी एक कला है और उस से जुड़ी कुछ आदतें ऐसी हैं, जो आप की सेहत बना सकती हैं:

1. भोजन करने से पहले अगर शौच की हाजत लगी है, तो उसे कर के ही भोजन करने बैठें. अगर पेशाब करने की इच्छा हो तो उसे कर लें.

2. भोजन करने से पहले साबुन से हाथ धोना बेहद जरूरी है.

3. भोजन तभी करें, जब जोरों की भूख लगी हो.

4.  भोजन को ठीक से चबा कर खाना चाहिए. जल्दबाजी में भोजन को निगल लेने से वह ठीक से पचेगा नहीं. यही नहीं, दांतों का काम आंतों को करना होगा. एक ग्रास को कम से कम 25 से 30 बार चबाना चाहिए.

5. भोजन के ग्रास छोटेछोटे लें, ताकि उन्हें खाने, चबाने में सुविधा रहे. बड़ेबड़े ग्रास ले कर खाना बेहूदगी है.

6. भोजन के पहले या भोजन के दौरान और भोजन के तुरंत बाद ढेर सारा पानी न पीएं. इस से भोजन को पचाने में दिक्कत होती है. जरूरत पड़ने पर भोजन के दौरान 1-2 घूंट पानी ले सकते हैं, वरना भोजन के एक घंटा बाद ही पानी पीना चाहिए.

7. भोजन को शांत मन से करना चाहिए. जब आप दुखी हों, गुस्से या तनाव में हों, तब भोजन करने नहीं बैठना चाहिए. इस से न तो भोजन का स्वाद आएगा और न ही आप भरपेट भोजन कर सकेंगे.

8. एक ही बार में ठूंसठूंस कर खाने के बजाय हर 4 घंटे बाद थोड़ाथोड़ा खा लेना चाहिए. इस से पाचन सही रहता है और हर समय ऊर्जा बनी रहती है. डायबिटीज के मरीजों के लिए तो टुकड़ेटुकड़े में भोजन करना बेहद जरूरी है. इस से उन की शुगर सामान्य स्तर पर बनी रह सकती है.

9.  अपने भोजन में सभी चीजों को शामिल करें. किसी पसंदीदा चीज को खाना व दूसरी चीजों को चखना तक मंजूर न होना, यह आदत ठीक नहीं. घर में जोकुछ बना हो, खाना चाहिए. इस से आप का भोजन पौष्टिक व संतुलित होगा.

10. शादीब्याह या पार्टी में जाएं तो व्यंजन को देख कर ललचाएं नहीं. स्वाद के बजाय सेहत पर ध्यान दें. उतना ही खाएं, जिसे आप पचा सकें.

11. भोजन करें तो उन चीजों से परहेज करें जो आप के लिए मना है. अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं तो मीठे से तोबा करें. अगर हाई ब्लडप्रैशर है तो नमक कम खाएं. दालसब्जियों में ऊपर से नमक न डालें. अगर दिल की बीमारी है तो ज्यादा वसा यानी फैट वाला भोजन न लें. इस के अलावा भी अगर फूड एलर्जी है तो ऐसी चीजों के सेवन से बचें.

12. भोजन एकांत में नहीं परिवार वालों के साथ करें, तो उस का मजा ही अलग है. टैलीविजन के सामने बैठ कर भोजन न करें.

13. भोजन हमेशा ताजा, पचने वाला करना चाहिए.

14. भोजन की थाली से बीच में उठ कर जाना ठीक नहीं. अगर कोई काम है तो पहले उसे निबटा लें.

15. भोजन चाहे घर में करें या बाहर, उतना ही थाली में लें, जितना खा सकें.

16. कोशिश करें कि रोजाना तय समय पर ही भोजन करें.

17. भोजन के ठीक पहले या तुरंत बाद चायकौफी, आइसक्रीम व कोल्ड ड्रिंक का सेवन नहीं करना चाहिए. इस से पाचन क्रिया पर बुरा असर होता है.

18. भोजन हमेशा बैठ कर खाना चाहिए. खड़ेखड़े खाने की आदत ठीक नहीं है.

19. जहां तक मुमकिन हो, बाजार के खाने से बचें. मेले, ठेलों पर बिकने वाले चाटपकौड़ी या दूसरी चीजों का सेवन न करें, तो ही अच्छा है.

20. भोजन जैसा भी बना हो, उसे मन से खाएं. उस में मीनमेख न निकालें.

21. भोजन को इतमीनान से करें. उसे करने में 20 से 30 मिनट का समय लगना चाहिए. 5 मिनट में फटाफट खाने की आदत ठीक नहीं है.

22.  अगर भोजन करते समय खांसी आने लगे या ठसका लग जाए, तो वहां से उठ जाएं. राहत मिलने पर दोबारा भोजन शुरू करें.

23.  भूख से हमेशा थोड़ा कम खाएं, तो बेहतर रहेंगे. डट कर खाने से सुस्ती, आलस, घबराहट, बेचैनी वगैरह की शिकायत होगी.

24. अगर आप को एसिडिटी की शिकायत है, तो ज्यादा समय खाली पेट न रहें. नाश्ता जरूर लें. इस से एसिडिटी नहीं होगी.

25. भोजन करें तो 2 बेमेल चीजें एकसाथ न लें, जैसे खीर के साथ दही, अचार वगैरह का सेवन न करें.

26. अगर भोजन के पहले या उस के बाद कोई दवा लेना जरूरी है, तो उसे जरूर लें, खासतौर पर डायबिटीज के मरीज.

27. भोजन के बाद प्लेट या थाली में हाथ न धोएं. घर हो या बाहर, हर जगह इस बात का ध्यान रखना चाहिए.

28.  भोजन करने के फौरन बाद कड़ी मेहनत वाला काम नहीं करना चाहिए. भोजन के तुरंत बाद दौड़ना, तेज चलना, सीढि़यां चढ़ना, कसरत करना, जिस्मानी संबंध बनाना वगैरह काम नहीं करना चाहिए. इसी तरह भोजन के बाद मालिश करना, नहाना जैसे काम भी नहीं करने चाहिए.

29. भोजन करते ही सो जाना ठीक नहीं. दोपहर के भोजन के आधा घंटे बाद 20 मिनट की  झपकी ली जा सकती है. रात का भोजन करने के 2 घंटे बाद ही सोना चाहिए.

30.  भोजन के बाद ठीक से कुल्ला करना जरूरी है, ताकि दांतों में फंसे भोजन के कण बाहर निकल जाएं और बदबू पैदा न करें. रात के भोजन के बाद ब्रश कर के ही सोना चाहिए.

स्किन के लिए भी फायदेमंद है केले से जुड़े ये 5 टिप्स

केला एक ऐसा फल है जो अकसर सभी को पसंद आता है. वजन घटाने से लेकर वजन बढ़ाने तक ये फल काफी हेल्प करता है. पर सेहत के साथ-साथ ये आपकी स्किन के लिए भी काफी फायदेमंद है. ब्रेकफास्ट टेबल पर केले लगभग हर घर में होते हैं. पर क्या केले खाने के बाद आप भी इसका छिलका डस्टबिन में डाल देते हैं?

अगर ऐसा करते है तो अगली बार ये करने से पहले ये जान लें कि स्किन के लिए केला उतने ही फायदेमंद हैं जितना कि कोई भी अच्छा फेशियल. लड़को की स्किन वैसे भी लड़कियों के मुकाबले ज्यादा रफ होती है ऐसे में उनको ज्यादा देखभाल की जरुरत होती है. इसलिए आज हम लेकर आए हैं आपके लिए कुछ ऐसे टिप्स, जिन्हें आजमाकर स्किन में ग्लो आएगा और साथ ही कई तरह की स्किन प्रौबलम्स से भी निजात मिलेगा.

केले के 5 टिप्स

1. छिलके के भीतरी हिस्से को चेहरे और गर्दन पर रगड़ें और लगभग आधे घंटे बाद गुनगुने पानी से धो लें. रेगुलर करने पर इससे झुर्रियां खत्म हो जाएंगी.

2. केले में एंटीऔक्सिडेंट्स पाए जाते हैं जो दाग-धब्बों से छुटकारा दिलाते हैं और त्वचा में चमक लाते हैं. ये एंटी-एजिंग क्रीम से ज्यादा असरदार होते हैं.

3. केले के छिलके से सफेद रेशे को निकालकर एलोवेरा जेल में मिलाएं और आंखों के आसपास लगाएं. ऐसा करने से डार्क सर्कल्स कम होंगे.

4. छिलके का एक छोटा टुकड़ा काट लें और इसे एक्ने प्रोन स्किन पर धीरे-धीरे रगड़ें. 10 मिनट तक ऐसा करें और फिर गुनगुने पानी से चेहरा धो लें.

5. केले के छिलके को मस्से पर लगाने से मस्से दब जाते हैं और नए नहीं निकलते. इसके लिए छिलके की भीतरी परत को त्वचा पर मलें.

तो ये है केले के 5 टिप्स जिसे आप यूज कर अपने चहरे को निखार सकते है.

नशे को छोड़कर जिंदगी को चुनें

नशे की लत वह भयंकर बीमारी है, जो न केवल उस शख्स को, बल्कि उस के पूरे परिवार को खोखला कर देती है. इस की भयावहता का अंदाजा उस परिवार को देख कर आसानी से लगाया जा सकता है, जिस का मुखिया ही नशे की गिरफ्त में हो. नशेड़ी बेरोजगार हो जाता है और तरहतरह की बीमारियों का शिकार हो जाता है. उस के परिवार की हालत दरदर भटकते भिखारी जैसी हो जाती है और उस की समाज में इज्जत वगैरह सब खत्म हो जाती है. नशेड़ी 2 तरह के होते हैं. एक वे, जो नशा करने को बुरा नहीं मानते हैं. दूसरे वे, जो इसे बुरा मानते हैं, पर लत से मजबूर हैं. जो बुरा नहीं मानते हैं, उन को कुछ भी समझाओ, उन के पास जवाब पहले से हाजिर होते हैं. आओ उन के जवाब देखते हैं :

सवाल : अरे भैया, देखो तो नशे से तुम्हारा शरीर कैसा हो गया है?

नशेड़ी : कैसा हो गया है. एक दिन तो सब का शरीर मिट्टी में मिलना ही है.

सवाल : पर उस दिन के आने से पहले ही क्यों मरना चाहते हो?

नशेड़ी : आप को पता है क्या, मौत कब आएगी? मौत तो जब आनी है, तब आएगी.

सवाल : देखो कितना पैसा इस में लग जाता है. सही कहा न?

नशेड़ी : मैं अपने पैसे की पीता हूं, आप से मांगने तो नहीं आता?

सवाल : तुम्हारी पत्नी, मांबाप, बच्चे सब दुखी होंगे?

नशेड़ी : उन की चिंता मुझे करनी है. आप अपने काम से काम रखो.

इस दर्जे के नशेडि़यों से नशा नहीं छुड़ा सकते. नशा छुड़ाने के लिए इन्हें ‘नशा मुक्ति केंद्र’ में ले जाना ही उचित रहेगा. दूसरे नशेड़ी वे हैं, जो नशे को बुरा मानते हैं. वे इसे छोड़ना भी चाहते हैं, पर लत से मजबूर हैं. ऐसे नशेड़ी अगर कोशिश करें, तो नशा छोड़ सकते हैं. कुछ सुझाव पेश हैं:

1. बुरी संगत से दूर रहें

नशा देखादेखी का शौक है. अगर ऐसे लोगों से दूर रहें जो नशा करते हैं, तो आप की इच्छा नहीं होगी या इच्छा होगी भी, तो आप दबा पाएंगे. ऐसे लोगों को आप को बताना भी नहीं चाहिए कि आप ने नशा करना छोड़ दिया है, वरना वे आप को जबरदस्ती उस जगह ले जाएंगे और तरहतरह से आप को फुसलाएंगे. फिर आप खुद को रोक नहीं पाएंगे, इसलिए ठीक यही है कि ऐसे लोगों की संगत से दूर रहें.

2. अपनी सेहत पर ध्यान दें

कभी जिम में जाना शुरू करें, सुबह घूमने जाना शुरू करें. हर रोज आईने में देखें और अपनेआप से कहें कि अब चेहरा कितना सुंदर होता जा रहा है. अच्छे कपड़े पहनें और बनठन कर रहना शुरू करें.

3. परिवार के साथ रहें

आमतौर पर नशे की तलब एक खास समय पर होती है. उस समय अपने परिवार के साथ बिताएं. परिवार को भी चाहिए कि उस समय नशे करने वाले सदस्य को जितना हो सके, बिजी रखें. प्यार भरा बरताव करें और किसी भी बात पर उन्हें गुस्सा न दिलाएं.

4. जेब में पैसे न रखें

जहां तक हो सके, जेब में पैसे ही न रखें या बहुत ही कम रखें. जब जेब में पैसे ही नहीं होंगे, तो आप नशा खरीद नहीं पाएंगे और तलब का समय निकल जाएगा.

5. ऐसी जगह से बचें

आनेजाने का रास्ता बदल लें, जहां आप नशा करते थे. कितनी भी तलब उठे, उस जगह न जाएं. इसी तरह से शादी या दूसरे कार्यक्रमों में जहां नशे की पार्टी चल रही हो, वहां न जाएं. आप खुद को शाबाशी दें कि आप में कितनी मजबूती है. इस से तलब धीरेधीरे कम हो जाएगी. शुरू में ज्यादा तलब होगी, पर अगर आप मन को मजबूत रखेंगे और नशा नहीं करेंगे, तो जैसेजैसे दिन बीतते जाएंगे, आप की तलब कम होती जाएगी और धीरेधीरे खत्म हो जाएगी.

6. शपथ ले लीजिए

आप शपथ भी ले सकते हैं कि चाहे कोई मुझ पर कितना भी दबाव डाले, मैं  प्रतिज्ञा करता हूं कि अब किसी तरह का नशा नहीं करूंगा.

इसे रोजाना 3 बार बोलिए. जब भी आप को नशे की तलब उठे, तो मन को मजबूत बनाए रखें. कुलमिला कर आप को हर हाल में अपने मन की मजबूती बनाए रखनी है. न तो यह सोचें कि आज नशा कर लेते हैं, कल से नहीं लेंगे. बहादुर बनिए. गम का डट कर सामना कीजिए. इस बात पर भरोसा रखिए कि समय के साथसाथ सब ठीक हो जाता है. पहले भी आप की जिंदगी में कितने ही गम आए होंगे, पर आज वे बीती बात बन गए हैं. इसी तरह से ये भी आने वाले समय में बीती बात बन जाएंगे. आप इस दुनिया में नशेड़ी बनने के लिए नहीं आए हैं. आप की जिंदगी बहुत कीमती है. यह दोबारा नहीं मिलेगी. इसे नशे की भेंट न चढ़ाइए.

आखिर क्यों यौन अक्षमता से पीड़ित होती हैं महिलाएं, जानें कारण

अगर आपका पार्टनर लम्‍बे समय से सेक्‍स के लिए न कह रही हैतो यह चिंता का विषय हो सकता है. ये भी संभव है कि आपकी पार्टनर सेक्‍स के प्रति रुझान न होने की समस्‍या से जूझ रही है. इसे महिला यौन अक्षमता भी कहा जाता है.

इस शब्द का उपयोग किसी ऐसे व्यक्ति को परिभाषित करने के लिए किया जाता है जो अपने साथी को सेक्‍स के दौरान सहयोग नहीं करता. महिलाओं में एफएसडी यानी फीमेल सेक्सुअल डिसफंक्शन होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे सेक्स के दौरान दर्द या मनोवैज्ञानिक कारण. 

ज्यादातर मामलों मेंहालांकिएफएसडी को मनोवैज्ञानिक कारणों के लिए जिम्मेदार माना जाता है. इस परिदृश्य मेंमहिलाओं के लिए किसी पेशेवर से मदद लेना महत्वपूर्ण होता है.

इस समस्या के मुख्य कारण हैं ;

1. मनोवैज्ञानिक कारण

पुरुषों के लिए सेक्‍स एक शारीरिक मुद्दा हो सकता हैलेकिन महिलाओं के लिए यह एक भावनात्मक मुद्दा है. पिछले बुरे अनुभवों के कारण कुछ महिलाएं भावनात्मक रूप से टूट जाती हैं. वर्तमान में बुरे अनुभवों के कारण मनोवैज्ञानिक मुद्दे या फिर अवसाद इसका कारण हो सकता है.

2. और्गेज्‍म तक न पहुंच पाना

एफएसडी का दूसरा भाग एनोर्गस्मिया कहलाता है. यह स्थिति तब होती है जब व्‍यक्ति को या तो कभी और्गेज्‍म नहीं होता या वह कभी इस तक पहुंच ही नहीं पाता.र्गेज्‍म तक पहुंचने में असमर्थता भी एक मेडिकल कंडीशन है. सेक्स में रुचि की कमी और और्गेज्‍म तक पहुंचने में असमर्थता दोनों ही स्थिति गंभीर हैं. 

यह मुख्य रूप से इसलिए होता है क्योंकि महिलाएं अधिक फोरप्ले पसंद करती हैं. अगर ऐसा नहीं हो रहा तो और्गेज्‍म तक पहुंचना मुश्किल है. इसका मनोचिकित्सा के माध्यम से इलाज किया जा सकता है. महिलाओं को अपने रिश्ते में सेक्स के साथ समस्याएं होती हैं. यदि आपको ऐसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हैतो आपको अपने एंड्रोलौजिस्ट को जल्द से जल्द दिखाना चाहिए ताकि समस्या संबंधों को प्रभावित न करे.

3.  फीमेल सेक्सुअल डिसफंक्शन का इलाज और उपचार

जहां तक घरेलू उपचार का सवाल हैएफएसडी के इलाज में वास्तव में यह बहुत प्रभावी नहीं होते. बाजार में कई तरह के महिला वियाग्रा मौजूद हैं लेकिन ये आमतौर पर अपेक्षित नतीजे नहीं दे पाते. महिलाएं लेजर के साथ योनि कायाकल्प ट्राई कर सकती हैं. आप चाहें तो प्लेटलेट रिच प्लाज़्मा (पी आर पी ) थेरेपी भी अपना सकती हैं. इस क्षेत्र में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करने के लिए योनि के पास इंजेक्शन दिया जाता है. इसे ओ-शौट के रूप में जाना जाता है.

यदि आप यौन संबंध का आनंद नहीं ले रहे हैं तो डाक्टर को दिखाना जरूरी है। उसके बाद डाक्टर जांच करेगा. दोनों भागीदारों के लिए यौन परामर्श उपयोगी हो सकता है. दिनचर्या बदलने और अलग-अलग पदों की कोशिश करके इसे और अधिक रोचक बनाने की कोशिश करना उपयोगी हो सकता है. योनि क्रीम या स्नेहक की कोशिश की जा सकती है.

ज्यादातर महिलाओं कोविशेष रूप से जब वे बूढी हो जाती हैं तो संभोग शुरू करने से पहले अधिक उत्तेजना और फोरप्ले की आवश्यकता होती है. योनि प्रवेश के साथ ज्यादातर महिलाओं को संभोग के दौरान संतुष्टि नहीं होती है. उन्हें अपने साथी द्वारा अपने निप्पलस और क्लिटोरिस को संभोग करने में सक्षम होने के लिए चूमने, छूने इत्यादि की आवश्यकता हो सकती है. हस्तमैथुन या मौखिक सेक्स जैसी अन्य यौन गतिविधियों की कोशिश की जा सकती है.

दुबलेपन को कहें बाय-बाय, वज़न बढ़ाएं ऐसे 

मौजूदा भागदौड़भरी लाइफस्टाइल में खुद को फिट बनाए रखना हर लिहाज से जरूरी है. दुबलेपन को दूर करने और कमजोर शरीर को तंदुरुस्त बनाने के लिए लोग दवाओं से ले कर तरहतरह के हैल्थ सप्लीमैंट्स लेते हैं. लेकिन फिर भी अधिकतर लोगों का शरीर कमजोर और दुबलापतला ही रहता है.

दुबलेपतले शरीर के कारण किशोरों, युवाओं और अधेड़ पुरुषों को क्रमशः स्कूल, कालेज और औफिस या बिज़नैस प्रतिष्ठानों तक में शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है. वजन बढ़ाने के लिए पुरुषजाति न जाने क्याक्या करती है, खाती है, लेकिन वजन नहीं बढ़ता और शरीर जस का तस ही बना रहता है.

1. क्यों नहीं बनती सेहत :

वजन न बढ़ने और तंदुरुस्त न होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं.  इन कारणों में कुछ ऐसी गलत आदतें भी शामिल होती हैं, लोग जिन के शिकार हो जाते हैं. ऐसी आदतें न केवल शरीर को बाहरी तौर पर नुकसान पहुंचाती हैं बल्कि शरीर को भीतर से भी नुकसान पहुंचाती हैं.

आप उन में से हैं जो खाते तो बहुत हैं लेकिन उन के शरीर में लगता नहीं है, तो वो गलतियां न करें जिन का ज़िक्र यहां किया जा रहा है. आप अगर चाहते हैं कि आप तंदुरुस्त रहें और आप की पर्सनैलिटी दूसरों की तरह चमके तो इन गलत आदतों को बायबाय कर दें.

2. भूख लगने पर खाना न खाने की आदत :

व्यस्त जीवनशैली में अधिकतर लोग अपने शैड्यूल के चक्कर में  सही समय पर खाना नहीं खाते  हैं. कोई ऐसा अगर नियमितरूप से करता  है तो उस की सेहत पर बुरा असर पड़ना शुरू हो जाता है. दरअसल, ऐसा करने से भूख मर सी जाती है, भूख लगना बंद हो जाती है. सही समय पर खाना नहीं खाने से शरीर पर विपरीत असर पड़ता है. किसी भी इंसान की यह गलत आदत उस के शरीर को तंदुरुस्त नहीं होने देती.

3. रोज एक सी ऐक्सरसाइज करने की आदत :

फिट रहने और शरीर के वजन को बढ़ाने के लिए रोजाना ऐक्सरसाइज करना अनिवार्य है. सुबह की सैर पर जाना, किसी मैदान या पार्क में थोड़ीबहुत कसरत या उछलकूद करने से सेहत बेहतर होती है. इस के लिए अधिकतर पुरुषों ने जिम को एक आसान विकल्प समझा हुआ है.

लोग जिस्म बनाने के चक्कर में दवाएं और हैल्थ सप्लीमैंट्स ले लेते हैं, जो उन्हें भले ही  मसल्स बनाने में जरूर मदद करते हैं लेकिन इस के साइड इफैक्ट बाद में सामने आते हैं. दूसरों को बौडी बनाता देख नए लड़के भी वही करने लग जाते हैं और रोजाना एक ही ऐक्सरसाइज करने लगते हैं. तंदुरुस्त न होने के पीछे एक वजह यह भी है. बहुत से लोग जिम जा कर रोजाना एक ही तरह की ऐक्सरसाइज करते हैं. रोजाना एक ही तरह की ऐक्सरसाइज करने से शरीर के अंग कमजोर होने लग जाते हैं और फिर बौडी नहीं बन पाती.

दरअसल, अगर इंग्लिश ऐक्सरसाइज कर रहे हैं तो उसे ट्रेनर के निरीक्षण में करें क्योंकि उस का एक साइंस होता है. जिम ट्रेनर इंसान के जिस्म के मुताबिक ऐक्सरसाइज करने का चार्ट बना देते हैं, जिस में हफ्ते के 6 दिनों का ब्योरा होता है कि किस दिन कौनकौन सी ऐक्सरसाइज करनी हैं. जिम ट्रेनर के निरीक्षण में ऐक्सरसाइज करने से जिस्म फिट रहने के साथ वजन बढ़ कर आदर्श लैवल पर बना रहता है.

4. पानी कम पीने की आदत :

24 घंटे के रातदिन के दौरान इंसान को भरपूर पानी पीना चाहिए. पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से शरीर को भीतर व बाहर दोनों तरफ से फायदा मिलता है. यह शरीर के वजन को बढ़ाने व जिस्म की स्किन और बालों को पोषण प्रदान करने में अहम भूमिका निभाता है.

देशविदेश के वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान को अपनेआप को हाइड्रेट रखने और शरीर से टौक्सिन्स को बाहर निकालने के लिए दिनभर में 8 से 10 गिलास पानी या कोई तरल पदार्थ पीना चाहिए. इंसान चाहे तो नारियल पानी और ताजे फलों का जूस भी पी सकता है. सो, अगर कोई कम पानी पीता है तो उसे यह आदत छोड़नी होगी.

5. सोने में कंजूसी की आदत :

ऊर्जावान और स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि इंसान नियमित रूप से पूरी नींद लें. नींद न पूरी होने से सिर भारी रहने के साथ शरीर का ब्लडप्रैशर यानी बीपी बढ़ सकता है. नींद न पूरी होने की वजह से थकान के साथसाथ चिड़चिड़ाहट भी महसूस होती है और बातबात पर गुस्सा आता है. मैडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कम से कम 7 घंटे की नींद लेनी जरूरी है. पूरी नींद लेने से इंसान स्वस्थ महसूस करने के साथ ऊर्जावान बना रहता है. यह इंसान की फिटनैस और आदर्श वजन के लिए भी बेहद ज़रूरी है. ऐसे में जो लोग रात में सोने में कंजूसी करते हैं वे अपनी इस आदत को छोड़ दें.

यानी, सेहतमंद जीवन के लिए जरूरी होती हैं अच्छी आदतें. ये इंसान को खुश रखने के साथ ऊर्जा से भरपूर भी रखती हैं. यही नहीं, ये इंसान को बीमारियों से काफी हद तक दूर भी रखती हैं. तो, गलत आदतों को त्याग कर कोई भी तंदुरुस्त होने के साथ आइडियल वज़न हासिल कर सकता है.

अगर आप भी करते हैं रक्तदान तो जरूर ध्यान रखें इन बातों का

आज के समय में ब्लड डोनेट (रक्तदान) करके आप दूसरों की मदद तो करते ही हैं साथ ही आपको भी इसके बहुत फायदे होते हैं. कई लोगों को लगता है कि रक्तदान करने के बाद शरीर में कमजोरी आ जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है. रक्तदान करने के 21 दिन बाद यह दोबारा बन जाता है. इसलिए रक्तदान करने से पहले घबराए नहीं बल्कि रक्तदान करते समय इन बातों का खास खयाल रखें.

– कोई भी हेल्दी व्यक्ति रक्तदान कर सकता है. बात करें पुरुष की तो वह 3 माह में एक बार रक्तदान कर सकते हैं वहीं महिलाएं 4 माह में एक बार ब्लड डोनेट कर सकती हैं.

– एक बार में किसी के शरीर से भी 471ml से ज्यादा रक्त नहीं लिया जा सकता.

– अगर आप रक्तदान करने के योग्य हैं और रक्तदान करने की सोच रही हैं तो एक दिन पहले से स्मोक करना बंद कर दें. इसके अलावा रक्तदान करने के तीन घंटे बाद ही धुम्रपान करें.

– रक्तदान करने के बाद हर तीन घंटे में हैवी डाइट लें. इसमें आप ज्यादा से ज्यादा हैल्दी खाना ही लें. आप चाहे तो फल खा सकती हैं.

– ज्यादातर रक्तदान करने के बाद रक्तदाता को खाने के लिए जूस, चिप्स, फल आदि दिए जाते हैं, इन्हें लेने से परहेज नहीं करना चाहिए.

– रक्तदान करने के 12 घंटे बाद तक आप हैवी एक्सरसाइज न करें. खून देने के तुरंत बाद गर्मजोशी अच्छी नहीं होती. पहले अपने शरीर में खून के संचार को नौर्मल होने दें.

– रक्तदान करने से 48 घंटे पहले से शराब का सेवन बंद कर दें. अगर आपने 48 घंटों के बीच शराब का सेवन किया है तो आप ब्लड डोनेट नहीं कर सकते हैं

– रक्तदान करने के बाद अगर आप हेल्दी डाइट न लेकर तरल पदार्थ लेती रहेंगी, तो इससे आपको कमजोरी महसूस होगी.

– लोगों को गलतफहमी होती है कि रक्तदान करने से हीमोग्लोबिन में कमी आती है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है.

 

अगर आप भी हैं पैनिक डिसऔर्डर के शिकार तो जरूर पढ़ें ये खबर

पैनिक डिसऔर्डर एक ऐसा मनोरोग है जिस में किसी बाहरी खतरे के बावजूद विभिन्न शारीरिक लक्षणों, मसलन, दिल की धड़कन का असामान्य हो जाना तथा चक्कर आना आदि के साथ लगातार और आकस्मिक रूप से रोगी आतंकित हो जाता है. ये आतंकित कर देने वाले दौरे, जो कि पैनिक डिसऔर्डर की पहचान हैं, तब आते हैं जब किसी खतरे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने की सामान्य मानसिक प्रक्रिया तथा कथित संघर्ष अनुपयुक्त रूप से जाग जाता है.

पैनिक डिसऔर्डर से ग्रस्त अधिकतर लोग अगले अटैक की संभावना को ले कर चिंतित रहते हैं और उन स्थितियों से बचने की कोशिश करते हैं जिन में उन के अनुसार यह भय का दौरा पड़ सकता है.

शुरुआती पैनिक अटैक

आमतौर पर पहला पैनिक अटैक कभी भी हो सकता है, जैसे कार चलाते हुए या काम के लिए जाते हुए. सामान्य गतिविधियों के दौरान एकाएक व्यक्ति डराने वाले तथा तकलीफदेह लक्षणों से ग्रस्त हो जाता है. ये लक्षण कुछ सैकंड तक जारी रहते हैं लेकिन कई मिनट तक भी यह स्थिति बनी रह सकती है. ये लक्षण लगभग एक घंटे के भीतर सामान्य हो जाते हैं. जिन लोगों पर यह दौरा पड़ चुका है वे बता सकते हैं कि उन्होंने किस तरह की बेचैनी के साथ यह डर महसूस किया था कि उन्हें कोई बहुत खतरनाक जानलेवा बीमारी हो गई है या फिर वे पागल हो रहे हैं.

ऐसे कुछ लोग जिन्हें एक पैनिक अटैक या फिर कभीकभार जिन का सामना इस दौरे से हुआ हो, उन में ऐसी किसी समस्या का विकास नहीं होता जो उन के जीवन को प्रभावित करे लेकिन दूसरों के लिए इस स्थिति का जारी रहना असहनीय हो जाता है. पैनिक डिसऔर्डर में आतंकित कर देने वाले दौरे जारी रहते हैं और व्यक्ति के मन में यह डर समा जाता है कि उसे अगले दौरे का सामना कभी भी करना पड़ सकता है.

यह भय जिसे अग्रिम बेचैनी या डर का खौफ कहते हैं, अधिकतर समय मौजूद रहता है और व्यक्ति के जीवन को गंभीर रूप से तब भी प्रभावित कर सकता है जब उस पर दौरा नहीं पड़ा हो. इस के साथसाथ उस के मन में उन स्थितियों को ले कर भयंकर फोबिया का जन्म हो जाता है जिन में उस पर दौरा पड़ा था.

उदाहरण के लिए अगर किसी को गाड़ी चलाते वक्त पैनिक अटैक हुआ हो तो वह आसपास जाने के लिए भी गाड़ी चलाने में डरता है. जिन लोगों में आतंक से जुड़े इस फोबिया का विकास हो गया हो वे उन स्थितियों से बचने की कोशिश करने लगते हैं जिन के बारे में उन्हें आशंका रहती है कि उन को दौरा पड़ सकता है. परिणामस्वरूप वे अपनेआप को लगातार सीमित करते चले जाते हैं. उन का काम प्रभावित होता है क्योंकि वे बाहर निकलना नहीं चाहते और न ही समय पर अपने काम पर पहुंचते हैं.

इन दौरों की वजह से व्यक्ति के संबंध भी प्रभावित होते हैं. नींद पर असर पड़ता है और रात में दौरा पड़ने की स्थिति में व्यक्ति आतंकित हो कर जाग जाता है. यह अनुभव इतना हिला देने वाला होता है कि कई लोग सोने से भी डरने लगते हैं और थकेथके से रहते हैं. दौरा न पड़े, तब भी डर की वजह से नींद प्रभावित होती है.

इस सिलसिले में डाक्टर से मिलने के बाद जब यह पता चल जाता है कि जीवन पर खतरे की कोई स्थिति नहीं है तब भी इस दौरे से प्रभावित बहुत से लोग आतंक में डूबे रहते हैं. वे बहुत से चिकित्सकों के पास दिल की बीमारी या सांस की समस्या के इलाज के लिए भी जाया करते हैं. इस बीमारी के लक्षणों की वजह से बहुत से मरीज यह समझते हैं कि उन्हें कोई न्यूरोलौजिकल बीमारी या फिर कोई गंभीर गैस्ट्रौइनटैस्टाइनल समस्या हो गई है. कुछ मरीज कई चिकित्सकों से मिल कर महंगी और अनावश्यक जांच करवाते हैं ताकि यह मालूम किया जा सके कि इन लक्षणों की वजह क्या है.

चिकित्सकीय सहायता की यह खोज लंबे समय तक भी जारी रह सकती है क्योंकि इन मरीजों की जांच करने वाले बहुत से चिकित्सक पैनिक डिसऔर्डर की पहचान करने में असफल रहते हैं. जब चिकित्सक बीमारी की थाह पा भी लेते हैं तब भी कभीकभी वे इस की व्याख्या करते हुए यह सलाह दे देते हैं कि खतरे की कोई बात नहीं है और इलाज की कोई जरूरत नहीं है.

उदाहरण के लिए, चिकित्सक यह कह सकते हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है. आप को सिर्फ पैनिक डिसऔर्डर अटैक हुआ था. हालांकि इस का उद्देश्य सिर्फ हौसलाअफजाई होता है, फिर भी ये शब्द उस चिंतित मरीज के लिए बेहद निराशाजनक होते हैं जोकि बारबार इस तरह के आतंकित करने वाले दौरों की चपेट में रहता है. मरीज को यह बताया जाना जरूरी है कि चिकित्सक अशक्त बना देने वाले पैनिक डिसऔर्डर से होने वाली परेशानी को समझते हैं और उन का मानना है कि इस का इलाज प्रभावी ढंग से किया जा सकता है.

क्या है इलाज

चिकित्सीय इलाज पैनिक डिसऔर्डर से पीडि़त मरीजों में 70 से 80 प्रतिशत को राहत पहुंचा सकता है और शुरुआती इलाज इस रोग को एगोराफोबिया की स्थिति तक नहीं पहुंचने देता. किसी भी इलाज की शुरुआत से पूर्व मरीज की पूरी चिकित्सकीय जांच की जानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि हताशा के इन लक्षणों की और कोई वजह तो नहीं है.

ऐसा इसलिए आवश्यक है क्योंकि थायराइड हार्मोन से खास तरह की ऐपिलैप्सी और हृदय संबंधी समस्या बढ़ जाती है और पैनिक डिसऔर्डर से मिलतेजुलते लक्षण पैदा हो सकते हैं.

कौगनिटिव बिहेवियरल थैरेपी कही जाने वाली साइकोथैरेपी के प्रयोग और दवाओं के सेवन द्वारा पैनिक डिसऔर्डर का इलाज किया जा सकता है. इलाज का चयन व्यक्तिगत जरूरतों तथा प्राथमिकताओं के मुताबिक किया जाता है.

पैनिक अटैक समस्या नहीं

35 वर्षीय रोहण बैंक एग्जीक्यूटिव है. वह काम के लिए रोज दादर स्टेशन से मुंबई सीएसटी जाता था. एक दिन जब वह काम पर जा रहा था तो सीएसटी से पहले के ही स्टेशन पर उतर गया. जब वह वापस उस ट्रेन में नहीं चढ़ पाया तो दूसरी ट्रेन का सहारा ले कर औफिस लेट पहुंचा. बौस ने उसे डांटा तो वह वहीं बेहोश हो कर गिर पड़ा. थोड़ी देर बाद सबकुछ सामान्य हो गया. पर इस के बाद से जब भी बारिश होती या ट्रेन लेट आती, भले औफिस में कोई कुछ नहीं कहता, पर वह पैनिक हो जाता. उसे बेहोशी छाने लगती. दिनप्रतिदिन उस का परफौर्मेंस बिगड़ने लगा. धीरेधीरे नौबत ऐसी आ गई कि वह ट्रेन में भीड़ देख कर घबराने लगता. बैठने की जगह न हो तो परेशान हो जाता. ठंड में भी पसीने छूटने लगते. उस का खानापीना कम होने लगा. वह बीमार दिखने लगा. उस की पत्नी सीमा ने कई डाक्टरों से सलाह ली. सभी ने जांच की पर कोई समस्या नहीं दिखी. किसी दोस्त ने मनोचिकित्सक के पास ले जाने की सलाह दी. सीमा, रोहण को डा. पारुल टौक के पास ले गई. डाक्टर ने करीब 1 महीने की काउंसलिंग और दवा के जरिए रोहण को ठीक किया.

ऐसी ही एक और घटना है. 45 वर्षीय अनुराधा को हमेशा छाती में दर्द की शिकायत रहती थी. घबराहट में उसे चक्कर आने लगते थे और वह कई बार बेहोश हो कर गिर पड़ती थी. उस के पति धीरेन को अपनी पत्नी को ले कर काफी चिंता सताने लगी. उन्होंने सब से पहले कार्डियोलौजिस्ट से संपर्क किया. जांच के बाद डाक्टर को कोई भी समस्या नहीं दिखी. धीरेन पेट के डाक्टर के पास भी गए क्योंकि उन की पत्नी को पेटदर्द, बारबार दस्त का लगना आदि समस्या थी. वहां भी जांच में कुछ नहीं निकला. फिर फैमिली फिजीशियन की सलाह पर वे मनोचिकित्सक के पास गए. वहां पता चला कि अनुराधा पैनिक अटैक की शिकार है.

पैनिक अटैक के बारे में मुंबई के फोर्टिस अस्पताल और निमय हैल्थकेयर की मनोचिकित्सक डा. पारुल टौक कहती हैं, ‘‘इस तरह की समस्या किसी भी उम्र की महिला, पुरुष या युवा को हो सकती है. यही अटैक आगे चल कर फोबिया या डिप्रैशन का कारण बनता है. यह कोई बड़ी बीमारी नहीं है. इसे आसानी से और बिना अधिक खर्च किए मरीज को ठीक किया जा सकता है. लक्षणों का पता चलते ही तुरंत किसी मनोचिकित्सक से मिल कर इलाज करवाएं.’’

पैनिक अटैक आने पर क्या करें

अगर आप के परिवार में या आप के आसपास किसी व्यक्ति को पैनिक अटैक आए तो घबराएं नहीं, बल्कि उस कठिन परिस्थिति में आप उस व्यक्ति की सहायता कर सकते हैं

–       शांत रहें और पीडि़त व्यक्ति की शांत रहने में सहायता करें.

–       अगर वह व्यक्ति एंग्जाइटी की दवा लेता है तो उसे यह दवा तुरंत दें.

–       उस की समस्या को तुरंत और संक्षेप में समझने का प्रयास करें.

–       उस व्यक्ति को दोनों हाथ सिर के ऊपर सीधे उठाने में सहायता करें.

–       पैनिक होने की स्थिति में व्यक्ति को टहलाने ले जाएं, स्ट्रैचिंग या कूदने को कहें.

–       पीडि़त को धीरेधीरे सांस लेने को कहें और इस में उस की सहायता करें. नाक से लंबी सांस लें और मुंह से छोड़ें.

–       तुरंत किसी पास के अस्पताल में ले जाएं.

–       व्यक्ति को पैनिक अटैक से बचाए रखने के लिए उस को प्रोत्साहित करते रहें.

–       यदि स्थिति बिगड़ जाए तो उसे विश्वास दिलाएं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है.

–       मातापिता हमेशा बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाते रहें. जैसे कुछ भी अच्छा काम करने पर तारीफ करें या कहें, हमें तुम पर नाज है.

–       नियमित तौर पर हैड मसाज देते रहें.

–       व्यक्ति से हमेशा अपने दिल की बात खुल कर बताने को कहें.

बौडी टोंड तो स्ट्रौंग होगा बौंड

लड़का हो या लड़की या फिर औरत हो या मर्द, सभी के लिए ऐक्सरसाइज करना फायदेमंद रहता है. ऐक्सरसाइज पुराने रोगों की रोकथाम से ले कर मौडर्न लाइफस्टाइल को ठीक करने तक में लाभदायक होती है. यह तनाव और घबराहट से मुक्ति दिलाती है. ऐक्सरसाइज आप के वजन पर भी नियंत्रण रखती है.

अगर आप रोज 30 मिनट तक  ऐक्सरसाइज करें तो उस के आप को ये लाभ होंगे :

  • दिल का दौरा पड़ने का खतरा कम होगा.
  •  वजन नियंत्रण में रहेगा.
  • ऐक्सरसाइज कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित रखेगी.
  • टाइप टू डायबिटीज और कई तरह के कैंसर के खतरे को कम करेगी.
  • ब्लडप्रैशर कम होगा.
  • हड्डियां मजबूत होंगी और मांसपेशियों के कमजोर होने का खतरा कम होगा.
  • अधिक ऊर्जा महसूस करेंगे, खुश रहेंगे और नींद अच्छी आएगी.

तनाव से मुक्ति

इस के अलावा वर्कआउट नकारात्मक विचारों और टैंशन को भी कम करता है. अगर आप फिट हैं तो मन भी खुश रहेगा.

ऐक्सरसाइज सैरोटोनिन, ऐंडोर्फिन और स्ट्रैस के प्रभाव को कम कर मस्तिष्क के रसायन स्तर को संतुलित करती है.

जब आप ऐक्सरसाइज करते हैं तो आप का शरीर फिट रहने के साथसाथ सही आकार में भी रहता है, जिस से आप के पार्टनर का ध्यान आप की ओर सहजता से खिंचता है.

आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी

पूरे दिन की थकान के बाद जब आप ऐक्सरसाइज करते हैं, तो आप रिलैक्स हो जाते हैं. इस से सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास बढ़ता है.

जिस तरह दांतों को ठीक रखने के लिए ब्रश करना जरूरी होता है उसी तरह फिट बौडी और सकारात्मक सोच के लिए कम से कम सप्ताह में 5 दिन 30 मिनट तक ऐक्सरसाइज करना आवश्यक है.

शारीरिक रूप से फिट व्यक्ति की सैक्सुअल लाइफ भी अच्छी रहती है, क्योंकि ऐक्सरसाइज से आप की मांसपेशियां टोंड रहती हैं.

एक शोध में पता चला है कि रोज ऐक्सरसाइज करने वाले दंपती का आपसी रिश्ता अधिक मजबूत होता है. अधिक उम्र तक वे एकदूसरे को आकर्षक मानते हैं.

इस तरह के ऐक्सरसाइज में ऐरोबिक, कुछ दूर पैदल चलना सब से अधिक प्रभावशाली होती है. ऐक्सरसाइज से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और व्यक्ति काफी समय तक अपनेआप को युवा महसूस करता है. पूरे दिन में आप आसानी से 30 मिनट ऐक्सरसाइज के लिए निकाल सकते हैं.

लड़कियों के लिए तो ऐक्सरसाइज खासतौर पर फायदेमंद रहती है. इस से तनाव, ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल जैसी कई समस्याओं से राहत मिलती है.

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