जोड़ों के दर्द को न करें अनदेखा

कुछ तरह के गठिया में जोड़ों का बहुत ज्यादा नुकसान होता है. गठिया यानी जोड़ों की सूजन, जो एक या एक से ज्यादा जोड़ों पर असर डाल सकती है. डाक्टरों की मानें, तो हमारे शरीर में 10 से ज्यादा तरह का गठिया होता है.

गठिया जोड़ों के ऊतकों में जलन और टूटफूट के चलते पैदा होता है. जलन के चलते ही ऊतक लाल, गरम, सूजन और दर्द से भर जाते हैं. गठिया के लक्षण आमतौर पर बुढ़ापे में दिखते हैं, लेकिन आजकल ये लक्षण बच्चों और नौजवानों में भी देखे जा रहे हैं.

क्यों होता है गठिया

पोषण की कमी और प्रदूषण के चलते गठिया की बीमारी आज बच्चों, नौजवानों और बूढ़ों तक सभी को अपना निशाना बना रही है. इस की वजह आनुवांशिक भी हो सकती है.

अगर इस बीमारी का समय पर और जल्दी इलाज नहीं करवाया जाए तो यह स्थायी अपंगता की वजह भी बन सकती है. इस हालत में चलनाफिरना और घर के आम कामकाज करने में भी परेशानी होने लगती है.

घुटनों और कुहनी की जकड़न चलनाफिरना तक मुश्किल कर देती है और ज्यादातर बैठे रहने की वजह से शरीर का वजन बढ़ने लगता है और बीमारी और भी खतरनाक हो जाती है.

पहचानें लक्षण

गठिया में शरीर के जोड़ों में दर्द और सूजन महसूस होती है. कई बार जोड़ों में पानी भर जाता है. एक जगह बैठे रहने पर अकड़न होती है. हर वक्त थकान महसूस होती है. भूख भी कम लगती है और धीरेधीरे वजन भी कम होने लगता है. कई बार बुखार भी आता है.

कई मामलों में ये लक्षण कुछ दिनों बाद ही दिखने लगते हैं, तो कुछ में कई महीनों या सालों बाद ये लक्षण सामने आते हैं. कई लोगों में ये लक्षण उभर कर ठीक भी हो जाते हैं और दोबारा कुछ साल बाद वापस आ सकते हैं.

गठिया में जब बीमारी अपनी हद होती है, तो सुबह उठने के साथ ही जोड़ों, हड्डियों में दर्द के साथ अकड़न भी होती है और यह अकड़न तकरीबन 1 घंटे से 5 घंटे तक बनी रहती है.

शुरुआती हालात में डाक्टर जोड़ों में दर्द के प्रकार, सूजन वगैरह के आधार पर ही बीमारी का पता लगाते हैं. हालांकि कई बार डाक्टर सीरिऐक्टिव प्रोटीन, कंपलीट ब्लड काउंट (सीबीसी), ईएसआर वगैरह टैस्ट भी कराते हैं. कुछ गठिया में खास टैस्ट कराए जाते हैं, लेकिन यह बीमारी की स्टेज पर निर्भर करता है. इस के अलावा ऐक्सरे, अल्ट्रासाउंड और एमआरआई भी करानी पड़ सकती है.

बीमारी की शुरुआत में दर्द से नजात पाने के लिए डाक्टर कार्टिसोन टेबलेट या इंजैक्शन देते हैं. हालांकि कई बार यह दर्द तो ठीक कर देते हैं, लेकिन इस के चलते सही बीमारी का पता लगाने में दिक्कत होती है और बीमारी होने के बावजूद उस के लक्षण बंद जाते हैं.

कितनी तरह का गठिया

गठिया खासतौर पर 2 तरह का होता है रूमेटौयड और स्पोंडिलोआर्थोपैथी. रूमेटौयड में हड्डियों के जोड़ों पर, खासतौर पर दोनों हाथ, कलाइयां, घुटने, कुहनी, कंधे, पैर के पंजे और एडि़यों में दर्द होता है. वहीं स्पोंडिलोआर्थोपैथी में कूल्हे, कंधे और रीढ़ की हड्डी में दर्द रहता है. औरतों में रूमेटौयड गठिया की शिकायत ज्यादा होती है, वहीं मर्दों में स्पोंडिलोआर्थोपैथी की शिकायत ज्यादा होती है.

कई बार ज्यादा उम्र की औरतों में अचानक किसी एक जोड़ में, अकसर पैर के पंजे या उंगली में गंभीर दर्द और सूजन हो सकती है. यह खून में बढ़े हुए यूरिक एसिड के चलते भी हो सकता है.

जल्दी शुरू करें इलाज

अगर गठिया के लक्षण दिख रहे हैं, तो इस दर्द और सूजन को टालें नहीं और न ही दर्द कम करने वाली दवा खा कर इस को दबाने की कोशिश करें. गठिया के लक्षण दिखने पर तुरंत माहिर डाक्टर के पास जाएं. इलाज जितना जल्दी शुरू होगा, उतना ही जोड़ों को कम नुकसान पहुंचेगा और भविष्य में जोड़ों के विकार के आसार कम होंगे.

गठिया में होने वाले दर्द, सूजन और दूसरी परेशानियों को कम करने के लिए डाक्टर दवाएं देते हैं, लेकिन अच्छी जिंदगी जीने के लिए मरीज को दवाओं के साथसाथ रोजाना कसरत भी करनी चाहिए. सरसों या जैतून के गरम तेल की मालिश दर्द और सूजन में राहत पहुंचाती है.

डायबिटीज को ना करें अनदेखा, पैरों को चुकानी पड़ सकती है भारी कीमत

आजकल जैसे जैसे डायबिटीज के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, वैसेवैसे ही उन के पैरों की दुर्दशा भी हो रही है. अपने देश में डायबिटीज के मरीजों के पैर कटने की प्रतिवर्ष की औसत दर अब 10% है यानी 100 डायबिटीज के मरीजों में से 10 मरीज हर साल अपने पैर खोते हैं. लोग यह नहीं जानते कि डायबिटीज के मरीजों को पैर कटने का खतरा बिना डायबिटीज वाले लोगों की तुलना में लगभग डेढ़ गुना ज्यादा होता है. लंबे समय से चल रही डायबिटीज, खून में शुगर की अनियंत्रित मात्रा, पेशाब में ऐल्ब्यूमिन का होना, आंखों की रोशनी का कम होना, पैरों में झनझनाहट की शिकायत रहना व खून की सप्लाई का कम होना आदि बातें डायबिटीज के मरीजों में पैर खोने का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कारण बनती हैं.

डायबिटीज शरीर के सारे अंगों को देरसवेर दबोच लेती है. दिल और दिमाग पर तो इस का खास असर होता है, पर टांगें भी इस की शिकार होती हैं.

लापरवाही बरतें

डायबिटीज के मरीज यह नहीं समझते कि डायबिटीज पैरों का सब से बड़ा दुश्मन है. और तो और लोग भ्रमवश यह भी समझते हैं कि डायबिटीज के मरीज के घास पर नंगे पैर चलने से शरीर के सभी अंगों, विशेषकर पैरों को बड़ा लाभ मिलता है. चलने से पैरों में अगर दर्द व झनझनाहट होती है, तो उस को नजरअंदाज कर दिया जाता है. लोग नहीं समझते कि डायबिटीज के मरीज द्वारा बरती गई लापरवाही उस के विकलांग होने का सीधा कारण बन सकती है. पैर की तो छोड़ो, लोग अपने खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित करने को ले कर ही गंभीर नहीं होते. इस का परिणाम यह होता है कि खून में शुगर की अनियंत्रित मात्रा दिनोंदिन बढ़ती चली जाती है.

अगर चलने से पैरों में दर्द होता है और ज्यादा चलने से पीड़ा असहनीय हो जाती है तो डायबिटीज के मरीज को समझ लेना चाहिए कि उस के पैरों का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. डायबिटीज में पैरों को सब से ज्यादा नुकसान 2 चीजें पहुंचाती हैं. एक तो न्यूरोपैथी और दूसरी टांगों की रक्त नली में जाने वाली शुद्ध खून की मात्रा में कमी होना.

पैरों में शुद्ध खून की सप्लाई में कमी होने के 2 कारण होते हैं. एक तो टांगों की खून की नली के अंदर निरंतर चरबी व कैल्सियम जमा होना, जिस के कारण नली में सिकुड़न आ जाती है. इस का परिणाम यह होता है कि पैरों में जाने वाली शुद्ध खून की सप्लाई में बाधा पहुंचती है और अगर समय रहते रोकथाम न की गई तो खून की सप्लाई पूरी तरह से बंद हो जाती है. यह एक गंभीर अवस्था है.

दूसरा कारण एक विशेष किस्म की न्यूरोपैथी का होना होता है, जिसे मैडिकल भाषा में ए.एस.एन. (औटोनौमिक सिंपैथेटिक न्यूरोपैथी ) कहते हैं. इस विशेष न्यूरोपैथी के कारण शुद्ध खून त्वचा में स्थित अपने गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच पाता है. इस की वजह शुद्ध खून की शौर्ट सर्किटिंग होना होता है. ठीक उसी तरह जैसे कोई रेल यात्री निर्धारित स्टेशन तक न पहुंच कर बीच रास्ते में ही वापसी की ट्रेन पकड़ने लगे.

टांगों में असहनीय पीड़ा

इस तरह से खून की सप्लाई में महत्त्वपूर्ण कमी आने पर टांगों में असहनीय दर्द होता है व त्वचा का रंग बदलने लगता है. डायबिटीज के मरीज को चाहिए कि वह ऐसी दशा में तुरंत किसी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श ले.

डायबिटीज के मरीज के पैरों को एक दूसरी न्यूरोपैथी (सेंसरी व मोटर) भी अपनी चपेट में ले लेती है, जिस के कारण पैरों में विशेषकर पैर के तलुओं व एड़ी में दर्द व झनझनाहट की समस्या खड़ी हो जाती है. होता यह है कि पैर की मांसपेशियां, न्यूरोपैथी की वजह से हलके फालिज का शिकार हो जाती हैं, जिस से पैर की हड्डियों को आवश्यक आधार न मिलने के कारण उन पर अनावश्यक दबाव पड़ने लगता है. इस के साथ ही जोड़ों की क्रियाशीलता में भी कमी आ जाती है. इन सब समस्याओं का असर यह होता है कि पैरों में दर्द व झनझनाहट की शिकायत हमेशा बनी रहती है और चलने से और बढ़ जाती है.

डायबिटीज में पैर की त्वचा में कभीकभी जरूरत से ज्यादा खुश्की पैदा हो जाती है. इस खुश्की की वजह से त्वचा में फटन व चटकन होने लगती है और गड्ढे बन जाते हैं, जो पैरों में इन्फैक्शन पैदा होने का सबब बन जाते हैं.

डायबिटीज में त्वचा के खुश्क होने का बहुत बड़ा कारण डायबेटिक ओटौनौमिक न्यूरोपैथी का होना है, जिस की वजह से पसीने को पैदा करने वाली और त्वचा को चिकना बनाने वाली ग्रंथियां सुचारु रूप से काम करना बंद कर देती हैं. इसी खुश्की व फटन के कारण डायबिटीज के मरीजों के पैरों में जल्दी घाव बनते हैं और इन्फैक्शन अंदर तक पहुंच जाता है. इन्फैक्शन को नियंत्रण में लाने में बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. कभीकभी तो इस में औपरेशन की जरूरत पड़ती है.

डायबिटीज में पैर की हड्डियों पर मांसपेशियों के कमजोर हो जाने से दबाव बढ़ जाता है. इस निरंतर पड़ने वाले दबाव के कारण त्वचा में दबाव वाले स्थानों पर गोखरू का निर्माण हो जाता है. इस गोखरू के कारण डायबिटीज के मरीज को ऐसा लगता है जैसे जूते के अंदर कोई कंकड़ रखा हुआ है. इस गोखरू की वजह से पैरों में दर्द और असहनीय हो जाता है और इन्फैक्शन होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है.

इलाज

अगर डायबिटीज के मरीज को चलने से पैरों में दर्द होता है या रात में बिस्तर पर लेटने पर झनझनाहट की शिकायत रहती है तो वह किसी वैस्क्युलर सर्जन की सलाह ले. दर्द का कारण जानना बहुत जरूरी है. अकसर लोग इस तरह के रोग को गठिया या सियाटिका का दर्द समझ लेते हैं और हड्डी विशेषज्ञ से परामर्श लेने पहुंच जाते हैं. दर्द का कारण जानने के लिए कुछ विशेष जांचें. जैसे डाप्लर स्टडी व मल्टी स्लाइस सी.टी. ऐंजियोग्राफी का सहारा लेना पड़ता है. किसी ऐसे अस्पताल में जाएं जहां इन सब जांचों की सुविधा हो. इन विशेष जांचों के परिणाम के आधार पर ही आगे इलाज की दिशा का निर्धारण होता है.

डायबिटीज में पैरों को कटने से बचाने के लिए टांगों की बाईपास सर्जरी का सहारा लिया जाता है, जिस से पैरों को जाने वाली खून की सप्लाई को बढ़ाया जा सके. इस से घाव को भरने में मदद मिलती है. कुछ विशेष परिस्थितियों में ऐंजियोप्लास्टी का भी सहारा लेना पड़ता है.

जांघ के नीचे की जाने वाली ऐंजियोप्लास्टी व इंस्टैंटिंग ज्यादा सफल नहीं रहती, क्योंकि इस के परिणाम शुरुआती दिनों में लुभावने लगते हैं पर ज्यादा दिनों तक इस से मिलने वाला लाभ टिकाऊ नहीं रहता. इसलिए इलाज की दिशा निर्धारण करने में बहुत सोचसमझ कर काम करना पड़ता है. हमेशा ऐसे अस्पताल में जाएं जहां किसी अनुभवी वैस्क्युलर सर्जन की उपलब्धता हो और पैरों की बाईपास सर्जरी नियमित रूप से होती हो. पैरों की रक्त सप्लाई को बढ़ाने के लिए कुछ विशेष जरूरी दवाओं का भी सहारा लेना पड़ता है.

पैर को बचाने की दिशा में किए गए सारे प्रयास असफल हो जाते हैं, अगर डायबिटीज के मरीज ने धूम्रपान व तंबाकू का सेवन पूर्णतया बंद नहीं किया. यह बात अच्छी तरह समझ लें कि सिगरेट की संख्या व तंबाकू की मात्रा कम कर देने से पैरों के स्वास्थ्य में कोई फर्क नहीं पड़ता इसलिए सिगरेट या तंबाकू मैं ने कम कर दी हैं की दलील दे कर अपनेआप को झुठलाएं नहीं. इस बात को समझें कि अगर धूम्रपान व तंबाकू से पूरी तरह से नाता नहीं तोड़ा तो टांगों की बाईपास सर्जरी फेल हो जाएगी.

इलाज को असफल करने में एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप ने 5-6 किलोमीटर चलने का नियम बरकरार नहीं रखा और कोलैस्ट्रौल, शुगर व वजन पर अंकुश नहीं लगाया तो देरसवेर पैर खोने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. चाहे कितनी भी अच्छी सर्जरी व इलाज हुआ हो.

डायबिटीज का मरीज कभी भी घर के अंदर व बाहर नंगे पांव न चले और जूते कभी भी बगैर मोजों के न पहने. डायबिटीज के मरीजों के लिए विशेष किस्म के जुराब व जूते आजकल उपलब्ध हैं, जिन का चुनाव अपने वैस्क्युलर सर्जन की सलाह पर करना चाहिए. इस के अलावा डायबिटीज के मरीज को चाहिए कि वह प्रतिदिन 5 से 6 किलोमीटर पैदल चले. नियमित चलना पैरों की शुद्ध खून की सप्लाई को बढ़ाने व न्यूरोपैथी का पैरों पर प्रभाव कम करने का सब से उत्तम उपाय है. पैरों को स्वच्छ व नमीरहित रखें और रक्त में हमेशा ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रण में रखें. रक्त में अनियंत्रित शुगर का होना भविष्य में पैर खोने का साफ संकेत है. इस के साथ ही टांगों की त्वचा को खुश्की व सूखेपन से बचाएं और गोखरू को पनपने न दें.

हर 3 महीने में अपने पैरों की जांच किसी वैस्क्युलर सर्जन से जरूर कराएं. अगर किसी भी अवस्था में पैरों में फफोले व लाल चकत्ते दिखें तो बगैर लापरवाही किए किसी वैस्क्युलर सर्जन से तुरंत परामर्श लें.

दुबलेपन को कहें बाय-बाय, वज़न बढ़ाएं ऐसे 

मौजूदा भागदौड़भरी लाइफस्टाइल में खुद को फिट बनाए रखना हर लिहाज से जरूरी है. दुबलेपन को दूर करने और कमजोर शरीर को तंदुरुस्त बनाने के लिए लोग दवाओं से ले कर तरहतरह के हैल्थ सप्लीमैंट्स लेते हैं. लेकिन फिर भी अधिकतर लोगों का शरीर कमजोर और दुबलापतला ही रहता है.

दुबलेपतले शरीर के कारण किशोरों, युवाओं और अधेड़ पुरुषों को क्रमशः स्कूल, कालेज और औफिस या बिज़नैस प्रतिष्ठानों तक में शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है. वजन बढ़ाने के लिए पुरुषजाति न जाने क्याक्या करती है, खाती है, लेकिन वजन नहीं बढ़ता और शरीर जस का तस ही बना रहता है.

1. क्यों नहीं बनती सेहत :

वजन न बढ़ने और तंदुरुस्त न होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं.  इन कारणों में कुछ ऐसी गलत आदतें भी शामिल होती हैं, लोग जिन के शिकार हो जाते हैं. ऐसी आदतें न केवल शरीर को बाहरी तौर पर नुकसान पहुंचाती हैं बल्कि शरीर को भीतर से भी नुकसान पहुंचाती हैं.

आप उन में से हैं जो खाते तो बहुत हैं लेकिन उन के शरीर में लगता नहीं है, तो वो गलतियां न करें जिन का ज़िक्र यहां किया जा रहा है. आप अगर चाहते हैं कि आप तंदुरुस्त रहें और आप की पर्सनैलिटी दूसरों की तरह चमके तो इन गलत आदतों को बायबाय कर दें.

2. भूख लगने पर खाना न खाने की आदत :

व्यस्त जीवनशैली में अधिकतर लोग अपने शैड्यूल के चक्कर में  सही समय पर खाना नहीं खाते  हैं. कोई ऐसा अगर नियमितरूप से करता  है तो उस की सेहत पर बुरा असर पड़ना शुरू हो जाता है. दरअसल, ऐसा करने से भूख मर सी जाती है, भूख लगना बंद हो जाती है. सही समय पर खाना नहीं खाने से शरीर पर विपरीत असर पड़ता है. किसी भी इंसान की यह गलत आदत उस के शरीर को तंदुरुस्त नहीं होने देती.

3. रोज एक सी ऐक्सरसाइज करने की आदत :

फिट रहने और शरीर के वजन को बढ़ाने के लिए रोजाना ऐक्सरसाइज करना अनिवार्य है. सुबह की सैर पर जाना, किसी मैदान या पार्क में थोड़ीबहुत कसरत या उछलकूद करने से सेहत बेहतर होती है. इस के लिए अधिकतर पुरुषों ने जिम को एक आसान विकल्प समझा हुआ है.

लोग जिस्म बनाने के चक्कर में दवाएं और हैल्थ सप्लीमैंट्स ले लेते हैं, जो उन्हें भले ही  मसल्स बनाने में जरूर मदद करते हैं लेकिन इस के साइड इफैक्ट बाद में सामने आते हैं. दूसरों को बौडी बनाता देख नए लड़के भी वही करने लग जाते हैं और रोजाना एक ही ऐक्सरसाइज करने लगते हैं. तंदुरुस्त न होने के पीछे एक वजह यह भी है. बहुत से लोग जिम जा कर रोजाना एक ही तरह की ऐक्सरसाइज करते हैं. रोजाना एक ही तरह की ऐक्सरसाइज करने से शरीर के अंग कमजोर होने लग जाते हैं और फिर बौडी नहीं बन पाती.

दरअसल, अगर इंग्लिश ऐक्सरसाइज कर रहे हैं तो उसे ट्रेनर के निरीक्षण में करें क्योंकि उस का एक साइंस होता है. जिम ट्रेनर इंसान के जिस्म के मुताबिक ऐक्सरसाइज करने का चार्ट बना देते हैं, जिस में हफ्ते के 6 दिनों का ब्योरा होता है कि किस दिन कौनकौन सी ऐक्सरसाइज करनी हैं. जिम ट्रेनर के निरीक्षण में ऐक्सरसाइज करने से जिस्म फिट रहने के साथ वजन बढ़ कर आदर्श लैवल पर बना रहता है.

4. पानी कम पीने की आदत :

24 घंटे के रातदिन के दौरान इंसान को भरपूर पानी पीना चाहिए. पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से शरीर को भीतर व बाहर दोनों तरफ से फायदा मिलता है. यह शरीर के वजन को बढ़ाने व जिस्म की स्किन और बालों को पोषण प्रदान करने में अहम भूमिका निभाता है.

देशविदेश के वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान को अपनेआप को हाइड्रेट रखने और शरीर से टौक्सिन्स को बाहर निकालने के लिए दिनभर में 8 से 10 गिलास पानी या कोई तरल पदार्थ पीना चाहिए. इंसान चाहे तो नारियल पानी और ताजे फलों का जूस भी पी सकता है. सो, अगर कोई कम पानी पीता है तो उसे यह आदत छोड़नी होगी.

5. सोने में कंजूसी की आदत :

ऊर्जावान और स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि इंसान नियमित रूप से पूरी नींद लें. नींद न पूरी होने से सिर भारी रहने के साथ शरीर का ब्लडप्रैशर यानी बीपी बढ़ सकता है. नींद न पूरी होने की वजह से थकान के साथसाथ चिड़चिड़ाहट भी महसूस होती है और बातबात पर गुस्सा आता है. मैडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कम से कम 7 घंटे की नींद लेनी जरूरी है. पूरी नींद लेने से इंसान स्वस्थ महसूस करने के साथ ऊर्जावान बना रहता है. यह इंसान की फिटनैस और आदर्श वजन के लिए भी बेहद ज़रूरी है. ऐसे में जो लोग रात में सोने में कंजूसी करते हैं वे अपनी इस आदत को छोड़ दें.

यानी, सेहतमंद जीवन के लिए जरूरी होती हैं अच्छी आदतें. ये इंसान को खुश रखने के साथ ऊर्जा से भरपूर भी रखती हैं. यही नहीं, ये इंसान को बीमारियों से काफी हद तक दूर भी रखती हैं. तो, गलत आदतों को त्याग कर कोई भी तंदुरुस्त होने के साथ आइडियल वज़न हासिल कर सकता है.

अगर आप भी करते हैं रक्तदान तो जरूर ध्यान रखें इन बातों का

आज के समय में ब्लड डोनेट (रक्तदान) करके आप दूसरों की मदद तो करते ही हैं साथ ही आपको भी इसके बहुत फायदे होते हैं. कई लोगों को लगता है कि रक्तदान करने के बाद शरीर में कमजोरी आ जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है. रक्तदान करने के 21 दिन बाद यह दोबारा बन जाता है. इसलिए रक्तदान करने से पहले घबराए नहीं बल्कि रक्तदान करते समय इन बातों का खास खयाल रखें.

– कोई भी हेल्दी व्यक्ति रक्तदान कर सकता है. बात करें पुरुष की तो वह 3 माह में एक बार रक्तदान कर सकते हैं वहीं महिलाएं 4 माह में एक बार ब्लड डोनेट कर सकती हैं.

– एक बार में किसी के शरीर से भी 471ml से ज्यादा रक्त नहीं लिया जा सकता.

– अगर आप रक्तदान करने के योग्य हैं और रक्तदान करने की सोच रही हैं तो एक दिन पहले से स्मोक करना बंद कर दें. इसके अलावा रक्तदान करने के तीन घंटे बाद ही धुम्रपान करें.

– रक्तदान करने के बाद हर तीन घंटे में हैवी डाइट लें. इसमें आप ज्यादा से ज्यादा हैल्दी खाना ही लें. आप चाहे तो फल खा सकती हैं.

– ज्यादातर रक्तदान करने के बाद रक्तदाता को खाने के लिए जूस, चिप्स, फल आदि दिए जाते हैं, इन्हें लेने से परहेज नहीं करना चाहिए.

– रक्तदान करने के 12 घंटे बाद तक आप हैवी एक्सरसाइज न करें. खून देने के तुरंत बाद गर्मजोशी अच्छी नहीं होती. पहले अपने शरीर में खून के संचार को नौर्मल होने दें.

– रक्तदान करने से 48 घंटे पहले से शराब का सेवन बंद कर दें. अगर आपने 48 घंटों के बीच शराब का सेवन किया है तो आप ब्लड डोनेट नहीं कर सकते हैं

– रक्तदान करने के बाद अगर आप हेल्दी डाइट न लेकर तरल पदार्थ लेती रहेंगी, तो इससे आपको कमजोरी महसूस होगी.

– लोगों को गलतफहमी होती है कि रक्तदान करने से हीमोग्लोबिन में कमी आती है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है.

 

अगर आप भी हैं बवासीर के शिकार तो जरूर अपनाएं ये उपाय

बवासीर को पाइल्स या मूलव्याधि भी कहते हैं. यह एक खतरनाक बीमारी है. मलाशय के आस-पास की नसों में सूजन की वजह से बवासीर की समस्या होती है. इस बीमारी में जब मलत्याग किया जाता है तब अत्यधिक पीड़ा और फिर रक्त स्राव की समस्या होती है. बवासीर दो तरह की होती है. अंदरूनी और बाहरी बवासीर. अंदरूनी बवासीर में नसों की सूजन दिखाई नहीं देती जबकि बाहरी बवासीर में यह गुदा के बिल्कुल बाहर दिखाई देती है.

कारण

कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है. अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है. जिन व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो या भारी वजन उठाने पड़ते हों उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है. कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है. इसकी एक प्रमुख वजह खान पान की अनियमितता का होना भी है.

उपचार

हम आपको यहां कुछ घरेलू उपाय के बारें में बताने जा रहे हैं, जिसके इस्तेमाल से बवासीर से पूरी तरह से छुटकारा पाया जा सकता है. चलिए जानते हैं इसके बारे में.

छाछ और जीरा

दो लीटर छाछ में पचास ग्राम जीरा पीसकर मिला लें और जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह यह मिश्रण पिएं. ऐसा करने पर आपको तीन से चार दिन के अंदर ही लाभ दिखने लगेगा. आप छाछ की जगह पानी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. इसके लिए एक गिलास पानी में आधा चम्मच जीरा पाउडर मिलाकर पिएं. यह बवासीर को जल्द से जल्दी ठीक करने का एक बेहतरीन उपाय है.

इसबगोल

रात में सोते समय एक गिलास पानी में दो चम्मच इसबगोल की भूसी डालकर पिए. इसबगोल की भूसी खाने से पेट साफ रहता है और मल की कठोरता कम होती है. इससे बवासीर में दर्द नहीं होता.

बड़ी इलायची

50 ग्राम बड़ी इलायची लेकर उसे तवे पर भून लीजिए. जब इलायची लाल हो जाए तब इसे तवे पर से उतारकर ठंडा कर लीजिए और पीसकर रख लीजिए. हर रोज सुबह खाली पेट इस चूर्ण के साथ पानी पीजिए. यह बवासीर को जड़ से मिटाने में सहायक है.

किशमिश

रात को सोते समय सौ ग्राम किशमिश को पानी में भिगो दें. सुबह उठकर पानी में ही इसे मसल डालें और रोज इस पानी का सेवन करें. बवासीर रोग में यह बेहद फायदेमंद नुस्खा है.

जामुन

खूनी बवासीर में जामुन और आम की गुठली बड़े काम की चीज होती है. जामुन और आम की गुठली के अंदर का भाग निकालकर इसे धूप में सुखा लें और इसका चूर्ण बना लें. अब रोजाना एक चम्मच चूर्ण को गुनगुने पानी या फिर छाछ के साथ पिएं. बवासीर में बेहद लाभ मिलेगा.

इसके अलावा तरल पदार्थों, हरी सब्जियों एवं फलों का बहुतायात मात्रा में सेवन करें. तली हुई चीजें, मिर्च-मसालों युक्त गरिष्ठ भोजन न करें.

आखिर शराब क्यों है खराब, पढ़ें खबर

शराब न केवल स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है बल्कि यह अपराध को भी बढ़ावा देने का एक प्रमुख कारण है. शराब पीने के बाद व्यक्ति का दिल और दिमाग अच्छे और बुरे में फर्क करना भूल जाता है. शराब की वजह से व्यक्ति अपनी सुधबुध खो बैठता है. ऐसे में वह अपने से बड़ों से अभद्रता से बात करने में भी नहीं हिचकता.

शराब की लत की वजह

अकसर शौकिया तौर पर शराब पीने की शुरुआत होती है जो धीरेधीरे उन की आवश्यकता बन जाती है. शराब की लत का एक बड़ा कारण घरेलू माहौल भी है, क्योंकि जब घर का कोई बड़ा सदस्य घर के दूसरे सदस्यों व बच्चों के सामने खुलेआम शराब पीता है या पी कर आता है तो अनुभव लेने की इच्छा के चलते पत्नी, बच्चे व घर के अन्य सदस्य भी शराब पीने के आदी हो सकते हैं.

शराब की लत लगने का एक कारण गलत संगत भी है. अगर व्यक्ति शराब पीने वाले साथियों के साथ ज्यादा समय बिताता है तो उसे शराब की लत पड़ सकती है. तमाम लोग शराब को अपना सोशल स्टेटस मानते हैं.

शराब की लत लगने की एक बड़ी वजह निराशा, असफलता व हताशा को भी माना जाता है, क्योंकि अकसर लोग इन चीजों को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेते हैं जो बाद में बरबादी का कारण भी बनता है.

पढ़ाई व कैरियर

किशोरों व युवाओं में नशे की लत दिनोदिन बढ़ती जा रही है. इस कारण शराब उन की पढ़ाई व कैरियर के लिए बाधा बन जाती है.

सामाजिक व आर्थिक नुकसान

शराबी व्यक्ति की समाज में इज्जत नहीं होती, शराब की लत के चलते परिवार में सदैव आर्थिक तंगी बनी रहती है, जिस वजह से परिवार के सदस्यों के साथ मारपीट आम बात हो जाती है. शराब की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यक्ति अपनी स्थायी जमा पूंजी भी दांव पर लगा देता है, जिस से बच्चों की पढ़ाई व कैरियर भी प्रभावित होता है.

स्वास्थ्य का दुश्मन

स्वास्थ्य के लिए शराब जहर की तरह है जो व्यक्ति को धीरेधीरे मौत की तरफ ले जाती है. मानसिक व नशा रोग विशेषज्ञ डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन के अनुसार शराब में पाया जाने वाला अलकोहल शरीर के कई अंगों पर बुरा असर डालता है, जिस की वजह से 200 से भी अधिक बीमारियां होने का खतरा बना रहता है.

अत्यधिक शराब पीने से शरीर में विटामिन और अन्य जरूरी तत्त्वों की कमी हो जाती है. शराब का लगातार प्रयोग पित्त के संक्रमण को बढ़ाता है, जिस से ब्रैस्ट और आंत का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है.

शराब में पाया जाने वाला इथाइल अल्कोहल लिवर सिरोसिस की समस्या को जन्म देता है जो बड़ी मुश्किल से खत्म होने वाली बीमारी है. इथाइल अलकोहल की वजह से पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है, जिस से लिवर बढ़ जाता है और ऐसी अवस्था में भी व्यक्ति अगर पीना जारी रखता है तो अल्कोहल हैपेटाइटिस नाम की बीमारी लग जाती है.

सैक्स पर असर

जिला अस्पताल बस्ती के चिकित्सक डा. बी के वर्मा के अनुसार शराब सैक्स के लिए जहर है. लोग सैक्स संबंधों का अधिक मजा लेने के चलते यह सोच कर शराब पीते हैं कि वे लंबे समय तक आत्मविश्वास के साथ सहवास कर पाएंगे, लेकिन लगातार शराब के सेवन के चलते प्राइवेट पार्ट में तनाव आना कम हो जाता है, जिस का नतीजा नामर्दी के रूप में दिखता है. कामेच्छा की कमी के साथ ही महिलाओं की माहवारी अनियमित हो जाती है.

सड़क दुर्घटना का कारण

अकसर सड़क दुर्घटना का सब से बड़ा कारण शराब पी कर गाड़ी चलाना होता है, क्योंकि शराब पीने के बाद गाड़ी ड्राइव करने वाले का दिमाग उस के वश में नहीं रहता और ड्राइव करने वाला व्यक्ति गाड़ी से नियंत्रण खो देता है और दुर्घटना हो जाती है.

अपराध को बढ़ावा

शराब का नशा दुनिया भर में होने वाले अपराधों की सब से बड़ी वजह माना जाता है. अकसर शराबी व्यक्ति नशे में अपने होशोहवास खो कर ही अपराध को अंजाम देता है.

ऐसे पाएं छुटकारा

शराब की लत का शिकार व्यक्ति इस से होने वाली हानियों को देखते हुए अकसर शराब को छोड़ने की कोशिश करता है, लेकिन प्रभावी कदम की जानकारी न होने की वजह से वह शराब व नशे से दूरी नहीं बना पाता है. यहां दिए उपायों को अपना कर व्यक्ति शराब जैसी बुरी लत से छुटकारा पा सकता है :

– अगर आप शराब की लत के शिकार हैं और इस से दूरी बनाना चाहते हैं तो इस को छोड़ने के लिए खास तिथि का चयन करें. यह तिथि आप की सालगिरह वगैरा हो सकती है. छोड़ने से पहले इस की जानकारी अपने सभी जानने वालों को जरूर दें.

– अगर आप का बच्चा शराब का शिकार है तो मातापिता को चाहिए कि उस की गतिविधियों पर नजर रखें और समय रहते किसी नशामुक्ति केंद्र ले जाएं और मानसिक रोग विशेषज्ञ से संपर्क जरूर करें.

– ऐसी जगहों पर जाने से बचें जहां शराब की दुकानें या शराब पीने वाले लोग मौजूद हों, क्योंकि ऐसी अवस्था में फिर से आप की शराब पीने की इच्छा जाग सकती है.

– कमजोरी, उदासी या अकेलापन महसूस होने की दशा में घबराएं नहीं बल्कि अपने भरोसेमंद व्यक्ति के साथ अपने अनुभवों को बांटें और कठिनाइयों से उबरने की कोशिश करें.

– शराब छोड़ने के लिए आप इस बात को जरूर सोचें कि आप ने शराब की वजह से क्या खोया है और किस तरह की क्षति पहुंची है. इस से न केवल आप शराब से दूरी बना सकते हैं बल्कि खराब हुए संबंधों को पुन: तरोताजा भी कर सकते हैं.

– शराब छोड़ने से उत्पन्न परेशानियों से निबटने के लिए किसी अच्छे चिकित्सक या मानसिक रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना न भूलें.

फ्लेवर्ड हुक्का है सिगरेट से भी ज्यादा नुकसानदायक, जानें कैसे

भारत में आज कल हर छोट बड़े शहरों और मौल्‍स में हुक्‍का बार या शीशा लाउंज पौपुलर हो रहे हैं. खासकर युवा वर्ग अकसर बार में हुक्के के कश लगाते दिख जाते हैं. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि हुक्का पीना सिगरेट पीने से ज्यादा नुकसानदेह नहीं होता. उनका मानना है कि हुक्के से खींचा जाने वाला तंबाकू पानी से होते हुए आता है इसलिए वह ज्यादा नुकसानदेह नहीं होता. लेकिन हाल ही सामने आई एक रिसर्च से पता चला है कि हुक्का भी सिगरेट के बराबर हार्ट को नुकसान पहुंचाता है. इससे दिल की बीमारी होने खतरा बढ़ जाता है.

वहीं ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक हुक्का में जिस तंबाकू का इस्तेमाल होता है, उसमें कई तरह के अलग-अलग फ्लेवर का भी इस्तेमाल होता है. यही वजह है कि आज कल युवा इसे ज्यादा पसंद कर रहे हैं. हुक्के का स्वाद बदलने के लिए उसमें फ्रूट सिरप मिलाया जाता है, जिससे किसी भी तरह का विटामिन नहीं मिलता. लोगों को लगता है कि हुक्के में मिलाया जाने वाला यह फ्लेवर स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है.

इसके अलावा हुक्के में सिगरेट की ही तरह कार्सिनोजन लगा होता है जिससे कैंसर होने की संभावना प्रबल होती है. हुक्के का धुआं ठंडा होने के बाद भी नुकसान पहुंचाता है. यह हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कार्डियोवैस्कुलर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण बनता है.

यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया की रिसर्च के मुताबिक हुक्के में इस्तेमाल किए जाने वाले हशिश (एक प्रकार का ड्रग) सेहत के लिए हानिकारक होता है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जो लोग हुक्का पीते हैं उनकी धमनियां सख्त होने लगती हैं और हार्ट से संबंधित बारी होने का खतरा बढ़ जाता है.

शोधकर्ताओं के मुताबिक हुक्के में भी सिगरेट की तरह हानिकारक तत्व व निकोटीन पाए जाते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए लोगों को यह मानना बंद कर देना चाहिए कि इसकी लत नहीं लग सकती. हुक्के में मौजूद तंबाकू में 4000 तरह के खतरनाक रसायन होते हैं. हुक्के के बारे में सच यही है कि इसका धुआं सिगरेट के धुएं से भी ज्यादा खतरनाक होता है.

बौडी टोंड तो स्ट्रौंग होगा बौंड

लड़का हो या लड़की या फिर औरत हो या मर्द, सभी के लिए ऐक्सरसाइज करना फायदेमंद रहता है. ऐक्सरसाइज पुराने रोगों की रोकथाम से ले कर मौडर्न लाइफस्टाइल को ठीक करने तक में लाभदायक होती है. यह तनाव और घबराहट से मुक्ति दिलाती है. ऐक्सरसाइज आप के वजन पर भी नियंत्रण रखती है.

अगर आप रोज 30 मिनट तक  ऐक्सरसाइज करें तो उस के आप को ये लाभ होंगे :

  • दिल का दौरा पड़ने का खतरा कम होगा.
  •  वजन नियंत्रण में रहेगा.
  • ऐक्सरसाइज कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित रखेगी.
  • टाइप टू डायबिटीज और कई तरह के कैंसर के खतरे को कम करेगी.
  • ब्लडप्रैशर कम होगा.
  • हड्डियां मजबूत होंगी और मांसपेशियों के कमजोर होने का खतरा कम होगा.
  • अधिक ऊर्जा महसूस करेंगे, खुश रहेंगे और नींद अच्छी आएगी.

तनाव से मुक्ति

इस के अलावा वर्कआउट नकारात्मक विचारों और टैंशन को भी कम करता है. अगर आप फिट हैं तो मन भी खुश रहेगा.

ऐक्सरसाइज सैरोटोनिन, ऐंडोर्फिन और स्ट्रैस के प्रभाव को कम कर मस्तिष्क के रसायन स्तर को संतुलित करती है.

जब आप ऐक्सरसाइज करते हैं तो आप का शरीर फिट रहने के साथसाथ सही आकार में भी रहता है, जिस से आप के पार्टनर का ध्यान आप की ओर सहजता से खिंचता है.

आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी

पूरे दिन की थकान के बाद जब आप ऐक्सरसाइज करते हैं, तो आप रिलैक्स हो जाते हैं. इस से सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास बढ़ता है.

जिस तरह दांतों को ठीक रखने के लिए ब्रश करना जरूरी होता है उसी तरह फिट बौडी और सकारात्मक सोच के लिए कम से कम सप्ताह में 5 दिन 30 मिनट तक ऐक्सरसाइज करना आवश्यक है.

शारीरिक रूप से फिट व्यक्ति की सैक्सुअल लाइफ भी अच्छी रहती है, क्योंकि ऐक्सरसाइज से आप की मांसपेशियां टोंड रहती हैं.

एक शोध में पता चला है कि रोज ऐक्सरसाइज करने वाले दंपती का आपसी रिश्ता अधिक मजबूत होता है. अधिक उम्र तक वे एकदूसरे को आकर्षक मानते हैं.

इस तरह के ऐक्सरसाइज में ऐरोबिक, कुछ दूर पैदल चलना सब से अधिक प्रभावशाली होती है. ऐक्सरसाइज से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और व्यक्ति काफी समय तक अपनेआप को युवा महसूस करता है. पूरे दिन में आप आसानी से 30 मिनट ऐक्सरसाइज के लिए निकाल सकते हैं.

लड़कियों के लिए तो ऐक्सरसाइज खासतौर पर फायदेमंद रहती है. इस से तनाव, ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल जैसी कई समस्याओं से राहत मिलती है.

लेजर दिला रहा है चश्मे से छुटकारा…जानें कैसे

मायोपिया में आईबौल का आकार बढ़ जाता है जिस से रेटिना पर सामान्य फोकस पहुंचने में दिक्कत होती है जिसे चश्मे या लेंस के द्वारा ठीक किया जा सकता है.

आई बौल का आकार बढ़ने से फोकस सामान्य से थोड़ा पीछे शिफ्ट हो जाता है जिस से धुंधला दिखाई देने लगता है. आईबौल का आकार हम बदल नहीं सकते इसलिए लेज़र से कार्निया के उतकों को रिशेप कर के उस के कर्व को थोड़ा कम कर फोकस को शिफ्ट कर देते हैं.

लेसिक लेजर

आंखों की समस्याओं के लिए लेसिक लेजर एक उच्चतम और सफल तकनीक है. इस का पूरा नाम लेजर असिस्टेड इनसीटू केरेटोमिलीएसिस है जो मायोपिया के इलाज की एक बेहतरीन तकनीक है. इस तकनीक का प्रयोग दृष्ट‍ि दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है. यह उन लोगों के लिए बेहद प्रभावी है जो चश्मा या कॉन्टेक्ट लेंस लगाते हैं.

लेसिक लेज़र सर्जरी में फैक्टो लेज़र मशीन के द्वारा कार्निया की सब से उपरी परत जिसे फ्लैप कहते हैं को हटा दिया जाता है. अब इस के नीचे स्थित उतकों पर लेज़र चला कर उन के आकार को बदला जाता है ताकि वो रेटिना पर ठीक तरह से लाइट को फोकस कर सके. उतकों को ठीक करने के पश्चात कार्निया के फ्लैप को वापस उस के स्थान पर रख दिया जाता है और सर्जरी पूरी हो जाती है.

लेसिक लेज़र को विश्व की सब से आसान सर्जरी माना जाता है. केवल कुछ सेकंड्स तक एक लाइट को देखना होता है और ऑपरेशन के तुरंत बाद दिखाई देने लगता है. -1 से -8 नंबर तक के लिए यह बहुत उपयोगी है लेकिन उस से अधिक के लिए यह तकनीक इस्तेमाल नहीं की जाती है. +5 नंबर तक भी इस के अच्छे परिणाम मिल जाते हैं . इसे रिस्क फ्री सर्जरी माना जाता हैं.

लेसिक लेज़र की प्रक्रिया

लेसिक लेज़र 3 दिन का प्रोसेस है. पहले दिन डॉक्टर यह जांच करते हैं कि आप लेज़र सर्जरी के लिए फिट हैं या नहीं. दूसरे दिन सर्जरी की जाती है और तीसरे दिन फॉलोअप लिया जाता है. इस प्रक्रिया के लिए तीनों चरण ही महत्वपूर्ण हैं क्यों कि इन के बिना बेहतर परिणाम नहीं मिलते हैं.

प्री-लेज़र चेक-अप

लेज़र सर्जरी के पहले प्री-लेज़र चेक-अप किया जाता है. इस में दो से तीन घंटे का समय लग सकता है क्यों कि 6-8 टेस्ट किए जाते हैं. जिन में विज़न टेस्ट, ड्राय आईस. टोपोग्रॉफी, कार्नियल थिकनेस, कार्नियल मेपिंग, आई प्रेशर आदि सम्मिलित हैं. डायलेशन के लिए आई ड्रॉप डाली जाती है, जिस से दो-तीन घंटे तक आप को थोड़ा धुंधला दिखाई दे सकता है.

लेसिक सर्जरी के पहले एंटी-बायोटिक ड्रॉप दी जाती है जिसे सर्जरी के एक दिन पहले आप को दिन में छह बार डालना होता है.

लेज़र सर्जरी

जब आप को सर्जरी के लिए फिट घोषित कर दिया जाता है तभी अगले दिन लेज़र सर्जरी की जाती है. यह केवल 5-10 सेकंड का काम है, लेकिन आप को 1-2 घंटे लग सकते हैं क्यों कि ऑपरेशन के पहले और बाद में कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं. जब सर्जरी कराने के लिए जाएं तो नहा कर, सिर धो कर जाएं क्यों कि सर्जरी के पश्चात आप को सिर नहीं झुकाना है. कोई मेकअप, कॉस्मेटिक्स, और परफ्यूम न लगाएं. अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार को साथ ले कर जाएं क्यों कि सर्जरी के कुछ घंटो बाद तक धुंधला दिखाई दे सकता है.

सर्जरी के पश्चात ग्लेयर से बचने के लिए अपने साथ डार्क गॉगल जरूर ले कर जाएं.

फौलो-अप

तीसरे दिन फौलो-अप लिया जाता है. इस में डाक्टर आप का विज़न चेक करेगा ताकि पता लगाया जा सके कि सर्जरी कितनी सफल रही है. लेज़र सर्जरी के पश्चात पहला फौलो-अप बहुत जरूरी है.

कौन सी तकनीक है बेहतर

लेसिक लेज़र के लिए सात अलगअलग तकनीकें इस्तेमाल की जाती हैं. ब्लेडलेस लेसिक, स्माइल और कंटूरा विज़न को सब से अच्छा माना जाता है क्यों कि इन में परिणाम बहुत अच्छे मिलते हैं. लेकिन अगर आप का बज़ट कम है तब भी आप को एसबीके क्यु तो कराना ही चाहिए.

कौन करा सकता है लेसिक लेज़र

1 .जिन की उम्र 18 वर्ष से अधिक है क्यों कि इस उम्र तक आतेआते ग्रोथ हार्मोन्स का स्त्राव रूक जाता है और आईबौल्स का आकार नहीं बढ़ता है.

२. पिछले छह महीने से चश्मे के नंबर में बदलाव न आया हो.

3 .महिला गर्भवती न हो. न ही बच्चे को स्तनपान करा रही हो.

4 . चश्मे के अलावा आंखों से संबंधित कोई दूसरी समस्या न हो.

5 .आप कोई ऐसी दवाई न ले रहे हों जो इम्यून सिस्टम को प्रभावित करती है जैसे कार्टिकोस्टेरौइड या इम्यूनो सपरेसिव ड्रग्स.

साइड इफेक्ट्स

सामान्यता यह सुरक्षित सर्जरी है और इसके कोई साइड इफेक्ट्स नहीं हैं. लेकिन कईं लोगों में सर्जरी के पश्चात ये समस्याएं हो सकती हैं;

1. फोटोफोबिया (रोशनी को सहन न कर पाना).

2. आंखों से पानी आना.

3. आंखों में ड्रायनेस.

4. आंखों में लालपन.

5. आंखों में दर्द होना.

6. किसी भी इमेज के आसपास हैलोस दिखाई देना.

7. रात में गाड़ी चलाने में परेशानी आना.

8. विज़न में उतारचढ़ाव होना.

अधिकतर लोगों में यह समस्याएं अस्थायी होती हैं और 2-3 दिन में अपने आप ठीक हो जाते हैं. अगर 2-3 दिन बाद भी कोई समस्या हो तो डॉक्टर को दिखाएं. वैसे सर्जरी के पश्चात साइड इफेक्ट्स से बचने के लिए ल्युब्रिकेंटिंग ड्रौप दी जाती हैं, जिसे तीन महीने तक दिन में चार बार डालना होता है.

लेज़र कराने के बाद रखें सावधानी

1. पहले दो दिन ड्रायविंग न करें.

2. दिन में डार्क गौगल्स लगाएं.

3. शुरूआती 1-2 दिन घर के अंदर ही रहें.

4. पहले दिन ही आप कम्प्युटर पर काम कर सकते हैं, लेकिन अधिक देर तक न करें. 2 दिन में आप अपना सामान्य कार्य कर सकते हैं.

5. सर्जरी के पश्चात अगले दिन पहले फौलो-अप के लिए डॉक्टर के पास जरूर जाएं.

6. दो सप्ताह तक भारी काम जैसे जौगिंग, वेट लिफ्टिंग, स्विमिंग, जिमिंग आदि न करें,

7. दो सप्ताह तक कौस्मेटिक्स और मेकअप का इस्तेमाल न करें.

8. सर्जरी के पश्चात आपको ग्रीन शील्ड्स दी जाती हैं, जिन्हें आपको अगली दो रातों तक पहनना होता है.

कितना कारगर है लेसिक लेज़र

लेसिक लेज़र में रिस्क बहुत कम होता है. सर्जरी के पहले कईं जांचे करने के पश्चात जब आप को फिट घोषित किया जाता है तभी लेज़र सर्जरी की जाती है वर्ना आप को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. इस सर्जरी में कोई दर्द नहीं होता क्यों कि न तो कोई इंजेक्शन लगाया जाता है न ही ब्लेड का इस्तेमाल किया जाता है. चूंकि पूरी सर्जरी में कोई चीरा नहीं लगाया जाता इसलिए टांके लगाने और बैंडेज की जरूरत नहीं पड़ती है.

आई 7 चौधरी आई सेंटर के डॉ राहिल चौधरी से की गई बातचीत पर आधारित…

क्या कारण है कि कुछ पुरुष पिता नही बन पाते ?

पिता बनना सभी पुरुषों के लिए उन खास एहसास में से एक है जिसका इंतजार वो मेसबरी से करते है. पर जब कोई इस एहसास का अनुभव नही कर पाता तो उनपर क्या बीतती है इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता.बदलती जीवनशैली, खराब खान-पान और तनाव के कारण पुरुष कई समस्याओं का शिकार हो जाते हैं और उनका पिता बनने का सपना भी टूट जाता है. दरअसल पुरुषों के शरीर में इन कारणों से कुछ ऐसी चीजों की कमी हो जाती हैं, जिसके कारण उन्हें पिता बनने में कई प्रकार कि दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

इसलिए आज हम आपको पुरुषों के शरीर में होने वाली कुछ ऐसे चीजों की कमी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके कारण पुरुष पिता बनने में महरूम रह जाते हैं. आपको बता दें कि शरीर में इन तीन चीजों की कमी पुरुषों को पिता बनने से रोकती है.

टेस्टोस्टेरौन की कमी के चलते…

टेस्टोस्टेटरौन एक प्रकार का हार्मोन है, जो पुरुषों के टेस्टिकल्स में मौजूद होता है. इस हार्मोन के कारण ही पुरुषों में यौन इच्छा जागती है. इस हार्मोन का संबंध यौन क्रियाओं, रक्त संचार, मांसपेशियों की मजबूती, एकाग्रता और स्मृ्ति से भी जुड़ा होता है. पुरुषों में चिड़चिड़ापन या फिर जरा-जरा सी बातों पर गुस्सा आना टेस्टोस्टेरौन की कमी के कारण होता है. पुरुषों के पिता बनने में इन टेस्टोस्टेरोन हार्मोन्स की बेहद अहम भूमिका होती है. लेकिन इन हार्मोन्स की कमी के कारण पुरुष चाह कर भी पिता नहीं बन पाता. हालांकि डाक्टर से सलाह और अपने सेहत व खान-पान पर ध्यान देने से इन हार्मोन को बढ़ाया जा सकता है.

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एस्ट्रोजन की कमी भी हो सकती है कारण

एस्ट्रोजन, स्टेरोएड हार्मोन का एक समूह है, जो महिला व पुरुष दोनों में पाया जाता है लेकिन यह अधिकतर महिलाओं में पाया जाता है,  इसके कारण उनकी प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है. एस्ट्रजेन हार्मोन के कारण ही महिलाओं और पुरुषों में भिन्नताएं पाई जाती है. शरीर में एस्ट्रोजन की कमी के कारण पुरुषों के शुक्राणु कमजोर हो जाते हैं, जिसके कारण वह महिलाओं के एग को फर्टलाइज नहीं कर पाते. इस कारण से भी पुरुषों को पिता बनने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं इन हार्मोन की कमी से पुरुषों की सेहत पर भी खराब असर पड़ता है. एस्ट्रोजन हार्मोन्स को सामान्य रखने के लिए पौष्टिक आहार लेना बेहद जरूरी है.

कैल्शियम की कमी से बचे

पुरुषों के लिए शरीर में कैल्शियम की कमी होना ठीक नहीं है. अमेरिकन हेल्थ ऑफ मेडिसिन के एक अध्ययव के मुताबिक, कैल्शियम की कमी होने से पुरुषों के शुक्राणुओं की गुणवत्ता खराब हो जाती हैं, जिसके कारण उन्हें पिता बनने में परेशानी होती हैं. इसलिए अगर किसी पुरुष को पिता बनने में परेशानी हो रही हैं तो उसे कैल्शियम युक्त आहार का सेवन करना चाहिए और डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए. ऐसा करने से उनकी ये समस्या धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी.

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