‘‘किसी की घरवाली कोई दूसरा खसम कर ले, तो इस में हम क्या करें?’’
देवेंद्रजी थोड़ा नाराज हो कर बोले, ‘‘क्या सभी की समस्याएं सुलझाने का हम ने ठेका ले रखा है? किसी से अपनी घरवाली नहीं संभाली जाती तो कोई क्या करेगा?’’ भीड़ ने अर्जुन महतो की ओर देखा, देवेंद्रजी शायद ठीक ही कह रहे हैं. अर्जुन ने शर्म से अपना सिर झुका लिया.
‘‘वही तो हम भी कह रहे हैं,’’ बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘पार्वती के रंगढंग कई दिनों से ठीक नहीं चल रहे थे. मैं ने सुना तो मैं ने समझाया भी था अर्जुन को. समझाना फर्ज बनता था हमारा. है कि नहीं अर्जुन?’’
अर्जुन ने रजामंदी में अपना सिर हिलाया.
‘‘बलदेवा, तुम चाहे जो करवा दो यहां,’’ देवेंद्रजी ने फिर मजाक किया, ‘‘बेचारी धनिया को भी लुटवा दिए थे ऐसे ही,’’ भीड़ फिर हंस पड़ी. बलदेव प्रसाद झेंपने का नाटक करते हुए बोला, ‘‘आप तो मजाक करने लगे. मुझे क्या पड़ी है कि मैं हर जगह टांग अड़ाऊं. वह तो ऐसे गरीबों का दुख नहीं देखा जाता इसीलिए. अब देखिए न, परबतिया गई सो गई, साथ में गहनेकपड़े, रुपयापैसा सबकुछ ले गई. अब इस बेचारे अर्जुन का क्या होगा?’’ ‘‘हां… माईबाप…’’
अर्जुन महतो फिर सिसकने लगा. देवेंद्रजी नाराजगी से बोले, ‘‘मरो भूखे अब. ये लोग अपनी सब कमाई तो खिला देते हैं ब्याज वालों को या दारू पी कर उड़ा देते हैं. चंदा भी देंगे तो दूसरे नेताओं को. और अब घरवाली भाग गई तो चले आए मेरे पास. जैसे देवेंद्र सब का दुख दूर करने का ठेका ले रखे हैं.’’
‘‘वही तो मैं भी कहता हूं,’’ बलदेव प्रसाद ने कहा, ‘‘लेकिन, ये लोग मानते कहां हैं. और अगर घरवाली खूबसूरत हुई तो हवा में उड़ने लगते हैं. वह तो आप जैसे दयालु हैं, जो सब सहते हैं.
पर सच पूछिए, तो एक गरीब के साथ ऐसी ज्यादती भी तो देखी नहीं जाती. आप के रहते यहां यह सब हो, यह तो अच्छी बात नहीं है न?’’ बलदेव प्रसाद के चेहरे पर देवेंद्रजी के लिए तारीफ के भाव थे. भीड़ ने सोचा कि देवेंद्रजी हैं तो कोई न कोई रास्ता जरूर निकालेंगे. अर्जुन को घबराना नहीं चाहिए. वह सही जगह पर आया है. ‘‘यही मस्का मारमार कर तो तुम ने हमें बरबाद करवा दिया है बलदेवा,’’ देवेंद्रजी मानो बलदेव को मीठा उलाहना देते हुए बोले. ‘‘खैर, यह तो बताओ कि अर्जुन और पार्वती की शादी को कितने दिन हुए थे?’’ उन्होंने जैसे भीड़ से सवाल किया. अर्जुन को कुछ उम्मीद बंधी.
देवेंद्रजी मामले में दिलचस्पी लेने लगे हैं. बस, वह एक बार हाथ तो धर दें सिर पर, फिर तो उस गया प्रसाद की ऐसीतैसी… यह सोच कर अर्जुन का खून जोश मारने लगा. बलदेव प्रसाद बोला, ‘‘अरे, भली कही आप ने. यही तो मुसीबत है. इस ने अगर परबतिया से शादी की ही होती तो वह भागती क्यों? पर यहां तो फैशन है. या तो रिश्ता बना लेते हैं या खूबसूरत औरत के मांबाप को 200-400 रुपए दे कर उस औरत को घर बैठा लेते हैं. तभी तो…’’ अर्जुन ने बलदेव प्रसाद की बात का विरोध करना चाहा. वह चीखचीख कर कहना चाहता था कि पार्वती उसी की ब्याहता है, पर उस के बोलने के पहले ही देवेंद्रजी बोल पड़े, ‘‘तब तो मामला हाथ से गया, समझो. जब ब्याह नहीं रचाया तो कहां की घरवाली और कैसी परबतिया? कौन मानेगा भला? ‘‘अरे, मैं कहता हूं कि परबतिया अर्जुन की घरवाली नहीं थी.
तो है कोई माई का लाल, जो यह दावा करे?’’ देवेंद्रजी ने जैसे भीड़ को ललकार दिया था. भीड़ में सनाका खिंच गया. यह तो सोचने वाली बात है. क्या दावा है अर्जुन के पास? बेचारा अब क्या करे? कहां से लाए अपनी और परबतिया की शादी का कागजी सुबूत? ‘‘तभी तो मैं भी कहता हूं कि अब कौन गया प्रसाद जैसे बदमाश से कहने जाए कि उस ने बड़ा गलत किया है. सभी जानते हैं कि वह कैसा आदमी है?’’ बलदेव प्रसाद ने कहा. ‘‘हांहां, जाओ,’’ देवेंद्र तैश में आ कर बोले,
‘‘कौन सा मुंह ले कर जाओगे उस बदमाश के घर? लाठी मार कर घर से निकाल न दे तो कहना.
‘‘अपने ऊपर हाथ भी नहीं धरने देगा वह बदमाश. क्या मैं कुछ गलत कह रहा हूं, बलदेवा?’’ उन्होंने बलदेव प्रसाद की ओर देखा. ‘‘अरे, आप और गलत बोलेंगे?’’
चमचागीरी करते हुए बलदेव प्रसाद ने नहले पर दहला मारा, ‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं. वह बदमाश गया प्रसाद तो मुंह पर कह देगा कि किस की बीवी और कैसी परबतिया? खुलेआम दावा करेगा कि यह तो मेरी बीवी है.
ज्यादा जोर लगाएंगे तो जमा देगा 2-4 डंडे. इस तरह अपना सिर भी फुड़वाओ और हाथ भी कुछ न आए.’’ देवेंद्रजी अपने दाहिने हाथ बलदेव प्रसाद की बातों से मन ही मन खुश हुए. भीड़ को भी लगा कि बलदेव प्रसाद की बातों में दम है. गया प्रसाद जैसे गुंडे से उलझना आसान काम नहीं. अर्जुन फिर एक बार मानो किसी अंधेरी कोठरी में छटपटाने लगा. ‘तो क्या अब कुछ नहीं हो सकता?’
मन ही मन उस ने सोचा. अब देवेंद्रजी ने सधासधाया तीर चलाया,
‘‘भाइयो, एक मिनट के लिए मान भी लें कि गया प्रसाद कुछ नहीं कहेगा. पर क्या पार्वती ताल ठोंक कर कह सकती है कि वह अर्जुन की घरवाली है और गया प्रसाद उसे बहका कर लाया है? ‘‘बोलो लोगो, क्या ऐसा कह पाएगी परबतिया? क्या उस की अपनी मरजी न रही होगी गया प्रसाद के साथ जाने की? वह कोई बच्ची तो है नहीं, जो कोई उसे बहका ले जाए?’’
भीड़ फिर प्रभावित हो गई देवेंद्रजी से. कितनी जोरदार धार है उन की बातों में? सभी बेचारे अर्जुन के बारे में सोचने लगे. लगता है, बेचारा अपनी घरवाली को सदा के लिए गंवा ही बैठा.
देवेंद्रजी ठीक ही तो कह रहे हैं. क्या परबतिया की अपनी मरजी न रही होगी? अब तो अर्जुन को उम्मीद छोड़ ही देनी चाहिए. भूल जाए पार्वती को. जिंदगी रहेगी तो उस जैसी कई मिल जाएंगी.
बलदेव प्रसाद ने देवेंद्रजी की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं. यह औरत जात ही आफत की पुडि़या है. और यह अर्जुन तो बेकार रो रहा है ऐसी धोखेबाज और बदचलन औरत के लिए.’’
यह क्या सुन रहा था अर्जुन? परबतिया और बदचलन? नहीं, वह ऐसी औरत नहीं है. अर्जुन ने सोचा. फिर उस के मन में चोर उभरा. पार्वती उस का घर छोड़ कर गई ही क्यों? क्या कमी थी उस को? क्या नहीं किया उस ने पार्वती के लिए? फिर भी धोखा दे गई. जगहंसाई करा गई.
बदचलन कहीं की. अर्जुन के मन में गुस्सा उमड़ने लगा. वह कुलटा मिल जाए तो वह उस का गला ही घोंट दे. पर कैसे करेगा ऐसा वह? जिन हाथों से उस ने परबतिया को प्यार किया, क्या उन्हीं हाथों से वह उस का गला दबा पाएगा? और परबतिया नहीं रहेगी तो उस के मासूम बच्चे का क्या होगा?
बच्चे का मासूम चेहरा घूम गया अर्जुन की आंखों में. कितना प्यार करता था वह अपने बच्चे को. कोयला खदान की हड्डीतोड़ मेहनत के बाद जब वह घर लौटता तो अपने बच्चे को गोद में उठाते ही उस की थकान दूर हो जाती. एक हूक सी उठी उस के मन में. बीवी भी गई, बच्चा भी गया. वह फिर पिघलने लगा. गुस्सा आंसू बन कर दोगुने वेग से बह चला था.
इस बार देवेंद्रजी ने अर्जुन को ढांढस देते हुए कहा, ‘‘अर्जुन रोओ मत. रोने से तो समस्या सुलझेगी नहीं, इंसाफ अभी एकदम से नहीं उठा है धरती से. पुलिस है, अदालत है, कचहरी है. कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा, ताकि तुम्हें इंसाफ मिले.’’ बलदेव प्रसाद ने उन्हें टोका, ‘‘नहीं, नहीं. आप को ही कुछ करना पड़ेगा. पुलिस को तो आप जानते ही हैं.
वह दोनों तरफ से खापी कर चुप्पी मार जाएगी, इसलिए आप ही कोई उपाय बताइए. ‘‘गया प्रसाद जैसा अकेला बदमाश यहां की जुझारू जनता को नहीं हरा सकता. हमें ऐसे लोगों को रोकना है और जोरजुल्म से इन गरीबों की हिफाजत करनी है.’’