असुविधा के लिए खेद है – भाग 3 : जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

आखिर वह कौन था? सेल्विना का बौयफ्रैंड? मगर क्यों? कनैक्शन क्यों जमा आखिर? अचानक अंधेरे में रोशनी की तरह अपना नेपाली दोस्त अनादि याद आया, कालेज में 3 साल हम अच्छे ही दोस्त थे. अब वह कोलकाता में ही रहता है और सिक्यूरिटी गार्ड सप्लाई संस्थान चलाता है. बैचलर है, घरपरिवार का झंझट नहीं, मेरी मदद कर पाएगा.

हमारे कालेज के वाल्सअप गु्रप में हम सभी जुड़े हैं और इस लिहाज से उस के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी मुझे थी. शाम के 6 बज रहे थे. मैं चल पड़ी उस के ठिकाने की ओर.

पहली मंजिल में उस का औफिस और दूसरी मंजिल में उस का घर था.

वह औफिस में ही मिल गया मुझे.

मुझे देख वह इतना खुश हुआ कि मुझे कुछ हद तक यह भी लगा कि मैं पहले ही इस से अपनी दोस्ती जारी रख सकती थी.

थोड़ी देर की बातचीत और कुछ स्नैक्सकौफी के बाद मैं मुद्दे पर आ गई. मैं ने उस से कहा, ‘‘अनादि, बात उतनी खतरनाक न सही, चिंता वाली तो है. मैं प्रोफैशनल तरीका अपना कर ज्यादा होहल्ला नहीं मचाना चाहती. बस जीजी की खुराफात बंद हो. मैं जानती हूं उस में बदले की भावना बचपन से ही कुछ ज्यादा है. अगर किसी पर उस ने टारगेट बना लिया तो उस की खैर नहीं.’’

मैं ने अपनी शादी और उस लड़के के इनकार की घटना बताई ताकि कुछ सूत्र मिल

सके अनादि को. सारी बातें सुन कर उस की दिलचस्पी जगी, कहा, ‘‘चलो कुछ तो खास

करने का मौका मिला वरना यह बिजनैस ऊबाने वाला है.’’

‘‘देखो, हमारे पास 2 पौइंट हैं. एक बदला जीजी का, दूसरा जीजू से पीछा छुड़ा कर किसी सुंदर लड़के के प्रेम में पड़ कर अपनी जिंदगी को अपनी मरजी से जीना, तो इन 2 बातों में से कौन सी के लिए जीजी इतनी डैस्परेट है?’’

‘‘आज रात को वह सेल्विना के बौयफ्रैंड को बुला रही है. सेल्विना के स्कूल में जीजी पेंटिंग्स सिखाती है.’’

‘‘बाप रे काफी मसले हैं. हमें क्या

करना है?’’

‘‘समस्या यह है कि जीजी के पास उस वक्त कैसे पहुंचा जाए जब जीजी का बुलाया व्यक्ति वहां मौजूद हो क्योंकि मुझे घर में

देखते ही वह पैतरा बदल देगी और विश्वास में

न लूं तो गेम डबल कर के मुझे उलझएगी.

बेहतर यही होगा कि उसे विश्वास दिलाया जाए कि हम से उसे कोई खतरा नहीं. तो एक बात

हो सकती है तुम मेरे बौयफ्रैंड बन कर मेरे साथ घर चलो.

‘‘जीजू के घर मम्मीपापा को छोड़ जब आ रही थी तो  तुम से मुलाकात हुई और कालेज के दिनों से मुझ से प्रेम करने वाले तुम अब मुझे पा कर खोना नहीं चाहते, जीजी हमारी शादी में मदद करे, मम्मीपापा और रिश्तेदारों को समझने में मदद करे. तो हम भी उन की करतूतों पर आंख मूंदे ही साथ रहे हैं,’’ मैं ने प्लान बताया जो जीजी से कहना था.

‘‘ऐसा क्या?’’ नेपाली बाबू ने मेरी ओर बड़ी गहरी दृष्टि डाली.

मुझे कुछ अटपटा लगा. फिर भी मैं ने

सहज रह कर बाकी बातें पूरी की, ‘‘जब

जानेगी कि हमें उस की जरूरत है तो वह हमारा भी फायदा उठाना चाहेगी, और वक्तवक्त पर हमें भी अपनी कारगुजारियों से अनजाने ही अवगत करा देगी. इस के लिए वह कुछ हद तक हमारी ओर से निश्चिंत रहेगी. वह मेरे इस प्रेम वाले कमजोर पक्ष की वजह से मेरी ओर से लापरवाह हो जाएगी क्योंकि उसे लगेगा कि अब मैं ही

खुद अपनी जरूरत के लिए उस के सामन

झकी रहूंगी.’’

अनादि सामान्य दिख रहा था. बोला, ‘‘ग्रेट आइडिया, लैट्स प्रोसीड.’’

रात 9 बजे जब मैं और अनादि घर पहुंचे अपनी चाबी से दरवाजा खोल हम अंदर गए, जीजी के कमरे में लाइट जल रही थी. दोनों बिस्तर पर व्यस्त थे.

लड़का मेरी ही उम्र का लगभग 27 के आसपास, गोरा स्मार्ट और बहुत खूबसूरत था.

हम ने अपना वीडियो कैमरा औन कर लिया.

हमें प्रमाण चाहिए था और इस के लिए ग्रिल वाली खिड़की और परदे की आड़ हमारे लिए काफी थी. जीजी बीचबीच में लड़के से बातें भी करती जाती.

‘‘सेल्विना को वापस जाने को कब कहोगे?’’

‘‘रहने दो न उसे, बेचारी का बहुत पैसा लगा है स्कूल में.’’

‘‘तो मैं तुम्हें कैसे पा सकूंगी. शादी कैसे होगी हमारी?’’

‘‘तुम बड़ी हो उस से 4 साल, मां नहीं मानेगी.’’

‘‘अच्छा तो सिर्फ  मजे के लिए मैं?’’ जीजी होश खो रही थी.

जीजी ने आगे कहा, ‘‘और वह नैकलैस लाए?’’

‘‘हां.’’

‘‘हीरे की लौकेट वाला न?’’

‘‘हां बाबा.’’

‘‘कल, 20 हजार ट्रांसफर करने को बोला था बैंक में. किए?’’

‘‘करता हूं.’’

‘‘अभी करो.’’

‘‘इतनी जल्दी क्या है?’’

‘‘फिर इस वीडियो को देखो, सेल्विना तो क्या हर जगह पहुंच जाएगा. अच्छा लगेगा?

तुम्ही बताओ?’’

तनय वीडियो देख कर तनाव में आ कर उठ बैठा, ‘‘तुम मुझे ब्लैकमेल कर रही हो?’’

‘‘नहीं तनय. मैं तो बस सावधान कर रही हूं, सुख मुझे अकेले नहीं मिल रहा है, तुम्हें भी मिल रहा है, तो कुछ तो चुकाओगे न?’’

तनय ने मोबाइल से तुरंत रुपए ट्रांसफ र कर दिए. जीजी शातिर गेम खेल सकती है, मैं जानती नहीं थी. मैं उलझती ही जा रही थी.

हम ने कैमरा बंद कर दरवाजा खटखटाया. दोनों संभल गए. कुछ देर बाद जीजी ने कमरे का दरवाजा खोला.

हम ने अपनी तय बातें उन के सामने रखीं. जैसाकि पहले से मालूम था वह भी इसी शर्त पर हमारी शादी में मदद को राजी हुई कि घर पर वे कुछ भी करें, हम उस के मामले में न दखल दें, न ही किसी से कुछ कहें.

हम ने उस का आभार माना और अपने कमरे में चले आए. 10 मिनट में अनादि चला गया. तनय भी थोड़ी देर बाद चला गया.

जीजू यानी निहार का संदेश मिला, ‘‘कब आओगी ईशा? साथ ही फोटो भी लाना. वाकई, जीजू ने कमाल किया. बेहद स्मार्ट और स्लिम हो गए. सच प्यार में बड़ी शक्ति है. उन की तसवीर देख चकित थी.’’

पता कर लिया था कि उन्होंने पार्कस्ट्रीट की एक कालोनी में सेल्विना के साथ मिल कर फ्लैट खरीदा था और सेल्विना के साथ तब तक लिवइन में था, जब तक न सेल्विना को भारतीय नागरिकता मिले और उस से कानूनी प्रक्रिया के तहत शादी हो जाए.

अनादि ने मुझे पता करने को कहा कि जीजी का इस तनय के साथ पहले से फेसबुक और चैटिंग का कोई रिश्ता है क्या?

जीजी से यह पूछने की फिराक में थी कि अनादि का संदेश आया, ‘‘ईशा क्या

मेरी बनोगी? बड़ा मिस करने लगा हूं यार तुम्हें.’’

‘‘यह क्या? जीजी के केस के बीच यह नया गेम क्या है?’’

5 फुट 7 ईंच का अनादि देखनेभालने में गोरा, सीधा, सरल नेपाली नहीं. कहती कि मुझे

5 फुट 7 ईंच की हाइट की लड़की के साथ बिलकुल नहीं जमेगा. लेकिन मैं तो…

मैं मन ही मन झल्ला गई. पर कोई जवाब नहीं दिया. क्या पता नहीं क्यों उसे दुखी कर

पाई. उस का हंसता सा चेहरा मेरी आंखों के आगे घूम गया.

ऐसे ही सही-भाग 1: क्यों संगीता को सपना जैसा देखना चाहता था

पार्किंग में अपना स्कूटर खड़ा कर के मैं इमरजेंसी वार्ड की तरफ बढ़ा. काफी पूछने पर पता चला कि जिस व्यक्ति को मैं ने यहां भरती कराया था वह अब आई.सी.यू. में है. रात को हालत ज्यादा बिगड़ जाने के कारण उसे वहां शिफ्ट कर दिया गया था. आई.सी.यू. चौथी मंजिल पर था. मैं लिफ्ट का इंतजार करने के बजाय तेजी से सीढि़यां चढ़ता हुआ वहां पहुंचा.

थोड़ा सा ढूंढ़ने पर मैं ने उन की पत्नी को एक कोने में मायूस गुमसुम बैठे देखा. मैं तेजी से उन के पास गया और उन का हाल पूछा. वह पहले तो मुझे अजनबियों की तरह देखती रहीं फिर याद आने पर मेरे साथ उठ कर एक तरफ आ कर फूटफूट कर रोने लगीं.

‘‘क्या हुआ. सब ठीक तो है न?’’ मैं थोड़ा चिंतित हो गया.

‘‘कुछ भी ठीक नहीं है. आप के जाने के बाद कई डाक्टर आए. कई टैस्ट किए फिर भी कमर से नीचे के हिस्से में कोई हरकत नहीं हो रही है. उन्हें रात को ही यहां शिफ्ट कर दिया गया था. बस, तब से यहीं बैठी हूं. क्या करूं…एकदम नया शहर और आते ही यह हादसा,’’  कह कर वह पुन: साड़ी का पल्लू मुंह में दबाए सिसकने लगीं. मेरी समझ में नहीं आ रहा था, मैं क्या कहूं.

सब से पहले मैं ने कैंटीन से चाय और बिस्कुट ला कर उन्हें दिए. लग रहा था जैसे रात से उन्होंने कुछ खाया नहीं है. उन के पास ही उन की 10 साल की बेटी बैठी हुई थी, जो थोड़ीथोड़ी देर में सहमे हुए मां का हाथ पकड़ लेती थी. उन के पास कुछ देर बैठ कर मैं डाक्टर से मिलने चला गया.

डाक्टर से पता चला कि उन की स्पाइनल कौर्ड में कोई गहरी चोट आई है जिस के कारण यह हादसा हुआ है. यह भी कह पाना मुश्किल है कि वह कब तक ठीक हो पाएंगे और ठीक भी हो पाएंगे या नहीं.

‘‘तो क्या यह उम्र भर यों ही पड़े रहेंगे,’’ मैं ने बेचैनी से पूछा.

‘‘अभी कुछ भी कहना संभव नहीं,’’ डाक्टर बोला, ‘‘कुछ विशेषज्ञ बुलाए हैं…शायद वे कुछ सलाह दे सकें.’’

‘‘तो आप उन्हें कब तक यहां आई.सी.यू. में रखेंगे?’’

‘‘ज्यादा से ज्यादा 3 दिन,’’ कह कर डाक्टर वहां से चला गया.

एक बीमा एजेंट होने के नाते उन की बीमारी के प्रति जानकारी रखना मेरे लिए स्वाभाविक बात थी. और तब ज्यादा जब सबकुछ मेरी आंखों के सामने हुआ.

कल दोपहर को आफिस जाते समय अचानक स्पीड ब्रेकर सामने आ गया तो मुझे तेजी से ब्रेक लगाने पड़े, क्योंकि स्पीड ब्रेकर ठीक से नहीं बना था. इतने में देखा कि एक तेज गति से आती वैन उस स्पीड ब्रेकर से टकराई और चलाने वाला व्यक्ति उछल कर बाहर जा गिरा. वैन सामने पेड़ से टकरा गई. यह हादसा मुझ से कुछ ही दूरी पर हुआ था.

मैं ने वहां जा कर उस व्यक्ति को  देखा जो मूर्च्छितावस्था में एक तरफ पड़ा हुआ था. मैं ने कुछ लोगों की सहायता से उसे एक आटोरिकशा में लिटाया और पास ही एक नर्सिंग होम में ले गया. उस व्यक्ति के सिर पर गहरी चोट का निशान था.

वहां मौजूद डाक्टरों को मैं ने पूरी घटना का विवरण दिया और उसे लिटा दिया. उस की जेब से एक परिचयपत्र निकला जिस पर उस के आफिस का पता और फोन नंबर लिखा था. पता चला कि वह एक सरकारी संस्थान में डिप्टी डायरेक्टर है और उस का नाम विनोद शर्मा है.

मैं ने उस संस्थान से उन के घर का फोन नंबर लिया और उन की पत्नी को इस हादसे के बारे में बताया. थोड़ी ही देर में वह वहां आ गईं. उन को सबकुछ बताने के बाद मैं ने उन से इजाजत मांगी. वह मन भर कर बोलीं, ‘‘मैं आप की बहुत शुक्रगुजार हूं कि आप ने इन्हें यहां तक पहुंचा दिया, वरना आज के व्यस्त जीवन में कौन ऐसा करता है.’’

‘‘अरे, यह तो मेरा फर्ज था. बस, यह ठीक हो जाएं तो समझूंगा कि मेरा लाना सफल हुआ.’’

‘‘एक मेहरबानी और कर दीजिए,’’ वह कहने लगीं, इन की गाड़ी किसी तरह घर पहुंचा दीजिए…जो भी खर्च आएगा, मैं दे दूंगी.’

‘‘ठीक है, मैम, अभी तो देखना होगा कि वह चलने लायक है या नहीं,’’ कह कर मैं ने अपने एक परिचित को वर्कशाप में फोन कर के गाड़ी को वहां से निकालने का इंतजाम किया. बीमा एजेंट होने के नाते यह सब काम करना, करवाना मैं अच्छी तरह जानता था.

इस सारी प्रक्रिया से निबट कर मैं जब घर पहुंचा तो 8 बज चुके थे. संगीता ने दरवाजा खोलते ही अपने चिरपरिचित स्वर में मुंह बना कर कहा, ‘‘तो आज क्या बहाना है देर से आने का?’’

इतना सुनना था कि मेरा मन  कसैला हो गया. उस का यह स्वभाव और व्यवहार सर्पदंश की तरह मुझे हर बार डंस जाता. मेरे विवाह को 4 साल हो चुके थे और इन 4 सालों में मैं ने कभी उस के मुंह से फूल झड़ते नहीं देखे. हमेशा किसी न किसी बात को ले कर वह ताने देती रहती थी.

शुरुआत में मैं ने बड़ी कोशिश की कि उस के पास बैठ कर कोई प्यार की बात कर सकूं. मगर हर बात मायके से शुरू हो कर मायके पर ही खत्म होती. बातों को तूल न देने के लिए मैं खामोश हो जाता और इस खामोशी का उस ने भरपूर फायदा उठाया.

हद तो तब हो गई जब मेरी सास और साली ने मुझ पर संगीता को खुश रखने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. उसे अच्छे कपडे़े, जेवर और घुमानेफिराने, घर जल्दी लौटने का सिलसिलेवार क्रम भी उन्होंने ही तय कर दिया. मैं हर बात का जवाब देना जानता था पर मर्यादाओं में रह कर और वह अमर्यादित हो चुकी थी.

‘‘यह बात तो तुम प्यार से भी पूछ सकती हो. पर मेरे किसी उत्तर से तुम संतुष्ट तो होगी नहीं इसलिए कोई बहाना नहीं बनाऊंगा,’’ मैं ने मेज पर अपना बैग रखते हुए बड़ी नरमी से कहा.

‘‘5 बजे तुम्हारा आफिस बंद हो जाता है और 7 बजे से पहले तुम कभी आते नहीं हो. सुबह भी 8 बजे चले जाते हो. तुम से तो मजदूर अच्छे होते हैं जिन का कोई समय तो होता है.’’

‘‘तो फिर किसी मजदूर से ही शादी कर लेतीं. वह तुम्हारे घर वालों के इशारों पर नाचता और समय पर आ भी जाता. तुम्हें अच्छी तरह मेरे काम और व्यक्तिगत संपर्क के बारे में पता है.’’

‘‘पता नहीं तुम्हारी कौन सी बात से प्रभावित हो कर पापा ने शादी के लिए हां कर दी. आज इस घर में जो कुछ भी है, पापा का दिया हुआ है वरना तुम तो उन के सामने खड़े भी नहीं हो सकते.’’

‘‘जानता हूं…तभी तो तुम्हारी मां से सारा दिन ताने और आदेश सुनने पड़ते हैं. सभी कुछ तो हमारे घर पर था. कमी किस बात की थी. तुम्हीं ने जिद कर के मुझे अलग कर दिया था. सुखसुविधाओं को जुटा लेने से भी कहीं गृहस्थी चलती है. पहले पति से नहीं बनी तो मेरे पल्ले बांध दिया…और यह बात भी हम से छिपा ली. तुम ने अलग किया है तो घरगृहस्थी के सामान की व्यवस्था भी तुम करोगी. मैं ने तो पहले ही कह दिया कि…’’

‘‘मेरे पास तो कुछ भी नहीं है. यही न. कौन से मांबाप अपनी बच्ची को ऐसी हालत में देख सकते हैं. तुम्हारे मांबाप ने क्या किया,’’ वह बात काट कर तेज आवाज में बोली

‘‘उन्होंने अपने इकलौते बेटे की जुदाई का गम सहन किया…’’ कहतेकहते मेरी आंखें भर आईं और मैं बिना कोई बात किए दूसरे कमरे में चला गया. मेरा मौन हमेशा कह देता कि शादी की कीमत चुका रहा हूं.

हमारी रातें यों ही करवटें बदलते निकल जातीं और सुबह बिना किसी बात के…मैं ने मन ही मन यह फैसला किया कि टकराव की स्थिति पैदा न होने देने के लिए कम से कम घर पर रहूं.

एक दिन उत्सुकतावश मैं ने शर्माजी को फोन किया. पता चला कि उन की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है. अब उन्हें एक बडे़ प्राइवेट नर्सिंग होम में शिफ्ट कर दिया गया है जहां पर ज्यादा सुविधाएं थीं. देश के कई बडे़ डाक्टर उन्होंने अपनी जांच के लिए बुलवाए पर कोई फायदा नहीं हुआ. मैं उसी समय उन के नर्सिंग होम में पहुंचा. उन की हालत देख कर मन कसैला सा हो उठा.

असुविधा के लिए खेद है – भाग 2 : जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

पहले जब वह अमेरिका पढ़ने गई थी तो इस लड़के से प्रेम हुआ. लड़के के

पिता जब बाद में चल बसे और लड़के की मां ने उसे यहां बुलावा भेजा तो लड़की ने भी लड़के के साथ आने का मन बनाया.

इस रशियन लड़की सेल्विना दास्तावस्की की मां नहीं रही. सौतेले पिता हैं, अब उस का यह ब्रौयफ्रैंड ही सबकुछ है. सेल्विना की आंखों में एक मधुर संभाषण और बालसुलभ कुतूहल देखा मैं ने. वाकई वह बहुत प्यारी और निश्चल थी. मुझे भा गई थी.

रात को जीजी घर आई तो मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘अचानक कैसे वहां ड्राइंग सीखने जाने लगी? कैसे पहचान हुई सेल्विना से तुम्हारी?’’

‘‘फेसबुक के मेरे नए प्रोफाइल पर.’’

‘‘तुम ने भेजी थी रिकवैस्ट?’’

‘‘तुझे क्या करना किस ने भेजी?’’

‘‘जीजी तुम सारी चीजों में उलझ कर रह गई, लेकिन जीजू के बारे में बिलकुल नहीं सोच रही. आखिर चाहती क्या हो? जीजू अकेले

क्यों रहें?’’

‘‘मैं ने उन से कहा तो है कोलकाता ट्रांसफर करा लें. नहीं, अपनी पैत्रिक संपत्ति छोड़ कर किराए के मकान में आना नहीं चाहते. मैं क्यों नहीं बड़े शहर में रहूं. पर तू यह बता तुझे क्यों इतनी फिक्र हो रही जीजू की?

‘‘जीजी.’’

‘‘चुप कर. ढीलेढाले पाजामे को मेरे गले बांध दिया. सभी ने मिल कर.. बैंक की नौकरी है… वह कोई मर्द है?’’

जीजी की बातें बड़ी चकित करने वाली थीं. मैं रात तक बेचैन रही.

वे मुझ से स्नेह रखते थे. जीजू की लाचारी मुझे खलने लगी. मैं ने उन्हें एक के बाद एक कई संदेश भेजे ताकि उन की खैरियत पता चल सके. कोई उत्तर न मिला मुझे तो मैं ने फोन मिला दिया. फोन उठाया गया, लेकिन कुछ पल कानाफूसी सी आवाजें आने के बाद फोन कट गया.

मुझे ऐसा क्यों लगा कि उस वक्त ऐसा कुछ था जो न  होता तो अच्छा था. कल की सुबह शनिवार की थी. जीजी अपना भलाबुरा समझ नहीं पा रही थी, मैं तो समझती थी. औफिस से

2 दिन की छुट्टी लेने की ठान मैं

सो गई.

कोलकाता से बस में 4-5 घंटे लगते थे जीजू के शहर पहुंचने में. रात को पहुंची तो मेन गेट खुला था.

बरामदे में पहुंच मैं ने दरवाजे पर हाथ रखा तो अंदर से बंद था. मुझे लग रहा था कोई दिक्कत जरूर है. मेरी छठी इंद्री ने काम शुरू किया और मैं ने बगीचे की तरफ खुल रही बैडरूम की खिड़की से हाथ अंदर कर धीरे से परदा हटा कर झंका.

दृश्य ने मुझे सदमे में डाल दिया. जीजू और उन की रसोई बनाने वाली रीना बिस्तर

पर साथ. यह क्या किया जीजू तुम ने. मुझे बहुत दुख हुआ. अभिमान और व्यथा से मैं तड़पने लगी. पर क्यों? क्या जीजी के लिए या और कुछ? मैं बरामदे में आ कर बैठ गई. क्या मैं माफ  कर दूं जीजू को? करना ही पड़ेगा. ठगा गया इंसान जीने की सूरत ढूंढ़ रहा है, थोड़ी देर में दरवाजा खोल रीना निकली. मुझे देख उस का चेहरा सफेद पड़ गया. किसी तरह नमस्ते किया और सरपट निकल गई.

मुझे देख जीजू सकपका गए. अपना सिर नीचे कर लिया. मैं अभी कुछ कहती कि वे

बोल पड़े, ‘‘ईशा, मैं तुम्हारे परिवार का गुनहगार हूं. प्रभा को कितने संदेश भेजे… न ही जवाब दिया, न ही आई. मुझ से अकेलापन बरदाश्त नहीं हो रहा था. रीना के पति का शराब पीपी कर लिवर खराब हो गया है, उसे पैसों की जरूरत

थी. सच तो यह है कि हम दोनों ही कंगाली में थे. वह गरीब है, दुखी है, मैं ने उसे संभाला, उस ने मुझे.’’

यथासंभव खुद के साथ लड़ते हुए मैं ने उन का हाथ अपने हाथों में लिया, ‘‘क्या फिर भी आप ने यह ठीक किया? जीजी को छोड़ो, कभी भी आप ने मुझे जानने की कोशिश नहीं की.’’

जीजू उम्मीद भरी आंखों से मुझे देखने लगे.

‘‘क्या कोई 10 बार यों ही किसी को संदेश भेजता है? आप के लिए शरीर ही सबकुछ है? मेरा संदेश आप की खैरियत के बारे में होता है, लेकिन इस के पीछे की कोई बात…’’

जीजू ने मेरे होंठ अपने होंठों से सिल दिए.

‘‘मैं कल्पना कैसे करूं कि आसमान का सूरज आ कर कहे कि मैं सिर्फ तुम्हारा हूं,’’

जीजू ने कहा मैं अपने आप को रोक नहीं पाई.

उन के गले लग पड़ी. और हम भावनाओं में, अनुभूतियों में, प्रेम के आकंठ अणृतवर्षा में डूब चुके थे.

‘‘ईशा. क्या सच ऐसा कभी हो सकेगा कि तुम हमेशा के लिए मेरी हो जाओ?’’

‘‘और रीना?’’ मैं ने छेड़ा.

‘‘कभी नहीं, विदा कर दूंगा उसे, माफ कर दो मुझे.’’

‘‘फिर तो यह आप पर है. लेकिन मैं मोटा जो हूं? तुम इतनी स्लिम और सुंदर?’’

‘‘उफ्फ. आप का यह भोलापन, सादगी, मेरी जान लेगा. कौन कहता है आप मोटे हो. बस इतने मोटे हो कि तीन महीने की जिम ट्रेनिंग और डायट सही कर आप बिलकुल फिट लगोगे. और वो सारा कुछ मैं इंतजाम करवा दूंगी.’’

‘‘शुक्रिया मेरे तनमनधन से तुम्हारा शुक्रिया. मैं विश्वास नहीं कर पा रहा हूं कि कंगाल को राजपाट मिल गया है.’’

आज जीजू और मैं दोनों हवा से हल्के और समुद्र से भी गहरे हो गये थे.

जब लोटी तो देखा कि चार दिनों में ही जीजी में और भी बदलाव दिखे. अब वह बिलकुल मौर्डन स्टाइलिश लड़की थी, साड़ी से तो अब दूरदूर का नाता नहीं था. उस का घर आते ही अपने स्मार्टफोन में बिजी हो जाती. उस के बदलाव में कुछ और भी बात थी.

मैं ने जीजू यानी निहार से बात की और अपने मम्मीपापा को कुछ दिनों के लिए वहां छोड़ आई. तीनों को आपस में साथ रह कर एकदूसरे को समझने समझने का मौका मिले और इधर जीजी के दिमाग में शतरंज के प्यादे किसकरवट बैठ रहे हैं उस का भी मैं पता लगा पाऊं.

मम्मीपापा को निहार के पास छोड़ने जा रही थी तो जीजी से अपनी वापसी का जो दिन बताया था, उस के एक दिन पहले ही पहुंच गई मैं घर. घर की चाबी मेरे पास भी थी. मैं अंदर पहुंची तो आशा के मुताबिक जीजी फोन पर किसी से लगी पड़ी थी, ‘‘आज ही मिलो, तुम्हारी सेल्विना के साथ मैं लगभग गृहस्थी ही बसा चुकी. तुम जानते हो पेंटिंग्स की वजह से मैं तुम से जुड़ी, तुम पेंटिंग्स ग्राफिक्स का काम करते हो, और कहा भी था तुम ने कि तुम मेरे लिए वे सबकुछ करोगे जिस से मेरी पेंटिंग्स को पहचान मिले. लेकिन तुम ने तो मुझे गर्लफ्रैंड के हवाले कर दिया और भूल गये. क्या मैं तुम्हारी कुछ

भी नहीं.

‘‘कुछ भी नहीं सुनूंगी आज. मैं तुम्हें बुरी तरह मिस कर रही हूं, कल ईशा आ जाएगी वापस. आज रात सेल्विना को कोई बहाना बता कर मेरे पास आओ.’’

सारी बातें सुन कर फिर मेन दरवाजा बंद कर मैं बाहर आ गई.

असुविधा के लिए खेद है – भाग 1 : जीजाजी को किसके साथ देखा था ईशा ने

‘‘मेरीनानी की चचिया सास की बेटी के बेटे ने मेरी बहन से शादी करने को इनकार किया? मेरी बहन से? क्या कमी है तुझ में? मैं उसे छोड़ूंगी नहीं. मैं ने कहा था इस रिश्ते के लिए. मुझे मना करेगा? 2-4 बार उस से इस बाबत पूछ क्या लिया, कहता है कि आप मेरे

पीछे क्यों पड़ी हैं? उस की इतनी हिम्मत?

मुंबई पढ़ने गया था तो प्राइवेट होस्टल में रहने के लिए कैसे मेरी जानपहचान का फायदा लिया.

अब विदेश में नौकरी हो गई, अच्छी सैलरी

मिल गई तो मेम भा रही है उसे. मुझे इनकार. बताऊंगी उसे.’’

‘‘अरे जीजी छोड़ न. मुझे ऐसे भी पसंद नहीं था वह. तुम भी तो हाथ धो कर उस के पीछे पड़ी थी, सभ्य तरीके से मना करने के बाद भी जब तुम साथ नहीं रही थी, तभी उस ने कहा ऐसा. बात समझेगी नहीं तो क्या करे वह और तब जब पहले से ही वह किसी के प्यार में है. अब तो मैं ने भी जौब जौइन की है, कहां उस के साथ विदेश जाऊंगी. फिर मांपिताजी की तबीयत भी ऐसी कि उन्हें अकेला छोड़ा न जाए.’’

‘‘तू चुप कर. रिश्ता सही था या नहीं यह अलग बात है, पर मेरी बात को वह टालने वाला होता कौन है? आज तक किसी ने बात नहीं

टाली मेरी.’’

‘‘अरे जीजी गुस्सा क्यों होती है जब मुझे करनी ही नहीं थी शादी?’’

‘‘तु चुप करे. एक मेम के लिए मुझे ‘न’ कहा. मैं छोड़ूंगी नहीं उसे और तेरे लिए तो कभी लड़का न देखूं. कुंआरी ही रह.’’

‘‘दीदी क्यों खून जलाती है अपना? देखो 30 साल की उम्र में ही तुम कितनी चिड़चिड़ी

हो गई हो. वीपी हाई हो जाएगा. बीमार पड़ोगी

तो कंसीव नहीं कर पाओगी. जीजू कुछ कहते नहीं तुम्हें?’’

‘‘तु चुप कर. क्या कहेगा वह? उस की मम्मीपापा के भरोसे चलती थी उस की जिंदगी, अब दोनों गए ऊपर तो मेरा ही मुंह ताकता है. औफिस से घर और घर से औफिस, आता ही क्या है उसे? मुझे कहेगा?’’

जीजी को लगता कि दुनियाजहान का सारा भार जीजी के ही कंधों पर है. पहले हम दोनों

का साझ कमरा था. 3 साल हुए इधर जीजी की शादी हुई और दादादादी भी इहलोक सिधार गए. तब से उन लोगों का कमरा जीजी के नाम किया गया है.

ज्यादातर जीजी अपने भोलेभाले जरा गोलमटोल पति को रसोइए के जिम्मे छोड़ यहां आ जाती. यहां हम सब पर राज करने की पुरानी आदत उस की गई नहीं थी. जीजी के कमरे से फोन पर बात करने की आवाजें आ रही थीं.

‘‘क्यों, छोड़े क्यों? ऐसे ही छोड़ दें? निकालती हूं हवा उस की.’’

उधर शायद जीजी की वह सहेली थी जिन के पति वकील थे. बात नहीं बनी शायद. जीजी ने फोन रख दिया.

बड़ी उतावली हो वह ऐसे किसी सज्जन

को ढूंढ़ रही थी जो जीजी की बात न मान कर जीजी को अपमानित करने वाले दुर्जन की हवा निकाल सके. कौन मिलेगा ऐसा. जीजी सोच में पड़ी थी.

मैं जीजी के कमरे में गई. उसे शांत करने का प्रयास किया, ‘‘जीजी, यह कोई इशू नहीं

है, तुम ईगो पर क्यों लेती हो? तुम अब इस प्रकरण को बंद करो. मुझे नहीं करनी थी कोई शादी… अभी बहुत जल्दीबाजी होगी शादी की बात करना.’’

‘‘मत कर शादी. मैं तेरे लिए लड़ भी नहीं रही. मेरी बात टाल जाए, मुझ से ही काम निकाल कर वह भी विदेशी मेम के लिए? यह गलत है. मैं होने नहीं दूंगी.’’

‘‘बड़ी अडि़यल और बेतुकी है जीजी.’’

‘‘हूं. तुझे उस से क्या तू अपने काम से

काम रख.’’

इस के 2 दिन बाद शाम को जीजी अपना फोन लाई. मुझ से कहा इन तसवीरों में सब से अच्छी वाली कौन सी है?

‘‘क्यों?’’

‘‘तु बता न.’’

‘‘यह वाली. मगर यह तो 4 साल पुरानी तसवीर है, करोगी क्या इस का?’’

‘‘एक दूसरी एफबी प्रोफाइल खोल कर उस में मेरी सारी पुरानी पेंटिंग्स डालूंगी.’’

‘‘अरे वाह. सच जीजी. यह हुई न बात. यह प्लान बढि़या है.’’

जीजी ने नया प्रोफाइल खोला और अपनी पुरानी पेंटिंग्स की तसवीरें खींच कर उस में डालती रही. वैसे समझ नहीं पाईर् कि पेंटिंग्स पुराने एफबी प्रोफाइल में क्यों नहीं डालीं? जीजी को यहां आए 20 दिन तो हो ही चुके थे. जीजू के लिए हम सब को चिंता होती. वहां अकेले उन्हें दिक्कत होती थी. लेकिन जीजी से इस बारे में कुछ कहो तो उस का उत्तर होता, ‘‘हांहां, मैं तो हूं ही पराई. अब तू ही यहां राज कर. यहां रहने के खर्च देने पड़ेगा क्या? यह मेरा भी घर है. मेरा इस पर हक है.’’

महीनाभर हो गया तो जीजू ही आ गए. मुहतरमा ने वापस जाने को ठेंगा दिखा दिया. जीजू वापस चले गए. जीजी को लगातार फोन पर व्यस्त देखती. कोलकाता के जिस मार्केटिंग एरिया में हम रहते हैं वहां शाम होते ही बाजार और दुकानों में गहमागहमी रहती है. पहले जीजी के  साथ अकसर मैं भी मार्केटिंग को निकला करती थी. लेकिन अब तो जीजी का फोन ही सबकुछ था. कुछ दिनों बाद जीजी ने निर्णय सुनाया कि वह एक जगह पेंटिंग्स सिखाने को जाना चाहती है. कह दिया और शुरू हो गई.

जीजू के लिए वाकई मैं चिंतित थी. एक सीधासरल इंसान इस तरह बेवजह रिश्ते की उलझन में फंस जाए. अफसोस की बात थी. जीजू को एक दिन मैं ने फोन किया और उन से जीजी के बारे में बातें कीं.

‘‘मैं क्या कह सकता हूं? मेरी बातों को वह मानती नहीं, न ही इन 3 सालों में उस का अपनों से कोई लगाव देखा.

‘‘दुनिया रुकती नहीं है ईशा, मेरी भी दुनिया चल रही है. उसे मेरी फिक्र नहीं है… कुछ बोलूं तो खाने को दोड़ती है…’’

जीजी पार्क स्ट्रीट के ड्राइंग पेंटिग स्कूल में क्लास लेने जाने लगी थी. जीजी ने एक विदेशी बाला से मिलवाया. 26-27 की होगी. गोल्डन बालों में वह एशियन लड़की भारतीय सलवार सूट बड़े शौक से पहने थी.

जीजी ने इंग्लिश में परिचय कराया तो रशियन लड़की मुझ से गले मिली. फिर उस ने टूटीफूटी हिंदी में जो भी कहा उस का सार यही था कि वह अपने होने वाले पति के लिए सब छोड़ आईर् थी. लड़का अभी कोलकाता के किसी मल्टीनैशनल ग्राफिक्स डिजाइनिंग ऐंड कंपनी में काम करता है

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