शादी से पहले शारीरिक संबंध, सावधानी है जरूरी

आजकल लगभग सभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में पाठकों की समस्याओं वाले स्तंभ में युवकयुवतियों के पत्र छपते हैं, जिस में वे विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बना लेने के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान पूछते हैं. विवाहपूर्व प्रेम करना या स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाना कोई अपराध नहीं है, मगर इस से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विचार अवश्य करना चाहिए. इन बातों पर युवकों से ज्यादा युवतियों को ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में उन्हें दिक्कतों का सामना न करना पड़े :

विवाहपूर्व शारीरिक संबंध भले ही कानूनन अपराध न हो, मगर आज भी ऐसे संबंधों को सामाजिक मान्यता नहीं है. विशेष कर यदि किसी लड़की के बारे में समाज को यह पता चल जाए कि उस के विवाहपूर्व शारीरिक संबंध हैं तो समाज उस के माथे पर बदचलन का टीका लगा देता है, साथ ही गलीमहल्ले के आवारा लड़के लड़की का न सिर्फ जीना दूभर कर देते हैं, बल्कि खुद भी उस से अवैध संबंध बनाने की कोशिश करते हैं.

युवती के मांबाप और भाइयों को इन संबंधों का पता चलने पर घोर मानसिक आघात लगता है. वृद्ध मातापिता कई बार इस की वजह से बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें दिल का दौरा तक पड़ जाता है. लड़की के भाइयों द्वारा प्रेमी के साथ मारपीट और यहां तक कि प्रेमी की जान लेने के समाचार लगभग रोज ही सुर्खियों में रहते हैं. युवकों को तो अकसर मांबाप समझा कर सुधरने की हिदायत देते हैं, मगर लड़की के प्रति घर वालों का व्यवहार कई बार बड़ा क्रूर हो जाता है. प्रेमी के साथ मारपीट के कारण लड़की के परिवार को पुलिस और कानूनी कार्यवाही तक का सामना करना पड़ता है.

अधिकतर युवतियों की समस्या रहती है कि उन्हें शादीशुदा व्यक्ति से प्यार हो गया है व उन्होंने उस से शारीरिक संबंध भी कायम कर लिए हैं. शादीशुदा व्यक्ति आश्वासन देता है कि वह जल्दी ही अपनी पहली पत्नी से तलाक ले कर युवती से शादी कर लेगा, मगर वर्षों बीत जाने पर भी वह व्यक्ति युवती से या तो शादी नहीं करता या धीरेधीरे किनारा कर लेता है. ऐसे किस्से आजकल आम हो गए हैं.

इस तरह के हादसों के बाद युवतियां डिप्रेशन में आ जाती हैं व नौकरी छोड़ देती हैं. इस से उबरने में उन्हें वर्षों लग जाते हैं. कई बार युवक पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी कर लेते हैं. मगर याद रखें, ऐसी शादी को कानूनी मान्यता नहीं है और बाद में बच्चों के अधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है जिस का फैसला युवती के पक्ष में आएगा, इस की संभावना बहुत कम रहती है.

शारीरिक संबंध होने पर गर्भधारण एक सामान्य बात है. विवाहित युवती द्वारा गर्भधारण करने पर दोनों परिवारों में खुशियां मनाई जाती हैं वहीं अविवाहित युवती द्वारा गर्भधारण उस की बदनामी के साथसाथ मौत का कारण भी बनता है.

अभी हाल ही में मेरी बेटी की एक परिचित के किराएदार के घर उन के भाई की लड़की गांव से 11वीं कक्षा में पढ़ने के लिए आई. अचानक एक शाम उस ने ट्रेन से कट कर अपनी जान दे दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि लड़की गर्भवती थी. उसे एक अन्य धर्म के लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने शारीरिक संबंध कायम कर लिए, मगर जब लड़के को लड़की के गर्भवती होने का पता चला तो वह युवती को छोड़ कर भाग गया. अब युवती ने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. ऐसे मामलों में अधिकतर युवतियां गर्भपात का रास्ता अपनाती हैं, लेकिन कोई भी योग्य चिकित्सक पहली बार गर्भधारण को गर्भपात कराने की सलाह नहीं देगा.

अधिकतर अविवाहित युवतियां गर्भपात चोरीछिपे किसी घटिया अस्पताल या क्लिनिक में नौसिखिया चिकित्सकों से करवाती हैं, जिस में गर्भपात के बाद संक्रमण और कई अन्य समस्याओं की आशंका बनी रहती है. दोबारा गर्भधारण में भी कठिनाई हो सकती है. अनाड़ी चिकित्सक द्वारा गर्भपात करने से जान तक जाने का खतरा रहता है.

युवती का विवाह यदि प्रेमी से हो जाता है तब तो विवाहोपरांत जीवन ठीकठाक चलता है, मगर किसी और से शादी होने पर यदि भविष्य में पति को किसी तरह से पत्नी के विवाहपूर्व संबंधों की जानकारी हो गई तो वैवाहिक जीवन न सिर्फ तबाह हो सकता है, बल्कि तलाक तक की नौबत आ सकती है.

विवाहपूर्व शारीरिक संबंधों में मुख्य खतरा यौन रोगों का रहता है. कई बार एड्स जैसा जानलेवा रोग भी हो जाता है. खास बात यह है कि इस रोग के लक्षण काफी समय तक दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन बाद में यह रोग उन के पति और होने वाले बच्चे को हो जाता है. प्रेमी और उस के दोस्तों द्वारा ब्लैकमेल की घटनाएं भी अकसर होती रहती हैं. उन के द्वारा शारीरिक यौन शोषण व अन्य तरह के शोषण की आशंकाएं हमेशा बनी रहती हैं.

युवती का विवाह यदि अन्यत्र हो जाता है और वैवाहिक जीवन ठीकठाक चलता रहता है, घर में बच्चे भी आ जाते हैं, लेकिन यदि भविष्य में बच्चों को अपनी मां के किसी दूसरे पुरुष से संबंधों के बारे में पता चले तो उन्हें गंभीर मानसिक आघात पहुंचेगा, खासकर तब जब बच्चे टीनएज में हों. मां के प्रति उन के मन में घृणा व उन के बौद्धिक विकास पर भी इस का असर पड़ता है.

इन संबंधों के कारण कई बार पारिवारिक, सामाजिक व धार्मिक विवाद व लड़ाईझगड़े भी हो जाते हैं, जिन में युवकयुवती के अलावा कई और लोगों की जानें जाती हैं. इस के बावजूद यदि युवकयुवती शारीरिक संबंध बना लेने का निर्णय कर ही लेते हैं, तो गर्भनिरोधक विशेषकर कंडोम का प्रयोग अवश्य करें, क्योंकि इस से गर्भधारण व यौन संक्रमण का खतरा काफी हद तक खत्म हो जाता है.

रिलेशनशिप में सेक्स है बहुत जरूरी, पर रखें ध्यान

संबंधों में एक-दूसरे का साथ बेहद जरूरी है. आपसी संबंधों में जहां एक साथी का दूसरे साथी से मानसिक जुड़ाव होता है ऐसे में शारीरिक देह को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. मानसिक जुडा़व के साथ-साथ शारीरिक जुड़ाव भी संबंधों में मधुरता लाता है. पति-पत्नी के संबंधों में सेक्स का अपना अलग महत्व है. न सिर्फ पति-पत्नी बल्कि वैवाहिक जीवन में सेक्स का महत्व बहुत अधिक होता है.

इससे पति-पत्नी न सिर्फ एक-दूसरे के नजदीक रहते हैं बल्कि सेक्स संबंधों में खटास को भी दूर करता है. जिस प्रकार जीवन में भोजन की आवश्यकता होती है, ठीक उसी तरह से वैवाहिक जीवन में सेक्स की आवश्यकता होती है. आइए जानते हैं संबंधों में सेक्स के महत्व के बारे में.

सही मायने में सेक्स सिर्फ भौतिक सुख ही नहीं बल्कि मानसिक सुख भी देता है, इसके साथ ही ये तनाव दूर करने में भी बहुत कारगर है. सेक्स के माध्यम से ही पति-पत्नी के संबंधों में भावनात्मक जुड़ाव अधिक दिखाई देता है.

सेक्स न करने के कारण पति और पत्नी दोनों के मन में ही ये भावना पनपने लगती है कि उनका पार्टनर उन्हें प्यार नहीं करता. जिससे घर में छोटे-छोटे कलेश भी भयंकर रूप ले लेते हैं.

पुरूषों के मन में संबंधों में खटास की बात तभी आती है, जब वो अकेले बैठकर अपनी सेक्सुअल लाइफ के बारे में सोचते हैं.

यदि पती-पत्नी  के बीच सेक्सुअल रिलेशन अच्छे होंगे तो परिवार में भी सुख-शांति होगी.

संबंधों में सेक्स की महत्ता को बरकरार रखने के लिए कुछ टिप्स

– हर समय पत्नी से सेक्स, संभोग इत्यादि की बात न करें नहीं तो इससे ऊब हो सकती हैं या फिर हमेशा ही संभोग के लिए तैयार न रहें बल्कि ओरल सेक्स भी कई बार मानसिक शांति देता है.

– अपने साथी के करीब खुशी-खुशी जाएं किसी तरह का कोई तनाव न रखें.

– करीब आने पर सिर्फ एक-दूसरे के बारे में ही बात करें किसी तीसरे व्यक्ति को अपने बीच न लाएं.

– जब भी अपने साथी के पास जाएं साफ-सुथरे रहें नहीं तो आपके साथी का मूड खराब हो सकता है.

– जरूरी नहीं कि एक ही पार्टनर हमेशा पहल करें, कभी-कभी दूसरा पार्टनर पहल करेगा तो संबंधों में प्रगाढ़ता बढ़ेगी.

– यदि किसी बात को लेकर तनाव हो गया था तो सेक्स के दौरान उन बातों का जिक्र बिल्कुल न करें जिससे आपका साथी नाराज हो गया था.

– पति-पत्नी का केवल अपने बिस्तर पर एक साथ सोना और सेक्स करना ही वैवाहिक जीवन नहीं कहलाता बल्कि उन दोनों के बीच एक-दूसरे के प्रति संपूर्ण समर्पण की भावना होना तथा संतुष्टि प्राप्त होना भी जरूरी होता है.

– पति-पत्नी किसी में भी सेक्स से संबंधित कोई दोष है तो उसका उपचार ठीक प्रकार से करना चाहिए ताकि अपने संबंध को गहरा बनाया जा सके.

– पति-पत्नी दोनों को वैवाहिक जीवन में सेक्स के महत्व को ठीक प्रकार से समझना चाहिए क्योंकि इसके बिना उनका वैवाहिक संबंध गहरा नहीं हो सकता है. विवाहित जीवन सुखी, संतुलित और आनंदपूर्ण बना रहे इसके लिए पति-पत्नी को चाहिए कि वह सेक्स के ज्ञान को ठीक प्रकार से समझ लें.

सैक्स में जल्दी पस्त

रमेश और प्रदीप बहुत अच्छे दोस्त थे. रमेश की शादी पहले हो गई थी. उस के बाद प्रदीप की शादी हुई. दोनों के बीच पतिपत्नी के आपसी संबंधों पर भी बात होती थी. इन में सब से बड़ा मुद्दा पत्नी के साथ सैक्स का होता था. इस में भी सब से हौट टौपिक यह होता था कि सैक्स में कितना समय लगता है. दोस्त होने के चलते वे दोनों खुल कर बात कर लेते थे.

एक दिन प्रदीप ने कहा, ‘‘यार, मेरा तो कई बार जल्दी ही डिस्चार्ज हो जाता है. अब तो पत्नी भी थोड़ा अलग तरह से सोचने लगी है. मैं ने कई जगह पढ़ा, सुना और देखा कि लोग लंबेलंबे समय तक संबंध बनाते हैं. जल्दी डिस्चार्ज नहीं होते. मैं ने सोचा कि क्यों न तुम से ही पूछ लिया जाए. तुम्हारी शादी को तो काफी समय हो गया है.’’

इस पर रमेश बोला, ‘‘दोस्त, यह सबकुछ आपसी तालमेल और अनुभव पर निर्भर करता है. इस को ऐसे समझो कि जैसे बचपन में साइकिल चलाना सीखते हैं तो पहले गिरते हैं, फिर संभलते हैं, तब कहीं जा कर अच्छी साइकिलिंग कर पाते हैं.

‘‘शादी के बाद पतिपत्नी दोनों को अनुभव कम होता है. ऐसे में कई बार नाकामी हाथ लगती है. आदमी जल्दी पस्त हो जाता है, जिसे शीघ्रपतन भी कहते हैं. पत्नी का सहयोग इस परेशानी को दूर करने का सब से अच्छा रास्ता होता है. यह कोई बीमारी नहीं है. यह तजरबे की कमी होती है.’’

शीघ्रपतन केवल प्रदीप की समस्या नहीं है. ऐसे तमाम नौजवान हैं, जो यह मानते हैं कि सैक्स में वे जल्दी पस्त हो जाते हैं. ऐसे लोग कई बार मानसिक रोग के शिकार हो जाते हैं. उन्हें लगता है कि वे सैक्स में अपने साथी को संतुष्ट नहीं कर सकते हैं. यह सोच जब दिमाग पर हावी होती है, तो परेशानी और ज्यादा बढ़ जाती है.

जल्दी पस्त होने की वजह
लखनऊ के डाक्टर जीसी मक्कड़ कहते हैं, ‘‘सैक्स आपसी तालमेल और अनुभव पर ही सुंतष्टि देता है. शीघ्रपतन के कई कारण होते हैं. इस के लिए जरूरी है कि पहले उस के लक्षणों को पहचाना जाए और उस के अनुसार इलाज किया जाए. कई बार केवल समझाने से ही समस्या का समाधान हो जाता है. अगर दिक्कत शारीरिक है, तो उस का अलग इलाज होता है.’’

30 से 40 फीसदी लोग इस परेशानी से पीड़ित हैं. जल्दी पस्त होने के कारणों में तनाव, अवसाद, शारीरिक कमजोरी, स्तंभन दोष यानी नपुंसकता प्रमुख होते हैं. शारीरिक कारण जैसे ब्लड प्रैशर में बढ़ोतरी, मधुमेह, थायराइड की समस्या या प्रोस्टैट रोग आदि भी हो सकते हैं.

दिमागी कारणों में शुरुआती यौन अनुभव, यौन शोषण, शीघ्रपतन की चिंता करना, गलत सोच, जो हस्तमैथुन को बढ़ावा देती है, शराब या नशीली दवाओं का सेवन और नींद न आना भी शामिल हैं. हस्तमैथुन के कारण भी कई बार जल्दी स्खलन हो जाता है.

खानपान और खराब जीवनशैली के कारण भी यह परेशानी होती है. खानपान की आदत का खराब होना, उचित मात्रा में समय पर भोजन न करना, विटामिन की कमी होना, पाचन तंत्र कमजोर होना और लगातार पेट खराब रहना, लंबे समय तक कब्ज रहना और खून व भूख की कमी से हार्मोन बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं, जिस से शरीर में वीर्य कम मात्रा में बनता है. अंग की नसें सिकुड़ जाती हैं, जिस से वीर्य का स्खलन जल्दी हो जाता है.

कैसे जानें यह होता है
सैक्स के दौरान समय से पहले वीर्य का जल्दी निकल जाना शीघ्रपतन कहलाता है. इसी को जल्दी पस्त होना कहते हैं. इस में अंग के योनि में प्रवेश के समय ही स्खलन होने लगता है. कई बार यह 1-2 बार अंग के प्रवेश पर ही हो जाता है. इस से कई तरह की परेशानियां होने लगती हैं.

आत्मग्लानि, हीनभावना, असंतुष्ट होना और नैगेटिव सोच मन में भर जाती है. लोग अपने को कमजोर समझने लगते हैं. उन्हें लगता है कि साथी उन को छोड़ कर कहीं और जा सकता है.

कई बार बढ़ती उम्र की वजह से अंग की नसें कमजोर व ढीली हो जाने से उस में ढीलापन आ जाता है. इस वजह से यह वीर्य को रोके रखने में कामयाब नहीं होता और शीघ्रपतन हो जाता है.

शीघ्रपतन की परेशानी केवल मर्दों में होती है. औरतों को यह नहीं होता है. शीघ्रपतन का कोई निश्चित मापदंड नहीं है. यह हर इनसान के मानसिक और शारीरिक हालात पर निर्भर होता है.

समझदारी से लें काम
ज्यादातर लोग ब्लू फिल्में देखने, किताबों में गलत जानकारी पढ़ने से यह मान लेते हैं कि वे जल्दी पस्त हो जाते हैं. ब्लू फिल्मों में जो दिखाया जाता है, वह सच नहीं होता. वे फिल्में होती हैं और उन में दिखाए जाने वाले ऐक्टर होते हैं. ऐसे में उन से तुलना करना ठीक नहीं होता है.

कई जगहों पर नीमहकीम यह बताते हैं कि स्वप्नदोष और हस्तमैथुन के चलते लोग सैक्स में जल्दी पस्त हो जाते हैं, जो कि गलत सोच है.

आपसी सहयोग और समझदारी से जल्दी पस्त होने की परेशानी से बचा जा सकता है. सैक्स करने से पहले उस की तैयारी करें, जिसे फोरप्ले कहते हैं. साथी से यह जानने की कोशिश करें कि उसे क्या पसंद है.

सैक्स में जल्दबाजी न करें. सैक्स के लिए ऐसी जगह हो, जहां किसी तरह की असुरक्षा का माहौल न हो. इस तरह से जल्दी पस्त होने की परेशानी से बचा जा सकता है.

सैक्स स्प्रे : दे मजबूती चरम तक

अच्छा सैक्स पार्टनर वही है, जो दूसरे को चरम तक पहुंचाए, लेकिन कई मर्द पहले ही ढेर हो जाते हैं. ऐसे में सैक्स स्प्रे आप की मदद कर सकता है.

अकसर कई लोगों के दिमाग में यह सवाल चलता रहता है कि पोर्न फिल्मों में दिखाए गए मर्द इतनी ज्यादा देर तक लगातार सैक्स कैसे कर लेते हैं? वे अपनी कल्पना के घोड़ों को दौड़ाते हैं और सोचते रहते हैं कि इतने लंबे समय तक सैक्स करने से उन्हें अच्छाखासा टाइम मिल जाता है और वे सैक्स की हर पोजीशन को ऐंजौय कर पाते हैं.

सैक्स एक ऐसा मुद्दा है, जिस में आम आदमी पोर्न फिल्मों से तो सैक्स की अलगअलग पोजीशन सीख लेते हैं और मन में अपनी पार्टनर के साथ उसी तरह की सैक्स पोजीशन ट्राई करने को मन उबाल मार रहा होता है, पर जब बात सच में अपनी पार्टनर के साथ बिस्तर पर समय बिताने की आती है, तो मुश्किल से 2 मिनट भी टिक नहीं पाते और जल्दी पस्त हो जाते हैं.

उत्तर प्रदेश के 34 साल के मिथिलेश कुमार की भी कुछ ऐसी ही कुंठाएं थीं. पहले पढ़ाई, फिर कमाईधमाई की जद्दोजेहद में शादी देर से हुई. 30 साल का हुआ, परिवार को पालने लायक बना तो शादी की.

सैक्स को ले कर मिथिलेश के मन में कई अरमान थे कि पत्नी के साथ ऐसे होगा, वैसे होगा. दोस्तों से भी टिप्स लीं, पोर्न साइट पर सैक्स पोजीशन खूब देखीं. शादी से 2 महीने पहले दूध में हलदी डाल कर खूब पिया, पर शादी की रात वह पत्नी के सामने जल्दी ढेर हो गया. उसे पता चला कि उस की माइलेज इतनी नहीं है. उस के अंग का तनाव 15-20 सैकंड में ही ढीला पड़ गया.

मिथिलेश को पहले यह शादी की घबराहट जैसा लगा, लेकिन बाद में भी उस का काम बहुत जल्दी हो जाता, जबकि पत्नी अभी शुरू भी नहीं हो पाती थी. इस से उसे लगा कि वह सैक्स में अच्छा नहीं है.

मिथिलेश जैसे कई मर्दों के मन में यह चीज ठहर जाती है और वे तनाव महसूस करने लगते हैं. इस तनाव में वे सैक्स को ले कर और ज्यादा भ्रमित करने वाली चीजों का इस्तेमाल करने लगते हैं.

कई तो नीमहकीम के चक्कर लगाने शुरू कर देते हैं और अपनी जेब कटवा रहे होते हैं. सही जानकारी की कमी में वे गलत तरीके अपनाने लगते हैं और आखिर में होता यह है कि वे अपनी सैक्स लाइफ ही बरबाद कर बैठते हैं.

हर मर्द चाहता है कि वह सैक्स के दौरान लंबे समय तक टिक सके या सैक्स का लंबे समय तक मजा उठा सके. वैसे तो सैक्स में आधा काम साइकोलौजी यानी मन के विज्ञान का होता है यानी मन पर काबू कर के सही टाइमिंग से सैक्स का मजा उठाया जा सके, जैसे लंबे समय तक सैक्स के लिए कहां और कैसे ऊर्जा खर्च करनी है, कितना फोरप्ले करना है, कब इंटरकोर्स करना है और उस दौरान कब खुद पर काबू पाना है वगैरह.

पर अगर ऐसा न हो पाए तो? इस के लिए बाजार में ऐसे बहुत से प्रोडक्ट हैं, जिन से सैक्स का ज्यादा समय तक मजा उठाया जा सकता है. बस समस्या आती है सही जानकारी की कि ऐसे प्रोडक्ट हैं कौन से और इन का इस्तेमाल कैसे किया जाए. बहुत से लोगों को सही प्रोडक्ट मिल भी जाते हैं, पर वे उन का इस्तेमाल ठीक से नहीं कर पाते हैं, जिस के चलते बात वहीं की वहीं आ ठहरती है.

ऐसे में हम बताएंगे कि अंग को लंबे समय तक तनाव में रखने वाले वे प्रोडक्ट, जिन से अच्छे सैक्स का मजा उठाया जा सके.

बहुत से लोग लंबी सैक्स ड्राइव के लिए सिर्फ वियाग्रा गोली को ही जानते हैं. चूंकि यह गोली होती है, जिसे निगलना होता है, तो बहुत से लोग घबराते हैं कि कहीं इस के साइड इफैक्ट न हो जाएं. निराश मत होइए, क्योंकि बाजार में ऐसे बहुत सारे सैक्स स्प्रे हैं, जिन का इस्तेमाल खूब होता है.

क्या है सैक्स स्प्रे

कई मर्द अपनी सैक्स टाइमिंग बढ़ाना चाहते हैं, क्योंकि लंबे समय तक सैक्स करने से चरमसुख मिलता है. यह औरत साथी को काफी अच्छा लगता है.

हर मर्द यह चाहता है कि सैक्स के दौरान उस की पार्टनर उस से संतुष्ट हो, क्योंकि सैक्स का मजा तभी दोगुना होता है, जब सैक्स के दौरान दोनों पार्टनर एकदूसरे में खो जाएं, इसलिए अपनी पार्टनर को खुश करने के लिए मर्द इस तरह के स्प्रे का इस्तेमाल कर सकते हैं.

यह स्प्रे मर्दों के लिए बनाया गया है. अगर आप सैक्स दवाएं खाने से बचना चाहते हैं, तो इस तरह के स्प्रे का इस्तेमाल करना बेहतर रहता है.

स्प्रे का इस्तेमाल ऐसे अमेजन पर दी गई जानकारी के मुताबिक, सैक्स स्प्रे का इस्तेमाल 21 साल या उस से ज्यादा उम्र के मर्द कर सकते हैं. यह शरीर पर लगाने वाले डियोड्रैंट की तरह होता है. इस को अपने प्राइवेट एरिया यानी मर्दाना अंग के ऊपर स्प्रे करना होता है.

उदाहरण के लिए बोल्ड केयर का टौपिकल स्प्रे है. यह मर्दों के लिए बना स्प्रे है. इस को सैक्स करने के 10-15 मिनट पहले अपने अंग के ऊपरी हिस्से पर 10 सैंटीमीटर की दूरी से स्प्रे करना होता है. इसे एक से ले कर 4 बार ही स्प्रे करना होता है.

कंपनी का दावा है कि इस से अंग पूरी तरह से सख्त हो जाता है. तकरीबन 100 ग्राम स्प्रे की कीमत 300 रुपए से ले कर 500 रुपए के बीच होती है.

अंग के सख्त हो जाने के बाद एक टिशु से अंग को साफ करना होता है. ऐसे ही अपने हाथ धो लेने होते हैं. इस स्प्रे से सैक्स टाइमिंग बढ़ जाती है.

बाजार में मिलने वाले सैक्स स्प्रे

कई लोग इस बात की चिंता में रहते हैं कि वे इसे ले लें, पर उन्हें पता नहीं होता कि इस तरह के स्प्रे कौन से ब्रांड के मुहैया हैं. ऐसे में कई कंपनियां हैं, जो सैक्स स्प्रे बनाती हैं, जिन के कुछ नाम यहां बताते हैं, जैसे जोवान कंपनी का ‘सैक्स अपील’ स्प्रे है. यह 150 मिलीलिटर में आता है. इस की कीमत बाजार में 500 से 1,000 रुपए के बीच है.

बोल्ड केयर का ‘गोल्ड टौपिकल स्प्रे’ है. यह काफी बेहतर माना जाता है.  इस कंपनी का 20 ग्राम का स्प्रे तकरीबन 500 रुपए तक में आता है.

किंडले का ‘सैक्स स्प्रे’ है. यह नौनअल्कोहोलिक है. इसे खूब पसंद किया जाता है. इस 20 ग्राम के स्प्रे की कीमत 400 रुपए के आसपास है.

मैन मैटर्स का ‘एंडयोर स्प्रे’ है. इस की कीमत 400 रुपए है. यह 14 ग्राम की स्प्रे बोतल में आता है. डाक्टर मोरपेन ‘डिले एक्सीग्रा स्प्रे’ की कीमत 400 रुपए के आसपास है, यह 20 ग्राम का है. ऐसे ही एक ‘विगोर स्प्रे’ भी आता है.

कैसे काम करता है

अब जानना जरूरी है कि यह स्प्रे काम कैसे करता है. दरअसल, यह स्प्रे स्किन को हलके से सुन्न करता है, जिस से सैक्स टाइमिंग बढ़ती है और क्लाइमैक्स को कंट्रोल करने में मदद मिलती है.

यह लिडोकेन और आइसोप्रोपिल अलकोहल से बना होता है. यह स्प्रे 10 मिनट के भीतर अपना असर दिखाना शुरू करता है. इतना ही नहीं, यह नौनट्रांसफरेबल फार्मूले पर काम करता है यानी पार्टनर को इस का अहसास नहीं होता है.

प्रीमैच्योर इजैकुलेशन जैसी समस्या में यह स्प्रे गेम चेंजर साबित हो सकता है. यह स्किन पर एनेस्थैटिक के रूप में काम करता है, जो संवेदनशीलता को तो कम करता है, लेकिन मजे को कई गुना बढ़ा देता है. इस से मर्द के पस्त होने में देरी होती है.

ऐसे हालात में न करें इस्तेमाल

क्लाइमैक्स स्प्रे का इस्तेमाल करने से साइड इफैक्ट हो सकते हैं, लेकिन ये साइड इफैक्ट आमतौर पर महसूस नहीं होते. ऐसे में ध्यान रहे, जब भी त्वचा पर चकत्ते आएं, खुजली हो, इस्तेमाल वाली जगह पर जलन महसूस हो या अनिद्रा जैसे लक्षण दिखें, तो इसे इस्तेमाल करना रोक दें. बेहतर होगा कि तुरंत डाक्टर से सलाह लें, जिस से कि आप को कोई गंभीर समस्या न हो.

ऐसे में कुछ तरह की सावधानियां इस तरह के स्प्रे इस्तेमाल करते हुए बरतें, जैसे :

* यह स्प्रे मर्दों के इस्तेमाल के लिए होता है.

* अगर आप ग्लूकोमा की बीमारी से पीडि़त हैं या आप हाइपर सैंसेटिव हैं, तो इस स्प्रे का इस्तेमाल न करें.

* यह स्प्रे अंग पर लगाने के लिए है और केवल बाहरी इस्तेमाल के लिए होता है.

* इस स्प्रे को इस्तेमाल करते समय आंखों को दूर रखें. सांसों से भी दूर रखना चाहिए.

* स्प्रे को 10 बार से ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और सैक्स करने के बाद अंग को अच्छे से साफ करना चाहिए.

* अगर आप को इस में मौजूद सामग्री से एलर्जी है, तो इस का इस्तेमाल न करें.

* अगर आप पहले से ही कोई विटामिन ले रहे हैं, तो इस स्प्रे का इस्तेमाल करने से पहले डाक्टर की सलाह जरूर लें.

* इस स्प्रे को अलकोहल के साथ इस्तेमाल में न लें.

 

सैक्स की गोलियां : कितनी कारगर कितना नुकसान

32  साल के निर्मल के सामने यह दिक्कत थी कि जब भी वह अपनी पत्नी के पास हमबिस्तरी के लिए जाता था, जल्दी ही पस्त हो जाता था. यह बात उस ने अपने दोस्त संदीप को बताई, तो वह बोला, ‘‘दिक्कत की कोई बात नहीं. तू किसी भी मैडिकल स्टोर पर जा कर सैक्स की गोली मांग लेना. एक घंटे पहले खा लेना, फिर देखना कि कितना असर होता है. रातभर भी थकेगा नहीं.’’

संदीप की बात सुन कर निर्मल ने वही किया. पर इस के बाद उसे अलग तरह की परेशानी का सामना करना पड़ा. गोली खाने के बाद उस के अंग में तनाव तो आ गया, पर उस की सांसें तेज चलने लगीं, मन घबराने लगा, जिस से वह हमबिस्तरी कर ही नहीं पा रहा था.

जब थोड़ी देर तक यही माहौल बना रहा, तो संदीप पास वाले डाक्टर के पास गया और पूरी बात बताई.

डाक्टर ने जांच की और बताया, ‘‘तुम्हें ब्लड प्रैशर की बीमारी है. दवा खाने से ब्लड प्रैशर बढ़ गया है. जब ब्लड प्रैशर नौर्मल होगा, तभी यह परेशानी दूर होगी.’’

बिना सलाह न लें सैक्स की दवाएं

सैक्स के दौरान अंग जब सही तरह से उत्तेजित नहीं होता, तो सैक्स करने में मजा नहीं आता. कई बार अंग औरत में प्रवेश ही नहीं कर पाता. इस की वजह से शीघ्रपतन भी हो जाता है.

यह समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है. सब से बड़ी दिक्कत यह होती है कि इस मुद्दे पर खुल कर बात नहीं होती है. लोग चोरीछिपे दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, डाक्टर की सलाह नहीं लेते हैं. आधीअधूरी जानकारी हासिल कर के सैक्स की गोलियों का सेवन करते हैं.

सैक्स के लिए सब से मशहूर और कारगर दवा का नाम ‘वियाग्रा’ है, पर दूसरी दवाओं की तरह इस के बेवजह इस्तेमाल के खतरनाक नतीजे हो सकते हैं. लिहाजा, बिना सोचेसमझे सैक्स की गोलियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. खासकर नौजवान अपनी मर्दानगी बढ़ाने, लंबे समय तक मजा लेने और अपने पार्टनर के सामने शर्मिंदा न हों, इस डर से ‘वियाग्रा’ जैसी दवा का सेवन करते हैं, जो जोखिम भरा कदम भी हो सकता है.

अब ‘वियाग्रा’ जैसी कई गोलियां बाजार में बिक रही हैं. इन दवाओं को बेचने वाले ही इस के सब से बड़े प्रचारक होते हैं, जबकि इन गोलियों का बिना जानेसमझे इस्तेमाल करना बड़ा ही खतरनाक होता है.

बढ़ सकती है समस्या

सैक्स की गोलियों का इस्तेमाल अमूमन उन लोगों को करना चाहिए, जिन्हें नामर्दी की समस्या हो. अगर किसी आदमी को थोड़ी सी मेहनत से छाती में दर्द होता हो और उस की सांस लेने की गति तेज हो जाती हो, तो उसे बिना डाक्टर की सलाह के सैक्स की गालियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभीकभी इस के खतरनाक साइड इफैक्ट हो जाते हैं, जो जिंदगीभर के लिए तकलीफ की वजह बन जाते हैं.

तमाम लोग इन सैक्स की गोलियों के आदी होते हैं, जिस से वे कई तरह की बीमारियों से घिर जाते हैं. इस के साइड इफैक्ट बेहद ही खतरनाक हो जाते हैं. आंखों पर इस का बुरा असर पड़ सकता है, जिस से इनसान हमेशा के लिए अंधा भी हो सकता है.

कब न लें सैक्स की गोलियां

सैक्स की गोलियों के सेवन से कई बार अंग में लंबे समय तक उत्तेजना बनी रहती है. ऐसे में अंग की नसों पर खराब असर पड़ता है. इस के साथ ही सिरदर्द, चक्कर आना, आंखों पर प्रभाव, गरमी लगना, नाक का बंद होना और जी मिचलाना जैसी समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं.

इस के साथ ही साथ सीने में दर्द, सांस की समस्या, घुटन, पलक और चेहरे में सूजन और हार्ट अटैक तक आ सकता है.

एचआईवी के मरीज अगर रिटोनविर नाम की दवा ले रहे हैं, तो वे सैक्स की गोलियों का इस्तेमाल करने से बचें. अगर आप को हार्ट अटैक या फिर स्ट्रोक हो चुका है, तो सैक्स की गोलियो का मनमाना इस्तेमाल बेहद खतरनाक हो सकता है.

जो लोग ब्लड प्रैशर की दवा ले रहे हैं या जिन्हें डाइबिटीज है, तो उन्हें भी ऐसी दवाओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. किडनी की परेशानी है, तो डाक्टर की सलाह के बिना सैक्स की दवाएं कदापि न लें.

सैक्स की गोलियों में नाइट्रिक औक्साइड का इस्तेमाल किया जाता है. यह शरीर की नसों पर खतरनाक असर डालता है. अंग में तनाव के लिए गोली शरीर में खून का संचार बढ़ा देती है, जो कई बार खतरा पैदा कर देता है.

सैक्स की गोलियां खाली पेट लेते हैं, तो वे जल्दी असर करती हैं. खाना खाने के बाद असर कम होता है. ऐसे में ज्यादातर लोग खाली पेट उन्हें लेते हैं, जिस से दवा शरीर पर बुरा असर डालती है. सैक्स की गोलियां सैक्स के एक घंटे पहले लेनी चाहिए. कई बार इस्तेमाल के बाद भी अंग में तनाव और दर्द 4 घंटे से ज्यादा बना रहता है.

बाजार में कई तरह की नकली दवाएं भी बेची जाती हैं. उन से भी नुकसान होता है. ऐसे में सैक्स की गोलियों का इस्तेमाल डाक्टर की सलाह पर बहुत सावधानी से करें.

नसबंदी से भरम

साल 2017 में एक हिंदी फिल्म आई थी ‘पोस्टर बौयज’. यह फिल्म ज्यादा तो नहीं चली थी, पर इस फिल्म में उठाया गया मुद्दा बड़ा ही दिलचस्प था.

इस फिल्म में 3 नौजवान सनी देओल, बौबी देओल और श्रेयस तलपड़े तब मुश्किल हालात में फंस जाते हैं, जब उन की तसवीरें मर्दों की नसबंदी के लिए दिए गए एक सरकारी इश्तिहार में छप जाती हैं, जबकि उन की नसबंदी हुई ही नहीं होती है.

जैसेजैसे कहानी आगे बढ़ती है, तो अपने दोस्तों और रिश्तेदारों द्वारा बेइज्जत होने के बाद वे तीनों दोस्त व्यवस्था के खिलाफ लड़ते हैं. हालांकि यह फिल्म कौमेडी से भरपूर थी, पर इस में दिखाया गया था कि नसबंदी को ले कर समाज में किस तरह का डर और भरम फैला हुआ है. इतना ज्यादा कि इसे मर्दानगी की कमी से जोड़ दिया जाता है, तभी तो आज भी भारत में मर्दों के अनुपात में औरतें ज्यादा नसबंदी कराती हैं.

मध्य प्रदेश में नसबंदी के आंकड़ों से यह बात समझते हैं. स्वास्थ्य विभाग की ओर से चलाए गए स्क्रीनिंग प्रोग्राम और आंकड़ों में खुलासा हुआ कि साल 2017 में सिर्फ 200 मर्दों ने नसबंदी कराई थी, जबकि 18,000 औरतों की नसबंदी की गई थी.

इस का मतलब साफ है कि जब भी ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ की बात पर अमल करना होता है, तब पति अपनी पत्नी को आगे कर देता है. उसे शुक्रवाहिका नामक अपनी 2 ट्यूब कटवाने में आफत आती है, जबकि ऐसा करना एक आसान और महफूज तरीके से मुमकिन है. इस के लिए अस्पताल में भरती होने की जरूरत भी नहीं पड़ती है.

मध्य प्रदेश से सटे छत्तीसगढ़ में मर्द को नसबंदी कराने के एवज में 3,000 रुपए दिए जाते हैं, जो उस के बैंक खाते में जमा होते हैं. नसबंदी के लिए

4 पात्रताएं होनी चाहिए. पहली, मर्द शादीशुदा होना चाहिए. दूसरी, उस की उम्र 60 साल या उस से कम हो. तीसरी, पतिपत्नी के पास कम से कम एक बच्चा हो, जिस की उम्र एक साल से ज्यादा हो. चौथी, पति या पत्नी में से किसी एक की ही नसबंदी होती है.

इतना ही नहीं, अगर किसी की नसबंदी नाकाम हो जाती है, तो मुआवजे के तौर पर 60 हजार रुपए की धनराशि दी जाती है. नसबंदी के बाद 7 दिनों के अंदर मौत हो जाने पर 4 लाख रुपए की राशि दी जाती है. नसबंदी के 8 से 30 दिन के अंदर मौत हो जाने पर एक लाख रुपए की राशि दी जाती है. नसबंदी के बाद

60 दिनों के अंदर बड़ी दिक्कत पैदा होने पर इलाज के लिए 50,000 रुपए तक की राशि दी जाती है.

भरम न पालें

मर्द नसबंदी, जिसे वैसेक्टोमी भी कहते हैं, में इजैकुलेशन के दौरान स्पर्म रिलीज नहीं होते हैं. इस में मर्दों के शरीर में मौजूद अंडकोष से स्पर्म को ले कर यूरेथ्रा तक ले जानी वाली नली को या तो सील कर दिया जाता है या फिर काट दिया जाता है.

मर्दों में नसबंदी से जुड़ा सब से बड़ा भरम यह होता है कि इस से कमजोरी आती है और बीमार भी हो सकते हैं. पर यह सच नहीं है. मर्द पहले जैसा ही दिखता है और उस में किसी तरह की मर्दाना कमजोरी नहीं आती है. वह पहले की तरह सैक्स का भरपूर मजा ले सकता है. वह मेहनत के दूसरे काम भी बिना किसी थकावट के पूरे कर सकता है.

अमूमन ऐसा मान लिया जाता है कि नसबंदी करना जोखिम से भरा और तकलीफदेह होता है, पर हकीकत में लोकल एनेस्थीसिया दे कर मर्दों की नसबंदी का आपरेशन किया जाता है और इस में सिर्फ कुछ मिनट का समय लगता है. यह बेहद कम रिस्क वाली सर्जरी है और इस में ज्यादातर मरीजों को थोड़ीबहुत सूजन या अंडकोष में बेहद हलका दर्द महसूस होता है.

1-3 हफ्ते के अंदर सूजन और दर्द की यह समस्या अपनेआप ठीक हो जाती है. अगले 10-15 दिनों तक मरीज को भारी चीजें उठाने या ज्यादा मेहनत वाले काम न करने की सलाह दी जाती है.

नसबंदी करवाने वाले के मन में यह डर होता है कि इस से प्रोस्टैट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन एक स्टडी में बताया गया है कि मर्द नसबंदी और प्रोस्टैट कैंसर होने के बीच संबंध बेहद कमजोर है. साथ ही, नसबंदी को टैस्टिकुलर कैंसर का जोखिम कारक भी नहीं माना जाता है.

इन बातों का रखें खयाल

* मर्दों में नसबंदी करवाना एक परमानैंट फैसला माना जाता है, क्योंकि इसे पलटना 100 फीसदी पक्का नहीं है. जब आगे बच्चे न पैदा करने हों, तभी नसबंदी कराएं.

* नसबंदी करवाने के कुछ दिन बाद तक गर्भ निरोध के दूसरे तरीके इस्तेमाल करने पड़ सकते हैं. टैस्ट द्वारा पुख्ता होने पर कि आप के वीर्य में शुक्राणु नहीं हैं, तब वे तरीके इस्तेमाल करने बंद किए जा सकते हैं.

* नसबंदी के बाद अंडकोष में खून इकट्ठा होना, शुक्राणु इकट्ठा होना, संक्रमण और अंडकोष में दर्द जैसी दिक्कतें हो सकती हैं. इस पर डाक्टर की सलाह जरूर लें.

* मर्दों में नसबंदी करवाने के बाद भी सैक्स से फैलने वाली बीमारियों से बचाव नहीं होता है, इसलिए आप को कंडोम का इस्तेमाल करना पड़ता है.

याद रखें कि बढ़ती आबादी पर काबू पाने के लिए नसबंदी एक जरूरी और कारगर उपाय है, पर इसे करवाने से पहले और बाद में डाक्टर की कही बातों पर अमल जरूर करें.

गीले सैक्सी सपनों का जोश है स्वप्नदोष

अपनी फेवरेट ऐक्ट्रैस को पहलू में देख कर उस लड़के को यकीन ही नहीं हुआ. दूरदूर तक कोई नहीं था. तनहाई में वे दोनों एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

मौका देख कर उस लड़के ने ऐक्ट्रैस के कपड़े उतारने शुरू कर दिए, जिस पर उस ने कोई एतराज नहीं जताया, उलटे उस का साथ देने लगी. जल्द ही वह लड़का ऐक्ट्रैस पर छाने लगा और उस के नाजुक अंगों से खेलने लगा.

लेकिन एकाएक ही वह ऐक्ट्रैस उस लड़के को पीछे धकेलने लगी और वह लड़का तेजी से उस पर हावी होने की कोशिश करने लगा, जिस से उस की सांस धौंकनी की तरह चलने लगी. आज हाथ आया सुनेहरा मौका वह खोना नहीं चाहता था, इसलिए पूरी ताकत से कोशिश करने लगा, लेकिन अंजाम तक पहुंच पाता, इस के पहले ही…

उस लड़के की नींद टूट गई. हकीकत समझ आई तो न वह ऐक्ट्रैस थी, न उस का सैक्सी संगमरमरी जिस्म था और न ही वह आधीअधूरी हमबिस्तरी थी. था तो चिपचिपा वीर्य, जिस से उस का अंडरवियर गीला हो गया था.

खुद को काबू करने की कोशिश करते हुए वह लड़का एहतियात से आसपास का जायजा लेने लगा. जब यह इतमीनान हो गया कि सभी सो रहे हैं, तो वह आहिस्ता से उठ कर बाथरूम में गया, अंडरवियर उतार कर पोंछा और फिर पहन लिया. बिस्तर तक वापस आते हुए वह खुद पर और सपने पर झल्ला रहा था कि यह सब हमेशा की तरह आधाअधूरा क्यों रह गया?

यह कोई नई बात नहीं थी. उस लड़के के साथ अकसर ऐसा पिछले कुछ दिनों से हो रहा था कि नींद में कोई ऐक्ट्रैस, लड़की, पड़ोसन भाभी या कोई अनजान औरत सपने में आती थी और सैक्स करती थी, लेकिन बीच में ही सपना टूट जाता था और अंडरवियर गीला हो जाता था.

इस से उस लड़के को पूरा मजा नहीं आता था. जल्द ही उसे पता चल गया था कि यह स्वप्नदोष यानी नाइट फाल है, जिस पर उस का कोई जोर नहीं चलता.

जिन्हें नहीं होता

ऐसा उस एक लड़के के साथ नहीं, बल्कि जवानी में दाखिल होते तकरीबन सभी लड़कों के साथ होता है. यह और बात है कि उन के सैक्सी सपने अलगअलग होते हैं. कुछ लोगों का वीर्य के साथ थोड़ा पेशाब भी निकल जाता है और कुछ लड़कों की सपना देखने के बाद तुरंत नींद नहीं खुलती. उन्हें सुबह पता चलता है कि बीती रात उन का स्वप्नदोष हुआ था. कुछ को तो यह दिन में भी हो जाता है.

लेकिन जैसा भी हो, स्वप्नदोष अफसोस या टैंशन की नहीं, बल्कि निहायत ही कुदरती बात है, जिस के होने पर नहीं, बल्कि न होने पर चिंता करनी चाहिए.

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के रिटायर्ड सर्जन डाक्टर केके श्रीवास्तव बताते हैं कि उन्होंने अपनी 50 साल की डाक्टरी प्रैक्टिस में हजारों ऐसे नौजवानों का इलाज किया है, जो स्वप्नदोष से हैरानपरेशान थे.

क्या इलाज किया? इस सवाल पर डाक्टर केके श्रीवास्तव ने बताया कि इलाज के नाम पर सिर्फ मशवरा दिया कि यह कोई बीमारी ही नहीं है. इस में किसी दवा की जरूरत नहीं, बल्कि थोड़ा एहतियात से रहने की जरूरत है. यह तो मर्दानगी का सुबूत है कि आप का अंग उत्तेजित होता है और आप के शरीर में वीर्य बनता है. रही बात सैक्सी सपनों की तो वे तो इस उम्र में आना कुदरती बात है. हालांकि, कुछ मामलों में बड़ी उम्र वालों को भी स्वप्नदोष होता है.

क्या और क्यों

यह तो बड़ी आसानी से समझ आता है कि स्वप्नदोष क्या है और यह कैसे होता है. लेकिन यह क्यों होता है? इस सवाल का साफ जवाब किसी के पास नहीं. हकीकत के नजदीक जो जवाब हैं, उन का सार यही है कि जवानी में सैक्स की ख्वाहिश भी आम और कुदरती बात है, लेकिन जब सैक्स संबंध नहीं बनते हैं, तो वीर्य अपने बाहर निकलने का रास्ता खुद ही ढूंढ़ लेता है.

इसे समझने के लिए पानी से भरे गिलास की मिसाल भी ली जा सकती है कि जब गिलास लबालब भर जाता है, तो और डालने पर पानी उस में से छलकने लगता है.

इसे डाक्टर हार्मोनल बदलाव कहते हैं, जिस में अंडकोष में शुक्राणु बनने लगते हैं यानी वीर्य बनना शुरू हो जाता है, जो शरीर में लगातार बनता रहता है और बाहर न निकले तो छलकने लगता है.

आमतौर पर स्वप्नदोष कुंआरे लड़कों में ज्यादा होता है, क्योंकि वे सैक्स के बारे में अधिक सोचते रहते हैं. खासतौर से सोते समय जब वे पोर्न फिल्म देखते हैं, तो स्वप्नदोष होने के चांस बढ़ जाते हैं.

लेकिन कई शादीशुदा मर्दों को भी कभीकभी इस से दोचार होना पड़ता है. बीवी जब मायके गई होती है या किसी दूसरी वजह से लंबे समय तक सैक्स संबंध नहीं बन पाते, तो उन्हें भी स्वप्नदोष हो सकता है.

यह कोई बीमारी नहीं

भोपाल के दिमागी बीमारियों के माहिर सीनियर डाक्टर विनय मिश्रा बताते हैं कि स्वप्नदोष कोई बीमारी नहीं है, इसलिए किसी भी नौजवान को इसे ले कर टैंशन नहीं पालनी चाहिए, क्योंकि इस से न तो किसी किस्म की कमजोरी आती है और न ही नामर्दी आती है. अंग के साइज से भी इसका कोई लेनादेना नहीं होता है और नही स्पर्म काउंट पर इस का कोई असर पड़ता है.

अब अगर स्वप्नदोष कोई बीमारी ही नहीं है और इस से कोई नुकसान नहीं होता है, तो इसे ले कर इतनी गलतफहमियां क्यों हैं कि नौजवानों को इस से दहशत होने लगती है और वे तरहतरह की चिंताओं से घिर जाते हैं?

इस सवाल का सीधा सा जवाब यह है कि नीमहकीमों ने दूसरी सैक्स समस्याओं की तरह इस का भी डर बना रखा है, जिस से वे देशी दवाओं, झाड़फूंक और तंत्रमंत्र के जरीए पैसा कमाया करते हैं.

वे लोग इसे धात रोग के नाम से मशहूर कर चुके हैं. अगर इन लोगों की बातों पर यकीन किया जाए तो धात रोग एक खतरनाक बीमारी है, जिस से नामर्दी, कमजोरी और तरहतरह की दूसरी बीमारियां शरीर को घेर लेती हैं.

पहले डराओ और फिर डर से पैसा कमाओ के उसूल पर चलते ये लोग नौजवानों को बेवकूफ बना कर अपने स्वप्न उन के स्वप्नदोष से पूरे किया करते हैं.

ये लोग तंबुओं से ले कर इंटरनैट तक पर अपनी दुकान चलाते हैं, जिन के झांसे में आने से फायदा तो कोई होता नहीं, उलटे पैसों के अलावा सेहत से जुड़े नुकसान जरूर हो जाते हैं.

ये नीमहकीम इस बात का खूब प्रचार कर चुके हैं कि वीर्य इतने या उतने बूंद खून से बनता है, जिस का बरबाद होना बहुत बड़े नुकसान के बराबर है, जबकि विज्ञान यह साबित कर चुका है कि खून और वीर्य का दूरदूर तक कोई रिश्ता नहीं है.

 इन बातों का रखें ध्यान

स्वप्नदोष आम और कुदरती है, इसलिए इस से बचा नहीं जा सकता, लेकिन यह जरूरत से ज्यादा होने लगे तो चिंता होना लाजिमी है.

स्वप्नदोष की तरह हस्तमैथुन भी कोई बुरी या हर्ज की बात नहीं है, लेकिन इसे भी बेलगाम हो कर किया जाए तो नुकसान और तनाव हो सकता है. इसी तरह अगर महीने में 6-7 बार तक स्वप्नदोष हो तो यह चिंता की बात नहीं है, लेकिन बहुत ज्यादा होने लगे तो इन बातों को अमल में लाना चाहिए :

* सोते समय सैक्सी बातें सोचने से बचना चाहिए.

* सोते समय ब्लू फिल्म भी नहीं देखनी चाहिए.

* खानपान साफसुथरा और सादा होना चाहिए, खासतौर से रात का खाना ज्यादा मसालेदार नहीं होना चाहिए.

* सोने से पहले पेशाब करना चाहिए.

* रोजाना कसरत करनी चाहिए.

* टाइट अंडरवियर पहन कर नहीं सोना चाहिए.

* हफ्ते में एक या 2 बार हस्तमैथुन कर लेना चाहिए, जिस से बन चुका वीर्य बाहर निकल जाए.

* अगर कब्ज रहती हो, तो उस का इलाज कराना चाहिए.

* स्वप्नदोष को ले कर किसी तरह का वहम या डर नहीं पालना चाहिए. ज्यादा समस्या हो तो माहिर डाक्टर से ही इलाज कराएं.

बढ़ती उम्र में रहें जोशीले

म ध्य प्रदेश के इंदौर में रहने वाली शोभा की उम्र तकरीबन 48 साल है. उस का पति दिलीप 52 साल का है. उन के 2 बच्चे हैं. देखने में तो यह एक सुखी परिवार लगता है, पर रात होते ही शोभा बिस्तर पर जाने से घबराती है. वजह, दिलीप अब भी खुद को 25 साल का बांका जवान समझता है और चाहता है कि शोभा उस की हर रात रंगीन कर दे.

पर शोभा का शरीर उस का साथ नहीं दे रहा है. मेनोपौज ने दस्तक दे दी है. नतीजतन, वह अब थकीथकी सी रहती है. मूड अपनेआप खराब हो जाता है. बिस्तर पर जाने के नाम पर खीज मचने लगती है. उस ने इशारे से दिलीप को बताने की कोशिश भी की, पर सब बेकार.

दरअसल, मेनोपौज की वजह से शोभा के अंग में सूखापन रहने लगा है. सैक्स करते हुए तेज दर्द होता है. दिन में काम करते हुए उसे अचानक से पसीना आ जाता है. माहवारी अनियमित रहती है. इस वजह से उसे रात को नींद नहीं आती है.

शोभा की समस्या जायज तो है, पर सवाल उठता है कि क्या बढ़ती उम्र में सैक्स सुख लिया जा सकता है? अगर पतिपत्नी में से कोई एक बिस्तर पर गरमी न दिखाए, तो दूसरे पार्टनर को क्या करना चाहिए? अगर पति ही पत्नी से दूरी बनाने लगे, तो पत्नी को क्या करना चाहिए?

सच तो यह है कि बढ़ती उम्र का सैक्स लाइफ से कुछ लेनादेना नहीं है. अगर पत्नी मन से तैयार नहीं होती है, तो पति का फर्ज बनता है कि पहले वह उस की बात सुने और उसे समझाए कि सैक्स को ले कर उस की उदासीनता तन से कम, बल्कि मन से ज्यादा है.

बहुत सी बार पत्नी घरेलू जिंदगी में इतनी ज्यादा उलझ कर रह जाती है कि बढ़ती उम्र उस के मन पर छा जाती है. अगर वह कामकाजी नहीं है, तो समस्या और ज्यादा बड़ी हो जाती है. पति को चाहिए कि वह उसे कहीं बाहर घुमाने ले जाए. यह एक तरह का दूसरा हनीमून कहा जाएगा, जहां पतिपत्नी अपने पुराने रोमांस को दोबारा हासिल कर सकते हैं.

किसी औरत को बढ़ती उम्र के साथ ज्यादा ही थकान रहने लगती है, तो वह डाक्टर की सलाह पर थायराइड और ब्लड सैल काउंट टैस्ट करा सकती है. अकसर बच्चे के जन्म या मेनोपौज के बाद औरतों में थायराइड की समस्या हो जाती है. ब्लड सैल काउंट टैस्ट से शरीर के अंदर खून की कमी के बारे में पता चल जाता है. फिर बीमारी के हिसाब से उस का इलाज शुरू किया जा सकता है.

अब मर्दों की बात करते हैं. उम्र बढ़ने के साथसाथ बहुत से मर्दों में जल्दी पस्त होने का डर मन में बैठ जाता है. अगर पति और पत्नी में उम्र का फर्क ज्यादा है, तो यह समस्या और ज्यादा बढ़ सकती है. अंग में पूरा तनाव न होना या संबंध बनाते समय अंग में जलन होना भी मर्दों को सैक्स से दूर करने लगता है.

इतना ही नहीं, ब्लड प्रैशर और डायबिटीज जैसी बीमारियां भी मर्दाना ताकत पर बुरा असर डालती हैं. काम का तनाव भी उन्हें बिस्तरबाजी से दूर करने की वजह बनता है.

50 साल की उम्र के बाद मर्दों में भी मेनोपौज जैसी समस्या उभर सकती है, जिसे एंड्रोपौज कहते हैं. इस में उम्र बढ़ने के साथसाथ उन में टैस्टोस्टैरोन की कमी होने लगती है. तो फिर इस सब का हल क्या है?

इस का हल है खुद पर उम्र को हावी न होने देना. रात को बिस्तर पर पतिपत्नी दिनभर की बोर कर देनी वाली बातें भूल जाएं और उन पलों को भरपूर जिएं. अपने खानपान का खास खयाल रखें. रात का भोजन हलका ही रखें और जल्दी खा लें. अगर दोनों के पास समय है, तो सुबह एकसाथ कसरत करें.

रात को बिस्तर पर जाने का मतलब यह नहीं होता कि बढ़ती उम्र में रोजाना सैक्स होगा ही, पर कपड़े ऐसे पहनें जो एकदूसरे को लुभाने वाले हों. रात को नहाने से शरीर की सुस्ती और बदबू दूर हो जाती है, तनाव भी दूर रहता है. ऐसा कर के आप एकदूसरे की बांहों में खो सकते हैं.

याद रखें कि अंगूर तो खट्टे भी निकल सकते हैं, पर किशमिश हमेशा मीठी ही होती है. बढ़ती हुई जिंदगी को किशमिश समझ कर स्वीकार करना चाहिए और पतिपत्नी को उम्र के इस पड़ाव पर अपने जिस्मानी रिश्ते का लुत्फ उठाना चाहिए.

अगर फिर भी जोश में कोई कमी है, तो डाक्टर से सलाह जरूर लें. बाजार में भी जोश बढ़ाने वाले तमाम साधन मौजूद हैं.

 

सैक्स ऐजुकेशन का कमाल खुशहाल रहें नौनिहाल

यह बेहद आसान होता जा रहा है कि गलत समझ या बिना समझ के बच्चे सैक्स से जुड़ी कुंठा में फंस जाते हैं और बहुत बार कुछ ऐसा करने पर मजबूर हो जाते हैं, जो उन्हें मानसिक तनाव में धकेल देता है. दूसरी ओर बहुत से बच्चे किसी घटिया इनसान द्वारा काफी देर तक अपने साथ होने वाले बुरे बरताव को बरदाश्त करते रहते हैं.

इसी सब्जैक्ट पर बनी एक बेहतरीन फिल्म ‘ओएमजी 2’ आप को यह समझाती है कि इस मुद्दे पर बात करना और इस के साथ ऐजूकेशन सिस्टम में सैक्स ऐजूकेशन पर बात करना कितना जरूरी है.

बातबात पर लोग बच्चों में अपराधबोध पैदा करते हैं. बच्चों को यह तो बताया जाता है कि वह गलत है, पर यह नहीं बताया जाता कि सही क्या है? बिना यह समझे कि उन्हें सही और गलत समझाएगा कौन.

बढ़ते अपराधों के बीच सुधार पर कोई भी काम को छोड़ आजकल अधिकतर लोग पौक्सो ऐक्ट लगा कर ज्यादातर बच्चों को अपराधी बना कर जेल में डाल देना चाहते हैं.

‘ओएमजी-2’ इन सभी सवालों पर बात करती एक उम्दा फिल्म है, जिसे पूरे परिवार के साथ देखना चाहिए. मगर ‘ओएमजी-2’ एडल्ट सर्टिफिकेट के साथ रिलीज हुई है. सैंसर बोर्ड ने ऐसा करने से पहले क्या सोचा होगा, यह समझना मुश्किल है, जबकि फिल्म अपनेआप में यह जवाब देती है कि समाज ने कैसे इस सब्जैक्ट पर बात करने को भी टैबू बना दिया है.

हमें यह समझना होगा कि बच्चे पर सवाल उठाने की जगह उसे समझना और सही शिक्षा देना समाज के लिए ज्यादा कारगर होगा. ऐसे सब्जैक्ट पर अगर कोई फिल्म आती है तो वह हमारे समाज की जरूरतों को सही दिशा में दिखाने की कोशिश करती है.

दरअसल, भारत में सैक्स ऐजूकेशन की शुरुआत होने के बाद भी इस पर बहुत काम करना बाकी है. आज भी बच्चो में इस सब्जैक्ट की समझ बहुत ज्यादा नहीं बढ़ पाई है, जिस की बड़ी वजह इस पर परिवार, समाज और सभी स्कूलों में अभी भी बच्चों के साथ खुल कर बातचीत नहीं होती है और न ही उन की जरूरतों को समझने की कोशिश ही की जा रही है.

जिस तरह औरतों और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, ऐसे में सामाजिक रूप से हमें यह समझने की जरूरत है कि यह हो क्यों रहा है? एनसीआरबी की साल 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों के खिलाफ अपराध से संबंधित कुल 1,49,404 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि साल 2021 में 1,28,531 मामले दर्ज किए गए, जो 16.2 फीसदी की बढ़ोतरी है.

किसी बच्चे के खिलाफ हर तीसरा अपराध पौक्सो अधिनियम के तहत दर्ज किया गया था, वहीं महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर (प्रति 1 लाख जनसंख्या पर घटनाओं की संख्या) में बढ़ोतरी हुई है और साल 2022 में 4,28,278 मामले दर्ज किए थे.

बैन हल नहीं एक न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बच्चे कम उम्र में ही पोर्नोग्राफी के संपर्क में आ रहे हैं. पहली बार पोर्नोग्राफी के संपर्क में आने की औसत उम्र 13 साल है. पोर्न साइटों को ब्लौक करने की कोशिशों के बावजूद इस में बढ़ोतरी जारी है और ऐसे बैन ने अनजाने में ही बच्चों की जिज्ञासा बढ़ा दी है.

माहिरों की मानें, तो जो बच्चे पारिवारिक टूट का शिकार ज्यादा होते हैं, उन में पोर्नोग्राफी की लत लगने का खतरा ज्यादा होता है.

इस के अलावा खराब पारिवारिक माहौल बच्चों को पोर्न की लत की ओर ले जाने में खास रोल निभाता है.

अपने ही कर रहे जुल्म इस के अलावा ये बच्चे किसी भी अनहोनी का आसान शिकार भी होते हैं. जो लोग बच्चों को टारगेट करना चाहते हैं, वे ऐसे मौकों का फायदा उठाने में पीछे नहीं हटते हैं, जहां कोई बच्चा पारिवारिक टूट का शिकार हो रहा हो या वह किसी मानसिक तनाव से गुजर रहा हो, जिसे उस के आसपास के करीबी लोग अनदेखा कर रहे हों.

हम सब बहुत सी ऐसी खबरें पढ़ते हैं, जिन में बच्चों को गलत तरीके से बहला कर कोई उन के साथ शोषण करता है या उन में पोर्नोग्राफी की लत लगा कर उन का वीडियो बना कर वायरल कर देता है और यह सब होना कोई भी बच्चा जिंदगीभर भूल नहीं पाता है.

क्यों जरूरी है सैक्स ऐजूकेशन

साल 2007 में भारत सरकार ने किशोर शिक्षा कार्यक्रम की शुरुआत की थी. इस का लगातार विरोध होता रहा था. कुछ राज्यों ने तो इस पर बैन लगा दिया था. इस के बावजूद भी यह कार्यक्रम कुछ चुनिंदा सरकारी और निजी स्कूलों में लागू किया गया.

हालांकि अब यह समझने की जरूरत है कि इस सब्जैक्ट से हिचकिचाने से काम नहीं चलेगा. अगर बच्चों को सही यौन शिक्षा नहीं दी गई, तो लिंग से जुड़ी हिंसा, गैरबराबरी, अनचाहा गर्भधारण, एचआईवी और दूसरे यौन संचारित संक्रमण बढ़ते जाएंगे और उन्हें रोकना मुश्किल हो जाएगा. ऐसे में जरूरी है कि स्कूल में सिर्फ टीचर ही नहीं,बल्कि मातापिता भी झिझक को दूर रख कर अपने बच्चे से इस सब्जैक्ट पर बात करें.

जब बचपन से जवानी में कदम रखते हैं, तो बहुत से नौजवानों को रिश्तों और सैक्स के बारे में भ्रमित और गलत जानकारी होती है. इसी वजह से पुख्ता जानकारी की मांग बढ़ी है, जो उन्हें एक अच्छी जिंदगी के लिए तैयार करता है.

लिहाजा, यह जरूरी है कि परिवार और समाज के साथ स्कूलों में बच्चों के लिए उन की उम्र के मुताबिक शैक्षिक सामग्री तैयार करने और पाठ्यक्रम के साथ नौजवानों को शामिल किया जाए.

कुछ नागरिक समाज और संगठनों ने इस क्षेत्र में बहुत अच्छा काम किया है. उन की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें स्कूलों में सभी श्रेणियों के छात्रों और शिक्षकों के साथ काम करने के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए. अगर उन्हें समयसमय पर ब्रीफिंग मिले और कार्यशालाओं से गुजरना पड़े, तो वे ज्यादा असरदार होंगे.

इस के साथ ही यह याद रखने की भी जरूरत है कि भारत साल 1994 में जनसंख्या और विकास पर संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का एक हस्ताक्षरकर्ता देश होने के नाते उस के तहत की गई प्रतिबद्धताओं के रूप में किशोरों और नौजवानों के लिए मुफ्त और अनिवार्य सैक्स ऐजूकेशन देने के लिए बाध्य है.

अपने शरीर और उस की जरूरतों को समझने के लिए अगर किसी बच्चे को उचित ऐजूकेशन दी जाए, तो वह अपनी बीवी, मां, बहन, बेटी, प्रेमिका को बेहतर समझ पाएगा. जिस हिसाब से बच्चों को मोबाइल और इंटरनैट पर गलत जानकारी और पोर्न देखने को मिल जाता है, अगर वहीं स्कूलों में सही जानकारी दी जाए तो क्या गलत है?

नई तकनीक से उम्मीद : तनाव की कमी

मनोहर की शादी को एक हफ्ता हुआ था. वह रात को अपनी नईनवेली दुलहन के पास जाने से कतरा रहा था. इस की वजह थी उस के अंग में तनाव की कमी और वह सैक्स सुख के सागर में गोते नहीं लगा पा रहा था.

मनोहर अकेला ऐसा नहीं है, जो इस तरह की समस्या से जूझ रहा है. दुनियाभर में ऐसे बहुत सारे मर्द हैं, जो अपने अंग में मनचाहे तनाव की कमी के चलते अपने सैक्स पार्टनर के सामने शर्मिंदगी झेलते हैं. इस की सब से बड़ी वजह है कि हम किस तरह से जिंदगी जी रहे हैं.

अगर कोई बीड़ीसिगरेट ज्यादा पीता है, तो उस के अंग में ढीलापन हो सकता है. साथ ही, जो लोग ज्यादा शराब पीते हैं या कोई और नशा करते हैं, वे भी इस समस्या से दोचार हो सकते हैं.

जरूरत से ज्यादा दिमागी तनाव भी सैक्स लाइफ पर बुरा असर डालता है. अपने काम से जुड़े विचारों को बिस्तर पर लाने से मर्द अपने अंग में तनाव की कमी को बढ़ा सकता है. इतना ही नहीं, बढ़ती उम्र भी इस तकलीफ में इजाफा ही करती है.

इस के लक्षण

* शुरुआत में अंग में तनाव पाने में मुश्किल होना.

* सैक्स के लिए पूरे समय तक तनाव बनाए रखने में नाकाम होना.

* प्रवेश के तुरंत बाद तनाव में कमी.

* मनमुताबिक सैक्स न हो पाना.

* सैक्स में दिलचस्पी की कमी.

* आत्मसम्मान में कमी.

* गुस्सा, चिढ़चिढ़ापन, उदासी का होना, खुद को नामर्द महसूस करना.

अंग में तनाव की कमी के मुद्दे पर जब प्लास्टिक, कौस्मैटिक सर्जन और एंड्रोलौजिस्ट डाक्टर अनूप धीर से बात की गई, तो उन्होंने बताया, ‘‘अंग में तनाव की कमी को इंगलिश में ‘इरैक्टाइल डिस्फंक्शन’ कहते हैं. यह ऐसी आम कंडीशन है, जो दुनियाभर में मर्दों को प्रभावित करती है और इस की वजह से उन की जिंदगी की क्वालिटी के साथसाथ रिलेशनशिप भी बिगड़ती है.

‘‘इरैक्टाइल डिस्फंक्शन ऐसी मैडिकल कंडीशन है, जिस में मर्द सैक्स के लिए जरूरी इरैक्शन (तनाव) को हासिल करने या उसे बनाए रखने में नाकाम होता है. यह कई बार किसी शारीरिक या मनोवैज्ञानिक वजह के चलते होता है और आमतौर पर 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को प्रभावित करता है. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है, क्योंकि यह समस्या किसी भी उम्र के मर्दों को अपना शिकार बना सकती है.

‘‘दिक्कत यह है कि इस समस्या से पीडि़त कई लोग शर्मिंदगी या संकोच के चलते इलाज कराने की पहल भी नहीं करते हैं. लिहाजा, उन के रिश्ते लगातार बिगड़ते रहते हैं. पर अगर समस्या है, तो उस का हल भी है.

‘‘हालांकि इरैक्टाइल डिस्फंक्शन के लिए फास्फोडिस्टेरेज (पीडीई5) 5 इंहिबिटर्स के साथ ओरल फार्मोकोथैरेपी ही अभी तक प्रमुख इलाज मानी जाती रही है, लेकिन इस समस्या का सामना कर रहे मर्दों को बेहतर समाधान देने के लिए नए उपायों की तलाश लगातार जारी है.

‘‘ऐसा ही एक नया उपाय है टौपिकल जैल इरौक्सौन, जो अंग में तनाव की कमी से जूझ रहे मर्दों के लिए अच्छे नतीजे दिला रहा है.

‘‘फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानी एफडीए द्वारा स्वीकृत इरौक्सौन एक ऐसा टौपिकल जैल है, जो इरैक्टाइल की समस्या से जूझ रहे मर्दों के लिए उम्मीद की नई किरण है. इस जैल को सैक्स करने से ठीक पहले अंग के मुख पर सीधे लगा सकते हैं.

‘‘स्टडी से यह बात सामने आई है कि इरौक्सौन का इस्तेमाल करने वाले 65 फीसदी मर्दों ने 10 मिनट के भीतर इरैक्शन महसूस किया और वे सैक्स करने के लिए जरूरी इरैक्शन (तनाव) को बरकरार रख सके.

‘‘फिलहाल इसे एक क्रीम (विटारौस/विरिरेक) के तौर पर भी दिया जाता है, जिस में अंग के सक्रिय भाग पर ऐक्टिव दवा (एल्प्रोस्टेडिल, जो सिंथैटिक प्रोस्टाग्लैंडिन ई1 है) के तौर पर स्किन एन्हान्सर के साथ इस्तेमाल किया जाता है.

‘‘याद रहे कि दिल से जुड़ी बीमारी और डायबिटीज को अंग में तनाव संबंधी दोष का प्रमुख कारण माना जाता है, इसलिए ईडी संबंधी लक्षणों के दिखाई देने पर इन रोगों के लक्षणों पर गौर करें और डाक्टर से मिल कर जरूरी मैडिकल सलाह लें.

‘‘नियमित रूप से अपनी सेहत की जांच करवाएं, ब्लड प्रैशर पर नजर रखें और डायबिटीज की जांच करवाएं, ताकि ईडी के इन संभावित कारणों का पता लगा कर इन का समय पर इलाज किया जा सके.

‘‘इरैक्टाइल डिस्फंक्शन (ईडी) के उपचार के लिए इरौक्सौन नया टौपिकल जैल है, जो अंग में तनाव की समस्या, इस के उपचार और प्रबंधन के तौरतरीकों में क्रांति कर सकता है.

‘‘इरौक्सौन को अमेरिका में स्वीकृति मिल चुकी है और फिलहाल यह ब्रिटेन में भी उपलब्ध है. हालफिलहाल भारत में यह नहीं मिलता है, लेकिन जल्द ही भविष्य में यह उपलब्ध हो सकता है. यह अंग में तनाव लाने में क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है.

‘‘इस के अलावा अंग में तनाव लाने का एक और तरीका है, जिसे लिंग प्रत्यारोपण यानी पेनाइल इंप्लांट कहते हैं. यह एक ऐसा उपकरण है, जिसे आपरेशन द्वारा मर्दाना अंग के अंदर रखा जाता है, ताकि कम इरैक्शन वाले मर्दों को सही इरैक्शन मिल सके. ईडी के लिए दूसरे इलाज नाकाम होने के बाद आमतौर पर पेनाइल इंप्लांट की सिफारिश की जाती है.

‘‘पेनाइल इंप्लांट के 2 खास प्रकार हैं, अर्धकठोर और फुलाने लायक. हर तरह का पेनाइल इंप्लांट अलग तरीके से काम करता है और इस के अलगअलग फायदे और नुकसान हैं. यह अंग में तनाव की कमी के लिए आखिरी इलाज माना है. जब दूसरे इलाज खासतौर पर डायबिटीज वाले मर्दों में इलाज नाकाम हो जाते हैं, तब पेनाइल इंप्लांट किया जाता है.

‘‘अंग में तनाव की कमी की समस्या में एक और उम्मीद भरा जो तरीका दिख रहा है, वह शौकवेव थैरेपी है, जहां ईडी में सुधार के लिए अल्ट्रासाउंड तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें