राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले दिनों एक सभा में कहा था कि जाति भगवान ने नहीं बनाई है, बल्कि पंडितों ने बनाई है. भगवान ने हमेशा बोला है कि मेरे लिए सभी एक हैं. उन में कोई जाति या वर्ण नहीं है, लेकिन पंडितों ने श्रेणी बनाई जो कि गलत था.
आगे उन्होंने कहा कि देश में विवेक, चेतना सभी एक हैं. उस में कोई अंतर नहीं है, बस मत अलगअलग हैं… हमारे समाज में बंटवारे का ही फायदा दूसरों ने उठाया है. इसी से हमारे देश पर आक्रमण हुए और बाहर से आए लोगों ने फायदा उठाया.
उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि हिंदू समाज देश में नष्ट होने का भय दिख रहा है क्या? यह बात कोई ब्राह्मण नहीं बता सकता. आप को समझना होगा. हमारी आजीविका का मतलब समाज के प्रति भी जिम्मेदारी होती है. जब हर काम समाज के लिए है तो कोई ऊंचा, कोई नीचा या कोई अलग कैसे हो गया?
मोहन भागवत को यह दिव्य ज्ञान अचानक क्यों हुआ? वे किस बूते पर कहते हैं कि जातियां भगवान ने नहीं बनाई हैं, जबकि अधिकांश ग्रंथ भरे हुए हैं जिन में यही कहा गया है कि जातियां भगवान ने बनाई हैं? हां, ये ग्रंथ पंडितों के लिखे गए हैं पर भगवान भी तो पंडितों ने गढ़े हैं.
‘ऋग्वेद’ के ‘पुरुष सूक्त’ में लिखा हुआ है कि जाति की उत्पत्ति ब्राह्मण के विभिन्न अंगों से हुई. क्या मोहन भागवत इस ‘ऋग्वेद’ को हिंदुओं को भगवान द्वारा स्वयं दिया गया ज्ञान नहीं मानते? आज मोहन भागवत अपनी जान बचाने के लिए और शूद्रों व दलितों को खुश करने के लिए अपौराणिक बातें कहने लगे हैं.
‘गीता’ के श्लोक 4/13 में कृष्ण ‘भगवान’ कहते हैं:
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश,
तस्य कर्तारमंपि मां विद्धयकर्तार मव्ययम्.
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र इन
4 वर्णों का समूह और कर्म मेरे द्वारा रचे गए हैं.
मोहन भागवत आज चाहते हैं कि ‘गीता’ की मान्यता भी रहे, ‘रामायण’, ‘महाभारत’ और सैकड़ों दूसरे ग्रंथ भी रहें और वे पहले की तरह पिछड़ी, निचली व अछूत जातियों पर राज करने की तरकीब इन ग्रंथों के आधार पर तय करते रहें.
यह इसलिए हुआ कि विपक्षी दल संघ की मेहनत और चाल को समझ कर उस के कमजोर हिस्सों पर चोट करने लगे हैं, जिन में तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ में बिखरा ब्राह्मणवादी व्यवस्था का प्रचार है.
इसी के बलबूते पर मुगल राज में शूद्र यानी आज के ओबीसी और अस्पृश्य यानी आज के एससी मुगलों से मिल गए थे और ब्राह्मणों के हुक्म पर सेवा करने को मजबूर हुए थे.
मुगल राजाओं ने हिंदू धर्मग्रंथों को आदर का स्थान दिया था और उन के फारसी में अनुवाद बाबर के जमाने से होने लगे थे जो औरंगजेब तक चले. इस में संस्कृत का हिंदवी अनुवाद ब्राह्मण करते थे और फिर ईरानी फारसी में. मुगल, जो उज्बेकिस्तान के आसपास के इलाके के थे, फारसी या संस्कृत दोनों ही नहीं जानते थे.
मुगल राजाओं के खिलाफ कभी ब्राह्मणों ने देश की आम जनता को विद्रोह करने के लिए उकसाया नहीं. विनायक दामोदर सावरकर ने मुसलमानों के खिलाफ जो भी कहा वह अंगरेजों की राजनीति के मुताबिक ही था.
अंगरेजों ने भी मुगलों की तरह जातिवाद के खिलाफ कुछ नहीं किया और समाज को कंट्रोल करने की जिम्मेदारी ब्राह्मणों पर छोड़ दी. कांग्रेस के ज्यादातर नेता भी कट्टरवादी ब्राह्मण या उन के कट्टर भक्त कायस्थ और बनिए रहे हैं और आज भी यही चल रहा है. वे सरकार के विरोधी नहीं थे.
सीनियर एडवोकेट व मानवाधिकार कार्यकर्ता राजेश चौधरी ने कहा कि जब यह बात मोहन भागवत को पता थी, पर आज तक संघ का प्रमुख किसी एससी, एसटी और ओबीसी को नहीं बनने दिया गया. संघ प्रमुख शंकराचार्य की तरह सिर्फ एक ही वर्ण के बनाए जाते हैं. लोगों के जेहन में ये खास फैक्टर हैं, जिस का जवाब संघ से जुड़े लोग नहीं दे पा रहे हैं.
भारतीय जनता पार्टी ने बंगारू लक्ष्मण को मजबूरी में अध्यक्ष बनाया था और फिर संघ के आदेश पर साजिश रच कर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था. संघ के इशारे पर चलने वाले राजनीतिक दल भाजपा ने आज तक कितने एससी, एसटी और ओबीसी को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया?
दरअसल, मोहन भागवत इस बयान को दे कर भारत के एससी, एसटी और ओबीसी को हिंदू राष्ट्र के नाम पर भाजपा के पाले में सुरक्षित रखना चाहते हैं. एससी, एसटी और ओबीसी, जो एक बड़ी आबादी है, के बारे में धार्मिक ग्रंथों में लिखी भद्दी और बेइज्जत करने वाली टिप्पणी के चलते जो एकजुटता हो रही है, उसे मोहन भागवत जल्दी रोक देना चाहते हैं.
मोहन भागवत अपने इस कथन से ओबीसी जनगणना की मांग को खत्म भी करना चाहते हैं. वे हिंदू धार्मिक ग्रंथों को भी पोल खुलने से बचाना चाहते हैं.
मोहन भागवत अच्छी तरह जानते हैं कि हिंदू धार्मिक ग्रंथों में एससी, एसटी, ओबीसी के खिलाफ जो अमर्यादित और अमानवीय बातें लिखी हुई हैं. यही ग्रंथ पंडितों की दानदक्षिणा से आमदनी का इंतजाम करते हैं, क्योंकि इन ग्रंथों में ही दानदक्षिणा से पिछले जन्म से जुड़ी जाति व्यवस्था का बखान किया गया है.
डर है कि यह मुद्दा अगर लंबे समय तक चला तो उस के चलते देश में बहुजन समाज के लोग बहुत तेजी से एकजुट हो जाएंगे.
मोहन भागवत का सब से बड़ा डर यह है कि कहीं ऐसा न हो कि भारत का यह एससी, एसटी, ओबीसी वर्ग फिर से अपने मूल धर्म बौद्ध को स्वीकार कर ले और फिर 10 फीसदी वाला वे पौराणिक हिंदू धर्म की पोल खोल कर भारत में बड़ी पार्टियों के वजूद में पलीता न लगा दे. याद रहे कि श्रीलंका में सिंहली बौद्ध और तमिल हिंदुओं का विवाद गृहयुद्ध की शक्ल ले चुका है.
अगर अगर मोहन भागवत यह जान चुके हैं कि जाति ईश्वर ने नहीं बनाई, ब्राह्मणों या पंडितों ने बनाई है तो फिर वे ब्राह्मण होने के नाते एससी, एसटी, ओबीसी पर आज तक हो रहे जुल्मों को गलती मानने का काम क्यों नहीं शुरू करते?
भाजपा सरकार का रिमोट कंट्रोल संघ के पास है, तो उसे आदेश दे कर देश की हर नौकरी, ताकतवर जगह बराबरी का सिस्टम लाने की कोशिश क्यों नहीं कराते? राज्य और केंद्र में खाली पड़े पदों को संवैधानिक प्रतिनिधित्व के आधार पर क्यों नहीं भरे जाते हैं? संविधान में मिले मूल मौलिक अधिकारों को एससी, एसटी, ओबीसी को क्यों नहीं लेने देते?
वैसे तो मंदिर ही जातिवाद को बढ़ावा देने का काम करते हैं और हर जाति को अपना मंदिर दे दिया गया है. दलितों के लिए आमतौर पर तीसरे दर्जे के देवीदेवताओं को रिजर्व कर दिया गया है. फिर भी मंदिरों में हर जाति के पुरोहित, पंडे क्यों नहीं होते?
हिंदू धार्मिक गं्रथों में लिखी गई अपमानजनक भाषा से इस वर्ग के लोगों के अंदर स्वाभिमान जगा है और तेजी से लोग जागरूक हो रहे हैं. इसी वजह से संघ प्रमुख मोहन भागवत बुरी तरह घबराए हुए हैं, क्योंकि वे बेहतर तरीके से जानते हैं कि अगर ऐसे ही यह वर्ग तेजी से एकजुट होता रहा तो देश के किसी भी राज्य में किसी भी कट्टरवादी पार्टी की सरकार नहीं बन पाएगी, बल्कि वह हमेशाहमेशा के लिए खत्म हो जाएगी.