सुबह का भूला – भाग 1: आखिर क्यों घर से दूर होना चाहते थे मोहन और रोली

मोहन ने जब अपनी पत्नी रोली के गले में गुलाबी मोतियों का हार पहनाया, तो खुश होने के बजाय वह मुंह बना कर बोली, ‘‘मुझे नहीं चाहिए यह हार.’’

‘‘क्यों भला?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘अब तो जब असली सोने का हार ला कर दोगे, तभी पहनूंगी. यह 20-30 रुपल्ली वाला हार नहीं चाहिए मुझे,’’ झूठमूठ का गुस्सा दिखाते हुए रोली रसोईघर में घुस गई.

मोहन भी उस के पीछेपीछे चल पड़ा और उसे अपनी बांहों में भर कर बोला, ‘‘अच्छा ठीक है मेरी मैना. एक दिन सोने के हार से भी सजा देंगे तेरे इस सुराहीदार गले को. लेकिन अभी तो इसे पहन ले.’’

‘‘सच बोल रहे हो न? तो खाओ मेरी कसम…’’ रोली ने आंखें नचा कर पूछा.

‘‘अरे, तेरी कसम मेरी जान. सच कह रहा हूं. अरे, तू कहे तो मैं अपना कलेजा निकाल कर तेरी हथेली पर रख दूं, तो यह सोने का हार क्या चीज है,’’ कह कर वह रोली को जीभर कर प्यार करने लगा.

मोहन और रोली की शादी को आज एक साल हो चुका था. आज ही के दिन मोहन रोली को ब्याह कर अपने घर ले आया था. उस ने सोच रखा था कि आज वह अपनी रोली को पूरा शहर घुमाएगा, इसलिए तो उस ने मालिक से बोल कर एक दिन की छुट्टी ले रखी थी. मगर रोली को लगता है कि वह उस से प्यार ही नहीं करता.

रोली को अपने रूपरंग का इतना गुमान है कि वह अपने आगे सांवलेसलोने मोहन को कुछ समझती ही नहीं है. जब देखो उसे झिड़कती रहती है, उस में कमी निकालती है और मोहन है कि उस की हर बात को हंसी में उड़ा देता है. वह तो चाहता है कि कैसे भी कर के, कुछ भी कर के रोली को बस खुश रखना है. लेकिन यह रोली भी न, पता नहीं और क्या चाहिए इसे जो हरदम मुंह बनाए रहती है.

‘‘अच्छा, अब गुस्सा थूक भी दे. देख, आज हम सिनेमा देखने चलते हैं और कहीं बाहर ही भेलकचौड़ी खाएंगे. तेरा मनपसंद पुचका भी. बोल, अब तो खुश?

 

‘‘तो चल जल्दी से तैयार हो जा. और सुन, वही गुलाबी वाली साड़ी पहनना जो मैं ने तुझे ला कर दी थी. उस पर यह मोतियों का हार खूब जंचेगा. है कि नहीं?’’ मोहन और रोली काफी देर रात घूमफिर कर घर आए, तो मोहन आते ही लुढ़क गया, क्योंकि वह इतना थक चुका था कि खाट पर लेटते ही उसे नींद आ गई.

लेकिन रोली की बड़ीबड़ी आंखों में अब भी वही बड़ेबड़े माल, चमकती दुकानें, बड़ीबड़ी और ऊंची बिल्डिगें, तैर रही थीं.

रोली सोच रही थी कि काश, उस के पास भी बहुत पैसे होते, तो वह भी इन दुकानों और माल में जा कर अपने लिए महंगेमहंगे कपड़े और जेवर खरीदती, होटलों में खाना खाती, मोटरगाड़ी में घूमती. लेकिन अफसोस…

आहें भरते हुए रोली ने पलट कर सो रहे मोहन की ओर देखा और उस की बगल में जा कर लेटते हुए सोचने लगी, ‘हाय रे, क्याक्या सपने ले कर आई थी इस दिल्ली शहर में. मगर मिला क्या बस ठेंगा…’

मोहन उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव बलरामपुर का रहने वाला था. वहां उस का अपना एक कच्चापक्का

3 कमरे का टूटाफूटा मकान था, जिस में 3 भाई, उन के बीवीबच्चे और बूढ़े मांबाप रहते थे. वे लोग अपने गांव में दूसरों की जमीन पर खेती कर के अपना गुजारा करते थे.

मोहन घर में सब से छोटा होने के चलते सारा दिन अपने हमउम्र दोस्तों के साथ यहांवहां मटरगश्ती करता फिरता था और घर आ कर खा कर सो जाता था.

मांबाप ने सोचा कि अगर मोहन की शादी कर देंगे तो शायद यह अपनी जिम्मेदारी समझने लगेगा, इसलिए एक सुंदर, सुशील लड़की देख कर उन्होंने मोहन की शादी करा दी.

मोहन की पत्नी रोली उस से 5 साल छोटी थी. खूबसूरत तो वह इतनी थी कि कोई देखे तो देखता रह जाए. दूध सी गोरीचिकनी रोली को अगर अंधेरे घर में बिठा दिया जाए, तो कमरा रोशनी से नहा उठे. तभी तो मोहन अपनी हूर की परी रोली को देख कर मचल उठता था. जब देखो वह उस के आसपास ही मंडराता रहता था.

मोहन का तो मन करता कि बस अपनी रोली को ताकता रहे, कोई काम ही न करे. जब बापभाई की डांट पड़ती तब वह कमरे से बाहर निकल कर काम पर जाता तो सही, पर जल्द ही वापस लौट आता था.

इधर, रोली को अपने पति से इतना प्यार पाते देख उस की तीनों जेठानी उस से जलन करतीं और कहतीं कि उस ने पति को अपने रूपजाल में फंसा कर निखट्टू बना रखा है. अरे, क्या उस के इस खूबसूरत थोबड़े को देखदेख कर मोहन की जिंदगी चलेगी या पेट भरने के लिए कमाना भी पड़ेगा?

जेठानियों के तानेउलाहने सुनसुन कर रोली को अब कोफ्त होने लगी थी, इसलिए गुस्से में वह भी उन्हें सुना डालती और इसी बात पर घर में महायुद्ध छिड़ जाता.

रात में मोहन के आगोश में समाई रोली जब अपनी जेठानियों की उस से शिकायत करती और कहती कि अब उसे इन के साथ नहीं रहना, क्योंकि ये लोग जब देखो उसे खरीखोटी सुनाते रहते हैं, पूरे घर का काम भी करवाते हैं, तो सुन कर मोहन का मन खिन्न हो उठता था.

लेकिन इस घर के सिवा और कोई ठिकाना भी तो नहीं था उस के पास,जहां वह अपनी खूबसूरत बीवी को ले कर जा पाता. सो, वह मनमसोस कर रह जाता था.

एक दिन जब रोली ने मोहन से कहा कि क्यों न हम शहर जा कर रहें और रखा ही क्या है यहां इस घर में, तो मोहन भी सोचने पर मजबूर हो गया कि हां, वहां शहर में अपना कमाएंगे, अपना खाएंगे तो किसी की आंखों में चुभेंगे नहीं. और रोली से मिलने से भी उसे कोई रोक नहीं पाएगा. यहां तो जब देखो, सब उसे सुनाते ही रहते हैं. रोली पर भी पूरे घर का काम लाद देते हैं, जैसे वह सब की नौकरानी हो.

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आलू वड़ा : मामी ने दीपक के साथ क्या किया

‘‘बाबू, तुम इस बार दरभंगा आओगे तो हम तुम्हें आलू वड़ा खिलाएंगे,’’ छोटी मामी की यह बात दीपक के दिल को छू गई.

पटना से बीएससी की पढ़ाई पूरी होते ही दीपक की पोस्टिंग भारतीय स्टेट बैंक की सकरी ब्रांच में कर दी गई. मातापिता का लाड़ला और 2 बहनों का एकलौता भाई दीपक पढ़ने में तेज था. जब मां ने मामा के घर दरभंगा में रहने की बात की तो वह मान गया.

इधर मामा के घर त्योहार का सा माहौल था. बड़े मामा की 3 बेटियां थीं, मझले मामा की 2 बेटियां जबकि छोटे मामा के कोई औलाद नहीं थी.

18-19 साल की उम्र में दीपक बैंक में क्लर्क बन गया तो मामा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वहीं दूसरी ओर दीपक की छोटी मामी, जिन की शादी को महज 4-5 साल हुए थे, की गोद सूनी थी.

छोटे मामा प्राइवेट नौकरी करते थे. वे सुबह नहाधो कर 8 बजे निकलते और शाम के 6-7 बजे तक लौटते. वे बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चला पाते थे. ऐसी सूरत में जब दीपक की सकरी ब्रांच में नौकरी लगी तो सब खुशी से भर उठे.

‘‘बाबू को तुम्हारे पास भेज रहे हैं. कमरा दिलवा देना,’’ दीपक की मां ने अपने छोटे भाई से गुजारिश की थी.

‘‘कमरे की क्या जरूरत है दीदी, मेरे घर में 2 कमरे हैं. वह यहीं रह लेगा,’’ भाई के इस जवाब में बहन बोलीं, ‘‘ठीक है, इसी बहाने दोनों वक्त घर का बना खाना खा लेगा और तुम्हारी निगरानी में भी रहेगा.’’

दोनों भाईबहनों की बातें सुन कर दीपक खुश हो गया. मां का दिया सामान और जरूरत की चीजें ले कर दोपहर 3 बजे का चला दीपक शाम 8 बजे तक मामा के यहां पहुंच गया.‘‘यहां से बस, टैक्सी, ट्रेन सारी सुविधाएं हैं. मुश्किल से एक घंटा लगता है. कल सुबह चल कर तुम्हारी जौइनिंग करवा देंगे,’’ छोटे मामा खुशी से चहकते हुए बोले.

‘‘आप का काम…’’ दीपक ने अटकते हुए पूछा.

‘‘अरे, एक दिन छुट्टी कर लेते हैं. सकरी बाजार देख लेंगे,’’ छोटे मामा दीपक की समस्या का समाधान करते हुए बोल उठे.

2-3 दिन में सबकुछ सामान्य हो गया. सुबह साढ़े 8 बजे घर छोड़ता तो दीपक की मामी हलका नाश्ता करा कर उसे टिफिन दे देतीं. वह शाम के 7 बजे तक लौट आता था.

उस दिन रविवार था. दीपक की छुट्टी थी. पर मामा रोज की तरह काम पर गए हुए थे. सुबह का निकला दीपक दोपहर 11 बजे घर लौटा था. मामी खाना बना चुकी थीं और दीपक के आने का इंतजार कर रही थीं.

‘‘आओ लाला, जल्दी खाना खा लो. फेरे बाद में लेना,’’ मामी के कहने में भी मजाक था.

‘‘बस, अभी आया,’’ कहता हुआ दीपक कपड़े बदल कर और हाथपैर धो कर तौलिया तलाशने लगा.

‘‘तुम्हारे सारे गंदे कपड़े धो कर सूखने के लिए डाल दिए हैं,’’ मामी खाना परोसते हुए बोलीं.

दीपक बैठा ही था कि उस की मामी पर निगाह गई. वह चौंक गया. साड़ी और ब्लाउज में मामी का पूरा जिस्म झांक रहा था, खासकर दोनों उभार.

मामी ने बजाय शरमाने के चोट कर दी, ‘‘क्यों रे, क्या देख रहा है? देखना है तो ठीक से देख न.’’

अब दीपक को अजीब सा महसूस होने लगा. उस ने किसी तरह खाना खाया और बाहर निकल गया. उसे मामी का बरताव समझ में नहीं आ रहा था.

उस दिन दीपक देर रात घर आया और खाना खा कर सो गया.

अगली सुबह उठा तो मामा उसे बीमार बता रहे थे, ‘‘शायद बुखार है, सुस्त दिख रहा है.’’

‘‘रात बाहर गया था न, थक गया होगा,’’ यह मामी की आवाज थी.

‘आखिर माजरा क्या है? मामी क्यों इस तरह का बरताव कर रही हैं,’ दीपक जितना सोचता उतना उलझ रहा था.

रात खाना खाने के बाद दीपक बिस्तर पर लेटा तो मामी ने आवाज दी. वह उठ कर गया तो चौंक गया. मामी पेटीकोट पहने नहा रही थीं.

‘‘उस दिन चोरीछिपे देख रहा था. अब आ, देख ले,’’ कहते हुए दोनों हाथों से पकड़ उसे अपने सामने कर दिया.

‘‘अरे मामी, क्या कर रही हो आप,’’ कहते हुए दीपक ने बाहर भागना चाहा मगर मामी ने उसे नीचे गिरा दिया.

थोड़ी ही देर में मामीभांजे का रिश्ता तारतार हो गया. दीपक उस दिन पहली बार किसी औरत के पास आया था. वह शर्मिंदा था मगर मामी ने एक झटके में इस संकट को दूर कर दिया, ‘‘देख बाबू, मुझे बच्चा चाहिए और तेरे मामा नहीं दे सकते. तू मुझे दे सकता है.’’

‘‘मगर ऐसा करना गलत होगा,’’ दीपक बोला.

‘‘मुझे खानदान चलाने के लिए औलाद चाहिए, तेरे मामा तो बस रोटीकपड़ा, मकान देते हैं. इस के अलावा भी कुछ चाहिए, वह तुम दोगे,’’ इतना कह कर मामी ने दीपक को बाहर भेज दिया.

उस के बाद से तो जब भी मौका मिलता मामी दीपक से काम चला लेतीं. या यों कहें कि उस का इस्तेमाल करतीं. मामा चुप थे या जानबूझ कर अनजान थे, कहा नहीं जा सकता, मगर हालात ने उन्हें एक बेटी का पिता बना दिया.

इस दौरान दीपक ने अपना तबादला पटना के पास करा लिया. पटना में रहने पर घर से आनाजाना होता था. छोटे मामा के यहां जाने में उसे नफरत सी हो रही थी. दूसरी ओर मामी एकदम सामान्य थीं पहले की तरह हंसमुख और बिंदास.

एक दिन दीपक की मां को मामी ने फोन किया. मामी ने जब दीपक के बारे में पूछा तो मां ने झट से उसे फोन पकड़ा दिया.

‘‘हां मामी प्रणाम. कैसी हो?’’ दीपक ने पूछा तो वे बोलीं, ‘‘मुझे भूल गए क्या लाला?’’

‘‘छोटी ठीक है?’’ दीपक ने पूछा तो मामी बोलीं, ‘‘बिलकुल ठीक है वह. अब की बार आओगे तो उसे भी देख लेना. अब की बार तुम्हें आलू वड़ा खिलाएंगे. तुम्हें खूब पसंद है न.’’

दीपक ने ‘हां’ कहते हुए फोन काट दिया. इधर दीपक की मां जब छोटी मामी का बखान कर रही थीं तो वह मामी को याद कर रहा था जिन्होंने उस का आलू वड़ा की तरह इस्तेमाल किया, और फिर कचरे की तरह कूड़ेदान में फेंक दिया.

औरत का यह रूप उसे अंदर ही अंदर कचोट रहा था.

‘मामी को बच्चा चाहिए था तो गोद ले सकती थीं या सरोगेट… मगर इस तरह…’ इस से आगे वह सोच न सका.

मां चाय ले कर आईं तो वह चाय पीने लगा. मगर उस का ध्यान मामी के घिनौने काम पर था. उसे चाय का स्वाद कसैला लग रहा था.

ऐसे ही सही: क्यों संगीता को सपना जैसा देखना चाहता था

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जीत: रमेश अपने मां-बाप के सपने को पूरा करना चाहता था

रमेश चंद की पुलिस महकमे में पूरी धाक थी. आम लोग उसे बहुत इज्जत देते थे, पर थाने का मुंशी अमीर चंद मन ही मन उस से रंजिश रखता था, क्योंकि उस की ऊपरी कमाई के रास्ते जो बंद हो गए थे. वह रमेश चंद को सबक सिखाना चाहता था. 25 साला रमेश चंद गोरे, लंबे कद का जवान था. उस के पापा सोमनाथ कर्नल के पद से रिटायर हुए थे, जबकि मम्मी पार्वती एक सरकारी स्कूल में टीचर थीं. रमेश चंद के पापा चाहते थे कि उन का बेटा भी सेना में भरती हो कर लगन व मेहनत से अपना मुकाम हासिल करे. पर उस की मम्मी चाहती थीं कि वह उन की नजरों के सामने रह कर अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन पर खेतीबारी करे.

रमेश चंद ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपने मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए पुलिस में भरती होगा और जहां कहीं भी उसे भ्रष्टाचार की गंध मिलेगी, उस को मिटा देने के लिए जीजान लगा देगा. रमेश चंद की पुलिस महकमे में हवलदार के पद पर बेलापुर थाने में बहाली हो गई थी. जहां पर अमीर चंद सालों से मुंशी के पद पर तैनात था. रमेश चंद की पारखी नजरों ने भांप लिया था कि थाने में सब ठीक नहीं है. रमेश चंद जब भी अपनी मोटरसाइकिल पर शहर का चक्कर लगाता, तो सभी दुकानदारों से कहता कि वे लोग बेखौफ हो कर कामधंधा करें. वे न तो पुलिस के खौफ से डरें और न ही उन की सेवा करें.

एक दिन रमेश चंद मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था. उस ने देखा कि एक आदमी उस की मोटरसाइकिल देख कर अपनी कार को बेतहाशा दौड़ाने लगा था.

रमेश चंद ने उस कार का पीछा किया और कार को ओवरटेक कर के एक जगह पर उसे रोकने की कोशिश की. पर कार वाला रुकने के बजाय मोटरसाइकिल वाले को ही अपना निशाना बनाने लगा था. पर इसे रमेश चंद की होशियारी समझो कि कुछ दूरी पर जा कर कार रुक गई थी. रमेश चंद ने कार में बैठे 2 लोगों को धुन डाला था और एक लड़की को कार के अंदर से महफूज बाहर निकाल लिया.

दरअसल, दोनों लोग अजय और निशांत थे, जो कालेज में पढ़ने वाली शुभलता को उस समय अगवा कर के ले गए थे, जब वह बारिश से बचने के लिए बस स्टैंड पर खड़ी घर जाने वाली बस का इंतजार कर रही थी. निशांत शुभलता को जानता था और उस ने कहा था कि वह भी उस ओर ही जा रहा है, इसलिए वह उसे उस के घर छोड़ देगा. शुभलता की आंखें तब डर से बंद होने लगी थीं, जब उस ने देखा कि निशांत तो गाड़ी को जंगली रास्ते वाली सड़क पर ले जा रहा था. उस ने गुस्से से पूछा था कि वह गाड़ी कहां ले जा रहा है, तो उस के गाल पर अजय ने जोरदार तमाचा जड़ते हुए कहा था, ‘तू चुपचाप गाड़ी में बैठी रह, नहीं तो इस चाकू से तेरे जिस्म के टुकड़ेटुकड़े कर दूंगा.’

तब निशांत ने अजय से कहा था, ‘पहले हम बारीबारी से इसे भोगेंगे, फिर इस के जिस्म को इतने घाव देंगे कि कोई इसे पहचान भी नहीं सकेगा.’ पर रमेश चंद के अचानक पीछा करने से न केवल उन दोनों की धुनाई हुई थी, बल्कि एक कागज पर उन के दस्तखत भी करवा लिए थे, जिस पर लिखा था कि भविष्य में अगर शहर के बीच उन्होंने किसी की इज्जत पर हाथ डाला या कोई बखेड़ा खड़ा किया, तो दफा 376 का केस बना कर उन को सजा दिलाई जाए. शुभलता की दास्तान सुन कर रमेश चंद ने उसे दुनिया की ऊंचनीच समझाई और अपनी मोटरसाइकिल पर उसे उस के घर तक छोड़ आया. शुभलता के पापा विशंभर एक दबंग किस्म के नेता थे. उन के कई विरोधी भी थे, जो इस ताक में रहते थे कि कब कोई मुद्दा उन के हाथ आ जाए और वे उन के खिलाफ मोरचा खोलें.

विशंभर विधायक बने, फिर धीरेधीरे अपनी राजनीतिक इच्छाओं के बलबूते पर चंद ही सालों में मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ गए. सिर्फ मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता ही इस बात को जानती थीं कि उन की बेटी शुभलता को बलात्कारियों के चंगुल से रमेश चंद ने बचाया था. बेलापुर थाने में नया थानेदार रुलदू राम आ गया था. उस ने अपने सभी मातहत मुलाजिमों को निर्देश दिया था कि वे अपना काम बड़ी मुस्तैदी से करें, ताकि आम लोगों की शिकायतों की सही ढंग से जांच हो सके. थोड़ी देर के बाद मुंशी अमीर चंद ने थानेदार के केबिन में दाखिल होते ही उसे सैल्यूट किया, फिर प्लेट में काजू, बरफी व चाय सर्व की. थानेदार रुलदू राम चाय व बरफी देख कर खुश होते हुए कहने लगा, ‘‘वाह मुंशीजी, वाह, बड़े मौके पर चाय लाए हो. इस समय मुझे चाय की तलब लग रही थी…

‘‘मुंशीजी, इस थाने का रिकौर्ड अच्छा है न. कहीं गड़बड़ तो नहीं है,’’ थानेदार रुलदू राम ने चाय पीते हुए पूछा.

‘‘सर, वैसे तो इस थाने में सबकुछ अच्छा है, पर रमेश चंद हवलदार की वजह से यह थाना फलफूल नहीं रहा है,’’ मुंशी अमीर चंद ने नमकमिर्च लगाते हुए रमेश चंद के खिलाफ थानेदार को उकसाने की कोशिश की.

थानेदार रुलदू राम ने मुंशी से पूछा, ‘‘इस समय वह हवलदार कहां है?’’

‘‘जनाब, उस की ड्यूटी इन दिनों ट्रैफिक पुलिस में लगी हुई है.’’

‘‘इस का मतलब यह कि वह अच्छी कमाई करता होगा?’’ थानेदार ने मुंशी से पूछा.

‘‘नहीं सर, वह तो पुश्तैनी अमीर है और ईमानदारी तो उस की रगरग में बसी है. कानून तोड़ने वालों की तो वह खूब खबर लेता है. कोई कितनी भी तगड़ी सिफारिश वाला क्यों न हो, वह चालान करते हुए जरा भी नहीं डरता.’’

इतना सुन कर थानेदार रुलदू राम ने कहा, ‘‘यह आदमी तो बड़ा दिलचस्प लगता है.’’

‘‘नहीं जनाब, यह रमेश चंद अपने से ऊपर किसी को कुछ नहीं समझता है. कई बार तो ऐसा लगता है कि या तो इस का ट्रांसफर यहां से हो जाए या हम ही यहां से चले जाएं,’’ मुंशी अमीर चंद ने रोनी सूरत बनाते हुए थानेदार से कहा.

‘‘अच्छा तो यह बात है. आज उस को यहां आने दो, फिर उसे बताऊंगा कि इस थाने की थानेदारी किस की है… उस की या मेरी?’’

तभी थाने के कंपाउंड में एक मोटरसाइकिल रुकी. मुंशी अमीर चंद दबे कदमों से थानेदार के केबिन में दाखिल होते हुए कहने लगा, ‘‘जनाब, हवलदार रमेश चंद आ गया है.’’

अर्दली ने आ कर रमेश चंद से कहा, ‘‘नए थानेदार साहब आप को इसी वक्त बुला रहे हैं.’’

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार रुलदू राम को सैल्यूट मारा.

‘‘आज कितना कमाया?’’ थानेदार रुलदू राम ने हवलदार रमेश चंद से पूछा.

‘‘सर, मैं अपने फर्ज को अंजाम देना जानता हूं. ऊपर की कमाई करना मेरे जमीर में शामिल नहीं है,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

थानेदार ने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘‘यह थाना है. इस में ज्यादा ईमानदारी रख कर काम करोगे, तो कभी न कभी तुम्हारे गरीबान पर कोई हाथ डाल कर तुम्हें सलाखों तक पहुंचा देगा. अभी तुम जवान हो, संभल जाओ.’’

‘‘सर, फर्ज निभातेनिभाते अगर मेरी जान भी चली जाए, तो कोई परवाह नहीं,’’ हवलदार रमेश चंद थानेदार रुलदू राम से बोला.

‘‘अच्छाअच्छा, तुम्हारे ये प्रवचन सुनने के लिए मैं ने तुम्हें यहां नहीं बुलाया था,’’ थानेदार रुलदू राम की आवाज में तल्खी उभर आई थी.

दरवाजे की ओट में मुंशी अमीर चंद खड़ा हो कर ये सब बातें सुन रहा था. वह मन ही मन खुश हो रहा था कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे. हवलदार रमेश चंद के बाहर जाते ही मुंशी अमीर चंद थानेदार से कहने लगा, ‘‘साहब, छोटे लोगों को मुंह नहीं लगाना चाहिए. आप ने हवलदार को उस की औकात बता दी.’’

‘‘चलो जनाब, हम बाजार का एक चक्कर लगा लें. इसी बहाने आप की शहर के दुकानदारों से भी मुलाकात हो जाएगी और कुछ खरीदारी भी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. मैं जरा क्वार्टर जा कर अपनी पत्नी से पूछ लूं कि बाजार से कुछ लाना तो नहीं है?’’ थानेदार ने मुंशी से कहा.

क्वार्टर पहुंच कर थानेदार रुलदू राम ने देखा कि उस की पत्नी सुरेखा व 2 महिला कांस्टेबलों ने क्वार्टर को सजा दिया था. उस ने सुरेखा से कहा, ‘‘मैं बाजार का मुआयना करने जा रहा हूं. वहां से कुछ लाना तो नहीं है?’’

‘‘बच्चों के लिए खिलौने व फलसब्जी वगैरह देख लेना,’’ सुरेखा ने कहा.

मुंशी अमीर चंद पहले की तरह आज भी जिस दुकान पर गया, वहां नए थानेदार का परिचय कराया, फिर उन से जरूरत का सामान ‘मुफ्त’ में लिया और आगे चल दिया. वापसी में आते वक्त सामान के 2 थैले भर गए थे. मुंशी अमीर चंद ने बड़े रोब के साथ एक आटोरिकशा वाले को बुलाया और उस से थाने तक चलने को कहा. थानेदार को मुंशी अमीर चंद का रसूख अच्छा लगा. उस ने एक कौड़ी भी खर्च किए बिना ढेर सारा सामान ले लिया था. अगले दिन थानेदार के जेहन में रहरह कर यह बात कौंध रही थी कि अगर समय रहते हवलदार रमेश चंद के पर नहीं कतरे गए, तो वह उन सब की राह में रोड़ा बन जाएगा. अभी थानेदार रुलदू राम अपने ही खयालों में डूबा था कि तभी एक औरत बसंती रोतीचिल्लाती वहां आई.

उस औरत ने थानेदार से कहा, ‘‘साहब, थाने से थोड़ी दूरी पर ही मेरा घर है, जहां पर बदमाशों ने रात को न केवल मेरे मर्द करमू को पीटा, बल्कि घर में जो गहनेकपड़े थे, उन पर भी हाथ साफ कर गए. जब मैं ने अपने पति का बचाव करना चाहा, तो उन्होंने मुझे धक्का दे दिया. इस से मुझे भी चोट लग गई.’’

थानेदार ने उस औरत को देखा, जो माथे पर उभर आई चोटों के निशान दिखाने की कोशिश कर रही थी. थानेदार ने उस औरत को ऐसे घूरा, मानो वह थाने में ही उसे दबोच लेगा. भले ही बसंती गरीब घर की थी, पर उस की जवानी की मादकता देख कर थानेदार की लार टपकने लगी थी. अचानक मुंशी अमीर चंद केबिन में घुसा. उस ने बसंती से कहा, ‘‘साहब ने अभी थाने में जौइन किया है. हम तुम्हें बदमाशों से भी बचाएंगे और जो कुछवे लूट कर ले गए हैं, उसे भी वापस दिलाएंगे. पर इस के बदले में तुम्हें हमारा एक छोटा सा काम करना होगा.’’

‘‘कौन सा काम, साहबजी?’’ बसंती ने हैरान हो कर मुंशी अमीर चंद से पूछा.

‘‘हम अभी तुम्हारे घर जांचपड़ताल करने आएंगे, वहीं पर तुम्हें सबकुछ बता देंगे.’’

‘‘जी साहब,’’ बसंती उठते हुए बोली.

थानेदार ने मुंशी से फुसफुसाते हुए पूछा, ‘‘बसंती से क्या बात करनी है?’’

मुंशी ने कहा, ‘‘हुजूर, पुलिस वालों के लिए मरे हुए को जिंदा करना और जिंदा को मरा हुआ साबित करना बाएं हाथ का खेल होता है. बस, अब आप आगे का तमाशा देखते जाओ.’’ आननफानन थानेदार व मुंशी मौका ए वारदात पर पहुंचे, फिर चुपके से बसंती व उस के मर्द को सारी प्लानिंग बताई. इस के बाद मुंशी अमीर चंद ने कुछ लोगों के बयान लिए और तुरंत थाने लौट आए. इधर हवलदार रमेश चंद को कानोंकान खबर तक नहीं थी कि उस के खिलाफ मुंशी कैसी साजिश रच रहा था.

थानेदार ने अर्दली भेज कर रमेश चंद को थाने बुलाया.

हवलदार रमेश चंद ने थानेदार को सैल्यूट मारने के बाद पूछा, ‘‘सर, आप ने मुझे याद किया?’’

‘‘देखो रमेश, आज सुबह बसंती के घर में कोई हंगामा हो गया था. मुंशीजी अमीर चंद को इस बाबत वहां भेजना था, पर मैं चाहता हूं कि तुम वहां मौका ए वारदात पर पहुंच कर कार्यवाही करो. वैसे, हम भी थोड़ी देर में वहां पहुंचेंगे.’’

‘‘ठीक है सर,’’ हवलदार रमेश चंद ने कहा.

जैसे ही रमेश चंद बसंती के घर पहुंचा, तभी उस का पति करमू रोते हुए कहने लगा, ‘‘हुजूर, उन गुंडों ने मारमार कर मेरा हुलिया बिगाड़ दिया. मुझे ऐसा लगता है कि रात को आप भी उन गुंडों के साथ थे.’’ करमू के मुंह से यह बात सुन कर रमेश चंद आगबबूला हो गया और उस ने 3-4 थप्पड़ उसे जड़ दिए.

तभी बसंती बीचबचाव करते हुए कहने लगी, ‘‘हजूर, इसे शराब पीने के बाद होश नहीं रहता. इस की गुस्ताखी के लिए मैं आप के पैर पड़ कर माफी मांगती हूं. इस ने मुझे पूरी उम्र आंसू ही आंसू दिए हैं. कभीकभी तो ऐसा मन करता है कि इसे छोड़ कर भाग जाऊं, पर भाग कर जाऊंगी भी कहां. मुझे सहारा देने वाला भी कोई नहीं है…’’

‘‘आप मेरी खातिर गुस्सा थूक दीजिए और शांत हो जाइए. मैं अभी चायनाश्ते का बंदोबस्त करती हूं.’’

बसंती ने उस समय ऐसे कपड़े पहने हुए थे कि उस के उभार नजर आ रहे थे. शरबत पीते हुए रमेश की नजरें आज पहली दफा किसी औरत के जिस्म पर फिसली थीं और वह औरत बसंती ही थी. रमेश चंद बसंती से कह रहा था, ‘‘देख बसंती, तेरी वजह से मैं ने तेरे मर्द को छोड़ दिया, नहीं तो मैं इस की वह गत बनाता कि इसे चारों ओर मौत ही मौत नजर आती.’’ यह बोलते हुए रमेश चंद को नहीं मालूम था कि उस के शरबत में तो बसंती ने नशे की गोलियां मिलाई हुई थीं. उस की मदहोश आंखों में अब न जाने कितनी बसंतियां तैर रही थीं. ऐन मौके पर थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद वहां पहुंचे. बसंती ने अपने कपड़े फाड़े और जानबूझ कर रमेश चंद की बगल में लेट गई. उन दोनों ने उन के फोटो खींचे. वहां पर शराब की 2 बोतलें भी रख दी गई थीं. कुछ शराब रमेश चंद के मुंह में भी उड़ेल दी थी.

मुंशी अमीर चंद ने तुरंत हैडक्वार्टर में डीएसपी को इस सारे कांड के बारे में सूचित कर दिया था. डीएसपी साहब ने रिपोर्ट देखी कि मौका ए वारदात पर पहुंच कर हवलदार रमेश चंद ने रिपोर्ट लिखवाने वाली औरत के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. डीएसपी साहब ने तुरंत हवलदार रमेश चंद को नौकरी से सस्पैंड कर दिया. अब सारा माजरा उस की समझ में अच्छी तरह आ गया था, पर सारे सुबूत उस के खिलाफ थे. अगले दिन अखबारों में खबर छपी थी कि नए थानेदार ने थाने का कार्यभार संभालते ही एक बेशर्म हवलदार को अपने थाने से सस्पैंड करवा कर नई मिसाल कायम की. रमेश चंद हवालात में बंद था. उस पर बलात्कार करने का आरोप लगा था. इधर जब मुख्यमंत्री विशंभर की पत्नी चंद्रकांता को इस बारे में पता लगा कि रमेश चंद को बलात्कार के आरोप में हवालात में बंद कर दिया गया है, तो उस का खून खौल उठा. उस ने सुबह होते ही थाने का रुख किया और रमेश चंद की जमानत दे कर रिहा कराया. रमेश चंद ने कहा, ‘‘मैडम, आप ने मेरी नीयत पर शक नहीं किया है और मेरी जमानत करा दी. मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.’’

चंद्रकांता बोली, ‘‘उस वक्त तुम ने मेरी बेटी को बचाया था, तब यह बात सिर्फ मुझे, मेरी बेटी व तुम्हें ही मालूम थी. अगर तुम मेरी बेटी को उन वहशी दरिंदों से न बचाते, तो न जाने क्या होता? और हमें कितनी बदनामी झेलनी पड़ती. आज हमारी बेटी शादी के बाद बड़ी खुशी से अपनी जिंदगी गुजार रही है.

‘‘जिन लोगों ने तुम्हारे खिलाफ साजिश रची है, उन के मनसूबों को नाकाम कर के तुम आगे बढ़ो,’’ चंद्रकांता ने रमेश चंद को धीरज बंधाते हुए कहा.

‘‘मैं आज ही मुख्यमंत्रीजी से इस मामले में बात करूंगी, ताकि जिस सच के रास्ते पर चल कर अपना वजूद तुम ने कायम किया है, वह मिट्टी में न मिल जाए.’’ अगले दिन ही बेलापुर थाने की उस घटना की जांच शुरू हो गई थी. अब तो स्थानीय दुकानदारों ने भी अपनीअपनी शिकायतें लिखित रूप में दे दी थीं. थानेदार रुलदू राम व मुंशी अमीर चंद अब जेल की सलाखों में थे. रमेश चंद भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जीत गया था.

टेढ़ीमेढ़ी डगर: सुमोना ने कैसे सिखाया पति को सबक

सुमोना रोरो कर अब शांत हो चुकी थी. आज फिर विक्रांत ने उस पर हाथ उठाया था और फिर धक्का दे कर व बुरीबुरी गालियां देता हुआ घर से बाहर चला गया था. 5 वर्षीय पिंकी और 4 वर्षीय पंकज हिचकियों के साथ रोते हुए उस से चिपके हुए थे. तीनों के आंसू मिल कर एक हो रहे थे. अब यह सब आएदिन की बात हो गई थी.

सुमोना सोच रही थी कि कौन कहेगा कि वे दोनों पढ़ेलिखे संपन्न परिवारों से हैं. दोनों के ही परिवार आर्थिक और सामाजिक रूप से समाज में अच्छी हैसियत रखते थे. कहने को तो उन का प्रेम विवाह था. सजातीय होने के कारण और शायद परिजनों के खुले हुए विचारों का होने के कारण भी उन्हें विवाह में कोई अड़चन नहीं आई थी. सभी की रजामंदी से, बहुत धूमधड़ाके के साथ उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ था. दोनों के ही मातापिता ने किसी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ी थी. बल्कि अगर यह कहें कि कुछ जरूरत से ज्यादा ही दिखावा किया गया था तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

शादी के थोड़े दिनों बाद ही विक्रांत का यह रूप उस के सामने आ गया था. सुमोना चौंकी जरूर थी. दोनों ने एकसाथ एमबीए किया था. सुमोना अपने बैच की टौपर थी. पूरा जोर लगाने के बाद भी विक्रांत कक्षा में दूसरे स्थान पर ही रहता था. दोनों के बीच एक स्वस्थ स्पर्धा रहती थी.

विक्रांत का दोस्त अंगद अकसर कहता था, “अच्छा है तुम दोनों एकदूसरे को डेट नहीं कर रहे हो. नहीं तो एकदूसरे का सिर ही फोड़ देते.”

पल्लवी हंसते हुए उस में जोड़ती, “और कहीं यह दोनों शादी कर लेते तो एकदूसरे का गला ही दबा देते,” सब खिलखिला कर हंस पड़ते और बात हवा में उड़ जाती.

पता नहीं साथियों के कहने का असर था या क्या, धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षण महसूस करने लगे और जब विक्रांत पर प्रेम का भूत चढ़ा तो वह इतना अधिक रोमांटिक हो गया कि खुद सुमोना को ही विश्वास नहीं होता कि यह वही अकड़ू, गुस्सैल विक्रांत है. सहेलियां भी सुमोना से जलने लगीं. विक्रांत हर दिन सुमोना के लिए कुछ न कुछ सरप्राइज प्लान करता और सब देखते रह जाते. विक्रांत कभी भी कुछ छिपा कर नहीं करता सबकुछ सब के सामने खुलाखुला.

दोस्त कहते, “शादी के बाद विक्रांत तो जोरू का गुलाम बन जाएगा,”
विक्रांत हंस कर जवाब देता, “हां भाई बन जाऊंगा. तुम्हारे पेट में क्यों दर्द होता है? तुम भी बन जाना पर अपनी बीवी के मेरी नहीं,” और चारों ओर जलन भरी खिलखिलाहट बिखर जाती.

सुमोना को खुद भी विक्रांत का यह रूप बहुत भाता था. वह तो खुशियों के सतरंगे आकाश में विचरण कर रही थी मगर कहां जानती थी कि कुदरत उसे अंधेरे की गहरी खाई की ओर ले जा रहा है.

पहला झटका सुमोना को शादी के बाद दूसरे महीने में ही लगा था. मात्र 15 दिनों के हनीमून ट्रिप से जब दोनों लौटे थे, 1 हफ्ता तो घर से बाहर ही नहीं निकले और विक्रांत तो जैसे चकोर की तरह उसे निहारता ही रहता था.

जौइंट फैमिली थी. घर में सासससुर के साथ जेठजेठानी भी थे पर जैसे विक्रांत को कोई फर्क ही नहीं पड़ता था. जेठानी जरूर इस बात पर ताना मारती रहती थी. वह एकांत में विक्रांत को समझाती तो वह कहता, “जो जलता है, उसे जलने दो.”

उस रात नई बहू के स्वागत में विक्रांत के चाचा ने पूरे परिवार को खाने पर बुलाया था. बहुत चाव से सजधज कर जब वह तैयार हुई और विक्रांत के सामने आई तो विक्रांत के चेहरे पर बल पड़ गया, “यह क्या पहना है तुम ने?”

“क्यों क्या हुआ? अच्छा तो है,” शीशे में खुद को निहारते हुए उस ने पूछा.

“ब्लाउज का इतना गहरा गला किस को दिखाना चाहती हो?”

आहत हुई थी सुमोना, पर खुद को संभाल कर बोली, “अच्छा तो जनाब इनसिक्योर हो रहे हैं.”

“बदल कर नीचे आओ, मैं मां के पास इंतजार कर रहा हूं,” कहता हुआ विक्रांत कमरे से बाहर चला गया.

सुमोना का उखड़ा हुआ मूड, चाचा के घर में सब के स्नेहिल व्यवहार से फिर से खिल उठा था. खाना खा कर सब बैठक में बैठे हंसीमजाक कर रहे थे. बहुत ही खुशनुमा माहौल था. सब उस के रूप और व्यवहार की तारीफ कर रहे थे. थोड़ा हंसीमजाक भी चल रहा था. किसी बात पर सब के साथसाथ वह भी खिलखिला कर हंसी तो विक्रांत तेजी से चीखा, “क्या घोड़े की तरह हिनहिना रही हो… कायदे से हंस भी नहीं सकती हो क्या?”

सब चुप हो गए और उसी असहनीय शांति के बीच वापस घर चले आए. कोई कुछ नहीं बोला. कमरे में आ कर वह बहुत रोई. विक्रांत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. वह करवट बदल कर आराम से सो गया. सुबह भी घर में इस बारे में कोई बात नहीं हुई. न ही किसी ने उस से कुछ कहा, न ही विक्रांत को कुछ समझाया. जेठानी के चेहरे पर जरूर व्यंग्य भरी मुसकान पूरे दिन तैरती रही.

कुछ ही दिनों बाद विक्रांत के किसी दोस्त की ऐनिवर्सरी की पार्टी थी. विक्रांत ने उसे शाम के लिए तैयार होने के साथसाथ यह भी हिदायत दी की देखो, यह मेरे दोस्त की पार्टी है, शराफत वाले कपड़े ही पहनना. बल्कि ऐसा करो की मुझे दिखा दो कि तुम क्या पहनने वाली हो. यह तो बस शुरुआत थी. उस के पहनने, बोलने पर टिप्पणी करना, टोकाटाकी करना, व्यंग्य करना अब अंगद के लिए आम बात हो गई थी.

उस दिन पार्टी पूरे शबाब पर थी. सब संगीत की लहरों पर थिरक रहे थे. संगीत वैसे भी सुमोना की कमजोरी थी. वह भी पूरी तरह से संगीत में डूबी हुई थिरक रही थी. अचानक अंगद चिल्लाया, “क्या नचनिया की तरह ठुमके लगाए जा रही हो? अब पिछली बातें भूल जाओ, शरीफ घर की बहू बन गई हो तो शरीफों की तरह रहना सीखो.”

इस अपमान को वह सह नहीं पाई और रोते हुए बाहर की ओर भागी. विक्रांत भी उस के पीछेपीछे आया. घर पहुंचते ही उस ने अपनी सासूमां को पूरी बात बताई पर उन की प्रतिक्रिया से वह चकित रह गईं,”देख बहू, पतिपत्नी के बीच में ऐसी छोटीमोटी बातें होती रहती हैं. इन्हें तूल नहीं देना चाहिए. जाओ जा कर आराम करो,” कहते हुए उन्होंने उस की पीठ थपथपाई और अपने कमरे में चली गईं.

रात उस ने आंखों में ही काटी. सुबह होते ही वह अपने मायके चली आई. अपने मातापिता की प्रतिक्रिया से तो वह बुरी तरह आहत ही हो गई. पिता ने ठहरे हुए शब्दों में उसे समझाया, “देखो सुमोना, हर दंपति के बीच में ऐसे मौके आते ही हैं. बात को बिगाड़ने से कोई लाभ नहीं है. पुरुष कभीकभार कुछ ऊंचानीचा बोल ही देते हैं. छोटीछोटी बातों को पकड़ कर बैठोगी तो खुद भी दुखी रहोगी और हमें भी दुखी करती रहोगी. अब बड़ी हो गई हो, अपनी जिम्मेदारियों को समझो. हमारी परवरिश पर उंगली उठाने का मौका उन लोगों को मत देना. बस, इतनी सी अपेक्षा है तुम से.“

पिता तो अपनी बात कह कर अपने कमरे में चले गए, उस ने आशा भरी नजरों से मां की ओर देखा. कुछ देर शांत रहने के बाद मां बोलीं, “तुम अगर यह सारी बातें अपना मन हलका करने के लिए हमारे साथ साझा कर रही हो, तो ठीक है. पर अगर तुम को लगता है कि हम लोग दामादजी से इस बारे में कोई बात करेंगे तो ऐसा नहीं होगा.”

“मां…”

बात बीच में काट कर मां बोलीं, “सुमी, हम ने तुम्हें बेटे की तरह पाला है. इस का यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि तुम लड़का बन जाओ. लड़की हो, लड़की की तरह रहना सीखो. लड़कियों को थोड़ा दबना पड़ता है, सहना पड़ता है. गृहस्थी की गाड़ी तभी पटरी पर चलती है.”

“मां, मुझे इस तरह अपमानित करने का अधिकार विक्रांत को नहीं है. ”

“सुमी, तुम ने तो खुद देखा है, तुम्हारे पापा कितनी बार मुझे क्या कुछ नहीं कह देते हैं. तो क्या मैं उन की शिकायत ले कर अपने मायके जाती हूं? नहीं न?”

“मां, पर मैं यह अपमान बरदाश्त नहीं कर सकती.”

“सुमी, यह शादी तुम्हारी पसंद से, तुम्हारी खुशी के लिए करी गई है. इसे निभाना तुम्हारी जिम्मेदारी है. अभी हमें तुम्हारी दोनों छोटी बहनों की शादी भी करनी है. अगर बड़ी बहन का डाइवोर्स हो गया तो दोनों बहनों की शादी में बहुत दिक्कत आएगी. 2-4 चार दिन रहो आराम से मायके में और फिर अपने घर चली जाना. रात बहुत हो गई है, जाओ सो जाओ.”

शाम को औफिस से लौटते हुए विक्रांत उस के मायके चला आया. बिना कुछ कहेसुने वह विक्रांत के साथ अपने ससुराल चली आई. अपमानित होने का एक अनवरत सिलसिला आरंभ हो गया था. अब उसे अपने जीवन की सब से बड़ी भूल का एहसास हो रहा था. भावना में बह कर उस ने हनीमून पर से ही अपनी लगीलगाई नौकरी को इस्तीफा दे दिया था क्योंकि विक्रांत ने कहा था, “जानेमन, तुम दूसरे शहर में नौकरी करोगी तो मैं तो वियोग में ही मर जाऊंगा. 1-2 साल साथ में जी लेते हैं फिर तुम भी नौकरी कर लेना. तुम तो टौपर हो, तुम्हें तो कभी भी नौकरी मिल जाएगी.”

जाने उसे कब नींद आई. अगले दिन जब सुबह सो कर उठी तो उसे चक्कर आ रहे थे. उसे लगा कि उसे तनाव की वजह से ऐसा हो रहा है. पर सासूमां की अनुभवी आंखें शायद समझ गई थीं. उन्होंने डाक्टर के पास ले जा कर जांच करवाई और खुशी से झूमती हुई घर वापस आईं. सालभर के भीतर ही पिंकी उस की गोद में खेलने लगी थी और लगभग 1 साल बाद ही उस ने बेटे को जन्म दिया था. 2 बेटियों की मां, उस की जेठानी जलभुन गई थीं. अब वे भी उसे बातबात पर कुछ न कुछ बोलती रहतीं पर बेटा पा कर सास अब उस का ही पक्ष लेतीं पर बच्चों की मां को नौकरी करने की अनुमति इस घर में नहीं थी.

धीरेधीरे विक्रांत शराब पीने लगा. सब के बीच उस का अपमान करना अब रोज की बात थी. कमरे में अगर वे कुछ समझाने की कोशिश करतीं भी तो विक्रांत उस पर हाथ उठा देता. बच्चे सहम जाते.

कालेज में विक्रांत के परम मित्र थे अंगद. एक ही शहर में होने के कारण उन की दोस्ती अभी भी कायम थी . अगर उन के सामने कुछ भी घटित होता तो वे कभी विक्रांत को समझाते और कभी उसे. पर यह बात न तो विक्रांत को अच्छी लगती न ही परिजनों को इसलिए उन्होंने विक्रांत के घर आना कम कर दिया पर मोबाइल से वे सुमोना से संपर्क में रहते. सुमोना भी जब भी परेशान होती एकांत पा कर अंगदजी को ही फोन लगा लेती. अंगद हमेशा उस का हौसला बढ़ाते. अपने पैरों पर खड़े होने की सलाह देते.

उस दिन भी अंगद घर आए थे. जब विक्रांत ने सुमोना को गाली दी तो अंगद बच्चों का वास्ता दे कर उसे समझाने लगे पर विक्रांत तो जैसे अपना आपा ही खो चुका था. उस ने उन दोनों के रिश्ते पर ही उंगली उठा दी. अपमान से तिलमिलाए हुए अंगद उठ कर चले गए और अंगद का सारा गुस्सा विक्रांत ने उस पर ही उतार दिया.

आज जिस तरह से विक्रांत ने उसे पीटा था, उसे देख कर पंकज सहम गया था और उस घटना के बाद घंटे भर तक पिंकी डर कर कांपती रही थी और उस के आंसू रुके ही नहीं थे. सुमोना को लगा ये मेरे बच्चे हैं उन्हें डर और उलझी हुई जिंदगी नहीं दे सकती हूं. अब अपने बच्चों के लिए मुझे ही कुछ करना होगा. यह निर्णय लेने के बाद सुमोना स्वयं को भविष्य में आने वाले कठिन समय के लिए मानसिक रूप से तैयार करने लगी. अब उसे पता था कि यह लड़ाई उस की अकेले की है. इस युद्ध में कोई उस के साथ नहीं खड़ा होगा. पर फिर भी सुमोना हलका महसूस कर रही थी.

अगले दिन विक्रांत के जाने के बाद सुमोना लैपटौप ले कर बैठ गई और कई जगह नौकरी के लिए आवेदन भेज कर ही अपने कमरे से बाहर आई. 2 दिनों तक कहीं से कोई जवाब नहीं आया. पर वह निराश नहीं हुई, जानती थी कोर्स करने के बाद 5 साल का लंबा अंतराल लिया था उस ने, तो थोड़ी मुश्किल से तो नौकरी मिलेगी ही. पर उसे विश्वास था कि उस की योग्यता को देखते हुए उसे नौकरी जरूर मिलेगी.

मगर हमेशा अपना सोचा कहां होता है. इस से पहले कि सुमोना की नौकरी लगती विक्रांत ने उस के हाथ में तलाक के कागज थमा दिए. दूसरा विस्फोट यह था कि विक्रांत ने कोर्ट से अपने बच्चों की कस्टडी मांगी थी, क्योंकि सुमोना बेरोजगार थी. सुमोना के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी. पर सुमोना ने रोनेचिल्लाने की बजाय आगे की रणनीति पर विचार करना आरंभ किया. उसे किसी से किसी सहारे की उम्मीद नहीं थी. एक ही व्यक्ति था जिस से वह कोई मदद मांग सकती थी. तो उस ने अंगद को फोन मिलाया. पूरी स्थिति बता कर उस ने किराए का मकान ढूंढ़ने का अनुरोध किया.

विक्रांत के आने से पहले ही सुमोना अपने दोनों बच्चों को ले कर एक अटैची के साथ घर से चली गई. अंगद उस के विश्वास पर खरा उतरा और उस ने अपने किसी परिचित के यहां उसे पेइंगगेस्ट बनवा दिया. अंगद ने उसे मायके जाने की भी सलाह दी पर सुमोना ने यह कह कर मना कर दिया कि यह मेरी लडाई है मैं इस में उन लोगों को परेशान नहीं करना चाहती.

रात में जब विक्रांत लौटा तो इस नए घटनाक्रम से बुरी तरह बौखला गया,
“आप लोगों ने उसे रोका क्यों नहीं? वह इस तरह से मेरे बच्चों को ले कर नहीं जा सकती.”

“हम लोगों को लगा कि आप लोगों की आपस में बात हो गई होगी,” भाभी मुंह बना कर बोलीं.

विक्रांत अपने कमरे में चला गया. उस के जीवन में इतना बड़ा भूचाल आया था और परिवार का कोई सदस्य उस के पास हमदर्दी दिखाने भी नहीं आया. समझ नहीं पा रहा था कि जिन परिजनों पर सुमोना जान छिड़कती थी, उस के जाने का किसी को कोई दुख नहीं था. आधी रात को विक्रांत को भूख लगी. उठ कर बाहर आया, डाइनिंग टेबल पर 2 रोटी और सब्जी ढकी रखी थी, वही खा कर वापस जा कर सो गया.

सुमोना होती तो गरम कर, मानमनुहार से सलाद, अचार के साथ उसे खिलाती. अगली सुबह भी सब कुछ सामान्य ढंग से होता रहा. जब वह बाहर निकलने लगा तब मां ने पूछा, “सुमोना से कुछ बात हुई क्या?”

“नहीं, खुद गई है तो खुद वापस आएगी. किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है,” गुस्से में विक्रांत बोला.

“और वह तलाकनामा?” भाभी ने पूछा.

“उसी से उस की अक्ल ठिकाने आएगी आप देख लीजिएगा,” कहता हुआ विक्रांत बाहर चला गया.

समय के तो जैसे पंख होते हैं, तेजी से खिसकने लगा. दिन, महीना और फिर साल बीत गया. न सुमोना आई, न उस का कोई फोन आया. विक्रांत ने भी अपनी अकड़ में कोई फोन नहीं किया था पर इस दौरान विक्रांत ने सुमोना की कमी को शिद्दत से महसूस किया. अपनी उलझनों के कारण उस का काम में मन नहीं लगता था. प्राइवेट कंपनी उस को क्यों रखती अतः उसे नौकरी से निकाल दिया गया. बेरोजगार देवर अब भाभी पर अब बोझ था. वही भाभी जो उस के साथ मिल कर सुमोना को ताने सुनाया करती थीं, अब उसे ताने देती थीं, “जो अपनी पत्नी और बच्चों का नहीं हुआ वह किसी और का कैसे होगा.“

अपने ही घर में उस की स्थिति अनचाहे मेहमान जैसी हो गई थी. अब विक्रांत को अपने जीवन में सुमोना का महत्त्व समझ में आ रहा था. वह खुद को सुमोना से मिलने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रहा था कि तभी उस के ताबूत में आखिरी कील के रूप में हस्ताक्षर किया हुआ तलाकनामा रजिस्टर्ड डाक से उस के पास आ गया. साथ ही सुमोना ने कोर्ट के पास अपने बच्चों की कस्टडी का दावा भी ठोका था क्योंकि अब वह बेरोजगार नहीं थी बल्कि एक बड़ी कंपनी की एचआर हैड थी.

एक घड़ी औरत : क्यों एक घड़ी बनकर रह गई थी प्रिया की जिंदगी

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अब पता चलेगा – भाग 3 : क्या कभी रुक पाया राधा और विकास का झगड़ा

फंक्शन से फ्री हो कर जब सब साथ बैठे, मधु ने कहा,”मुझे आप लोगों से कुछ जरूरी बात करनी है.”

सुनते ही राधा ने विकास को इशारा किया, “देखो, मैं ने कहा था न…”

राधा ने कहा,”जी कहिए.”

”देखिए, पैसे की हमारे यहां कोई कमी है नहीं, बस मेरा मन तो अपने बच्चों की खुशी में खुश होता है, मेरी इच्छा है कि शादी अब जल्दी ही कर दें, घर में रौनक हो, हमारी बेटी कोई है नहीं और मुझे संदली के साथ रहने की बहुत इच्छा है, मुझ से अब इंतजार नहीं होगा, शादी अब बहुत जल्दी हो जाए, बस यही मान लीजिए.

“तैयारी भी मैं सब कर लूंगी और हां, संदली ने जो लोन लिया है, वह भी हम चुका देंगे, अब संदली यहां फैमिली बिजनैस संभाल लेगी. उसे वहां अकेली रह कर जौब करने की जरूरत है ही नहीं. अब बच्चे मिल कर बिजनैस संभालें, हमारे पास रहें और क्या…”

विकास ने हाथ जोड़ दिए,”आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा, हम तैयार हैं. लोन चुकाने की बात आप न सोचें प्लीज, हमारा एक फ्लैट किराए पर चढ़ा है, उसे संदली को देने के लिए ही इन्वेस्ट किया था. अब उसे बेच देंगे तो लोन चुक जाएगा, कोई प्रौब्लम नहीं है. शादी जब आप कहें, हो जाएगी.”

मधु ने खुश हो कर उठ कर संदली को गले लगा लिया. खूब प्यार करते हुए बोलीं,”बस मेरी बहू अब जल्दी घर आ जाए. संदली, अब एक बार जाना और वहां से अपना सब सामान ले आओ, बस अब तो आर्यन के साथ ही घूमने जाना.”

आगे का प्रोग्राम तय होने लगा था. राधा हैरान थी कि इतनी जल्दी यह सब… ये कैसे लोग हैं? कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है?

मुंबई लौटते हुए संदली ने पूछा,”मम्मी, सब ठीक लगा न आप को?”

”देखते हैं, कुछ ज्यादा ही अच्छा परिवार लग रहा है. देखते हैं कि तुम कितना खुश रहती हो इन के साथ.अब पता चलेगा…’’

संदली चुप ही रही. राधा ने फिर विकास से कहा,”आप ने सब बात खुद ही कर ली उन से, मुझ से कुछ पूछा ही नहीं.”

”पूछना क्या था, सब अच्छा ही लग रहा था, अच्छे लोग हैं.”

दोनों तरफ शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. 2 महीने बाद ही शादी थी. प्रिया भी सपरिवार आने वाली थी. संदली ने रिजाइन कर दिया और वहां से सब क्लियर कर लौट आई. मधु फोन पर ही उस से पूछपूछ कर उस की पसंद की तैयारी करने लगीं. मधु एक से बढ़ कर एक चीजें उस की पसंद से बनवा रही थीं.

राधा ने कहा,”मुझे पता ही है कि इन अमीरों के 4 दिन के चोंचले हैं, थोड़े ही दिनों में असलियत सामने आएगी, पहले तो सब अच्छा ही दिखता है.”

संदली मन ही मन बहुत उदास थी. शादी का समय था उस पर भी मां की अजीबोगरीब बातें रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. जो भी तैयारी राधा कर रही थीं, बोझ समझ कर कर रही थीं, उस में बेटी को अच्छा परिवार मिलने की कोई खुशी नहीं थी. हर समय किसी न किसी बात पर आर्यन के परिवार को ले कर कुछ ऐसा कह देतीं कि संदली का चेहरा मुरझा जाता.

विकास सब समझ रहे थे पर क्या करते, राधा को कुछ कह कर घर का माहौल खराब नहीं करना चाहते थे. प्रिया भी आ चुकी थी, उस के पति विशाल और दोनों बच्चे सोनू,पिंकी मौसी की शादी को ले कर बहुत उत्साहित थे.

सब खुश थे पर राधा का स्वभाव अकसर रंग में भंग डाल देता. विकास ने अपने बजट के अनुसार सारा पैसा अनिल के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिया था. सब इंतजाम आर्यन का परिवार ही देख रहा था.

शादी से 4 दिन पहले संदली अपने परिवार के साथ दिल्ली पहुंची तो आर्यन की तरफ से कई गाड़ियां उन्हें लेने आई हुई थीं.

अनिल और मधु ने खुद एअरपोर्ट पर सब का स्वागत किया और उन्हें पानीपत के ही एक होटल में ले गए, जहां सारा इंतजाम बहुत शानदार था.

रस्में बहुत खुशी से पूरी की गईं. विवाह का आयोजन शानदार रहा. सबकुछ अच्छी तरह से संपन्न हुआ. राधा परिवार सहित मुंबई लौट आईं. कुछ दिन बाद प्रिया भी वापस चली गई.

विकास औफिस के काम में व्यस्त हो गए. राधा का पुराना रवैया चलता रहा. हर बात में अब भी अपने को ही सही ठहरातीं. संदली जब फोन करती, राधा खोदखोद कर पूछतीं कि ससुराल का क्या हाल है?

संदली तारीफ करती तो कहतीं,”मुझे पता है, यह सब प्यारव्यार थोड़े दिनों की बात है. आगे पता चलेगा.”

संदली ने घर का बिजनैस संभालना शुरू कर दिया था. एक नया शोरूम खोला जा रहा था जिस की देखरेख संदली और आर्यन पर छोड़ दी गई थी, उस के लिए एक कार और ड्राइवर हमेशा रहता. वह बहुत खुश रहती. उसे सारी सुविधाएं और ढेर सारा प्यार मिल रहा था.

कुछ ही दिनों में अभय की शादी भी उस की गर्लफ्रैंड तारा के साथ तय हो गई.

राधा ने सुनते ही कहा,”संदली, अब पता चलेगा तुम्हें जब देवरानी घर आएगी और प्यार बंटेगा.”

संदली चुप रही. अभय के विवाह में राधा और विकास भी गए. अब की बार भी उन्हें बहुत सम्मान दिया गया. सब कुछ पहले की तरह अच्छी तरह से हुआ. संदली की अपनी देवरानी तारा से खूब जम रही थी. दोनों खूब मस्ती कर रही थीं.

राधा ने मुंबई आने के बाद संदली से देवरानी के हाल पूछे तो वह खूब उत्साह से तारा और अपनी खूब अच्छी दोस्ती के बारे में बताने लगी. संदली और तारा का आपस में बहनों जैसा प्यार हो गया था.

राधा ने कहा,”बेटा, मैं ने देखे हैं ऐसे रिश्ते, अब पता चलेगा थोड़े दिनों में जब यही प्यार तकरार में बदलेगा, देखना.”

आज संदली का धैर्य जवाब दे गया. विकास भी वहीं बैठे थे, फोन स्पीकर पर था, संदली फट पड़ी थी आज,”हां, मुझे पता चल चुका है कि आप के लिए हर रिश्ता बेकार है. आप को कहां किसी रिश्ते में प्यार दिखता है? मम्मी, पता नहीं क्यों आप के लिए सब बुरा ही होने वाला होता है. मुझे तो इस घर में आने के बाद यह पता चला है कि शांति से रहना कितना आसान है, प्यार दो, प्यार लो, काश कि आप को भी यह पता रहता.

“बस, यहां जो मुझे पता चला है, वह सब आप के साथ रह कर कभी पता ही नहीं चला. आप मुझे अब कभी मत बताना कि मुझे क्या पता चलेगा? मुझे जो पता चलना था, चल चुका. इतना प्यार है यहां पर, मैं कितनी खुश हूं,आगे भी खुश ही रहूंगी, मुझे तो यह पता है.”

राधा का चेहरा देखने लायक था. संदली ने कभी इस तरह बात नहीं की थी. आज अपनी बात कह कर फोन ऐसे रखा था कि राधा शर्मिंदा सी बैठी रह गई थीं. विकास तो अपनी हंसी रोकने की कोशिश में आज चुपचाप वहां से उठ कर दूसरे रूम में जा चुके थे.

अब पता चलेगा – भाग 2 : क्या कभी रुक पाया राधा और विकास का झगड़ा

रात को अकेले में राधा भुनभुनाती ही रहीं. विकास ने टोका,”कभी तो किसी बात पर खुश रहना सीखो, राधा. इतना अच्छा लड़का पसंद किया है संदली ने. बेटी बहुत समझदार है हमारी, सब देखसुन कर ही मिलवाने लाई होगी.”

”यह शादी कर के बहुत पछ्ताएगी.देखना, इस की किसी से नहीं निभ सकती, कुछ नहीं आता है, बस सैरसपाटा, आराम करना आता है.अब पता चलेगा, यह शादी के बाद बैठ कर रोएगी.”

विकास को गुस्सा आ गया,”कैसी मां हो, बेटी के लिए बुरा सोचती हो, शेम औन यू,राधा.”

संदली को मां का मन अच्छी तरह पता था. वह अंदर से दुखी भी थी पर आर्यन से बहुत प्यार करने लगी थी, अब विवाह करना चाहती थी पर मां इस विषय पर उस के लिए अच्छा नहीं सोचेंगी, पता था उसे.

अगले दिन आर्यन और संदली चले गए. फिर एक दिन प्रिया का फोन आया, वह संदली के लिए खुश थी.

कहने लगी,”आर्यन बहुत अच्छे परिवार से है, संदली ने नेट पर देख लिया है, उन के बिजनैस के बारे में वह सब जानती है, सब देख कर ही उस ने आर्यन से शादी का मन बनाया है. ऐसा लड़का तो हम भी उस के लिए नहीं ढूंढ़ सकते थे.”

राधा बिफरी,”मुझे पता था तुम उस की ही साइड लोगी.”

”ओह मां, यह जो आप को हर बात पता होती है न, बड़े परेशान हैं हम इस से, कभी तो कोई बात आराम से सुन लिया करो.”

थोड़ी देर बाद फोन रख दिया गया. संदली ने वहां से आर्यन के पेरैंट्स अनिल और मधु से भी विकास और राधा की बात करवा दी. विकास को दोनों का स्वभाव बहुत अच्छा लगा, दोनों संदली से मिल कर खुश थे. अब जल्दी से जल्दी उसे अपनी बहू बनाना चाहते थे.

विकास ने भी इस विवाह के लिए सहमति दे दी तो उन्होंने कहा,”आप भी आ कर हमारा घर देख लीजिए, तसल्ली कर लीजिए कि संदली हमेशा खुश रहेगी. यह बात विकास को बहुत अच्छी लगी.

उन्होंने कहा,”हम भी जल्दी ही आते हैं.”

दोनों परिवार अब आगे का प्रोग्राम बनाने लगे. संदली 2 दिन में वापस आ गई.

बैग खोलते हुए ढेरों गिफ्ट्स दिखाते हुए बोली,”पापा, मम्मी, देखो उन लोगों ने तो गिफ्ट्स की बौछार कर दी. इतने प्यार से मिले कि क्या बताऊं. पापा, मैं बहुत खुश हुई वहां जा कर.”

राधा ने सब सामान देखा, कहा कुछ नहीं, उठ कर अपने काम में लग गईं. 10 दिन बाद संदली चली गई. कोर्स पूरा हो चुका था. संदली को वहीं नई नौकरी जौइन करनी थी.

आर्यन अब पानीपत में फैमिली का बिजनैस ही संभालने वाला था. अनिल और मधु मुंबई आए. होटल में ठहरे और विकास और राधा से मिलने घर आए. गजब के खुशमिजाज, सुंदर दंपत्ति को देख कर राधा हैरान थीं. वे दोनों विकास और राधा के लिए बहुत सारे गिफ्ट्स भी लाए.

राधा के हाथ का बना खाना खा कर उन की कुकिंग की खूब तारीफ की तो राधा ने कहा,”पर संदली को कुछ भी बनाना नहीं आता. पहले इसलिए बता रही हूं कि आप लोग हमें बाद में यह न कहें कि आप लोगों को बताया नहीं.”

मधु ने खुल कर हंसते हुए कहा,”बेटी बहुत प्यारी है आप की. उस ने मुझे खुद ही बता दिया कि उसे कोई काम नहीं आता और उसे हमारे यहां कुकिंग की जरूरत पड़ेगी भी नहीं. हमारे यहां 2 कुक हैं, किचन में तो मैं ही जल्दी नहीं घुसती, आजकल की लड़कियां कैरियर बनाने में मेहनत करती हैं, जब जरूरत होती है सब कर लेती हैं और वहां अकेली रह ही रही है न, बहुत कुछ अपनेआप करती भी होगी.”

राधा चुप रहीं. अनिल और मधु ने अच्छा समय साथ बिताया. जाते हुए उन्हें भी गिफ्ट्स दे कर विदा किया गया.

अब अगले हफ्ते विकास और राधा को दिल्ली जाना था. तय हुआ कि अब सगाई भी कर देते हैं और संदली को भी बुला लेते हैं.

यह सुनते ही राधा को गुस्सा आ गया, विकास से कहा,”अब फिर उस के आने का खर्चा उठाना है?अभी तो गई है.”

संदली ने यह बात सुन कर कहा,”मम्मी, आप टिकट की चिंता न करो, सरप्राइज में आर्यन ने मुझे टिकट भेज दिए हैं.”

राधा ने कहा,”मुझे पता है कोई गड़बड़ जरूर है जो वे शादी के लिए इतनी जल्दी मचा रहे हैं. इतना अच्छा परिवार संदली को बहू बनाने के लिए क्यों मरा जा रहा है? कोई बात तो है.अब पता चलेगा.’’

विकास ने कहा,”गड़बड़ तुम्हारे दिमाग में है, बस.”

संदली सीधे दिल्ली पहुंची. विकास और राधा भी पहुंच गए.

प्रिया ने कहा था कि वह सीधे शादी में ही आएगी. पानीपत में आर्यन का विशाल घर, नौकरचाकर देख कर राधा दंग रह गईं. उस पर सब का स्वभाव इतना सहज, कोई घमंड नहीं. पर आदत से मजबूर, कमी ढूंढ़ती ही रहीं, जो मिली नहीं.

राधा यह देख कर हैरान हुईं कि मधु और संदली ने फोन पर ही एकदूसरे के टच में रह कर सगाई के कपड़ों की जबरदस्त तैयारी कर रखी है. अभय संदली से खूब हंसीमजाक कर रहा था, विकास और मधु के लिए बेहद आरामदायक गेस्टरूम था, अनिल और मधु के करीब 100 लोगों के परिचितों के मौजूदगी में सगाई का फंक्शन हुआ.

विकास ने खर्चे बांटने की बात कही तो अनिल ने हाथ जोड़ दिए,”हमें कुछ नहीं चाहिए. संदली इस घर में आ रही है तो हमें खुशी से यह सब करने दें. हमें कुछ भी नहीं चाहिए.”

राधा ने अकेले में विकास से कहा,”इतना अच्छा बन कर दिखा रहे हैं, मुझे पता है ऐसे लोग बाद में रंग दिखाते हैं. अब पता चलेगा.‘’

संदली भी उन के पास ही बैठी थी.गुस्सा आ गया उसे, कहा,”मम्मी, हद होती है, इतने अच्छे लोग हैं फिर भी आप ऐसे कह रही हैं, सब कुछ उन्होंने आज मेरी पसंद का किया है, मेरी ड्रैस, ज्वैलरी सब आर्यन की मम्मी ने ली, मुझे कुछ भी लेने से मना कर दिया था, अब शादी की भी पूरी शौपिंग मुझे करवाने के लिए तैयार हैं, पर आप की बातें…उफ…”

”मुझे पता है तुम्हारी जैसी लड़कियां बाद में खूब रोती हैं.”

संदली को रोना आ गया. उस के आंसू बह निकले तो विकास ने उसे गले से लगा लिया,”संदली बेटा, मत दुखी हो, तुम्हारी मम्मी को कुछ ज्यादा ही पता रहता है.‘’

विकास और संदली दोनों राधा से नाराज थे पर राधा पर न कभी पहले कोई असर हुआ था, न अब हो रहा था.

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