ठाकरे : बायोपिक के नाम पर प्रौपेगेंडा फिल्म

रेटिंग : दो स्टार

इन दिनों बौलीवुड में बायोपिक फिल्मों का दौर जारी है. इसी दौर में महाराष्ट्र के राजनीतिक दल ‘शिवसेना’ के नेता व सांसद संजय राउत शिवसेना प्रमुख रहे बाल केशव ठाकरे यानी कि बाला साहेब ठाकरे के कृतित्व पर आधारित फिल्म ’ठाकरे’ लेकर आए हैं, जिसका पहला भाग 25 जनवरी को सिनेमाघरों में पहुंचा है.

बाल केशव ठाकरे अपने समय के सर्वाधिक विवादास्पद इंसान थे. वह महाराष्ट्रियन के लिए समान अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले सम्मानजनक इंसान थे. मगर यह फिल्म एक निष्पक्ष व बेहतरीन बायोपिक फिल्म की श्रेणी में नहीं गिनी जा सकती.

फिल्म की शुरुआत होती है लखनऊ में बाबरी विध्वंस केस की सुनवाई के लिए अदालत के अंदर बाला साहेब ठाकरे के आगमन के साथ. अदालत में वकील के सवालों के जवाब के साथ ही कहानी अतीत में जाती है. बाला साहेब ठाकरे मुंबई के एक अखबार में कार्टूनिस्ट के रूप में नौकरी कर रहे हैं. ठाकरे अपने कार्टून में सच को व्यंग के साथ पेश करते हैं, पर इससे अखबार के मालिक के सामने समस्या पैदा होती है और बाला साहेब ठाकरे नौकरी से त्यागपत्र देकर मुंबई के ‘ईरोज’ थिएटर में महाराष्ट्यिन यानी कि मराठी भाषी लोगों का अपमान करने वाली फिल्म देखकर वह मराठियों के लिए क्रांति लाने का मन बनाते हैं.

उन्हे लगता है कि मुंबई व महाराष्ट्र पर गैर मराठियों, गुजराती, दक्षिण भारतीयों व गैर महाराष्ट्रिट्यन का ही शासन है. इसलिए वह मराठियों की लड़ाई लड़ने के लिए ‘मार्मिक’ नामक मराठी भाषा में साप्ताहिक पत्र निकालने का ऐलान करते हैं, जिसका सर्मथन उनके पिता प्रबोधन ठाकरे भी करते हैं. ‘मार्मिक’ के पहले अंक का विमोचन महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री यशवंतराव चौहाण करते हुए बाला साहेब ठाकरे की काफी तारीफ करते हैं. मार्मिक में समाज के सच का चित्रण होता है.

मार्मिक की लोकप्रियता के बाद वह आम लोगों की समस्याओं का निवारण करने लगते हैं. फिर अपने पिता के कहने पर ‘शिवसेना’ का गठन करते हैं. राजनीति के साथ समाज सेवा के कार्य शुरू होते हैं. गैर मराठी भाषियों के खिलाफ आंदोलन करवाते हैं. शिवसैनिक हिंसा का सहारा लेते हैं, जिसका बाला साहेब ठाकरे पूरा समर्थन करते हैं. पुलिस विभाग में भी तमाम लोग बाला साहेब ठाकरे का समर्थन करने के साथ साथ उनके साथ हो जाते हैं.

बेलगाम व करवार को महाराष्ट्र में शामिल करने के आंदोलन के दौरान प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के मुंबई आगमन पर उनसे मिलने का बाला साहेब ठाकरे असफल प्रयास करते हैं, पर शिवसैनिक व पुलिस के बीच मुठभेड़ और फिर शिवसैनिकों द्वारा मुंबई शहर में जमकर तोड़फोड़ और आगजनी की जाती है. उस वक्त महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री वसंत राव नाइक का उन्हे मौन समर्थन प्राप्त रहता है. केंद्र सरकार के सख्त रवैये के चलते बाला साहेब ठाकरे को गिरफ्तार किया जाता है, पर मुंबई बंद रहती है.

जार्ज फर्नांडिस जेल में ठाकरे से मिलकर उनकी तारीफ करते हैं कि उन्होंने मुंबई को बंद किया. बीच में एक बार वह मुस्लिम लीग के मंच पर जाकर भाषण देते हैं कि उन्हे किसी के धर्म से परहेज नहीं है, पर उन्हे मिलकर काम करना रहना चाहिए और ईद के साथ शिवाजी जयंती भी मनानी चाहिए. पर बात नहीं बनती. 1966 से शिवसेना की गतिविधियों, आपातकाल के दौरान मुंबई आने पर प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से मिलकर बाला साहेब ठाकरे अनुशासन के नाम पर आपातकाल का समर्थन कर‘शिवसेना’ पर बैन लगाने के प्रस्ताव को खारिज कराने में सफल हो जाते हैं. मुंबई महानगर पालिका और फिर महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार बनने पर मनोहर जोशीद्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने तक की कहानी है. इसके आगे की कहानी फिल्म के दूसरे भाग में दिखायी जाएगी.

यूं तो बाला साहेब ठाकरे के जीवन व कृतित्व को ढाई घंटे की फिल्म में समेटना असंभव है, मगर संजय राउत की कहानी पर लेखक व निर्देशक अभिजीत पनसे ने एक बेहतरीन प्रचारात्मक फिल्म बनायी है. उन्होंने फिल्म में बाला साहेब ठाकरे के व्यक्तित्व व सोच को सही ढंग से चित्रित करने का सफल प्रयास किया है. पर यह फिल्म बाला साहेब ठाकरे का महिमा मंडन है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता.

यूं तो राजनीतिक व्यक्ति पर बनने वाली फिल्म में सच व कूटनीति के बीच रेखा खींचना आसान नहीं होता. पर इस फिल्म में फिल्मकार अभिजीत पनसे ने सच की बजाय कूटनीति को ही महत्व देते हुए बाला साहेब के प्रशंसकों को खुश करने का प्रयास किया है. फिल्म में इसी हिसाब से राजनीतिक घटनाक्रमों को भी पिरोया गया है. फिल्म में लोकतंत्र व राजनीति को लेकर उनकी सोच व पसंद को भी सही ढंग से उकेरा गया है. मगर यह निष्पक्ष व बेहतरीन बायोपिक फिल्म की बजाय प्रचारात्मक फिल्म बनकर उभरती है.

राष्ट्रवाद के नाम पर फिल्म में दक्षिण भारतीयों के खिलाफ ‘‘उठाओ लुंगी बजाओ पुंगी’ जैसा संवाद प्रमुखता से है, तो वहीं शिवसैनिकों द्वारा मार्क्सवादी नेता कृष्णा देसाई की हत्या को मील के पत्थर के रूप में चित्रित किया गया है. तो वहीं बाबरी मस्जिद को गिराना व जय श्रीराम के नारों का भी उपयोग है.

फिल्म की विडंबना यह है कि बाला साहेब ठाकरे ने गैर महाराष्ट्यिन के खिलाफ अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू की थी और वह इनके खिलाफ आवाज उठाते रहे, पर यह फिल्म ऐसे ही गैर महाराष्ट्रियन लोगों के सहयोग से बनी है, जिस तरह मुंबई के विकास में इन गैर महाराष्ट्यिन का योगदान रहा है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो एक निडर और कुछ भी कर सकने वाले इंसान की छवि वाले बाला साहेब ठाकरे को परदे पर जिस तरह से नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. नवाजुद्दीन की अभिनय प्रतिभा के बल पर बाला साहेब ठाकरे एक सशक्त चरित्र बनकर उभरते हैं. मीनाताई के किरदार में अमृता राव ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. इंदिरा गांधी का किरदार निभाने वाली अदाकारा पूरी तरह से मात खा गयी हैं. फिल्म में इंदिरागांधी का किरदार महज रोबोट बनकर रह गया है.

लगभग ढाई घंटे की अवधी वाली फिल्म ’ठाकरे’ का निर्माण ‘वायकौम 18 मोशन पिक्चर्स’, डा श्रीकांत भासी, वर्षा संजय राउत, पुर्वशी संजय राउत व विधिता संजय राउत ने किया है. फिल्म के निर्देशक अभिजीत पनसे, कहानीकार संजय राउत, पटकथा लेखक अभिजीत पनसे, संवाद लेखक अरविंद जगताप व मनोज यादव, संगीतकार रोहन रोहन, संदीप शिरोड़कर, पार्श्वसंगीत अमर मोहिले, कैमरामैन सुदीप चटर्जी तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं – नवाजुद्दीन सिद्दिकी, अमृता राव,सुधीर मिश्रा, अब्दुल कादिर अमीन, लक्ष्मण सिंह राजपूत, अनुष्का जाधव, निरंजन जवीर, डा. सचिन ए जयंत, विशाल सुदर्शनवार, राधा सागर, सतीश अलेकर, आनंद विकास पोटदुखे व अन्य.

मणिकर्णिका देख मनोज कुमार ने जो कहा वो आपको जानना चाहिए

हिंदी सिनेमा में अपनी देशभक्ति फिल्मों के लिए मशहूर अभिनेता मनोज कुमार ने कंगना रनौत की फिल्म ‘मणिकर्णिका’ देखने के बाद जो कहा है वो वाकई में बेहद खास है. फिल्म देखने के बाद एक न्यूज एजेंसी से बात करते हुए मनोज कुमार ने कहा कि, “मुझे लगता है कि कंगना पर्दे पर उनका (रानी लक्ष्मीबाई) किरदार निभाने के लिए ही पैदा हुई हैं. फिल्म में हर किसी ने शानदार काम किया है, लेकिन कंगना ने रानी लक्ष्मीबाई के किरदार को परदे पर अमर कर दिया.”

आपको बता दें कि मणिकर्णिका बेहद ही महत्वकांक्षी फिल्म है. ये फिल्म 25 जनवरी को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. मुंबई में फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी गई थी. जिसे देखने बौलीवुड के तमाम दिग्गज मौजूद थे. इन लोगों में मनोज कुमार भी थे. मनोज कुमार को फिल्म बेहद पसंद आई. फिल्म देख वो काफी खुश नजर आ रहे थे. गौरतलब है कि  मनोज कुमार की पहचान भारत कुमार के रूप में की जाती है. उन्होंने अपनी करियर में कई देशभक्ति फिल्मों का निर्माण किया.

जो रिकार्ड राजेश खन्ना और अमिताभ ना तोड़ सकें, नवाजुद्दीन तोड़ेंगे

नवाजुद्दीन सिद्दीकी बाला साहेब ठाकरे की बायोपिक लेकर आ रहे हैं. रिलीज होने से पहले ही फिल्म दर्शकों के बीच छाई हुई है. फिल्म की पौपुलैरिटी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके नाम एक ऐसा रिकार्ड दर्ज होने वाला है जो राजेश खन्ना और अमिताभ जैसे दिग्गजों को भी नसीब नहीं हुआ.

असल में फिल्म ठाकरे को महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में सुबह चार बजे का शो भी मिला है. दर्शकों के बीच फिल्म के क्रेज को देखते हुए फिल्म के शोज की संख्या बढ़ाई गई है जिसके कारण फिल्म का शो सुबह चार बजे से ही शुरू हो जाएगा. मुंबई के वडाला इलाके के मल्टीप्लैक्स में यह सुबह सवा चार बजे के शो में रिलीज हो रही है.

हिंदी सिनेमा के इतिहास में पहली बार होगा ऐसा

जी हां, हिंदी सिनेमा के इतिहास में संभवत: यह पहली बार ऐसा होगा कि सुबह चार बजे से ही किसी फिल्म का प्रदर्शन सिनेमाघरों में शुरू हो जाएगा. इससे पहले ऐसी दिवानगी राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के लिए देखी जाती थी. उनकी कुछ फिल्में सिनेमाघरों में सुबह छ: बजे प्रदर्शित की गई हैं. पर संभवत: पहली बार किसी फिल्म को सुबह चार बजे से लगाया जाएगा. इस बात की जानकारी देख के मशहूर ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श ने दी है. आपको बता दें कि वडाला के अलावा महाराष्ट्र के लातूर और अन्य शहरों में भी इस तरह के शो रखे गए हैं। पहले ऐसा क्रेज अमिताभ और राजेश खन्ना को हासिल था.

इस तरह की दीवानगी रजनीकांत की फिल्मों को लेकर साउथ इंडिया में देखी जाती है. इसके बाद नवाज की इस फिल्म के लिए लोगों में ऐसा जुनून देखने को मिल रहा है.

फिल्म ‘लकी’ के गाने पर अभिनेता जीतेंद्र कपूर के थिरके कदम !

बी-लाइव प्रस्तुत फिल्म लकी के ट्रेलर लौन्च पर दिग्गज अभिनेता जीतेंद्र कपूर, बौलीवुड अभिनेता तुषार कपूर और डिस्को किंग बप्पी लहरी मौजुद थे. इस समारोह में बौलीवुड में ‘जंपिंग जैक’ के नाम से जाने जाते प्रसिद्ध अभिनेता जीतेंद्र कपूर ने अपने खास अंदाज में समा बांधा. फिल्म लकी की गीत कोपचा पर फिल्म के मुख्य अभिनेता अभय महाजन के साथ मिलकर अपने खास अंदाज में डान्स स्टेप की. कार्यक्रम में मौजूद लोगों के लिए ये समारोह यादगार बन गया.

फिल्म लकी में कोपचा गीत बप्पी लाहिरी और वैशाली सामंत ने गाया हैं. यह गाना 80 के दशक को और अभिनेता जीतेंद्र कपूर की फिल्म हिम्मतवाला को ट्रिब्यूट देने वाला गाना है. हिंदी और बंगाली सिनेमा में कई गीत गाये बप्पी दा ने इस गीत के साथ मराठी पार्श्वगायन में डेब्यू किया हैं.

फिल्म लकी के ट्रेलर लौंच के लिए आयें अभिनेता जीतेंद्र कपूर ने जब स्पोन्टेनिअसली स्टेज पर फिल्म के मुख्य अभिनेता अभय महाजन के साथ डान्स स्टेप की तब समारोह में तालियों और सिटीयों की गूंज उठ गई.

ट्रेलर लौंच के बाद अभिनेता जीतेन्द्र ने कहा, “ट्रेलर इतना आकर्षक है कि निश्चित रूप से लकी फिल्म को बम्पर ओपनिंग मिलने वाली हैं. लकी की पूरी टिम को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं. ”

डिस्को किंग बप्पी लहरी इस साल फिल्म उद्योग में अपने 50 साल पूरे कर रहे हैं. इस समारोह में, लकी की टीम ने  गोल्डन जुबली केक काटकर सेलिब्रेट किया. इस जश्न के बाद बप्पी लहरी ने कहा, “मैंने मुंबई में एक सफल करियर बनाया है और मुझे इस बात की खुशी है कि गोल्डन ज्युबली इयर में ही मैने मुंबई की भाषा मराठी में गाना गाया. और मेरा मराठी फिल्मों के पार्श्वगायन में डेब्यू हुआ हैं. मैं अपने फैन्स का शुक्रगुजार हूं की उन्होंने मुझे इतना प्यार दिया.

ट्रेलर लौन्च समारोह में अभिनेता जीतेन्द्र के बेटे और बौलीवुड अभिनेता तुषार कपूर भी मौजूद थे.  तुषार ने कहा, “मैंने कोपचा गाना देखा.  फिल्म निर्माताओं ने कोपचा गाने से मेरे पिता को अलग अंदाज में दिया ट्रिब्युट मुझे पसंद आया. मैने गोलमाल फिल्म सीरीज की हैं. जिसमें मेरा नाम लकी था. इसी वजह से लकी फिल्म से मेरा एक खास नाता हैं. निर्माता सूरज सिंह 16 सालों तक बालाजी फिल्म्स के साथ जुडे थे. इसीलिए ऐसा लग रहा हैं, जैसे मेरी होम प्रोडक्शन की फिल्म रिलीज हो रही हो.”

निर्माता सूरज सिंह ने कहा, “यह ट्रेलर लौन्च हम सभी के लिए एक यादगार क्षण था. बप्पीदा और जीतू सर इन दो लीवींग लिजेंड्स ने एक साथ हमारे फिल्म का ट्रेलर लौंच करना हमारे लिए निश्चित ही सौभाग्य की बात हैं.”

संजय कुकरेजा, सूरज सिंह, और दीपक पांडुरंग राणे द्वारा निर्मित, संजय जाधव द्वारा निर्देशित, बी लाइव प्रोडक्शंस के सहयोग से बनी ड्रिमींग ट्वेंटी फोर सेवन की फिल्म लकी में अभय महाजन और दीप्ती सती मुख्य भूमिका में नजर आयेंगें. यह फिल्म 7 फरवरी, 2019 को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली हैं.

बौम्बैरिया : यातनादायक फिल्म

रेटिंग : एक स्टार

गवाह की सुरक्षा के अहम मुद्दे पर अति कमजोर पटकथा व घटिया दृष्यों के संयोजन के चलते ‘बौम्बैरिया’ एक घटिया फिल्म बनकर उभरती है. बिखरी हुई कहानी, कहानी का कोई ठोस प्लौट न होना व कमजोर पटकथा के चलते ढेर सारे किरदार और कई प्रतिभाशाली कलाकार भी फिल्म ‘‘बौम्बैरिया को बेहतर फिल्म नहीं बना पाए.

फिल्म की शुरूआत होती है टीवी पर आ रहे समाचारनुमा चर्चा से होती है. चर्चा पुलिस अफसर डिमैलो के गवाह को सुरक्षा मुहैया कराने और अदालत में महत्वपूर्ण गवाह के पहुंचने की हो रही है.फिर सड़क पर मेघना (राधिका आप्टे) एक रिक्शे से जाते हुए नजर आती हैं. सड़के के एक चौराहे पर एक स्कूटर की उनके रिक्शे से टक्कर होती है और झगड़ा शुरू हो जाता है. इसी झगड़े के दौरान एक अपराधी मेघना का मोबाइल फोन लेकर भाग जाता है. और फिर एक साथ कई किरदार आते हैं. पता चलता है कि मेघना मशहूर फिल्म अभिनेता करण (रवि किशन) की पीआर हैं. उधर जेल में वीआईपी सुविधा भोग रहा एक नेता (आदिल हुसैन )अपने मोबाइल फोन के माध्यम से कई लोगों के संपर्क में बना हुआ है. वह नहीं चाहता कि महत्वपूर्ण गवाह अदालत पहुंचे. पुलिस विभाग में उसके कुछ लोग हैं, जिन्होने कुछ लोगों के फोन टेप करने रिक्शे किए है और इन सभी मोबाइल फोन के बीच आपस में होने वाली बात नेता जी को अपने मोबाइल पर साफ सुनाई देती रहती है. पुलिस कमिश्नर रमेश वाड़िया (अजिंक्य देव) को ही नहीं पता कि फेन टेप करने की इजाजत किसने दे दी. नेता ने अपनी तरफ से गुजराल (अमित सियाल) को सीआईडी आफिसर बनाकर मेघना व अन्य लेगों के खिलाफ लगा रखा है. अचानक पता चलता है कि फिल्म अभिनेता  करण की पत्नी मंत्री ईरा (शिल्पा शुक्ला) हैं और वह पुनः चुनाव लड़ने जा रही हैं, तो वहीं एक प्लास्टिक में लिपटा हुआ पार्सल की तलाश नेता व गुजराल सहित कईयों को है, यह पार्सल स्कूटर वाले भ्रमित कूरियर प्रेम (सिद्धांत कपूर) के पास है.तो वहीं एक रेडियो स्टेशन पर दो विजेता अभिनेता करण कपूर से मिलने के लिए बैठे है, पर अभिनेता करण कपूर झील में नाव की सैर कर रहे हैं. तो एक पात्र अभिषेक (अक्षय ओबेराय) का है, वह मेघना के साथ क्यों रहना चाहता है, समझ से परे हैं. कहानी इतनी बेतरीब तरीके से चलती है कि पूरी फिल्म खत्म होने के बाद भी फिल्म की कहानी समझ से परे ही रह जाती है. यह सभी पात्र मुंबई की चमत्कारिक सड़क पर चमत्कारिक ढंग से मिलते रहते हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है,तो नेता के किरदार में आदिल हुसैन को छोड़कर बाकी सभी कलाकार खुद को देहराते हुए नजर आए हैं.

पिया सुकन्या निर्देशित फिल्म ‘बौम्बैरिया’ में संवाद है कि : ‘मुंबई शहर संपत्ति के बढ़ते दामों और बेवकूफों की सबसे  बड़ी तादात वाला शहर है.’’शायद इसी सोच के साथ उन्होने एक अति बोर करने वाली फिल्म का निर्माण कर डाला. पिया सुकन्या की सोच यह है कि मुंबई शहर के लोगां के दिलां में अराजकता बसती है. पिया सुकन्या ने दर्शकों को एक थकाउ व डरावने खेल यानी कि ‘पजल’ को हल करने के लिए छोड़कर अपने फिल्मकार कर्म की इतिश्री समझ ली है.

एक घंटा अड़तालिस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘बौम्बेरिया’ का निर्माण माइकल ई वार्ड ने किया है. फिल्म की निर्देशक पिया सुकन्या, पटकथा लेखक पिया सुकन्या, माइकल ईवार्ड और आरती बागड़ी, संगीतकार अमजद नदीम व अरको प्रावो मुखर्जी,कैमरामैन कार्तिक गणेश तथा इसे अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- राधिका आप्टे, आदिल हुसैन, सिद्धांत कपूर, अक्षय ओबेराय, अजिंक्य देव, शिल्पा शुक्ला,रवि किशन व अन्य.

व्हाय चीट इंडिया : आत्मा विहीन फिल्म

रेटिंग : डेढ़ स्टार

भारतीय शिक्षा प्रणाली को लेकर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं, जिनमें बच्चों को किस तरह की शिक्षा दी जानी चाहिए, इस पर बातें की जा चुकी हैं. फिर चाहे ‘थ्री इडीयट्स’हो या ‘तारे जमीन पर हो’ या ‘निल बटे सन्नाटा’. मगर शिक्षा तंत्र को चीटिंग माफिया किस तरह से खोखला कर रहा है, इस मुद्दे पर अभिनेता से निर्माता बने इमरान हाशमी फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ लेकर आए हैं. कहानी के स्तर पर फिल्म में कुछ भी नया नही है. फिल्म में जो कुछ दिखाया गया है, उससे हर आम इंसान परिचित है. माना कि फिल्म हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में व्याप्त कुप्रथा, घोटाले, भ्रष्टाचार आदि को उजागर करती है, इमरान हाशमी ने इस अहम मुद्दे पर एक असरहीन फिल्म बनाई है. यह व्यंगात्मक फिल्म पूरे सिस्टम व शिक्षा प्रणाली के दांत खट्टे कर सकती थी. यह फिल्म शिक्षा संस्थानों को चलाने वालो के परखच्चे उड़ा सकती थी, मगर फिल्म ऐसा करने में पूरी तरह से असफल रही है.

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फिल्म की कहानी झांसी निवासी राकेश सिंह उर्फ रौकी (इमरान हाशमी) के इर्द गिर्द घूमती है. रौकी का अपना एक शालीन व सभ्य परिवार है. मगर रौकी अपने पिता व परिवार के सपनों के बोझ तले दबकर झांसी से जौनपुर आकर कोचिंग क्लास खोलकर शिक्षा तंत्र में चीटिंग के ऐसे व्यवसाय पर चल पड़ता है, जिसे वह सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी सही मानता है. रौकी पूरे उत्तर प्रदेश का बहुत बड़ा चीटिंग माफिया बन चुका है. उसने शिक्षा तंत्र में अपनी अंदर तक गहरी पैठ बना ली है और अब शिक्षा तंत्र की खामियों का भरपूर फायदा उठा रहा है. उसके संबंध विधायकों से लेकर मंत्रियों तक हैं. अपने चीटिंग के व्यवसाय में वह गरीब और मेधावी छात्रों का उपयोग करता है. इन छात्रों को एक धनराशि देकर खुद को अपराधमुक्त मान लेता है. फिर यह गरीब मेधावी छात्र अपनी बुद्धि व अपनी पढ़ाई के आधार पर नकारा व अमीर छात्रों के बदले परीक्षा देते हैं. रौकी इन्ही नकारा व अमीर बच्चों के माता पिता से एक मोटी रकम वसूलता रहता है.

एक दिन उसे पता चलता है कि उसके शहर का एक लड़का सत्येंद्र दुबे उर्फ सत्तू (स्निग्धादीप चटर्जी) कोटा से पढ़ाई करके इंजीनियिंरंग प्रवेश परीक्षा में काफी बेहतरीन नंबर लाता है. अब पूरे शहर में उसका जलवा हो जाता है. रौकी तुरंत सत्तू से मिलता है और उसे सुनहरे सपने दिखाते हुए एक लड़के के लिए इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा देने के लिए उसे पचास हजार रूपए देने की बात करता है. परिवार की आर्थिक हालत देखते हुए सत्तू उसकी बातों में फंस जाता है. धीरे धीर सत्तू की बहन नुपुर (श्रेया धनवंतरी) भी राकेश सिंह से प्रभावित हो जाती है और उसे अपने भावी पति के रूप में देखने लगती है. उधर रौकी धीरे धीरे सत्तू में ड्रग्स व लड़की सहित हर बुरी आदत का शिकार बना देता है. एक दिन कुछ अमीर लोगों की शिकायत पर पुलिस अफसर कुरैशी उसे पकड़ते हैं, मगर विधायक जी उसे छुड़ा लेते हैं. इसी बीच ड्रग्स लेने के चक्कर में सत्तू को कौलेज से निकाल दिया जाता है, तब रौकी उसे फर्जी डिग्री देकर भारत से बाहर कतार में नौकरी करने के लिए भेजकर सत्तू व उसके परिवार से संबंध खत्म कर लेता है. कतार में सत्तू की डिग्री फर्जी है यह राज खुल जाता है. सत्तू किसी तरह अपने घर वापस आकर घर के अंदर ही आत्महत्या कर लेता है. इसी बीच पुलिस अफसर कुरैशी की मुलाकात नुपुर से होती है. दोनों राकेश सिंह को सबक सिखाने की ठान लेते हैं. इधर राकेश सिंह ने अपने चीटिंग के व्यवसाय का जाल मुंबई में फैला लिया है. अब वह एमबीए का पर्चा लीक कर करोड़ो कमा रहा है. नुपर नौकरी करने के लिए मुंबई पहुंचती है और राकेश के संपर्क में आती है, दोनों के बीच प्रेम संबंध शुरू होते हैं. पर एक दिन नुपुर की ही मदद से कुरैशी, राकेश सिंह उर्फ रौकी को सबूत के साथ गिरफ्तार करता है. अदालत में रौकी खुद को रौबिनहुड साबित करने का प्रयास करते हुए शिक्षा तंत्र की बुराइयों पर भाषणबाजी करता है. रौकी को सजा हो जाती है. जेल में विधायक जी मिलते हैं. अंत में पता चलता है कि रौकी ने अपने पिता के नाम पर बहुत बड़ा इंजीनियरिंग कौलेज खोल दिया है. अब उसके पिता खुश हैं. तथा रौकी का धंधा उसी गति से चल रहा है.

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कमजोर पटकथा व विषय के घटिया सिनेमाई कारण के चलते पूरी फिल्म मूल मुद्दे को सही परिप्रेक्ष्य में पेश नहीं कर पाती है. निर्देशक सौमिक सेन ने फिल्म के हीरो इमरान हाशमी की एंट्री एक सिनेमाघर में गुंडों से मारपीट के साथ दिखायी है, जो कि बहुत ही घटिया है और यह काम उसके व्यवसाय से भी परे है. जबकि बिना मारपीट के भी इस दृश्य में एक धूर्त ,कमीने, चालाक व विधायकों से संबंध रखने वाले इंसान रौकी का परिचय दिया जा सकता था. पर सिनेमा की सही समझ न रखने वाले सौमिक सेन से इस तरह की उम्मीद करना ही गलत है. बतौर लेखक सौमिक सेन पुलिस औफिसर कुरैशी के किरदार को भी ठीक से चित्रित नहीं कर पाए. कितनी अजीब सी बात है कि फिल्म हर इंसान को चालाक होने यानी कि गलत काम करने की प्रेरणा देती है. फिल्म के अंत में जिस तरह रौकी अपने पिता के नाम पर कौलेज खोलकर अपना काम करता हुआ दिखाया गया है, उससे यही बात उभरती है कि बुरे काम का बुरा नतीजा नहीं होता. फिल्म में लालच व लालची होने का महिमा मंडन किया गया है. फिल्मकार इस बात के लिए अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि उन्होंने आम फिल्मों की तरह अपनी फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ में गलत इंसान का मानवीयकरण करते हुए उसे प्रायश्चित करते नहीं दिखाया.

फिल्मकार चीटिंग करने वालों के पकड़े जाने पर उनकी मानसिकता को गहराई से पकड़ने में बुरी तरह से नाकाम रहे हैं.

कथानक के स्तर पर काफी विरोधाभास है. रौकी के पिता का किरदार भी आत्मविरोधाभासी बनकर उभरता है, पूरी फिल्म में वह अपने बेटे के खिलाफ हैं, पर अंत में उनके नाम पर कौलेज के खुलते ही वह रौकी के सबसे बड़े प्रशंसक बन जाते हैं. कम से कम भारत जैसे देश में पुराने समय के लोगों की सोच इस तरह नही बदलती है. कुल मिलाकर पटकथा के स्तर पर इतनी कमियां हैं कि उन्हें गिनाने में कई पन्ने भर जाएंगे. फिल्मकार ने शिक्षा जगत की खामियों व चीटिंग माफिया जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को बहुत ही गलत ढंग से पेशकर इस मुद्दे की अहमियत को ही खत्म कर दिया.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो सत्तू के किरदार में स्निग्धदीप चटर्जी ने काफी अच्छा अभिनय किया है और उससे काफी उम्मीदें जगती हैं.. इमरान हाशमी बहुत प्रभावित नहीं करते, इसके लिए कुछ हद तक लेखक व निर्देशक भी जिम्मेदार हैं. वेब सीरीज ‘‘लेडीज रूम’’से अपनी प्रतिभा को साबित कर चुकीं अभिनेत्री श्रेया धनवंतरी को इस फिल्म में सिर्फ मुस्कुराने के अलावा कुछ करने का अवसर ही नहीं दिया गया, यह भी लेखक व निर्देशक की कमजोरियों के चलते ही हुआ. फिल्म खत्म होने के बाद सवाल उठता है कि फिल्मों में करियर शुरू करने के लिए श्रेया धनवंतरी ने ‘व्हाय चीट इंडिया’को क्या सोचकर चुना. छोटे किरदारों में कुछ कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है.

दो घंटे एक मिनट की अवधि वाली फिल्म  ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ का निर्माण इमरान हाशमी, भूषण कुमार, किशन कुमार, तनुज गर्ग, अतुल कस्बेकर और प्रवीण हाशमी ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक सौमिक सेन, संगीतकार रोचक कोहली, गुरू रंधावा, अग्नि सौमिक सेन, कुणाल रंगून, कैमरामैन वाय अल्फांसो रौय तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- इमरान हाशमी, श्रेया धनवंतरी, स्निग्धदीप चटर्जी.

वो जो था एक मसीहा-मौलाना आजाद : महज एक डाक्यूमेंट्री

रेटिंगः डेढ़ स्टार

इन दिनों बौलीवुड में बायोपिक फिल्मों का दौर चल रहा है. ऐसे ही दौर में लेखक, निर्माता, अभिनेता व सहनिर्देशक डा. राजेंद्र संजय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व देश के प्रथम शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की बायोपिक फिल्म लेकर आए हैं. फिल्म में उनके बचपन से मृत्यु तक की कथा का समावेश है, मगर मनोरंजन विहीन इस फिल्म में मौलाना आजाद का व्यक्तित्व उभरकर नही आ पाता. उनके जीवन की कई घटनाओं को बहुत ही सतही अंदाज में चित्रित किया गया है.

फिल्म पूर्ण रूपेण डाक्यूड्रामा नुमा है. मौलाना आजाद का पूरा नाम अबुल कलाम मुहियुद्दीन अहमद था. फिल्म की कहानी एक शिक्षक द्वारा कुछ छात्रों के साथ मौलाना आजाद की कब्र पर पहुंचने से शुरू होती है, पर चंद मिनटों में ही वह शिक्षक (लिनेश फणसे) स्वयं मौलाना आजाद (लिनेश फणसे) के रूप में अपनी कहानी बयां करने लगते हैं. फिर पूरी फिल्म में मौलाना आजाद स्वयं अपने बचपन से मौत तक की कहानी उन्ही छात्रों को सुनाते हैं.

मौलाना आजाद का बचपन बड़े भाई यासीन, तीन बड़ी बहनों जैनब, फातिमा और हनीफा के साथ कलकत्ता (कोलकाता) में गुजरा. महज 12 साल की उम्र में उन्होंने हस्तलिखित पत्रिका ‘नैरंग ए आलम’ निकाली, जिसे अदबी दुनिया ने खूब सराहा. हिंदुस्तान से अंग्रेजों को भगाने के लिए वे मशहूर क्रांतिकारी अरबिंदो घोष के संगठन के सक्रिय सदस्य बनकर, उनके प्रिय पात्र बन गए. जब तक उनके पिता जिंदा रहे, तब तक वह अंग्रेजी नही सीख पाए, मगर पिता के देहांत के बाद उन्होंने अंग्रेजी भी सीखी. उन्होंने एक के बाद एक दो पत्रिकाओं ‘अल हिलाल’और ‘अल बलाह’का प्रकाशन किया, जिनकी लोकप्रियता से डरकर अंग्रेजी हुकूमत ने दोनों पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद करा उन्हें कलकत्ता से तड़ीपार कर रांची में नजरबंद कर दिया. चार साल बाद 1920 में नजरबंदी से रिहा होकर वह दिल्ली में पहली बार महात्मा गांधी (डा. राजेंद्र संजय) से मिले और उनके सबसे करीबी सहयोगी बन गए.

उनकी प्रतिभा और ओज से प्रभावित जवाहरलाल नेहरू (शरद शाह) उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे. पैंतीस साल की उम्र में आजाद कांग्रेस के सबसे कम उम्र वाले अध्यक्ष चुने गए. गांधीजी की लंबी जेल यात्रा के दौरान आजाद ने दो दलों में बंट चुकी कांग्रेस को फिर से एक करके अंग्रेजों के तोडू नीति को नाकाम कर दिया. उन्होंने सायमन कमीशन का विरोध किया. 1944 व 1945 के दौरान जब वह कई दूसरे नेताओ के साथ जेल में बंद थे, तभी उनकी पत्नी जुमेला का निधन हुआ. देश को आजादी मिलने के बाद केंद्रीय शिक्षामंत्री के रूप में उन्होंने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में क्रांति पैदा करके उसे पश्चिमी देशों की पंक्ति में ला बैठाया. वह आजीवन हिंदू मुस्लिम एकता के लिए संघर्ष करते रहे.

सुशांत सिंह राजपूत करेंगे इस फाइटर का किरदार

बौलीवुड में मौलिक काम करने की बजाय सभी नकल करने पर आमादा रहते हैं. अब लगातार असफलता का दंश झेल रहे अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत भी उसी श्रेणी में आ गए हैं. वह पौढ़ी गढ़वाल के शहीद जसवंत सिंह रावत के जीवन पर फिल्म ‘राइफलमैन’ में राइफल मैन जसवंतसिंह रावत का किरदार निभाने जा रहे हैं. सवाल यह है कि सुशांत सिंह राजपूत को अब यह ख्याल क्यों आया?

ज्ञातव्य है कि 18 जनवरी को जसवंत सिंह रावत के जीवन व कृतित्व पर आधारित लेखक, निर्माता व निर्देशक अविनाश धानी की फिल्म ‘72 आवर्सः द मार्टीयर हू नेवर डाइड’ प्रदर्शित हो चुकी है. इस फिल्म में अविनाश धानी ने ही जसवंत सिंह रावत का किरदार निभाया है. मजेदार बात यह है कि यह फिल्म पिछले एक साल से सुर्खियों में रही है, मगर अब जब यह फिल्म सिनेमा घरों में पहुंची, तो सुशांत सिंह राजपूत ने इस किरदार को निभाने की घोषणा की.

सुशांत सिंह राजपूत का दावा है कि वह काफी लंबे समय से राइफलमैन जसवंत सिंह रावत पर शोधकार्य कर रहे थे.

कौन थे शहीद राइफलमैन जसवंत सिंह रावत

1962 में भारत-चीन युद्ध के समय अरूणाचल प्रदेश के नाफा बौर्डर पर तीन सौ चीनी सैनिकों के साथ लगातर 72 घंटे तक युद्ध करते हुए राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने शहादत पायी थी. पौढ़ी गढ़वाल निवासी राइफलमैन/सैनिक जसवंत सिंह रावत ने चीनी सैनिकों के खिलाफ जंग पर जाते समय कहा था-‘‘हम लोग लौटें ना लौटें, ये बक्से लौटें न लौटें, लेकिन हमारी कहानियां लौटती रहेंगी…’ उन्हे महावीर चक्र से भी नवाजा गया था.

फरहान के खुलासे को आप भी जानिए

खुद को हमेशा सूर्खियों में रखने की कला में माहिर अभिनेता, निर्माता व निर्देशक फरहान अख्तर ने एक बार फिर अपनी ऐसी नई खबर दी कि लोग कह रहे है ‘‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया.’’

जी हां! कुछ दिन पहले फरहान अख्तर ने सोशल मीडिया के अलावा पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था कि वह बहुत जल्द खुद से जुड़ा एक बहुत बड़ा खुलासा करने वाले हैं. तब से हर अखबार व टीवी चैनल पर फरहान अख्तर सूर्खियों में छाए हुए थे. हर जगह चर्चा थी कि फरहान अख्तर अपने खुलासे में शिबानी दांडेकर के संग अपने विवाह की तारीख घोषित करेंगे. इस खबर को फरहान अख्तर अपने अंदाज में जबरदस्त हवा देते रहे. उन्होने बीच में इंस्टाग्राम पर एक स्वींमंग पुल के अंदर शिबानी दांडेकर को अपनी बाहों में उठाए हुए फोटो पोस्ट करते हुए ऐसा कुछ लिखा जिससे यह बात पुख्ता हो रही है कि फरहान अख्तर जल्द ही शिबानी दांडेकर से विवाह करेंगे.

मगर आज 16 जनवरी की सुबह 9 बजकर 32 मिनट पर इंस्टाग्राम पर मशहूर फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट करते हुए अपने सबसे बड़े खुलासे को उजागर करते हुए फरहान अख्तर ने लिखा है- ‘‘थ्रिल्ड टू शेअर दैट सिक्स ईअर आफ्टर भाग मिल्खा भाग, राकेश ओमप्रकाश मेहरा एंड आई आर रीयुनाइटिंग टू क्रिएट तूफान हार्टफेल्ट स्टोरी आफ ए बाक्सर. (हम यह बताते हुए रोमांच अनुभव कर रहे हैं कि भाग मिल्खा भाग के छह साल बाद राकेश ओमप्रकाश मेहरा के साथ मिलकर तूफान लेकर आ रहे हैं, जो कि एक बाक्सर की कहानी है.)

सूत्रो के अनुसार फिल्म ‘तूफान’ का निर्माण फरहान अख्तर और रितेश सिद्धवानी अपने ‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’ के बैनर तले कर रहे हैं, जिसका निर्देशन राकेश ओमप्रकाश मेहरा करेंगे. फिल्म की पटकथा अंजुम राजाबली ने लिखी है. यह बायोपिक नहीं, बल्कि एक काल्पनिक कहानी है. इस फिल्म के किरदार के साथ न्याय करने के लिए फरहान अख्तर बाक्सिंग की ट्रेनिंग लेने वाले हैं.

#MeToo: हिरानी पर लगे आरोप पर बौलीवुड स्टार्स ने क्या कहा

हाल ही में बौलीवुड के फेमस डायरेक्टर राजकुमार हिरानी पर सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगा. राजकुमार की एक फीमेल असिस्टेंट ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया है. पीड़िता का आरोप है कि हिरानी ने उसके साथ करीब 6 महीने तक शोषण किया. इस आरोप से बौलीवुड के बहुत से लोग हैरान हैं. कई कलाकार हिरानी के सपोर्ट में भी आ गए हैं. आइए जानते हैं कि वो कौन से एक्टर्स हैं जो राजू के सपोर्ट में खड़े हैं और उन्होंने क्या कहा.

राजकुमार हिरानी के समर्थन में फिल्म प्रोड्यूसर बोनी कपूर आए. बोनी ने कहा कि राजकुमार बहुत ही अच्छे इंसान हैं, वो ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते. बोनी ने आगे कहा कि, मुझे इस आरोप पर विश्वास नहीं है। वह ऐसा कभी नहीं कर सकता, कभी भी नहीं.

एक्टर इमरान हाशमी ने कहा कि, यह सिर्फ आरोप हैं और जब तक यह आरोप साबित नहीं हो जाते हैं तब तक इस पर कुछ भी कहना सही नहीं होगा.

मुन्ना भाई सीरीज में हिरानी के साथ काम कर चुके अरशद वारशी का कहना है कि, एक इंसान और एक व्यक्तित्व के तौर पर राजू कैसे हैं तो मैं यही कहूंगा कि वे एक अद्भुत और सभ्य व्यक्ति हैं. मेरे लिए भी बाकी लोगों की तरह यह खबर शौकिंग है.

आलोक नाथ पर हैरेसमेंट का आरोप लगाने वाली विंटा नंदा ने इस प्रकरण पर खेद जताया है. विनता ने राजकुमार हिरानी के वकील आनंद देसाई के ट्वीट को री-ट्वीट करते हुए लिखा कि #MeToo का यह नया आरोप काफी परेशान करने वाला है. महिलाएं किस पर भरोसा करें?

क्या है राजकुमार हिरानी की प्रतिक्रिया

इन तमाम आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए राजू ने खुद जांच की मांग की है. उन्होंने कहा कि कि जब दो महीने पहले मुझे इन आरोपों के बारे में बताया गया तो मैं शौक्ड रह गया. मैंने कहा कि किसी भी समिति या कानूनी संस्था से मामले की जांच कराई जानी चाहिए. लेकिन शिकायतकर्ता ने मीडिया में जाने का विकल्प चुना. उन्होंने कहा कि मैं दृढ़ता के साथ कहता हूं कि ये सारे आरोप झूठे हैं और मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से इन्हें फैलाया गया है.

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