
Writer- Er. Asha Sharma
कालेज से आते ही निम्मो ने अपना बैग जोर से पटका तो सरला सम झ गई कि जरूर आज फिर कालेज में कुछ ऐसावैसा घटित हुआ है.
‘‘क्या हुआ?’’ सरला ने पूछा.
‘‘अवनि… अवनि… अवनि… पता नहीं यह जिन्न मु झे कब छोड़ेगा,’’ निम्मो गुस्से में बड़बड़ाई.
‘‘लेकिन हुआ क्या है?’’ सरला ने फिर पूछा.
‘‘वही, जो आज तक होता आया है. हमारी तुलना और क्या? मु झे मैम ने ऐनुअल फंक्शन में होने वाले रैंप शो का शो स्टौपर बनने से आउट कर दिया,’’ निम्मो ने बताया.
‘‘अरे, कल तक तो तुम्हीं शो स्टौपर थी, पिछले 10 दिनों से तुम लगातार प्रैक्टिस कर रही हो, तुम्हारी तो कौस्ट्यूम भी फाइनल हो चुकी थी फिर अचानक ऐसा क्या हुआ?’’ सरला ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘आज जब फाइनल रिहर्सल हो रहा था तो अचानक अवनि ने रैंप पर आ कर कहा कि मैं बताती हूं तुम्हें कैसे वौक करना चाहिए.
‘‘फिर उस ने रैंप पर वौक कर के दिखाया तो प्रिंसिपल मैम को बहुत पसंद आया. उन्होंने कहा कि इस फैशन शो में शो स्टौपर के लिए अवनि को ही फाइनल कर दो और मु झे आउट कर दिया गया,’’ निम्मो ने मुंह सिकोड़ते हुए कालेज का सारा घटनाक्रम कह सुनाया.
‘‘यह तो दुनिया की बहुत पुरानी रीत है. लोग 2 बहनों में तुलना करते ही हैं,’’ कहते हुए सरला ने उसे सहज करने की कोशिश की.
‘‘लेकिन क्यों? मैं मैं हूं और अवनि अवनि. हम दोनों अलग हैं. फिर लोग क्यों हमें एकदूसरे से जोड़ कर देखते हैं? मैं खुद के जैसी ही रहना चाहती हूं किसी और के जैसी नहीं बनना चाहती,’’ निम्मो आवेश में आ गई.
निम्मो के अपने तर्क थे और वे अपनीजगह सही भी थे, मगर सरला जानती थी कि अपनेआप को ही बदला जा सकता है, दुनिया को नहीं. वह रसोई में जा कर निम्मो के लिए खाना गरम करने लगी.
खाना खा कर निम्मो सो गई. सरला भी वहीं लेटी धीरेधीरे उस के बालों में हाथ फेरती रही. इस के साथ ही कई पुरानी बातें भी जेहन में घूमने लगीं…
अवनि सरला के भाई रवि की बेटी है और निम्मो से केवल 4 दिन ही बड़ी है. दोनों बहनों ने एकसाथ एक ही स्कूल में पहला कदम रखा था. दोनों को एक ही स्कूल में एडमिशन दिलाया गया था ताकि दोनों को एकदूसरे का साथ मिल सके और उन्हें वहां अकेलापन न खले, साथ ही होमवर्क आदि में भी मदद मिल सके.
मगर 2 जनों में तुलना करना लोगों का स्वभाव होता है. तब तो और भी ज्यादा जब उन का आपस में कोई नजदीकी संबंध हो. सब से पहले उन की स्कूल टीचर्स ने दोनों बहनों की आपस में तुलना करनी शुरू की. कभी उन के मार्क्स को ले कर तो कभी उन की क्लास में परफौर्मैंस को ले कर… कभी स्पोर्ट्स में उन के प्रदर्शन की तुलना होती तो कभी हैल्थ और हाइट को आपस में कंपेयर किया जाता. निम्मो अकसर हर बात में अवनि से उन्नीस ही रहती. सब उसे अवनि का उदाहरण देते और कमतरी का एहसास कराते. सुन कर निम्मो बु झ जाती.
सरला को पहली बार बेटी के दर्द का एहसास उस दिन हुआ था जब वह केजी क्लास में पढ़ती थी. निम्मो ने एक दिन स्कूल से आते ही कहा था, ‘‘मु झे नहीं पढ़ना इस स्कूल में. यह स्कूल अच्छा नहीं है. यहां सब अवनि को ही प्यार करते हैं. मु झे कोई प्यार नहीं करता.’’
सरला के पूछने पर निम्मो ने बताया, ‘‘आज क्लास में टीचर ने ड्राइंग बनवाई थी. मेरी शीट देख कर मैडम ने कहा कि अवनि की शीट देखो, कितनी सफाई से ड्रा की है. इसे कहते हैं ड्राइंग. कुछ सीखो अपनी बहन से,’’ और निम्मो फिर रोने लगी.
‘‘तुम्हें तो पता ही होगा कि मेरे पिताजी जब तक जिंदा रहे, तब तक वे लोगों को सांपों के बारे में जानकारी देते रहे, ताकि लोगों के मन में बैठा डर और अंधविश्वास दूर हो सके, पर वे इस बात से हमेशा दुखी ही रहे कि हमारे देश के लोग या तो डर कर सांप को मार डालते हैं या फिर उस की पूजा करने लगते हैं. हालांकि, लोगों द्वारा की जाने वाली पूजा भी हमारे मन में बैठे डर के चलते ही जन्म लेती है,’’ माधव अपने दोस्त राज से कह रहा था.
‘‘लेकिन यार… बुरा मत मानना, पर मैं ने तो सुना है कि तुम्हारे पिताजी सांपों को पकड़ कर उन्हें बेचने का कारोबार किया करते थे,’’ राज ने दबी जबान से कहा. ‘‘गलत सुना है तुम ने… दरअसल, ऐसी बातें उन लोगों ने फैलाई हैं, जो खुद सांप पकड़ कर बेचने का काम करते थे. ‘‘मेरे पिताजी तो सांप पकड़ कर उन्हें किसी जंगल में छोड़ आते थे, ताकि कुदरत का बैलेंस बरकरार रह सके और इस के लिए उन्हें कभी सरकार की तरफ से कोई बढ़ावा या अवार्ड भी नहीं मिला. मेरे पिताजी ने अपने खर्चे पर ही यह सब किया,’’ माधव ने एक लंबी सांस छोड़ते हुए राज को बताया.
‘‘अच्छा तो इतनी पढ़ाईलिखाई कर के अब तुम गांव में क्यों जाना चाहते हो?’’ राज ने पूछा. ‘‘मैं गांवगांव जा कर लोगों को जागरूक करूंगा, ताकि समाज में सांपों के प्रति फैले अंधविश्वास को खत्म कर पाना मुमकिन हो सके… और यही मेरे पिताजी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी,’’ माधव ने फख्र से कहा. अपने पिताजी की तरह माधव भी कुदरत और सांप प्रेमी था.
वह विज्ञान में एमएससी था और शहर में नौकरी न कर के लोगों में चेतना की अलख जगाना चाहता था और इसीलिए उस ने अपने घर को छोड़ कर जंगलों के किनारे बसे गांवों में जाना शुरू किया था. इस गांव में जब माधव आया तो उस ने सीधे गांव के प्रधान से मुलाकात की और उन्हें अपने आने का मकसद बताया. प्रधान को उसे कुछ दिन गांव में रुकने की इजाजत देने में कोई खास मुश्किल नहीं हुई और उन्होंने गांव में ही माधव के रहनेखाने का इंतजाम करा दिया.
इस गांव में माधव को रुके हुए 2 दिन हो गए थे. बरसात का मौसम था. माधव को आसानी से सांप पकड़ने में महारत हासिल थी. वह उन्हें पकड़ता और लोगों को समझाता कि हमें इन से डरने की नहीं, बल्कि जागरूक रहने की जरूरत है. एक दिन हलकी बरसात हो रही थी. माधव नदी के किनारे टहलने चल दिया. बरसात के चलते नदी भी उफान पर थी. माधव ने अपना मोबाइल निकाला और नदी के तेज बहाव की फोटो लेने लगा, पर अच्छी फोटो लेने के चक्कर में माधव का पैर फिसल गया और वह नदी में जा गिरा. नदी के तेज बहाव में बहते माधव को तैरना तो आता था, मगर शहर के स्विमिंग पूल में. नदी के तेज बहाव में हाथपैर मारने के बाद भी उसे किनारा नहीं मिल पा रहा था.
माधव ने हिम्मत तो नहीं हारी थी, पर उसे लगने लगा था कि अगर वह जल्दी ही किनारे नहीं लगा, तो आज यह उस का आखिरी दिन होगा. तभी माधव को पानी में तैरती हुई एक रस्सी दिखाई दी, जिस के आगे एक बांस का टुकड़ा लगा हुआ था. माधव के कान सुन सकते थे कि ‘रस्सी पकड़ो’ की आवाज किनारे से आ रही थी, पर आंखें ठीकठीक कुछ देख नहीं पा रही थीं. माधव ने उस बांस पर लगी हुई रस्सी को मजबूती से पकड़ लिया और अब वह किनारे की तरफ खिंचता जा रहा था. किनारे पर एक अनजान हाथों ने माधव को बाहर खींच निकाला. वे 2 लड़कियां थीं, जिन की उम्र तकरीबन 20-22 साल की होगी, जो बारिश में भीगी हुई थीं. उन में से एक लड़की काले रंग की थी, तो दूसरी दूध जैसी गोरी. उन दोनों की काया बारिश का पानी पड़ने से धुलीधुली सी नजर आ रही थीं.
‘‘जब पानी में तैरना नहीं आता, तो नदी में क्यों कूदते हो…’’ उस गोरी लड़की ने पूछा. ‘‘नहीं, मैं गलती से गिर गया था, तैरने नहीं आया था,’’ माधव की इस बात पर गोरी लड़की अपने मुंह पर हाथ रख कर तेजी से हंसने लगी. उस का इस तरह से हंसना माधव को अच्छा नहीं लग रहा था, पर वह कुछ कह नहीं पा रहा था, क्योंकि इन्हीं दोनों लड़कियों के चलते ही उस की जान बची थी. ‘‘चलो अब हटो यहां से, नहीं तो दोबारा गिर जाओगे नदी में,’’ इतना कह कर वे दोनों लड़कियां हंसते हुए वहां से चली गईं. चेहरे पर मीठी सी मुसकराहट लिए माधव आगे बढ़ रहा था कि तभी गांव के 3-4 लड़कों ने उसे घेर लिया.
‘‘तुम हमारे गांव के प्रधान को बेवकूफ बना कर जागरूकता फैलाने के नाम पर यहां रुक तो गए हो, पर अपनी नौटंकी कहीं और जा कर दिखाओ. यहां लोगों को तुम बेवकूफ नहीं बना पाओगे,’’ एक दाढ़ी वाले नौजवान ने कहा. अभी तक माधव कुछ समझ नहीं पाया था कि उस दाढ़ी वाले नौजवान ने दोबारा बोलना शुरू किया, ‘‘वैसे भी तुम हमारी धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हो…
हम लोग बरसों से सांपों को संतान देने वाले देवता के रूप में पूजते आ रहे हैं और तुम हमारे गांव के लोगों की आस्था को नुकसान पहुंचा रहे हो, इसलिए कल सुबह होते ही यह गांव छोड़ कर चले जाओ, नहीं तो इस का अंजाम खुद ही भुगतना,’’ माधव को घूरते हुए वे सब वहां से चले गए. माधव वहां से सीधा प्रधान के घर पहुंचा और सारी आपबीती उन्हें कह सुनाई.
‘‘अब मैं क्या बताऊं तुम्हें… उस लड़के का नाम अगाली है और इस गांव में उस की तूती बोलती है, क्योंकि वह गांव के लड़कों को शराब और मांस खिलापिला कर अपने साथ घुमाता रहता है, इसलिए वे निठल्ले उस के एक इशारे पर कुछ भी करने को राजी रहते हैं. ‘‘और दूसरा सिक्का चलता है कपाला नाम के तांत्रिक का, जिस ने यहां के लोगों की बुद्धि को अंधविश्वास के चक्कर में ऐसा बांध रखा है कि लोगों का उस से बाहर आना नामुमकिन सा है.
‘‘कपाला पहले गांव में किसी भी तरह का नकली संकट पैदा कराता है, जैसे फर्जी बीमारियां, नजर लगना, जादूटोना वगैरह… और जब गांव के लोग हल पूछने उस के पास जाते हैं, तो वह उन से पैसे लेता है और दूसरे कई तरीकों से उन का शोषण भी करता है. प्रधान चाहे कोई भी हो, इस गांव में सिक्का तो अगाली और तांत्रिक का ही चलता है.’’ वैसे तो माधव खुद ही इस गांव से जाने वाला था, पर अब उसे यहां रुकना एक चैलेंज लगने लगा था, क्योंकि उस का मानना था कि आसान काम तो कोई भी कर सकता है, पर मजा तो तब है जब मुश्किल काम को किया जाए, इसलिए उस ने अगाली के बारे में प्रधानजी से और ज्यादा जानकारी मांगी. अगली सुबह जैसे ही माधव सो कर उठा, तो उस ने देखा कि सामने से अगाली अपने साथ गांव के 2-4 लड़कों के साथ चला आ रहा था.
‘‘क्या रे… तुम अभी तक गांव से गए नहीं?’’ अगाली ने पूछा. ‘‘दरअसल, बात ऐसी है कि मुझे एक खास सांप का जहर निकालना है और इसीलिए मैं यहां रुका हुआ हूं. मैं आप से वादा करता हूं कि उस सांप का जहर मिलते ही मैं यहां से चला जाऊंगा,’’ माधव ने चाल चली. ‘‘अच्छा… तो जहर से दवा बनाएगा… हम ने सुना है कि सांप के जहर से लंबे समय तक सैक्स में टिके रहने वाली दवा बनती है… मैं तुझे इस शर्त पर ही गांव में रहने दूंगा कि तू मुझे वह दवा देगा…
बोल मंजूर है?’’ अगाली बोल रहा था. ‘‘बिलकुल मंजूर है.’’ अगले हफ्ते ही अगाली को नया प्रधान चुन लिया गया. उस ने शराब की नदियां बहा दीं. पूरे गांव में पकते हुए मांस की गंध फैली हुई थी. कपाला भी अगाली के साथ खुशियां मना रहा था. ‘‘सुनो…’’ एक मीठी सी आवाज माधव के कानों में पड़ी. यह तो वही गोरी लड़की थी. वह बोली, ‘‘अरे, अपनी जान क्यों जोखिम में डाल रहे हो… अगाली बहुत खतरनाक आदमी है. मेरी मानो तो यहां से चले जाओ.’’ ‘‘चला जाऊंगा, पर पहले अपना नाम तो बताओ?’’ माधव ने पूछा. ‘‘चांदी नाम है मेरा,’’ शरमाते हुए उस लड़की ने कहा.
Writer- Er. Asha Sharma
अवनि ने अपनी अलग ही दुनिया बसा रखी थी. उसे अपनी मौडल सी कदकाठी पर बहुत घमंड था. उसी के अनुरूप वह कपड़े भी पहना करती थी, जो उस पर बहुत फबते भी थे और अधिक आधुनिक बनने के चक्कर में उस ने सिगरेट भी पीना सीख लिया था. कभीकभी दोस्तों के साथ एकाध पैग भी लगाने लगी थी. जहां पूरा कालेज अवनि का दीवाना था वहीं अवनि का दिल विकास में आ कर अटक गया.
इन दिनों सरला निम्मो में अलग तरह का चुलबुलापन देख रही थी. हर समय बिना मेकअप के रहने वाली निम्मो आजकल न्यूड मेकअप करने लगी थी. सुबह जल्दी उठ कर कुछ देर योग व्यायाम भी करने लगी थी जिस का असर उस के चेहरे की बढ़ती चमक पर साफसाफ दिखाई देने लगा था. सरला बेटी में आए इस सकारात्मक परिवर्तन को देख कर खुश थी.
‘‘इस बहाने फालतू की बातों से दूर रहेगी,’’ सोच कर सरला मुसकरा देती.
उधव अवनि का विकास के प्रति झुकाव बढ़ने लगा था. पूरा कालेज उन दोनों के बीच होने वाली नोक झोंक के प्यार में बदलने की प्रतीक्षा कर रहा था. शीघ्र ही उन का यह इंतजार खत्म हुआ. इन दिनों अवनि और विकास साथसाथ देखे जाने लगे थे.
साल बीतने को आया. एक बार फिर से ऐजुअल फंक्शन की तैयारियां जोर
पकड़ने लगीं. यह वर्ष कालेज की स्थापना का स्वर्ण जयंती वर्ष था इसलिए नवाचार के तहत कालेज प्रशासन ने कालेज में 50 साल पहले मंचित नाटक ‘शकुंतलादुष्यंत’ के पुनर्मंचन का निर्णय लिया.
औडिशन के बाद विकास को जब दुष्यंत का पात्र अभिनीत करने का प्रस्ताव मिला तो सब ने स्वाभाविक रूप से अवनि के शकुंतला बनने का कयास लगाया, लेकिन तब सब को आश्चर्य हुआ जब कमेटी द्वारा अवनि को दरकिनार कर इस रोल के लिए निम्मो का चयन किया.
कमर तक लंबे घने बाल, बड़ीबड़ी बोलती आंखें और मासूम सौंदर्य, शायद यही पैमाना रहा होगा इस रोल के लिए निम्मो के चयन का.
कालेज के बाद देर तक नाटक का रिहर्सल करना और उस के बाद देर होने पर विकास का निम्मो को घर तक छोड़ना… रोज का नियम था. वैसे भी अवनि इस सदियों पुराने नाटक में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए कालेज में रुक कर विकास का इंतजार करना उसे बोरियत भरा महसूस होता था. हवा का झोंका भी कभी एक जगह ठहरा है भला जो अवनि ठहरती.
कई साथियों ने निम्मो और विकास को ले कर उसे छेड़ा भी, मगर आत्मविश्वास से भरी अवनि को अपने रूपसौंदर्य पर पूरा भरोसा था. क्या मजाल जो एक बार इस भूलभुलैया में भटका मुसाफिर बिना उस की इजाजत बाहर निकल सके.
रिहर्सल लगभग फाइनल हो चुका था. विकास की अगुआई में कालेज कैंटीन में बैठा छात्रों का दल चाय की चुसकियों के साथ गरमगरम समोसों का आनंद ले रहा था. निम्मो और अवनि भी अन्य लड़कियों के साथ इस गैंग में शामिल थीं.
‘‘यार विकास, इतने दिनों से तू दुष्यंत बना घूम रहा है, अब तो शकुंतला को अंगूठी पहना ही दे,’’ एक दोस्त ने उसे कुहनी मारी.
विकास की नजर लड़कियों के दल की तरफ घूम गई. सब ने अवनि की इतराहट देखी. निम्मो बड़े आराम से समोसा खा रही थी.
‘‘हांहां, यह तो होना ही चाहिए. कैसा रहेगा यदि फंक्शन वाले दिन नाटक मंचन के बाद वही अंगूठी असल वाली शकुंतला की उंगली में भी पहनाई जाए?’’ दूसरे दोस्त ने प्रस्ताव रखा तो शेष गैंग ने भेजें थपथपा कर उस का अनुमोदन किया. शरमाई अवनि अपनी उंगली सहलाने लगी. बेशक वह एक बोल्ड लड़की थी, लेकिन इस तरह के प्रकरण आने पर लड़कियों का संकुचित होना स्वाभाविक सी बात है.
‘‘तुम सब कहते हो तो चलो? मु झे भी यह चुनौती मंजूर है. तो तय रहा. फंक्शन वाले दिन… नाटक के बाद… डन,’’ विकास ने दोस्तों की चुनौती पर अपनी सहमति की मुहर लगाई और इस के साथ ही मीटिंग खत्म हो गई.
ऐनुअल फंक्शन की शाम… निम्मो का निर्दोष सौंदर्य देखते ही बनता था. श्वेत परिधान संग धवल पुष्पराशि के शृंगार में निम्मो असल शकुंतला का पर्याय लग रही थी. विकास और निम्मो के प्रणयदृश्य तो इतने स्वाभाविक लग रहे थे मानो स्वयं दुष्यंतशकुंतला इन अंतरंग पलों को साक्षात भोग रहे हों. औडिटोरियम में बारबार बजती सीटियां और मंचन के समापन पर देर तक गूंजता तालियों का शोर नाटक की सफलता का उद्घोष कर रहा था. परदा गिरने के बाद विकास जब निम्मो का हाथ थामे मंच पर सब का अभिवादन करने आया तो बहुत से उत्साही मित्र उत्साह के अतिरेक में नाचने लगे.
देर रात फंक्शन के बाद मित्रमंडली एक बार फिर से जुटी थी. सब लोग विकास और निम्मो को घेरे खड़े थे. दोनों विनीत भाव से सब की बधाइयां बटोर रहे थे.
‘‘अरे शकुंतला, वह अंगूठी कहां है जो दुष्यंत ने तुम्हें निशानी के रूप में दी थी,’’ अवनि के कहते ही मित्रों को विकास को दी गई चुनौती याद आई.
‘‘अरे हां, वह अंगूठी तो तुम आज अपनी असली शकुंतला को पहनाने वाले थे न. चलो भाई, जल्दी करो. देर हो रही है,’’ मित्र ने कहा.
अवनि अपनी योजना की सफलता पर मुसकराई. इसी प्रसंग को जीवित करने के लिए तो उस ने अंगूठी प्रकरण छेड़ा था. विकास भी मुसकराने लगा. उस ने अपनी जेब की तरफ हाथ बढ़ाया. जेब से हाथ बाहर निकला तो उस में एक सोने की अंगूठी चमचमा रही थी.
‘‘तुम ने उंगली की नाप तो ले ली थी न? कहीं छोटीबड़ी हुई तो?’’ मित्र ने चुहल की.
अवनि की निगाहें अंगूठी पर ठिठक गईं. विकास अंगूठी ले कर लड़कियों
की तरफ बढ़ा. सब की निगाहें विकास के चेहरे पर जमी थीं. अवनि शर्म के मारे जमीन में गढ़ी जा रही थी.
विकास ने निम्मो का बांयां हाथ पकड़ा और उस की अनामिका में सोने की अंगूठी पहना दी. यह दृश्य देख कर वहां मौजूद हर व्यक्ति हैरान खड़ा रह गया, क्योंकि किसी ने इस की कल्पना तक नहीं की थी. अपमान से अवनि की आंखें छलक आईं. निम्मो कभी अपनी उंगली तो कभी विकास के चेहरे की तरफ देख रही थी. पूरे माहौल को सांप सूंघ गया था.
निम्मो धीरेधीरे चलती हुई आई और अवनि के सामने खड़ी हो गई. अवनि निरंतर जमीन को देख रही थी. सब ने देखा कि अपमान की कुछ बूंदें उस की आंखों से गिर कर घास पर जमी ओस का हिस्सा बन गई थीं.
निम्मो ने अपनी उंगली से अंगूठी उतारी और अवनि की हथेली पर रख दी. बोली, ‘‘तुम चाहो तो यह अंगूठी रख सकती हो. यू नो, निम्मो को भी किसी की इस्तेमाल की हुई चीजें पसंद नहीं,’’ कहती हुई आत्मविश्वास से भरी निम्मो सब को हैरानपरेशान छोड़ कर कालेज के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ गई.
Writer- Er. Asha Sharma
सरला के लिए यह बड़ी मुश्किल घड़ी थी. एक तरफ बेटी थी और दूसरी तरफ भतीजी. धर्मसंकट में फंसी सरला को कोई उपाय नहीं सू झ रहा था. रोती हुई निम्मो को सीने से लगाने के अलावा उस के पास कोई और उपाय था भी नहीं.
अवनि जहां स्वभाव में तेजतर्रार और स्मार्ट थी वहीं निम्मो शांत और सहनशील. अवनि उस की सहनशीलता का पूरा फायदा उठाती थी. वह अकसर निम्मो पर हावी हो जाती. कई बार तो अपना होमवर्क भी निम्मो से करवा लेती थी. धीरेधीरे अवनि के खुद से बेहतर होने का भाव निम्मो के भीतर जड़ें जमाने लगा. वह स्कूल में तो अवनि का विरोध नहीं कर पाती थी, मगर घर आ कर रोने लगती थी. अवनि के सामने निम्मो का व्यक्तित्व दबने लगा. अवनि निम्मो के लिए उस बरगद के पेड़ जैसी हो गई थी जिस के नीचे निम्मो पनप नहीं पा रही थी.
सरला उसे बहुत सम झाया करती थी कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति परफैक्ट नहीं होता. हर किसी में कोई न कोई कमी होती ही है. लेकिन वे लोग बहुत बहादुर होते हैं जो उसे स्वीकार कर लेते हैं और वे तो विरले ही होते हैं, जो उस पर विजय पा लेते हैं. वे भी कुछ कम नहीं होते जो अपनी कमियों के साथ जीना सीख लेते हैं. मगर निम्मो का बालमन शायद अभी इन बातों को सम झने के लिए परिपक्व नहीं था.
एक दिन निम्मो स्कूल से आई और आते ही घर में बने मंदिर में हाथ जोड़ने लगी.
सरला को बड़ा आश्चर्य हुआ, उस ने पूछा, ‘‘आज हमारी निम्मो क्या मांग रही है कुदरत से?’’
निम्मो ने मासूमियत से कहा, ‘‘मां, मैं कुदरत से प्रे कर रही हूं कि वह अगले जन्म में मु झे अवनि जैसी सुंदर और स्मार्ट बना दे.’’
उस के मुंह से ऐसी बात सुन कर सरला हैरान रह गई. उस ने निम्मो से कहा, ‘‘बिट्टो, अगलापिछला कोई जन्म नहीं होता. जो कुछ है सब यही है. कुदरत ने हर इंसान को अपनेआप में बहुत ही खास बनाया है और एकदूसरे से अलग भी. इसीलिए तुम दोनों बहनें भी एकदूसरे से अलग हैं. तुम दोनों की अपनीअपनी खासीयत है. हां, इस जन्म में अगर तुम अच्छे काम करोगी तो बहुत अच्छी इंसान जरूर बन जाओगी.’’
मगर निम्मो को मां की बातें ज्यादा सम झ में नहीं आईं उस के दिमाग में तो हर वक्त अपने आप को अवनि से बेहतर साबित करने की तरकीबें ही चलती रहतीं.
सैकंडरी स्कूल के रिजल्ट वाले दिन प्रिंसिपल मैम ने असैंबली में उन सब बच्चों के लिए तालियां बजवाई, जिन्हें 80% से ज्यादा नंबर मिले थे. निम्मो और अवनि को भी स्टेज पर बुलाया गया.
मार्क शीट देख कर टीचर ने कहा, ‘‘यहां भी हमेशा की तरह अवनि ने ही बाजी मारी. उसे निम्मो से 4 नंबर अधिक मिले हैं.’’
बस फिर क्या था, निम्मो ने घर आ कर रोरो कर बुरा हाल कर लिया. खुद को कमरे में बंद कर लिया और स्कूल छोड़ने की जिद पर अड़ गई. यह देख कर सरला ने सैकंडरी स्कूल के बाद निम्मो का स्कूल चेंज करवा दिया.
भाई ने कारण पूछा तो सरला ने सब्जैक्ट चेंज करने का बहाना बना कर उसे टाल दिया. चूंकि अवनि पहले ही आर्ट्स सब्जैक्ट चुन चुकी थी, इसलिए निम्मो ने इंटरैस्ट न होते हुए भी कौमर्स सब्जैक्ट चुना और इस बहाने से अपना स्कूल बदल लिया.
अवनि से दूर होते ही निम्मो का मानसिक तनाव छूमंतर हो गया और सालभर में ही उस का व्यक्तित्व निखर आया. बेटी का बढ़ता हुआ आत्मविश्वास देख कर सरला उस के स्कूल बदलने के अपने निर्णय पर खुश थी.
2 साल में ही निम्मो ने अपना कद निकाल लिया. हालांकि निम्मो की शारीरिक बनावट अवनि जैसी सांचे में ढली हुई नहीं थी, मगर उस की सादगी में भी एक कशिश थी. जहां अवनि को देख कर कामुकता का एहसास होता था वहीं निम्मो की सुंदरता में शालीनता और गरिमा थी.
मेरी आंखों के कोर भीग गए थे. ऐसा लगा मेरा अहं किसी कोने से जरा सा संतुष्ट
हो गया है. सोचती थी, पति की जिंदगी में मेरी जरूरत ही नहीं रही.मगर मांबेटी का यह सुख सिर्फ 2 साल से ज्यादा कायम नहीं रह सका. स्कूल खत्म होते ही अवनि ने भी निम्मो के ही कालेज में एडमिशन ले लिया. फिर से वही पुरानी कहानी दोहराई जाने लगी. फिर से वही दोनों बहनों में तुलना. मगर अब सरला के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था, क्योंकि कसबे में एक ही कालेज था और इसी कालेज में पढ़ना दोनों की मजबूरी थी.
‘‘अब तुम बच्ची नहीं हो निम्मो. अपनी लड़ाई अपने हथियारों से लड़ना सीखो. तुम्हारा आत्मविश्वास ही तुम्हारा सब से पैना हथियार है.’’ सरला बेटी को आने वाले कल के लिए तैयार करने में जुटी थी.
यह उन के कालेज का पहला ही साल था यानी दोनों में ही अभी स्कूल का लड़कपन बाकी था. जब ऐनुअल फंक्शन के रैंप शो में निम्मो की जगह अवनि को शो स्टौपर बना दिया गया तो निम्मो का स्वाभिमानी मन बहुत आहत हुआ और उस ने शो में मौडलिंग करने से ही मना कर दिया.
‘‘तुम चाहो तो अपना यह आउटफिट ले कर जा सकती हो. यू नौ अवनि किसी की इस्तेमाल की हुई चीजें नहीं लेती. मैं ने अपने लिए दूसरा आउटफिट मंगवा लिया है,’’ प्रैक्टिस रूम छोड़ कर बाहर आती निम्मो ने अवनि का ताना सुना, लेकिन कुछ बोली नहीं. चुपचाप रूम से बाहर निकल आई.
अवनि जब अदा से अपने जलवे बिखेरती रैंप पर आई तो औडिटोरियम में बैठी सभी लड़कियां तालियां बजाने लगीं और लड़के सीटियां. निम्मो फंक्शन बीच में ही छोड़ कर औडिटोरियम से बाहर आ गई.
औडिटोरियम से बाहर निकलती निम्मो के कदमों की दृढ़ता और चाल का आत्मविश्वास बता रहा था कि उस के मन के भीतर चल रहे संघर्ष को विराम लग गया है. विचारों की उफनती नदी में डगमगाती नाव निर्णय के तट पर आ लगी है.
या तो निम्मो ने इस बात को स्वीकार कर लिया था कि तुलना करना मानव स्वभाव मात्र है, इसे दिल पर लेना सम झदारी नहीं है या फिर यह हवाओं में तेज बरसात से पहले वाली चुप्पी है.
सुबह 9 बजे नंदिनी ने खाने की मेज पर अपने पति विपिन और युवा बच्चों सोनी और राहुल को आवाज दी, ‘‘जल्दी आ जाओ सब, नाश्ता लग गया है.’’
नंदिनी तीनों के टिफिन भी पैक करती जा रही थी. तीनों लंच ले जाते थे. सुबह निकल कर शाम को ही लौटते थे. विपिन ने नाश्ता शुरू किया. साथ ही न्यूजपेपर पर भी नजर डालते जा रहे थे. सोनी और राहुल अपनेअपने मोबाइल पर नजरें गड़ाए नाश्ता करने लगे. नंदिनी तीनों के जाने के बाद ही आराम से बैठ कर नाश्ता करना पसंद करती थी.
सोनी और राहुल को फोन में व्यस्त देख कर नंदिनी झुंझला गई, ‘‘क्या आराम से नाश्ता नहीं कर सकते? पूरा दिन बाहर ही रहना है न, आराम से फोन का शौक पूरा करते रहना.’’
विपिन शायद डिस्टर्ब हुए. माथे पर त्योरियां डाल कर बोले, ‘‘क्यों सुबहसुबह गुस्सा करने लगती हो? कर रहे होंगे फोन पर कुछ.’’
नंदिनी चिढ़ गई, ‘‘तीनों अब शाम को ही आएंगे… क्या शांति से नाश्ता नहीं कर सकते?’’
विपिन ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हम तो शांति से ही नाश्ता कर रहे हें. शोर तो तुम मचा रही हो.’’
बच्चों को पिता की यह बात बहुत पसंद आई. दोनों एकसाथ बोले, ‘‘वाह पापा, क्या बात कही है.’’
नंदिनी ने तीनों के टिफिन टेबल पर रखे और चुपचाप उदास मन से वहां से हट गई. सोचने लगी कि पूरा दिन अब अकेले ही रहना है… इन तीनों को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि कुछ देर हंसबोल लें. शाम को सब थके आएंगे और फिर बस टीवी और फोन. किसी के पास क्यों आजकल कोई बात नहीं रहती करने के लिए?
बच्चों के हर समय फोन पर रहने ने तो घर में ऐसी नीरसता भर दी है कि खत्म होने को नाम ही नहीं लेती है. अगर मैं तीनों से अपना मोबाइल, टीवी, लैपटौप बंद कर के थोड़ा सा समय अपने लिए चाहती हूं, तो तीनों को लगता है पता नहीं मुझे क्या हो गया है.
जबरदस्ती दोस्त बनाने में, सोशल नैटवर्किंग के पागलपन में समय बिताने में, पड़ोसिनों से निरर्थक गप्पें मारने में अगर मेरा मन नहीं लगता तो क्या यह मेरी गलती है? ये तीनों अपने फेसबुक मित्रों की तो छोटी से छोटी जानकारी भी रखते हैं पर इन के पास मेरे लिए कोई समय नहीं.
तीनों चले गए. घर में फिर अजीब सी खामोशी फैल गई, मन फिर उदास सा था. नाश्ता करते हुए नंदिनी को जीवन बहुत नीरस और बोझिल सा लगा. थोड़ी देर में काम करने वाली मेड श्यामा आ गई. नंदिनी फिर रूटीन में व्यस्त हो गई.
उस के जाने के बाद नंदिनी इधरउधर घूमती हुई घर ठीक करती रही. सोचती रही कि वह कितनी खुशमिजाज हुआ करती थी, कहेकहे लगाती रोमानी सपनों में रहती थी और अब रोज शाम को टीवी, फोन और लैपटौप के बीच घुटघुट कर जीने की कोशिश करती रह जाती है.
पता नहीं क्याक्या सोचती वह अपने फ्लैट की अपनी प्रिय जगह बालकनी में आ खड़ी हुई. उसे लखनऊ से यहां मुंबई आए 1 ही साल हुआ था. यहां दादर में ही विपिन का औफिस और बच्चों का कालेज है, इसलिए यह फ्लैट उन्होंने दादर में ही लिया था.
रजनीगंधा की बेलों से ढकी हुई बालकनी में वह कल्पनाओं में विचरती रहती. यहां इन तीनों में से कोई नहीं आता. यह उस का अपना कोना था. फिर वह यों ही अपने छोटे से स्टोररूम में जा कर सामान ठीक करने लगी. काफी दिन हो गए थे यहां का सामान संभाले. वह सब कुछ ठीक से रखने लगी. अचानक उस ने बच्चों के खिलौनों का एक बड़ा डब्बा यों ही खोल लिया. ऐसे ही हाथ डाल कर खिलौने इधरउधर कर देखने लगी. 3 साल पहले चारों नैनीताल घूमने गए थे, वहीं बच्चों ने यह दूरबीन खरीदी थी.
वह दूरबीन ले कर डब्बा वापस रख कर अपनी बालकनी में आ कर खड़ी हो गई. सोचा ऐसे खड़े हो कर देखना अच्छा नहीं लगेगा. कोई देखेगा तो गड़बड़ हो जाएगी. अत: फूलों की बेलों के पीछे स्टूल रख कर अपनी दूरबीन संभाले आराम से बैठ गई.
आंखों पर दूरबीन रख कर देखा. थोड़ी दूर स्थित बिल्डिंग बने ज्यादा समय नहीं हुआ था, यह वह जानती ही थी. अभी काफी फ्लैट्स में काम हो रहा था. एक फ्लैट की बालकनी और ड्राइंगरूम उसे साफ दिखाई दे रहा था. उस की उम्र की एक महिला ड्राइंगरूम में दिखाई दी.
उस घर में शायद म्यूजिक चल रहा था. वह महिला काम करतेकरते सिर को जोरजोर से हिला रही थी. अचानक उस की बेटी भी आ गई. दोनों मिल कर किसी गाने पर थिरकीं और फिर खिलखिलाईं. नंदिनी भी मुसकरा उठी. मांबेटी के स्टैप से नंदिनी को लगा शायद ‘बेबी डौल’ गाना चल रहा है. नंदिनी अकेली ही खिलखिला दी. अचानक उस ने मन में ताजगी सी महसूस हुई. आसपास फूलों की खुशबू और सामने मांबेटी के क्रियाकलाप देख कर नंदिनी बिलकुल मस्ती के मूड में आ गई और गुनगुनाने लगी. फिर मांबेटी शायद घर के दूसरे हिस्से में चली गईं.
नंदिनी ने अंदर जा कर घड़ी देखी. 12 बज रहे थे. आज टाइम का पता ही नहीं चला. वह वापस स्टूल पर आ बैठी. दूरबीन से इधरउधर देखती रही. कहीं कुछ खास नहीं दिखा. ज्यादातर फ्लैट्स बंद थे या फिर परदे खिंचे थे.
फिर अचानक उस की नजर एक फ्लैट की बालकनी पर अटक गई. झटका सा लगा. दूरबीन उस के हाथों से गिरतेगिरते बची.
एक लंबाचौड़ा, जिम में तराशी सुगठित देह वाला हैंडसम लड़का तौलिए से अपने बाल पोंछ रहा था. शायद नहा कर निकला था. बस शौर्ट्स पहले तौलिया तार पर टांग ही रहा था कि उस की खूबसूरत नवविवाहिता पत्नी उस लड़के की कमर में पीछे से हाथ डाल दिया. लड़के ने पलट कर उसे वहीं किस कर लिया और फिर उस की कमर में हाथ डाल कर अंदर जा कर ड्राइंगरूम में सोफे पर लेट सा गया.
एकदूसरे का भरपूर चुंबन लेते दोनों साफ दिख रहे थे. नंदिनी की कनपटियां तक लाल हो गईं. उस का दिल तेज धड़कने लगा. ठंडे पसीने से पूरा शरीर भीग गया. बहुत दिनों बाद तनमन की यह हालत हुई थी. नंदिनी ने देखा फिर वह जोड़ा सोफे से उठ कर घर के किसी और हिस्से में चला गया. शायद बैडरूम में. नंदिनी यह सोच कर हंस पड़ी.
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‘‘अच्छा, तभी तो इतना चमकती रहती हो, एकदम चांदी की तरह… पर, मुझ से ज्यादा तो तुम्हें खतरा है… मैं ने सुना है कि अगाली तुम से शादी करना चाहता है.’’ जो चांदी अभी तक चहक रही थी, अब अचानक खामोश हो गई, फिर बोली, ‘‘हां, मुझे वह अजीब नजरों से भी घूरता है और मेरे पिताजी भी उसी की बात मानते हैं. न जाने उस ने ऐसा क्या जादू किया है पिताजी पर,’’ चांदी ने कहा. ‘‘वह कौन सा जादू है, मैं जानता हूं. दरअसल, अगाली तुम्हारे पिता को नशे का आदी बना रहा है. मैं ने खुद अपनी आंखों से तुम्हारे पिता को नशे की एक पुडि़या के लिए अगाली के सामने गिड़गिड़ाते देखा है,’’ माधव बोला. ‘‘तब तो मेरी जिंदगी तबाह होने से कोई नहीं बचा सकता, क्योंकि पिताजी को नशे की लत लगा कर अगाली मेरी शादी अपने साथ करने के लिए उन्हें राजी कर ही लेगा…’’
चांदी घबराई हुई लग रही थी, ‘‘मुझे बचा लो बाबूजी… मुझे बचा लो,’’ कह कर चांदी माधव के सीने से चिपक गई. माधव ने अपनी जिंदगी में बहुत से सांपों को पकड़ा था, पर किसी जवान लड़की के बदन को अपने हाथों में महसूस करने का यह पहला मौका था. तभी बारिश की कुछ बूंदें चांदी के खुले हुए सीने पर आ गिरीं. माधव की नजरें उस के सीने पर ही जम गईं. ‘‘क्या देख रहे हो?’’ चांदी ने पूछा. ‘‘देख रहा हूं कि तुम्हारे जिस्म पर पड़ कर यह पानी भी तुम्हारी तरह चांदी का ही हो गया है,’’ इतना कह कर माधव अपने होंठों से चांदी के सीने पर पड़ी उन बूंदों को चूमने लगा.
इस के बाद वे दोनों जवानी के जोश में सबकुछ भुला बैठे थे. इधर गांव का प्रधान बनने के बाद अगाली और भी ज्यादा तानाशाह हो गया था. उस ने चांदी के पिता को धमकी दे दी थी कि अगर आने वाले 15 दिनों में वह चांदी की शादी उस के साथ नहीं करेगा, तो वह जबरदस्ती चांदी को उठा कर ले जाएगा. इस बात से चांदी बहुत घबरा गई थी और माधव भी परेशान हो गया था.
ऐसे में एक ही रास्ता बच रहा था कि वे दोनों इस गांव से दूर भाग जाएं, पर माधव को सही समय का इंतजार था. एक दिन की बात है. चांदी ने माधव से पूछा, ‘‘क्या तुम सांप ढूंढ़ने जंगल में जा रहे हो?’’ ‘‘हां, पर क्यों…?’’ ‘‘गांव में कुछ लोग ऐसी बातें कर रहे थे कि तुम कोई ऐसी दवा बनाना जानते हो, जिस से आदमी के अंदर बहुत ताकत आ जाती है और अगाली तुम से वह दवा अपने लिए बनवा रहा है… क्या यह सच है?’’ चांदी ने पूछा. ‘‘मेरे पास उस के लिए दवा तो है, पर वह उस की ताकत नहीं बढ़ाएगी, बल्कि उस की जान ही ले लेगी,’’ माधव ने कहा. ‘‘कहां है वह दवा, जरा मैं भी तो देखूं,’’ चांदी बोली. ‘‘वह दवा तो मेरे कमरे में बैग में रखी हुई है, फिर कभी दिखाऊंगा. अभी चलो यहां से. शाम हो रही है.’’ ‘‘वह तो ठीक है, पर तुम मुझे शहर कब ले चलोगे?’’ चांदी ने पूछा.
‘‘मुझे तुम को शहर ले जाने से पहले तुम्हारे बाबूजी को भी नशे के चंगुल से निकालना होगा, नहीं तो ये कपाला और अगाली उन पर तरहतरह के जुल्म करेंगे,’’ माधव ने चांदी के हाथ को थामते हुए कहा. अभी वे दोनों रास्ते में ही थे कि सामने से कपाला और अगाली अपने गुरगों के साथ आते हुए दिखाई दिए. ‘‘अच्छा… तो यहां पर तू गांव की लड़कियों के साथ मजे ले रहा है… अब बहुत हो गया तेरा नाटक… अब या तो तू अभी यहां से भाग जा, नहीं तो पंचायत तेरा हिसाब करेगी,’’ कपाला ने कहा. ‘‘पर, मैं अभी यहां से नहीं जा सकता,’’ माधव ने कहा. ‘‘खूब समझता हूं… तुम शहरी लोग हम गांव वालों को बेवकूफ समझते हो और यहां की भोलीभाली लड़कियों को अपने जाल में फंसा कर उन्हें लूटते हो…
अब और नहीं चलेगा… इन दोनों को पकड़ कर पंचायत के सामने पेश किया जाए,’’ अगाली बोला. उन दोनों को पकड़ लिया गया और शाम को ही पंचायत बैठी. चांदी और माधव दोनों अपराधियों की तरह वहां खड़े थे. गांव के लोग हमेशा की तरह आज भी तमाशा देखने आ गए थे. इस बात से बेखबर कि जो आज इन दोनों के साथ होने वाला है, वह कल उन के साथ भी हो सकता है. ‘‘गांव वालो, इस सांप पकड़ने वाले ने गांव की लड़की के साथ गलत काम करने का अपराध किया है और चांदी ने भी इस से लगाव लगा कर के गांव की इज्जत का मजाक बनाया है, इसलिए इन दोनों को सजा दी जाएगी,’’ कपाला तांत्रिक खड़ा हो कर बोल रहा था, जबकि उस की बातें सुन कर प्रधान बना हुआ अगाली मुसकरा रहा था. ‘‘चूंकि चांदी अभी भोली है और आसानी से इस के बहकावे में आ गई है और फिर वह इसी गांव की लड़की है, इसलिए उसे सजा दी जाती है कि वह गाय के मूत्र से नहा कर अपने शरीर को पवित्र करेगी और आज रात से मेरी और प्रधान अगाली की सेवा में पूरे 21 दिन तक रहेगी, जिस से वह पवित्र हो जाएगी और उस का अपराध माफ कर दिया जाएगा. ‘‘इस के बाद उसे और उस के पिता को इसी गांव में रहने दिया जाएगा…’’
कपाला सांस लेने के लिए रुका और फिर आगे बोलना शुरू किया, ‘‘इस शहरी लड़के की सजा यह है कि इसे हर्जाने के तौर पर पंचायत को पूरे 5 लाख रुपए देने होंगे, नहीं तो इसे पशुओं का गोबर खाना होगा और मूत्र पीना होगा.’’ कपाला की बातें सुन कर माधव बुरी तरह चौंक गया, पर उस ने हिम्मत नहीं हारी और बोला, ‘‘यह सच है कि मैं ने चांदी से प्यार किया है और मैं उस से शादी भी करने को तैयार हूं, पर यह हर्जाने और गोबर खाने वाली बात तो एकदम इनसानियत के खिलाफ है और मैं इसे मानने से इनकार करता हूं.’’ ‘‘पर बबुआ, गोबर तो तुझे खाना ही पड़ेगा,’’ कहते हुए अगाली ने गोबर उठा कर माधव के मुंह में ठूंस दिया, जिस से माधव का दम घुटने लगा और उस ने गोबर अगाली के मुंह पर ही थूक दिया. यह देख कर अगाली आगबबूला हो उठा.
उस ने एक जोरदार लात माधव की दोनों टांगों के बीच मारी. गांव वाले इस सब का मजा ले रहे थे. उन्होंने माधव को मार डाला. पंचायत अपने इस फैसले पर खुश थी. अगाली चांदी को देख कर उस के साथ रात बिताने की कल्पना कर रहा था, जबकि चांदी कोने में खड़ी हुई सिसक रही थी. सब के सामने ही चांदी को पशुओं के मूत्र से नहला दिया गया. पत्थर की तरह खड़ी रही थी चांदी. वह जानती थी कि विरोध करने से उसे भी अभी यहीं पीटपीट कर मार दिया जाएगा. उसे अपने मरने का डर नहीं था, पर उस के मरने के बाद उस के बाबूजी दुनिया में अकेले रह जाएंगे, इस बात से वह परेशान थी और जिन लोगों ने माधव को मार डाला, उन से बदला लिए बगैर मरना उसे बुजदिली लग रहा था. पंचायत के फैसले के मुताबिक कल रात से चांदी को कपाला और अगाली की सेवा में जाना था, पर चांदी का मन माधव की यादों में भटक रहा था. उस का मन तो कर रहा था कि वह कपाला और अगाली से माधव की हत्या का बदला ले, पर भला वह अकेली लड़की उन दोनों का क्या कर सकती थी…
इसी ऊहापोह में चांदी परेशान थी. चांदी के जेहन में माधव की बताई हुई वह बात गूंज रही थी कि उस के बैग में कोई ऐसी दवा रखी है, जो अगाली की जान ही ले लेगी… चांदी सीधा उस के कमरे पर गई, जहां पर बैग रखा हुआ था. उसे वह दवा मिल गई, जिस की उसे तलाश थी. रात हुई तो चांदी कपाला और अगाली के पास पहुंच गई. ‘‘अरे, हमें तो तेरे इतनी जल्दी आने की उम्मीद नहीं थी… लगता है तू भी हमारी सेवा करने के लिए तरस रही है… अच्छा है… आ जा… सेवा शुरू कर हमारी,’’ अगाली ने अपनी धोती को ऊपर सरकाते हुए कहा. ‘‘हां सरकार, पर एक दिन बातों ही बातों में उस शहरी ने मुझे इस दवा के बारे में बताया था कि इसे पीने से आप की ताकत 10 गुना बढ़ जाएगी,’’ चांदी ने उन्हें एक पुडि़या दिखाते हुए कहा. अगाली को जैसे कुछ याद आया, ‘‘तो मेरे लिए दवा बना दी थी उस ने… तब तो बेचारा मुफ्त में मारा गया… कोई बात नहीं… हम इस दवा का मजा आज ही लेंगे… ऐसा करो… इस शराब के गिलास में एक पुडि़या मिला दो…’’ अगाली ने कहा. ‘‘मेरे लिए 2 पुडि़या मिलाना चांदी… क्या है न कि मेरी उम्र थोड़ी ज्यादा है, इसलिए मुझे थोड़ी ज्यादा ताकत की जरूरत पड़ेगी,’’ कपाला ने हंसते हुए कहा. इधर चांदी मन ही मन मुसकरा रही थी. उस ने उन दोनों के गिलास में पुडि़या मिला दी और खुद अपने हाथों से कपाला और अगाली को पूरी शराब पिला दी.
शराब पीते ही कपाला और अगाली का दम घुटने लगा. वे दोनों अपना गला पकड़ कर इधरउधर भागने लगे. कुछ देर बाद उन दोनों के मुंह से झाग निकलने लगा और शरीर भी नीला पड़ गया. उन दोनों की मौत हो चुकी थी. अगले दिन गांव वालों में चर्चा थी कि उस सांप पकड़ने वाले शहरी बाबू के किसी पालतू सांप ने अगाली और कपाला को काट कर शहरी बाबू की मौत का बदला लिया है. चांदी का बदला तो पूरा हो गया था, पर जिस माधव से उस ने सच्चा प्यार किया था, वह अब उस की जिंदगी में दोबारा कभी नहीं आएगा. यही वजह है कि चांदी की मांग आज भी सूनी है.