प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए मंत्रिमंडल से ऐसा कुछ नहीं लगता कि देश में बदलाव की कोई आंधी आएगी. मंत्रिमंडल में अमित शाह का आना केवल यह इशारा करता है कि भारतीय जनता पार्टी अपने फैसलों को सख्ती और मजबूती से लागू करेगी और उन में लचीलापन कम होगा. अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, मेनका गांधी, सुरेश प्रभु, उमा भारती जैसे पुराने अनुभवी नाम गायब हैं. जो नए कैबिनेट लैवल के मंत्री हैं वे आमतौर पर पार्टी की लाइन पर चलने वाले हैं.

वैसे तो यह हमेशा होता रहा है कि हर प्रधानमंत्री अपने चहेतों को ही मंत्रिमंडल में रखता है पर फिर भी मजबूत और बेहद लोकप्रिय प्रधानमंत्री दूसरों के कुछ दबाव में आ कर कुछ समझौते करता है. इस मंत्रिमंडल में समझौता नहीं किया गया है. यह नीतीश कुमार की भी न सुनने की ताकत से साफ है. जनता दल (यूनाइटेड) मंत्रिमंडल में 3 मंत्री पद की मांग कर रहा था पर भाजपा एक ही देने को तैयार थी. हार कर नीतीश कुमार की पार्टी को घर बैठना पड़ा.

सरकार में क्या बदलाव की हवा आएगी यह कम से कम मंत्रियों से तो पता नहीं चलता. लगता है पिछली बार की तरह इस बार भी सारे फैसले नरेंद्र मोदी ही लेंगे और उन के अकेले सलाहकार अमित शाह ही रहेंगे.

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देश के सामने समस्याओं का भंडार है. आज बेरोजगारी बढ़ रही है. किसान परेशान हैं. फैक्टरियां बंद हैं. हां, जनता को वोट देते समय ये मुसीबतें नहीं दिखाई दीं तो कोई वजह नहीं कि प्रधानमंत्री इन पर नींद खराब करें. जनता को देशभक्ति, राष्ट्रवाद और पूजापाठों व आरतियों के झुनझुनों से खुश किया जा सकता है तो क्यों न गिरिराज सिंह जैसों को ऊंचा कद दिया जाए.

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