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आगरा जिले के नगला काक निवासी अजय ने जब से होश संभाला, तभी से बड़ेबड़े सपने देखने लगा. बड़ा भाई अमित तोमर ई रिक्शा चलाता था. रामअवतार चाहता था कि उस का बेटा अमित तो पढ़लिख नहीं पाया पर अगर अजय पढ़लिख जाए तो परिवार की किस्मत संवर जाएगी.

लेकिन घर और गांव का ऐसा माहौल था कि अजय पढ़ नहीं सका और रामअवतार की इच्छा अधूरी रह गई. अजय गांव के लड़कों के साथ आवारा घूमता रहता था. रामअवतार का बड़ा भाई मुन्ना सिंह भी नगला काक में रह कर अपने परिवार का भरणपोषण कर रहा था. मुन्ना सिंह का बेटा विजयपाल जवान हुआ तो उस ने तय किया कि गांव से निकल कर वह आगरा जाएगा और वहीं कुछ काम करेगा.

अजय और विजय एकदूसरे के काफी नजदीक थे, आपस में प्यार भी था. दोनों की उम्र में भी कोई ज्यादा अंतर नहीं था. दोनों ही साथसाथ घूमते और भविष्य के सपने बुनते थे.

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विजय पाल का एक दोस्त था जो आगरा की एक मिल में काम करता था. उस के गांव से आगरा की दूरी करीब 15 किलोमीटर थी. दोस्त के कहने पर विजय आगरा चला गया और दोस्त के साथ मिल में ही काम करने लगा. विजयपाल जब कमाने लगा तो घरवालों ने उस की शादी कछनेरा निवासी प्रेमलता से कर दी. विजयपाल और प्रेमलता अपने दांपत्य जीवन से खुश थे.

शादी के कुछ दिन बाद विजयपाल आगरा चला गया. उस ने थाना छत्ता क्षेत्र की डाकखाना गली में किराए पर कमरा ले रखा था. उस ने मिल की नौकरी छोड़ कर एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी कर ली. धीरेधीरे वह ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिक का खासमखास बन गया. रात हो या दिन, विजयपाल अपने मालिक के एक फोन काल पर हाजिर हो जाता था.

विजय की दुलहन प्रेमलता अब जिद करने लगी थी कि वह भी आगरा में उस के साथ रहेगी. पर प्रेमलता गर्भवती थी, इसलिए उस की सास ने कहा कि बच्चे के जन्म के बाद उसे आगरा भेज देंगे.

इधर अजय का अपने ताऊ मुन्ना सिंह के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही होने लगा था. उस का भाभी प्रेमलता से खूब हंसनाबोलना था. देवरभाभी में खूब पटती थी. घर वालों को भी उन की बातचीत पर कोई ऐतराज नहीं था. कुछ दिनों बाद प्रेमलता ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म के बाद विजयपाल गांव आया तो उस ने गांव वालों को दावत दी.

अजय तोमर के पिता रामअवतार ने विजय से कहा, ‘‘बेटा, अजय दिन भर यहांवहां घूमता रहता है. तुम उसे भी अपने साथ आगरा ले जाओ. वहां कोई कामधाम करेगा तो जिम्मेदारी समझने लगेगा. कमाएगा तो उस का घर भी बस जाएगा.’’

अपने चाचा रामअवतार के कहने के बाद विजय अपने भाई अजय को भी आगरा ले गया. उस ने अजय को भी एक कंपनी में नौकरी पर लगवा दिया. नौकरी लगने के बाद अजय के हाथ में पैसा आने लगा. इस से अजय की महत्त्वाकांक्षाएं भी बढ़ने लगीं. जल्दी ही उसे महानगर की हवा लग गई. आगरा में उस ने कई दोस्त भी बना लिए.

वह विजयपाल के साथ ही रहता था. सब कुछ ठीक चल रहा था. इसी बीच विजय ने तय किया कि बारबार गांव जाने से खर्च ज्यादा होता है, इसलिए उस ने पत्नी को आगरा लाने की सोच ली.

विजय ने एक दिन अजय से कहा कि उसे अब कोई दूसरा कमरा किराए पर लेना होगा, क्योंकि अब वह अपनी पत्नी को अपने साथ ही रखना चाहता है.

प्रेमलता भाभी के आने की बात सुन कर अजय बहुत खुश हुआ. उस ने दोस्तों की मदद से वहां से कुछ ही दूरी पर दूसरा कमरा ले लिया. इस के बाद विजय पत्नी और बेटे को आगरा ले आया.

अजय का कमरा विजय के कमरे के नजदीक था, इसलिए वह जबतब भाभी से मिलने आ जाता. प्रेमलता देवर के साथ खूब हंसीमजाक करती थी. एक दिन प्रेमलता ने अजय से कहा कि उसे आगरा आए काफी समय हो गया, लेकिन वह एक छोटे से कमरे में बंध कर रह गई है. तुम्हारे भैया कमाने की धुन में रोज रात को देर से आते हैं और खाना खा कर सो जाते हैं. उन्हें तो काम से ही फुरसत नहीं है.

अजय ने भाभी की ख्वाहिश को समझ कर कहा, ‘‘भाभी, चिंता क्यों करती हो, तुम्हारा यह देवर तुम्हें आगरा की सैर कराएगा. पहले एक प्याला चाय पिलाओ फिर हम प्लान बनाते हैं.’’

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प्रेमलता ने तुरंत चाय बनाई और चाय का प्याला अजय के सामने रख दिया. चाय पी कर अजय ने कहा, ‘‘चलो भाभी, तैयार हो जाओ. आज हम तुम्हें आगरा शहर दिखाएंगे.’’

‘‘अभी…इस वक्त? तुम्हारे भैया से तो पूछा नहीं है,’’ प्रेमलता ने कहा.

‘‘ओह! अभी वह काम पर होंगे, वापस आ कर बता देंगे. चलो, तैयार हो जाओ.’’

प्रेमलता कशमकश में थी, फिर भी उस ने बेटे को तैयार किया और खुद भी कपड़े बदले और अजय के साथ बाहर आ गई.

‘‘आगरा भ्रमण का कार्यक्रम ताजमहल से शुरू करते हैं.’’ अजय ने एक आटो बुक किया और कहा, ‘‘बैठो भाभी, आज हम तुम्हें शाहजहां और मुमताज की मोहब्बत की निशानी दिखाएंगे.’’

प्रेमलता बहुत खुश थी. कुछ ही देर में दोनों ताजमहल के गेट पर पहुंच गए. अजय ताजमहल देखने के लिए 2 टिकट खरीद लाया. फिर दोनों ने ताज परिसर में प्रवेश किया. संगमरमरी ताज को देख कर प्रेमलता बहुत खुश हुई. दोनों ताज की मखमली घास पर बैठ गए. प्रेमलता ने ठंडी सांस ली तो अजय ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, कुछ परेशान हो क्या?’’

‘‘नहीं तो…बस सोच रही हूं कि पति को बीवी के दिल की बात को समझनी चाहिए.’’ प्रेमलता बोली.

‘‘अरे हम हैं, तुम परेशान क्यों हो.’’ कहते हुए अजय ने अचानक प्रेमलता का हाथ पकड़ लिया. प्रेमलता अजय के स्पर्श से कांप उठी. तभी अजय ने कहा, ‘‘भाभी, जानती हो तुम आज कितनी खूबसूरत लग रही हो?’’

प्रेमलता ने अपना हाथ छुड़ाया और बोली, ‘‘अच्छा मजाक कर लेते हो. तुम्हारे भैया ने तो यह बात मुझे आज तक नहीं बताई. मुझे लगता है कि मर्द को या तो खाना पकाने के लिए या फिर बिस्तर गर्म करने के लिए औरत की जरूरत होती है.’’ अचानक प्रेमलता का दर्द छलक उठा.

अजय के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे. वह इधरउधर की बातें करने लगा. करीब 2 घंटे बाद वे ताजमहल से निकले, तब अजय ने कहा, ‘‘भाभी, तुम्हें और मुन्ने को भूख लगी होगी.’’

इस से पहले कि प्रेमलता कुछ कहती, अजय ने मुन्ने को उठाया और सामने रेस्टोरेंट में जा पहुंचा. पीछेपीछे प्रेमलता भी चलने लगी.यह प्रेमलता के लिए एक नया तजुर्बा था. वह सोचने लगी कि काश! विजय भी उस की इच्छाओं को पूरा करता.

खापी कर दोनों घर आ गए. अजय ने कहा, ‘‘ठीक है भाभी, मैं चलता हूं.’’

अजय के जाने के बाद वह प्रेमलता के दिलोदिमाग पर छाया रहा, जो अपने पति से संतुष्ट नहीं थी. दरअसल, महत्त्वाकांक्षाओं का मिजाज कुछ ऐसा होता है कि एक बार खड़ी होती है तो बढ़ती ही जाती है.

अजय की मजबूत कदकाठी अब प्रेमलता के दिलोदिमाग को घेरने लगी थी. कुछ अधिक पाने की चाह भी सिर उठाने लगी थी. पर ये वो दलदल थी, जिस में घुसना तो आसान था पर निकल पाना मुश्किल था. प्रेमलता ने सिर झटका, वह भी क्या सोचने लगी. अभी तो यही डर था कि कहीं विजय को पता चल गया तो वह न जाने क्या हंगामा खड़ा कर दे.

लेकिन विजय को पता नहीं चला. प्रेमलता ने राहत की सांस ली और फोन कर के अजय को बता दिया कि वह विजय से ताजमहल घूमने जाने का कोई जिक्र न करे.

अगली रात जब विजयपाल काम से लौटा तो कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और प्रेमलता नींद में थी. वह बड़ी मुश्किल से उठी और पति को खाना लगाया.

शायद ऐसा पहली बार हुआ था. विजय ने खाना खाया और इधरउधर टहलने लगा. प्रेमलता के मन में एक डर सा समाया हुआ था. पर कुछ देर तक टहलने के बाद विजय गहरी नींद में सो गया.

2-4 दिन तक जब अजय नहीं आया तो प्रेमलता ने अजय को फोन कर के कहा, ‘‘आज तुम्हारे भैया गांव जा रहे हैं, तुम यहां आ सकते हो?’’

अजय को ऐसे ही किसी निमंत्रण का इंतजार था. शाम को विजय जल्दी घर आ गया. उस ने कहा, ‘‘अम्मा की तबीयत ठीक नहीं है. मैं ने फोन कर के पापा को कह दिया है कि अम्मा को यहां मैडिकल में दिखा देंगे. अब अम्मा कुछ दिनों तक हमारे पास ही रहेंगी.’’

यह सुनते ही प्रेमलता बोली, ‘‘अम्मा को गांव के वैद्यजी की दवा से फायदा होता है. खामख्वाह यहां आ कर परेशान होंगी.’’

विजयपाल ने प्रेमलता की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और चला गया. पति के जाने के बाद प्रेमलता ने अजय को बता दिया कि रास्ता साफ है.

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अजय कुछ ही देर में आ गया और घर के एकांत में देवरभाभी का पवित्र रिश्ता पाप में डूब गया. पूरी रात दोनों एकदूसरे के आगोश में रहे.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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