कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सौजन्य- सत्यकथा

अजय ने बाथरूम में जा कर हाथमुंह धोया और तौलिए से पोंछने के बाद कुरसी पर आ कर बैठ गया. सामने किचन में कविता खड़ी चाय बना रही थी.

अब उस के शरीर पर लाल जोड़े की जगह सफेद सलवारसूट था. कलाई में चूडि़यां भी नहीं थीं. उस ने चेहरा पानी से जरूर धो लिया था, पर मेकअप की मौजूदगी अब भी नुमायां हो रही थी.

आंखें मिलते ही कविता मुसकराई, ‘‘जीजाजी, खूब मजे से सोए.’’

अजय ने मन ही मन में जवाब दिया, ‘सपने में बिजली गिरा कर मासूम बन रही हो.’ लेकिन जुबान से बोला, ‘‘मजा ले कर सो रहा था या कजा से गुजर रहा था, बाद में बताऊंगा. पहले तुम बताओ, कब आईं?’’

‘‘थोड़ी ही देर में आ गई थी. घर आ कर देखा तो आप सो गए थे. इसलिए मैं भी घर के कामों मे लग गई थी.’’ कविता ने मुसकरा कर कहा और उस के सामने टेबल पर चाय का कप रख दिया. फिर उसी के पास बैठ गई.

अजय को उस समय वहां अपनी सास की मौजूदगी खल रही थी. कविता अकेली होती तो वह उसे रिझाने का प्रयास करता. अजय की मजबूरी यह थी कि वह न सास को वहां से जाने को कह सकता था और न कविता का हाथ पकड़ कर अकेले में बात करने के लिए ले जा सकता था.

रात को खाना खाने के बाद अजय को कविता के कमरे में सोने के लिए पहुंचा दिया गया. और कविता सविता के कमरे में उस के साथ सो गई.

अगले दिन सुबह होने पर अजय के सासससुर खेतों पर चले गए. सविता स्कूल चली गई. इस से अजय को कविता से बात करने का मौका मिल गया. उस समय कविता नहाने जा रही थी. अजय ने उस से पूछा, ‘‘कविता, नहाने के बाद तुम कौन से कपड़े पहनोगी?’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD4USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...