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सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

कुछ समय बाद बाथरूम से आने पर उन्होंने थाने में हलचल पाई. मालूम हुआ कि कोई आदमी अपने हाथ में रक्तरंजित गंडासा ले कर आया है और बुदबुदा रहा है, ‘मैं ने सब को मार दिया, सब खत्म कर दिया. अच्छा किया, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’

उसे 3 कांस्टेबल घेरे हुए थे. पूछ रहे थे कि उस ने क्या किया है, किसे मारा है, गंडासा कहां से लाया है, उस पर खून कैसे लगा है? इन सवालों के जवाब देने के बजाय एक ही रट लगाए हुए था, ‘मैं ने सब को मार दिया..’

थानाप्रभारी ने सभी कांस्टेबलों को हटा कर और उसे अपने सामने की कुरसी पर बिठाया. तब तक उन की चाय आ चुकी थी. उन्होंने अपनी चाय उसे पीने के लिए दे दी, लेकिन उस ने चाय लेने से इनकार कर दी. हाथ में कस कर पकड़ा हुआ गंडासा थानाप्रभारी के सामने टेबल पर रख दिया. उस पर काफी मात्रा में खून लगा हुआ था.

थाना प्रभारी ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम? यह गंडासा तुम्हें कहां से मिला?’’

‘‘साहबजी, मैं पूर्व फौजी राव राय सिंह हूं. मैं इसी थानाक्षेत्र के राजेंद्र पार्क में रहता हूं.’’ व्यक्ति बोला.

‘‘और यह गंडासा... इस पर खून कैसा?’’ थानाप्रभारी ने जिज्ञासा जताई.

‘‘यह मेरा ही गंडासा है. मैं ने इस से 5 को मार डाला है.’’ वह बोला. उस के चेहरे पर निश्चिंतता के भाव थे.

‘‘मार डाला? तुम ने मारा 5 को? किसे मारा? क्यों मारा? पूरी बात बताओ.’’ थानाप्रभारी चौंकते हुए बोले.

‘‘साहबजी, बताता हूं, सब कुछ बताता हूं. मैं ने अपने घर में ही सब को मारा है. सभी की लाशें वहीं पड़ी हैं. जाइए, पहले उन का दाह संस्कार करवाइए. मुझे जो सजा देनी है, बाद में दे दीजिएगा.’’ यह कहतेकहते उस ने अपना सिर झुका लिया.

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