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कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को नाच नचा दिया. इस वायरस से मरने वालों की संख्या लाखों तक पहुंच गई. कोई दवा न होने से इस का एक ही इलाज था लौकडाउन. जब पूरे देश में लौकडाउन का तीसरा चरण चल रहा था, तब प्रयागराज (इलाहाबाद) के लोग भी घरों में बंद रहने को मजबूर थे.

प्रयागराज की कोतवाली धूमनगंज के क्षेत्र में एक पौश कालोनी है प्रीतम नगर. आतिश का घर इसी कालोनी में था. शहर में भले ही लौकडाउन था, लेकिन लोगों की सुविधा के लिए बैंक खुल रही थीं.

14 मई को आतिश को मकान की किस्त जमा कराने कटरा स्थित अपने बैंक जाना था. किस्त जमा कराने के लिए वह डेढ़ बजे घर से निकल गया.

किस्त जमा कर के आतिश अपराह्न पौने 4 बजे घर लौटा तो घर का मुख्य दरवाजा बंद था. उस ने दरवाजे को हलके से धक्का दिया तो वह खुल गया. घर के अंदर से किसी के बोलनेबतियाने की आवाज नहीं आ रही थी. आतिश अपनी मां को आवाज लगाते हुए मकान में दाखिल हुआ तो उस की चीख निकल गई. अंदर उस के पिता तुलसीदास केसरवानी, मां किरण और बहन नीहारिका की रक्तरंजित लाशें पड़ी थीं.

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घर के 3 लोगों की लाशें देख कर वह चीखचीख कर रोने लगा. उस के रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग भी वहां आ गए. जब उन्हें पता चला कि किसी ने आतिश के मातापिता और बहन की गला काट कर हत्या कर दी है तो वे आश्चर्यचकित रह गए. लौकडाउन के चलते इतनी बड़ी वारदात हो जाना आश्चर्य की बात थी.

आतिश का रोरो कर बुरा हाल था. वह पड़ोसियों से लिपटलिपट कर रो रहा था. लोग उसे सांत्वना दे रहे थे. मरने वाले 3 जनों के अलावा घर में आतिश की पत्नी प्रियंका भी थी, जो कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. पड़ोसियों ने आतिश से जब प्रियंका के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि दोपहर डेढ़ बजे जब वह घर से निकला था तो प्रियंका घर में ही थी.

प्रियंका ऊपर की मंजिल पर रहती थी. पड़ोसियों ने सोचा कि प्रियंका अपने कमरे में सो तो नहीं रही, इसलिए पड़ोसी उसे देखने के लिए ऊपर की मंजिल पर गए तो बैडरूम में प्रियंका की भी लाश पड़ी थी. उसका गला रेता गया था. यह देख सभी हैरान रह गए. हत्यारे को घर में जो भी मिला, उस ने मौत के घाट उतार दिया.

इसी दौरान किसी ने फोन से इस घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. वह इलाका कोतवाली धूमनगंज के अंतर्गत आता है, इसलिए 4 लोगों की हत्या की सूचना पाते ही कोतवाल पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस की सूचना विभाग के उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

प्रीतम नगर पौश कालोनी थी. लौकडाउन के चलते ऐसी जगह पर एक ही समय में एक ही परिवार के 4 लोगों की हत्या हो जाना पुलिस के लिए चिंता की बात थी. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो कालोनी के तमाम लोग आतिश के घर के बाहर खड़े थे.

कुछ लोग अपने घरों की बालकनी से देख रहे थे. तरहतरह की बातें हो रही थीं. घर के मुखिया 63 वर्षीय तुलसीदास की अपने घर में ही बिजली के उपकरण बेचने की बड़ी दुकान थी. कोतवाल ने पुलिस टीम के साथ घटनास्थल का निरीक्षण किया.

मकान के एक हिस्से में दुकान थी और दूसरे हिस्से से घर के अंदर जाने का रास्ता था. इस का मतलब कातिल घर के रास्ते से ही अंदर घुसे थे. उन्होंने 63 वर्षीय केसरवानी को दुकान की तरफ ले जा कर उन की गला रेत कर हत्या की. वहीं काउंटर की तरफ उन की 60 वर्षीय पत्नी किरण की लाश पड़ी थी और बराबर में उन की 28 वर्षीय बेटी नीहारिका की लाश.

हत्यारों ने मांबेटी की हत्या गला रेत कर की थी. इस के बाद पुलिस ऊपर के कमरे में पहुंची तो वहां आतिश की 27 वर्षीय पत्नी प्रियंका की रक्तरंजित लाश पड़ी मिली. उस का भी गला रेता गया था.

घर की सारी अलमारियां और घर में रखा सारा सामान सुरक्षित था. हत्यारों ने घर के किसी भी सामान को हाथ तक नहीं लगाया था. इस का मतलब था कि हत्यारों का मकसद केवल घर वालों की हत्या करना था.

मामला गंभीर था, इसलिए सूचना पा कर एडीजी प्रेमप्रकाश, आईजी के.पी. सिंह, एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, एसपी (सिटी) बृजेश श्रीवास्तव और सीओ  (सिविल लाइंस) बृजनारायण सिंह भी आतिश के घर पहुंच गए.

फोरैंसिक टीम और खोजी कुत्ते को भी बुला लिया गया था. घर में खून ही खून फैला हुआ था. अधिकारी भी नहीं समझ पा रहे थे कि जब हत्यारों ने घर में किसी भी सामान को छुआ तक नहीं तो 4-4 लोगों की हत्या का क्या मकसद हो सकता है. खोजी कुत्ता लाशों को सूंघ कर घर से करीब 200 मीटर दूर तक गया और वहां जा कर भटक गया.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद सबूत जुटाए. घर में आने का केवल मुख्य दरवाजा ही था. फोरैंसिक टीम और पुलिस अधिकारियों ने दरवाजे का सूक्ष्मता से निरीक्षण किया तो वहां ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से पता चलता कि हत्यारों ने घर में जबरदस्ती प्रवेश किया था. इस का मतलब हत्यारों की घर में फ्रैंडली एंट्री हुई थी.

घर में सीसीटीवी कैमरे लगे थे, लेकिन उन का डीवीआर गायब था. इस का मतलब हत्यारों ने योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम दिया था. हत्यारे कौन थे, यह बात तो जांच के बाद ही पता चल सकती थी. लेकिन कालोनी में जिसे भी इस हत्याकांड का पता चला, वह केसरवानी के घर की ओर चल दिया. लौकडाउन के बावजूद उन के घर के बाहर लोगों का हुजूम जमा हो गया था.

भीड़ को देख कर पुलिस अधिकारियों की आशंका हुई कि भीड़ कोई बवाल खड़ा न कर दे. पुलिस अधिकारियों को आशंका यूं ही नहीं थी, इस का वाजिब कारण था.

दरअसल, करीब ढाई महीने पहले मार्च में शहर के ही सोरांव थाना क्षेत्र में एक ही परिवार में पिता, पुत्र, बहू व पोतेपोती सहित 5 लोगों की हत्या हुई थी. उन का भी गला रेता गया था. उस परिवार में केवल एक ही लड़का बचा था, जो घटना के समय सूरत (गुजरात) में था.

इस के अलावा मई के पहले सप्ताह में एक ही परिवार में पतिपत्नी व बेटी की सोते समय गला रेत कर हत्या कर दी गई थी. इन दोनों वारदातों में अभी तक किसी का भी खुलासा नहीं हुआ था. अब तीसरी वारदात केसरवानी के परिवार में हो गई थी. इसी वजह से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ रहा था.

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भीड़ के संभावित आक्रोश को भांपते हुए एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज ने जिले के अन्य थानों से भी पुलिस फोर्स मंगा ली.

जब कोतवाल शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी कर रहे थे, एसएसपी ने पड़ोसियों से पूछा कि उन्होंने किसी के चीखने की आवाज सुनी या नहीं? पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने कोई आवाज नहीं सुनी थी.  इस से उन्होंने अनुमान लगाया कि या तो घर के सभी लोगों को नींद की गोलियां दी गई होंगी या फिर हत्यारों की संख्या अधिक रही होगी, जिस से उन्होंने घर वालों को काबू कर के वारदात को अंजाम दिया होगा.

इस परिवार में अब केवल एक ही सदस्य यानी तुलसीदास केसरवानी का एकलौता बेटा आशीष उर्फ आतिश (32 साल) ही जीवित था. एसएसपी ने आतिश से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह करीब डेढ़ बजे किस्त जमाने करने के लिए कटरा स्थित बैंक गया था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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