सौजन्य- सत्यकथा
अगले दिन सुबह वीर सिंह काम पर चला गया. सोमपाल काम पर नहीं गया, अपने घर पर ही रहा. असल में वह सहमा भी था कि कहीं सुशीला चाची का जबाव उस के मन के विपरीत हुआ तो सब गुड़ गोबर हो जाएगा. जब वह सुशीला के सामने पहुंचा तो सुशीला ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘कल मैं खाना पकाने की उलझन में थी, इसलिए तुम्हारी बातों पर तवज्जो नहीं दे पाई. अब बोलो, कल क्या कह रहे थे?’’
सोमपाल के भीतर के भय ने और भी लंबे पांव पसार लिए. नजरें झुका कर वह धीरे से बोला, ‘‘मुझे जो कहना था, कल ही कह दिया था.’’
‘‘क्या यह सच है कि तुम्हें मुझ से प्यार हो गया है?’’ वह बोली.
सोमपाल ने नजरें झुकाए हुए ही धीरे से सिर हिला दिया, ‘‘हां.’’
‘‘प्यार भी करते हो और डरते भी हो,’’ सुशीला ने अपनी बांहें उस के गले में डाल दी, ‘‘बुद्धू, प्यार करने वाले डरा नहीं करते.’’
सोमपाल हैरान रह गया. सुशीला प्यार का जबाव इस शिद्दत से देगी, यह उस की सोच से परे बात थी. ‘‘विश्वास नहीं हो रहा है!’’ सुशीला मुसकराई, ‘‘अच्छा, मैं तुम्हारा मुंह मीठा करा देती हूं, तब यकीन होगा कि यह सुशीला भी तुम्हें चाहती है.’’
इस के बाद वह अपना मुंह सोमपाल के मुंह के पास ले गई. इतने पास कि सांसें सांसों से टकराने लगीं. सोमपाल ने उस के होंठों से अपने होंठों का मिलाप करा कर उस के होंठों को चूम लिया.
कुछ देर चूमने के बाद सुशीला ने अपना मुंह हटा लिया और उस की आंखों में देखते हुए पूछा, ‘‘हुआ मुंह मीठा?’’
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