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अपराध चाहे जैसा भी हो, अपराध ही होता है, सामाजिक समन्वय के विरुद्ध उठाया हुआ कदम, मानवीयता पर प्रहार, हर अपराध की सजा होती है. एक दिन से ले कर आजीवन तक. कालकोठरी से ले कर फांसी तक. वैसे यह भी सही है कि कुछ अपराधी कानून के बारीक छिद्रों का सहारा ले कर बच निकलते हैं और कई अपने दांवपेंचों से कानून की चौखट तक जाते ही नहीं. अश्विनी उर्फ जौनी ऐसा तो नहीं था, लेकिन उस की सोच जरूर कुछ ऐसी ही थी अपने बारे में.

अश्विनी उर्फ जौनी जिला बिजनौर के कस्बा बढ़ापुर का रहने वाला था. पढ़ालिखा, स्वस्थ सुंदर युवक. पिता सुभाष धामपुर की गन्ना सहकारी समिति में नौकरी करते थे. शिक्षा के महत्त्व को समझने वाले सुभाष ने अश्विनी को एमकौम तक पढ़ाया था. उस ने इंटरमीडिएट श्योहारा के स्कूल से किया. आगे की पढ़ाई के लिए उस के पिता सुभाष ने जौनी को उस के मामा हर्ष के घर दौलताबाद भेज दिया था. वहीं रह कर जौनी ने नजीबाबाद के कालेज से बीकौम और एमकौम की डिग्रियां हासिल कीं.

इस के अलावा मामा के घर रह कर उस ने कई डिप्लोमा भी किए, ताकि मौका मिलने पर किसी अच्छी नौकरी में निकल जाए. पढ़ाई के दौरान ही निकिता से उस की घनिष्ठता बढ़ी. निकिता दौलताबाद की रहने वाली थी. मतलब उस के मामा के गांव की. जौनी और निकिता की निकटता कई सालों तक बनी रही. बाद में यह बात भी सामने आई कि जौनी ने निकिता को प्रपोज किया था, लेकिन उस ने मना कर दिया था.

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