बौक्स औफिस कलेक्शन में औंधे मुंह गिरी ‘जीरो’

‘तनु वेड्स मनु’, ‘रांझणा’ और‘ ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’ को मिली अपार सफलता के बाद फिल्म निर्देशक आनंद एल राय के बारे में कहा जाने लगा था कि वह जिस फिल्म में भी हाथ डालते हैं, वह सोना बन जाती है. उसके बाद आनंद एल. राय ने ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘न्यूटन’ सहित कई सफल फिल्मों का सिर्फ निर्माण किया. अब वह शाहरुख खान के साथ बड़े बजट की अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म ‘जीरो’ लेकर आए हैं. जिसमें शाहरुख खान ने मेरठ निवासी चार फुट छह इंच कद के बौने बउआ का किरदार निभाया है, जो कि मेरठ से अमरीका के नासा तक पहुंचकर अंतरिक्ष यात्री बनता है. पर ‘जीरो’ में आनंद एल राय असफल हो गए. इस फिल्म को लेकर आनंद एल राय को काफी उम्मीदें थी. उन्होने बड़े बड़े दावे कर रखे थे. फिल्म ‘जीरो’ को इस वर्ष की सफलतम फिल्म बनाने के लिए शाहरुख खान ने रोहित शेट्टी व करण जोहर से बात कर फिल्म ‘सिंबा’ के प्रदर्शन की तारीख बदलवा कर 21 दिसंबर से 28 दिसंबर करवायी. इसके बावजूद फिल्म ‘जीरो’ बाक्स आफिस पर मुंह के बल गिरी.

अमूमन हर फिल्म के बौक्स आफिस की कमाई रविवार के दिन बढ़ जाती है, मगर ‘जीरो’ पहली फिल्म रही जिसकी कमाई शुक्रवार के मुकाबले रविवार को कम रही. शुक्रवार को ‘जीरो’ ने बाक्स आफिस पर 19 करोड़ 35 लाख पए कमाए थे, पर रविवार के दिन महज 18 करोड़ पच्चीस लाख रूपए ही कमा सकी. सोमवार को यह घटकर नौ करोड़ पचास लाख रूपए हो गयी, पर क्रिसमस की छुट्टी के चलते मंगलवार को यह फिल्म 11 करोड़ 75 लाख रूपए ही कमा सकी. जबकि आनंद एल राय और शाहरुख खान को पूरी उम्मीद थी कि कम से कम मंगलवार को क्रिसमस की छुट्टी के दिन उनकी फिल्म ‘जीरो’ बाक्स आफिस पर बीस करोड़ रूपए से अधिक कमाएगी. छठे दिन यानी कि बुधवार को इसकी कमाई साढ़े चार से पांच करोड़ के बीच ही रही. अफसोस की बात यह रही कि दो सौ करोड़ रूपए की लागत से बनी फिल्म ’जीरो’ छह दिन में लगभग 81 करोड़ रूपए (ज्ञातव्य है कि बाक्स आफिस की कमाई का चालिस प्रतिशत ही निर्माता को मिलता है. बाकी थिएटर के खर्च में कट जाता है) ही कमा सकी. यानी कि ‘जीरो’ को दर्शकों ने बुरी तरह से नकार दिया है.

फिल्म ’जीरो’ से दर्शकों की दूरी की मुख्य वजह यह है कि पूरी फिल्म एक बौने की कहानी है, मगर पूरी फिल्म में शाहरुख खान का स्टारडम इस कदर हावी है कि वह बौने इंसान बउआ की जगह शाहरुख खान ही नजर आते हैं. इसी के चलते पूरी कहानी अविश्वसनिय लगती है. हमें शुरू से इस बात की आशंका थी. इसीलिए अगस्त 2017 में एक खास मुलाकात के दौरान हमने फिल्म के निर्देशक आनंद एल राय से पूछा था कि ‘जब फिल्म में स्टार होता है, तो कहानी से बड़ा स्टार हो जाता है?’ इस पर उस वक्त तक ‘जीरो’ का आधा फिल्मांकन कर चुके आनंद एल राय ने इस बात को नकराते हुए हमसे कहा था, ‘सच तो यह है कि शाहरुख खान मुझसे स्टार के रूप में मिले ही नहीं. वह मुझसे एक बेहतरीन इंसान व बेहतरीन कलाकार के रूप में मिले. उन्होंने मुझे अब तक इस बात का अहसास नहीं होने दिया कि वह एक बड़े स्टार हैं. उन्होंने तो मेरी जिंदगी बड़ी आसान बनाकर रखी हुई है. ’’

फिल्म के निर्देशक आनंद एल राय भले ही सच न स्वीकार करे, पर ‘जीरो’ की असफलता की एक वजह यह भी है कि वह स्टार के स्टारडम के आगे इस कदर समर्पित हो गए कि उनकी अपनी निर्देशन शैली की छाप ‘जीरो’ में नजर नहीं आती.

फिल्म ’जीरो’ की बौक्स आफिस पर इसी तरह से दुर्गति होनी है, इस बात के कयास बौलीवुड में उसी दिन से लगने शुरू हो गए थे, जिस दिन आनंद एल राय ने शाहरुख खान के साथ फिल्म ‘जीरो’ के निर्माण का ऐलान किया था. इतना ही नहीं लगभग एक साल पहले यानी कि 25 नवंबर 2017 को एक खास मुलाकात के दौरान अभिनेता व लेखक लिलिपुट, जो कि स्वयं बौने हैं, ने फिल्म ‘जीरो’ की सफलता पर आशंका व्यक्त की थी.

उस दिन लिलिपुट ने फिल्म ‘जीरो’ के संदर्भ में हमसे कहा था, ‘अब आप ही बताइए, क्या शाहरुख खान को परदे पर बौने के रूप में देख दर्शक उनसे रिलेट कर पाएगा? जब मैने बौने को हीरो लेकर पटकथा लिखी थी, तब मुझसे निर्माता ने कहा था कि वह मेरी जगह किसी अन्य को इस फिल्म का हीरो बनाना चाहते हैं. अनुपम खेर बौने बनकर आ गए, अरे भाई आप कहां से बौने लगेंगे. आप नकली ही नजर आएंगे. कमल हासन ने फिल्म ‘अप्पू राजा’ में जो किया, तो वह जानता था, उसने एक कल्पित किरदार ही गढ़ा. उसने बहुत बैलेंस किया. यदि वह राजा को न रखता, सिर्फ बौने को रखता, तो नहीं चलता. उसका लेखक बुद्धिमान था. अब शाहरुख खान तो उतनी परफार्मेंस दे नहीं सकते. तुम्हारी मानसिकता वैसी नहीं है. तुमने उस तरह से जिंदगी को झेला ही नहीं है. इसलिए तुम्हारे दिमाग में उस तरह के विचार आ ही नहीं सकते. चांदी के चम्मच में खाकर रिक्शावाले का दर्द कैसे परदे पर लाएंगे? आप बलराज साहनी तो हैं नहीं. पहले उस स्तर के बड़े कलाकार तो बनिए. यदि आप गिमिक को अभिनय कहते हैं, तो गिमिक, गिमिक ही होता है. आप दिलीप कुमार भी नहीं है. हां, यदि इस किरदार को नसिरूद्दीनशाह निभा रहे होते तो कुछ हद तक वह कर ले जाते. आप बौने बने हैं, पर आप बौने हैं नहीं, यह हम सब जानते हैं. इस बात से शाहरुख खान के फैन भी वाकिफ है. तो आपके साथ हमदर्दी नहीं हो सकती. जो धन शाहरुख खान को दिया, वही धन लिलिपुट को देकर उनसे इस किरदार को निभवाकर देखते?’

फिल्म ’जीरो’ की असफलता के पीछे कमजोर पटकथा, संवाद व कलाकारों का स्तरहीन अभिनय भी है. इसी के साथ सोशल मीडिया ने भी फिल्म को नुकसान पहुंचाया. काश यह बात हर कलाकार समझ पाता. फिल्म के प्रदर्शन से पहले इस फिल्म को सोशल मीडिया पर ही सर्वाधिक पारित किया गया, पर यह स्टार भूल जाते हैं कि सोशल मीडिया से बाक्स आफिस प्रभावित नहीं होता. सोशल मीडिया से कलाकार के स्टारडम को नुकसान हो रहा है. यह एक अद्भुत सत्य है. अमिताभ बच्चन के सोशल मीडिया यानी कि ट्वीटर, इंस्टाग्राम व फेसबुक पर एक करोड़ फालोअर्स होने के बावजूद उनकी फिल्म ‘शमिताभ’ ने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा था.

शाहरुख खान के भी सिर्फ ट्वीटर पर 35 मिलियन फालोअर्स हैं. पर ‘दिलवाले’, ‘फैन’, ‘रईस’, ‘जब हैरी मेट सेजल’ के बाद ‘जीरो’ उनकी पांचवी लगातर असफल होने वाली फिल्म है.

सलमान के साथ झगड़े पर शाहरुख ने जो कहा आपको पढ़ना चाहिए

शाहरुख और सलमान की जोड़ी दोस्ती के लिए नहीं बल्कि दुश्मनी के लिए जानी जाती है.  अब भले ही दोनों बड़े पर्दे पर साथ दिख जाते हों, पर करीब 5 सालों तक दोनों अपनी दुश्मनी के किस्सों के कारण चर्चा में रहे. हालांकि दोनों में से कोई भी इसपर खुल के कभी नहीं बोला. इनकी लड़ाई खान-वार के नाम से मशहूर है.

हाल ही में शाहरुख ने इस लड़ाई के सवाल पर जवाब देते हुए कहा कि, कभी भी हम दोनों के बीच लड़ाई नहीं रही, वो बस मामूली सी तू-तू, मैं-मैं थी. शाहरुख ने कहा कि वो सलमान और उनके परिवार की बहुत इज्जत करते हैं. अपने पुराने दिनों को याद करते हुए शाहरुख कहते हैं कि, ‘जब मैं अपने परिवार के साथ नया नया मुंबई आया था तो उनके पूरे परिवार ने किसी अपने की तरह मेरा बहुत ख्याल रखा. मुझे लगता था कि मैं अपने दोस्तों और घरवालों के साथ हूं.’

किंग खान ने कहा कि, हमारे बीच छोटी मोटी नोंकझोंक होती रही हैं, पर प्यार भी बहुत ज्यादा है. हम एक दूसरे के बेहद करीब हैं.

आपको बता दें कि हाल ही में रिलीज हुई शाहरुख की फिल्म जीरो में सलमान का स्पेशल अपियरेंस था. इस फिल्म में शाहरुख के साथ अनुष्का और कटरीना कैफ मुख्य भुमिका में हैं. फिल्म का निर्देशन आनंद एल राय ने किया है. दर्शकों के बीच फिल्म का रिस्पौंस बहुत अच्छा नहीं रहा. अब देखने वाली बात होगी कि कमाई के मामले में फिल्म हिट रहती है या फ्लौप.

जीरो : फिल्म से दूरी ही भली..

‘तनु वेड्स मनु’, ‘रांझणा’, ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’ जैसी फिल्मों के सर्जक आनंद एल राय अब शाहरुख खान, अनुष्का शर्मा और कैटरीना कैफ के साथ फिल्म ‘‘जीरो’’ लेकर आए हैं, मगर इस फिल्म में उनकी अपनी निर्देशन शैली की कोई छाप नजर नहीं आती.

फिल्म ‘‘जीरो’’ की कहानी मेरठ निवासी छोटे कद (चार फुट छह इंच) के यानी बौने इंसान बउआ सिंह (शाहरुख खान) की है, जिससे उनकी मां (शीबा चड्ढा) और उनके पिता (तिग्मांशु धूलिया) दोनों बहुत परेशान रहते हैं. बउआ सिंह अपने पिता के पैसे लोगों में बांटते रहते हैं. बउआ सिंह मशहूर अभिनेत्री बबिता कुमारी (कैटरीना कैफ) की फिल्मों के दीवाने हैं. वह एक नृत्य प्रतियोगिता का फार्म महज इसलिए भरते हैं कि विजेता को बबिता कुमारी के हाथों पुरस्कार मिलना है. 38 साल की उम्र हो गयी है पर बउआ सिंह की शादी नहीं हुई है. शादी के लिए उन्हें कोई लड़की ही नहीं मिल रही है. वह अपनी शादी के लिए लड़की तलाश रहे हैं. इसके लिए वह बार बार अपने दोस्त गुड्डू सिंह (मोहम्मद जीशान अयूब) के साथ इंटरनेट के माध्यम से शादी कराने वाली संस्था के पांडे जी (ब्रजेंद्र काला) के पास बार बार जाते रहते हैं. एक दिन पांडे जी के आफिस में आफिया (अनुष्का शर्मा) की तस्वीर देखकर वह उस पर लट्टू हो जाते हैं.

सेरेब्रल पल्सी की बीमारी से ग्रसित आफिया अमरीका में नासा की वैज्ञानिक है, जिसने मंगल ग्रह पर अंतिरक्ष यान भेजा है और मंगल ग्रह पर दूसरा अंतरिक्ष यान भेजने की तैयारी कर रही है, जिसमें वह एक बंदर यानी कि चिंपांजी या किसी मनुष्य को भेजकर प्रयोग करना चाहती है. वह एक समारोह का हिस्सा बनने व शादी के लिए लड़के की तलाश में पूरे परिवार के साथ भारत आयी हुई है. पांडेजी के कहने पर आफिया व बउआ सिंह की मुलाकात होती है. दोनों में प्यार होता है. फिर उनके बीच सेक्स/शारीरिक संबंध भी बन जाते हैं और शादी की तैयारी शुरू हो जाती है.

तभी बउआ की मुलाकात शराब में धुत बबिता कुमारी से हो जाती है. शराब के नशे में धुत बबिता कुमारी,  बउआ सिंह का चुंबन लेकर चली जाती है. मजेदार बात यह है कि अब बउआ को लगता है कि वह शादी के लिए तैयार नहीं है. मगर पिता के दबाव में बउआ दूल्हा बन बारात लेकर आफिया के यहां पहुंचते हैं, तभी उनका जिगरी दोस्त गुड्डू सिंह बताता है कि नृत्य प्रतियोगिता के लिए बउआ का चयन हो गया है. तब बउआ सिंह, आफिया से मिलकर शादी तोड़कर वहां से भागकर नृत्य प्रतियोगिता का हिस्सा बनने पहुंचते हैं. विजेता बनकर वह बबिता कुमारी से पुरस्कार लेते हैं, फिर वह बबिता कुमारी के दीवाने हो जाते हैं. बबिता कुमारी उनकी बातों से प्रभावित होकर उन्हें अपने साथ रख लेती है, पर एक दिन जब बबिता कुमारी से मिलने पहुंचे उनके प्रेमी (अभय देओल) के खिलाफ बउआ सिंह कुछ कह देते हैं, तो बबिता कुमारी नाराज होकर बउआ सिंह को बेइज्जत कर भगा देती है और तब बउआ सिंह को फिर से आफिया की याद आती है. वह अपने दोस्त गुड्डू सिंह के साथ अमेरीका नासा पहुंचकर आफिया से मिलने का प्रयास करते हैं. बउआ सिंह से नाराज आफिया अब चिंपांजी के बजाय मंगल यान में बउआ सिंह को भेजने का निर्णय लेती है, इसमें उनके प्रेमी (आर माधवन) की भी सहमति है. इस बीच पता चलता है कि आफिया, बउआ सिंह की बेटी की मां बन चुकी है. बहरहाल, मंगल यान के साथ अंतरिक्ष में बउआ सिंह को भेजा जाता है और पंद्रह साल बाद यह अंतरिक्ष यान प्रशांत महासागर में गिरता है.

ऐसा पहली बार हुआ है, जब फिल्म ‘‘जीरो’’ प्रदर्शन से पहले ही शाहरुख खान द्वारा बौने का चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने को लेकर अत्याधिक चर्चा में रही और दर्शकों के मन में इस फिल्म ने काफी उत्सुकता जगायी थी. मगर यह फिल्म दर्शकों के साथ साथ शाहरुख खान के प्रशंसकों को बुरी तरह निराश करती है. वीएफएक्स का बेहतर उपयोग किए जाने के बावजूद फिल्म ‘जीरो’ अपने नाम को ही सार्थक करती है.

पूरी फिल्म में दर्शक बौने इंसान की बजाय शाहरुख खान को उनकी इमेज के अनुरूप देखता रहता है. वह फिल्म में बौने इंसान के दर्द के साथ कहीं नजर नहीं आते. अलबत्ता वह हर दृश्य में खुद को दोहराते हुए ही नजर आते हैं. बालों की स्टाइल व अपने चिरपरिचित मैनेरिजम के साथ कच्छा बनियान पहने हुए शाहरुख खान बार बार अपनी पिछली बुरी तरह से असफल फिल्म ‘‘फैन’’ की ही याद दिलाते हैं.

जिसे ‘जीरो’ में दर्शक बर्दाश्त नहीं कर पाता. मजेदार बात यह है कि वह बौने हैं, मगर गायन या नृत्य करते समय कहीं भी कुछ भी परेशानी या असहजता नहीं होती, जबकि कुछ तो भिन्नता होनी चाहिए थी. पर हर वक्त शाहरुख खान अपनी चिरपरिचित शैली में ही नजर आते हैं. बउआ के किरदार मे शाहरुख खान बौने के रूप में सागर में गोता लगाते हुए बहुत कुछ कर सकते थे, पर वह तो देशभक्त बन कुछ करने का ऐसा प्रयास करते हैं कि वह अविश्वसनीय हो जाता है.

चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में दो लोग (बउआ सिंह और आफिया) घनिष्ठता बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, यह एक महान आधार हो सकता था. मगर इसे भी लेखक व निर्देशक दोनों सही परिप्रेक्ष्य में पेश करने में विफल रहे हैं. हालात यह है कि फिल्म के शुरू होने के दस मिनट बाद ही दर्शक सोचने लगता है कि इस सिरदर्द से कब छुटकारा मिलेगा.

बतौर निर्देशक आनंद एल राय बुरी तरह से मात खा गए हैं. फिल्म की कहानी से लेकर कुछ भी ऐसा नहीं है, जो कि विश्वसनीय लगे. हर दृश्य अविश्वसनीयता से भरा हुआ है. फिल्म में इंटरवल के बाद नासा की ट्रेनिंग का हिस्सा बेवजह लंबा खींचा गया है, जो कि दर्शकों को बोर करने के साथ ही फिल्म को बद से बदतर बनाता है. आनंद एल राय ने एक अच्छे विषय को उठाया, मगर स्टार कलाकार के चक्कर में तहस नहस कर डाला. वह शाहरुख खान को सुपर हीरो बनाने व अंतरिक्ष के चक्कर में ऐसा फंसे कि इंसानी रिश्तों, संवेदनाओं, मानवता आदि सब कुछ भुला बैठे. इतना ही नहीं वह अब तक की अपनी फिल्मों की पहचान यानी कि छोटे शहर, वहां की मिट्टी व छोटे शहरों के परिदृश्य से ऐसा भागे कि फिल्म को डुबा डाला.

फिल्म के निर्माता के तौर पर आनंद एल राय और गौरी खान ने कुछ कंपनियों व प्रोडक्ट के साथ इस फिल्म की ब्रांडिंग कर पैसे जरुर बटोर लिए. इसके अलावा दोनों ने इस फिल्म में अपने संबंधों के आधार पर कई कलाकारों को मेहमान कलाकार के तौर पर जोड़कर फिल्म में चार चांद लगाने का असफल प्रयास किया. पूरी फिल्म देखकर अहसास होता है कि फिल्मकार ने कहानी, पटकथा, चरित्र चित्रण व निर्देशन आदि पर ध्यान देने की बजाय अन्य चीजों पर अपना ध्यान केंद्रित रखा.

फिल्म के लेखक हिमांशु शर्मा इस बार बुरी तरह मात खा गए. उन्होंने शीरीरिक रूप से कुछ कमी वाले किरदार तो गढ़ दिए, पर वह यह भूल गए कि इन किरदारों के साथ किस तरह कहानी गढ़ी जाए. किरदारों के बीच कोई आपसी संबंध ही नहीं बन पाता. इतना ही नहीं इस बार हिमांशु शर्मा ने सड़क छाप संवाद लिखे हैं. भारतीय संस्कृति में एक पिता घर के अंदर अपने बेटे को बुरा भला कहता है, मगर वह दूसरों के सामने अपने बेटे को अपमानित नहीं करता है. मगर फिल्म ‘जीरो’ में बउआ सिंह के पिता शादी के समय बउआ सिंह के होने वाले ससुर से कहते हैं – ‘‘इसे अमेरीका ले जाकर घर में रखकर टिकट लगवा कर…’’ अफसोस की बात है कि फिल्म के निर्देशक आनंद एल राय ने भी इन संवादो को संभालने का प्रयास नहीं किया.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो चार फुट छह इंच के बउआ सिंह के किरदार में कहीं भी शाहरुख खान प्रभावित नहीं करते. सेलेब्रल पल्सी से ग्रसित आफिया के किरदार में अनुष्का शर्मा ने अविश्वसनीय अभिनय किया है. काश इस फिल्म में अभिनय करने से पहले उन्होंने सोनाली बोस निर्देशित फिल्म ‘‘मार्गरीटा विद ए स्ट्रा’’ में कल्कि कोचलीन के अभिनय को देखकर कुछ सीख लेती. कैटरीना कैफ का किरदार बहुत ही छोटा है, उन्हें ऐसी फिल्में करने की जरुरत क्यों पड़ रही है, यह वही जानें. अभय देओल व आर माधवन की प्रतिभा को जाया किया गया है. मोहम्मद जीशान अयूब ने जरुर ठीक ठाक अभिनय किया है.

दो घंटे 44 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘जीरो’’ का निर्माण गौरी खान ने ‘रेड चिली इंटरटेनमेंट’ और आनंद एल राय ने ‘कलर येलो प्रोडक्शन’ के बैनर तले किया है. फिल्म के निर्देशक आनंद एल राय, लेखक हिमांशु शर्मा, संगीतकार अजय तुली, कैमरामैन मनु आनंद तथा कलाकार हैं – शाहरुख खान, अनुष्का शर्मा, कैटरीना कैफ, अभय देओल, आर माधवन, तिग्मांशु धूलिया, शीबा, ब्रजेंद्र काला, मोहम्मद जीशान अय्यूब के अलावा मेहमान कलाकार काजोल, जुही चावला, सलमान खान, श्रीदेवी, आलिया भट्ट, करिश्मा कपूर, दीपिका पादुकोण, गणेश आचार्य व रेमो डिसूजा.

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