Social Update: औरतों की अपनी भी जिंदगी है

Social Update, लेखक – डा. इम्तियाज अहमद गाजी

शादीशुदा औरतों के अपने पति को छोड़ कर अपने से कम उम्र के दूसरे लड़कों के साथ भाग जाने की खबरें लगातार आ रही हैं. लगातार हो रही इन घटनाओं में यह साफतौर पर दिखाई दे रहा है कि औरतें लोकलाज को परे रख कर अपनी निजी जिंदगी को बेहतर तरीके से जीने को अब प्राथमिकता देने लगी हैं.

एक के बाद एक हो रही घटनाओं से दूसरी औरतों को भी प्रेरणा मिल रही है. ये घटनाएं मर्दों को सावधान करने वाली हैं, साथ ही उन्हें अपनी जिम्मेदारियों के प्रति अगाह करने वाली भी हैं. अगर मर्दों ने इन वजहों की तह में जा कर अपनेआप को दुरुस्त नहीं किया तो इस तरह की घटनाएं किसी के भी साथ हो सकती हैं. कोई भी पति अपनी पत्नी से हाथ धो सकता है.

ऐसी घटनाओं से पति को अपनी पत्नी के बिछुड़ जाने का सिर्फ दर्द ही नहीं होता, इस के साथसाथ समाज में मुंह दिखाना भी बेहद मुश्किल हो जाता है.

पिछले दिनों सब को चौंका देने वाली घटना उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुई. एक औरत ने अपनी बेटी की शादी एक लड़के से तय कर दी. शादी की तारीख तय होने के बाद लड़का अकसर ही अपनी ससुराल आनेजाने लगा और फोन पर भी बातें करने लगा.

इस दौरान उस लड़के की त्यादातर बातें अपनी होने वाली सास से होने लगीं. बातोंबातें में अपनापन इतना ज्यादा बढ़ा कि दोनों में प्यार हो गया. चंद रोज ही शादी को बचे थे. इसके बावजूद वह औरत आपने होने वाले दामाद के साथ भाग गई.

दूसरी घटना भी उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर में हुई. यहां एक 50 साल की औरत को अपने रिश्ते के 30 साल के पोते से प्यार हो गया. प्यार इतना ज्यादा परवान चढ़ा कि दोनों ने शादी रचा ली.

उत्तर प्रदेश के ही बदायूं जिले में बेटाबेटी की शादी तय करने के दौरान होने वाले समधी और समधन में प्यार हो गया. इस घटना में 4 बच्चों की मां अपने होने वाले समधी के साथ घर से भाग गई.

मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में एक बूआ अपने भतीजे से प्यार करने लगी. घर वालों का विरोध और गुस्सा देख कर वह अपने भतीजे के साथ घर से भाग गई. दूसरे शहर में जा कर उस ने भतीजे से शादी रचा ली.

इसी तरह एक औरत ने अपने पति को छोड़ कर अपने से कम उम्र के चाचा के साथ शादी रचा ली. एक औरत के घर उस के बच्चों को पढ़ाने के लिए ट्यूटर आता था. वह औरत लोकलाज को किनारे रख कर ट्यूटर से प्यार करने लगी और अब वह उसी से शादी करने को अड़ी है. उस का पति अरब देश में नौकरी करता है.

इस तरह की तमाम दूसरी घटनाएं लगातार सामने आ रही है. इन सारी ही घटनाओं में तकरीबन सभी औरतों की उम्र 50 साल या इस से ज्यादा है. इस तरह के कुछ मामले प्रकाश में आते हैं, बहुत सारे प्रकाश में नहीं आ पाते. इन की जड़ों में जा कर देखा जाए तो एक तरह से ये औरतों के जागरूक होने के मामले दिखाई दे रहे हैं.

आमतौर पर होता यह है कि ऐसी औरतें अनदेखी की शिकार होती हैं. इन की जिंदगी बेटाबेटी और नातेरिश्तेदारों की देखभाल में ही गुजर रही होती है. इन पर परिवार की जिम्मेदारियां इतनी ज्यादा डाल दी जा रही हैं कि उन की अपनी जिंदगी बदरंग हो जाती है.

ऐसे मामलों में औरतें घुटघुट कर जीने को मजबूर हो रही हैं. उन की अपनी जिंदगी कोई माने नहीं रख
रही है, जबकि हर इनसान की तरह उम्रदराज घरेलू औरतों को भी प्यार, सैक्स और हमदर्दी की बेहद जरूरत होती है. इन के बिना उन की अपनी जिंदगी बेमतलब सी दिखाई देती है.

इन्हें अपने परिवार से यह संदेश मिलने लगता है कि तुम्हारी अपनी जिंदगी कुछ भी नहीं. तुम्हें अपने पति, बच्चों और दूसरे परिवार वालों को ही खुश करने और उन्हें कामयाब बनाने के लिए काम करना और जीना है, जबकि हर किसी की अपनी निजी जिंदगी भी होती है.

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अगर किसी औरत को उस के पति का प्यार नहीं मिलता, उस के सैक्स की भरपाई नहीं होती, घर के लोग उस की खुशी और दुख पर ध्यान नहीं देते हैं, तब वह औरत एक तरह से दिमागीतौर पर बीमार हो जाती है. फिर उसे ऐसे लोग बहुत अच्छे लगने लगते हैं, जो उस की निजी जिंदगी की खुशी और दुख का ध्यान रखते हैं, उस की बातें करते हैं.

ऐसी औरतों की जिंदगी में जब कोई ऐसा मर्द आ जाता है, तब वे उस से प्यार करने लगती हैं. ऐसे हालात में उन के लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती कि सामने वाला उम्र में उन से छोटा है या उन का सगासंबंधी है.

ऐसे हालात में पति को अपनी पत्नी की निजी जिंदगी पर खूब ध्यान देने की जरूरत है. उस के साथ प्यार भरा बरताव करें और उस की सैक्स की भूख को भी समझें, वरना उन के साथ भी ऐसी ही घटना घट सकती है. Social Update

Social Issue: टौप पोस्ट तक नहीं पहुंच रहीं टौपर लड़कियां

Social Issue: यूपीएससी ने सिविल सेवा परीक्षा 2024 का अंतिम परिणाम घोषित कर दिया. शक्ति दुबे ने टौप किया, जबकि दूसरे स्थान पर हर्षिता गोयल रहीं. टौप 25 में 11 लड़कियां हैं. पिछले 11 सालों के आंकडे़ देखें तो यह साफ हो जाता है कि 6 साल लड़कियां टौप पर रही हैं. साल 2014 में इरा सिंघल, 2015 में टीना डाबी, 2016 में नंदिनी केआर, 2021 में श्रुति किशोर और 2022 में इशिता किशोर ने टौप पोजीशन हासिल की.

सिविल सेवा परीक्षा 2024 की टौपर शक्ति दुबे मूलरूप से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर की रहने वाली हैं. उन की स्कूलिंग होम टाउन प्रयागराज से ही हुई है. शक्ति दुबे बताती हैं कि उन की ग्रेजुएशन की पढ़ाई इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हुई है. ग्रेजुएशन के बाद शक्ति दुबे बनारस आ गईं. फिर उन्होंने साल 2018 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बायोकैमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिगरी हासिल की.

दूसरे स्थान पर रहने वाली हर्षिता गोयल हरियाणा की रहने वाली हैं. पिछले कई सालों से वे गुजरात के वडोदरा में रह रही हैं. हर्षिता एक चार्टर्ड अकाउंटैंट हैं. उन्होंने समाज सेवा के लिए अपनी फाइनैंस की दुनिया को छोड़ दिया. वे थैलेसीमिया और कैंसर से जूझ रहे बच्चों की मदद करने वाले एनजीओ के साथ जुड़ी थीं. हर्षिता की सफलता सामाजिक समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक है.

चौथे स्थान पर रहने वाली शाह मार्गी चिराग गुजरात के अहमदाबाद की रहने वाली हैं. गुजरात टैक्नोलौजिकल यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर इंजीनियरिंग करने वाली मार्गी ने समाजशास्त्र को वैकल्पिक विषय के रूप में चुना और औल इंडिया में चौथा स्थान हासिल किया. टैक्निकल बैकग्राउंड के बावजूद समाज से जुड़ाव ने उन्हें इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा दी.

कोमल पूनिया उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की रहने वाली हैं. उन्होंने दूसरे प्रयास में यूपीएससी क्लियर कर जिले का नाम रोशन किया है. कोमल की मेहनत और जज्बे ने यह दिखा दिया कि लगन और निरंतर प्रयास से कोई भी मंजिल पाई जा सकती है.

मध्य प्रदेश के ग्वालियर की रहने वाली आयुषी बंसल ने 2022 में 188वीं और 2023 में 97वीं रैंक हासिल की थी. आयुषी के जीवन में पिता का साया बचपन में ही उठ गया था, लेकिन मां की प्रेरणा और अपनी मेहनत से उन्होंने यह कठिन परीक्षा पास की.

गाजियाबाद की आशी शर्मा को 12वां रैंक प्राप्त हुआ है. आशी का यह दूसरा अटैंप्ट था.

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की रहने वाली सौम्या मिश्रा को यूपीएससी में 18वां रैंक प्राप्त हुआ है. सौम्या के पिता राघवेंद्र कुमार मिश्र पेशे से शिक्षक हैं. पीसीएस 2021 की परीक्षा में सौम्या मिश्रा ने टौप किया था. इस बार सौम्या के साथ उन की बहन सुमेघा मिश्रा ने भी 53वीं रैंक हासिल कर परीक्षा पास की है.

उत्तर प्रदेश की शक्ति दुबे के साथ कोमल पुनिया, आशी शर्मा, सौम्या मिश्रा, मुसकान श्रीवास्तव, शोभिका पाठक और अवधिजा गुप्ता ने टौप 20 में जगह बनाने में सफलता हासिल की. देश की सब से कठिन परीक्षाओं में यूपीएससी का नाम आता है. इस को पास करना बहुत कठिन होता है. अब लड़कियों ने इस परीक्षा की टौप लिस्ट में अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है. यूपीएससी सिविल सर्विस 2024 की फाइनल लिस्ट में उत्तर प्रदेश की लड़कियों का दबदबा रहा है. टौप 20 में उत्तर प्रदेश की 4 लड़कियों के नाम हैं.

बड़ा सवाल यह है कि आईएएस और आईपीएस में टौप करने वाली ये लड़कियां जब नौकरी करती हैं तो इन को टौप पोस्ट पर काम करने का मौका नहीं दिया जाता. आज का दौर बदल रहा है. अब जमाना मसल्स का नहीं, माइंड का है. यूपीएससी परीक्षाओं में टौप पर रह कर लड़कियों ने दिखा दिया है कि उन में भी दम है. अब उन को टौप पोस्ट संभालने के लिए दी जा सकती हैं. आईएएस बनने वाली महिला अफसरों को जिलों में डीएम की पोस्ट भी दी जानी चाहिए. आईपीएस बनने वाली महिला अफसरों को जिले में एसपी, एसएसपी और पुलिस कमिश्नर बनने का मौका दिया जाना चाहिए.

टौप ब्यूरोक्रेसी में भी महिलाओं को मुख्य सचिव के पद कम मिलते हैं. पीएमओ और रक्षा विभागों में अफसर के रूप में काम करने के मौके महिलाओं को कम दिए जाते हैं. महिलाएं परीक्षा पास कर के अपनी क्षमता के बारे में बता रही हैं. वे यह हक भी मांग रही हैं कि उन को भी पुरुषों के बराबर काबिल समझ कर टौप पोस्ट दी जाएं. महिला को पुरुष के बराबर हक नहीं दिया जाता है. उत्तर प्रदेश में नीरा यादव के बाद कोई महिला मुख्य सचिव नहीं बनी है. महिला डीजीपी तो अभी तक कोई भी महिला नहीं बनी है.

भले ही परीक्षाओं में महिलाएं टौप कर रही हों लेकिन लीडरशिप यानी अगुआई और निर्णय लेने वाले पदों पर पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या काफी कम है. जरूरत है कि इस को दूर किया जाए. जब तक यह भेदभाव खत्म नहीं होगा तब तक उन का यूपीएससी परीक्षा में बराबरी करना भी बेमकसद सा हो जाता है.

Grihshobha Inspire Awards 2025 में प्रेरणादायक महिलाओं को किया सम्मानित

Grihshobha Inspire Awards 2025: नई दिल्ली, 21 मार्च 2025 –गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स 2025 का आयोजन 20 मार्च 2025 को त्रावणकोर पैलेस, नई दिल्ली में किया गया. इस कार्यक्रम में उन असाधारण महिलाओं को सम्मानित किया गया जिन्होंने अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इस कार्यक्रम में लोक कला, शासन, सार्वजनिक नीति, सामाजिक कार्य, व्यवसाय, विज्ञान, ऑटोमोटिव और मनोरंजन जैसे क्षेत्रों की प्रभावशाली और उपलब्धि हासिल करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया. यह पुरस्कार उन लोगों को दिया गया जिन्होंने जिन्होनें अपने सामने आने वाली सभी मुश्किलों को पार कर एक नई राह बनाई.

इस इवेंट को लाइव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें – https://www.facebook.com/share/v/15annFyN5g/?mibextid=wwXIfr

इस समारोह में, सार्वजनिक स्वास्थ्य और शासन में परिवर्तनकारी नेतृत्व के लिए केरल की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सुश्री के.के. शैलजा को पुरूस्कृत किया गया. साथ ही प्रसिद्ध अदाकारा सुश्री शबाना आज़मी को सिनेमा में उनके योगदान और मजबूत एवं मुश्किल किरदारों के प्रदर्शन के लिए मनोरंजन के माध्यम से सशक्तिकरण – आइकन के रूप में सम्मानित किया गया. डॉ. सौम्या स्वामीनाथन को सार्वजनिक स्वास्थ्य और वैज्ञानिक अनुसंधान में उनके अग्रणी नेतृत्व के लिए नेशन बिल्डर – आइकन पुरस्कार मिला. टाइटन वॉचेस की सीईओ सुश्री सुपर्णा मित्रा को कॉर्पोरेट नेतृत्व में नए स्टैंडर्ड स्थापित करने के लिए बिजनेस लीडरशिप – आइकन पुरूस्कार दिया गया.

अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार विजेताओं में सुश्री मंजरी जरूहर शामिल रहीं, जिन्हें पुलिसिंग में उनके अग्रणी करियर के लिए फियरलेस वारियर – आइकन के रूप में सम्मानित किया गया. ग्रामीण कारीगरों को सशक्त बनाने वाली जमीनी स्तर की नेता सुश्री रूमा देवी को ग्रासरूट्स चेंजमेकर – आइकन पुरस्कार मिला, जबकि सुश्री अमला रुइया को जल संरक्षण में उनके अग्रणी कार्य के लिए ग्रासरूट्स चेंजमेकर – अचीवर के रूप में सम्मानित किया गया. सुश्री विजी वेंकटेश को कैंसर देखभाल में उनके सरहानीय योगदान के लिए न्यू बिगिनिंग- आइकन से सम्मानित किया गया.

बिजनेस इंडस्ट्री में, भारत की पहली कीवी वाइन मैकर सुश्री तागे रीता ताखे को बिजनेस लीडरशिप-अचीवर से सम्मानित किया गया, जबकि मेंस्ट्रुपीडिया की फाउंडर सुश्री अदिति गुप्ता को होमप्रेन्योर-अचीवर से सम्मानित किया गया. सुश्री कृपा अनंथन को ऑटोमोटिव इंडस्ट्री में चेंजमेकर के रूप में सम्मानित किया गया, और सुश्री किरुबा मुनुसामी को उनकी कानूनी सक्रियता के लिए सोशल इम्पैक्ट-अचीवर से पुरूस्कृत किया गया. डॉ. मेनका गुरुस्वामी और सुश्री अरुंधति काटजू को लैंगिक समानता और LGBTQ समुदाय के अधिकारों के लिए उनकी ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई के लिए संयुक्त रूप से सोशल इम्पैक्ट-चेंजमेकर से सम्मानित किया गया.

लोक कलाओं के संरक्षण में उनके योगदान के लिए, डॉ. रानी झा को फोल्क हेरिटेज-आइकन से सम्मानित किया गया. डॉ. बुशरा अतीक को STEM में उत्कृष्टता के लिए सम्मानित किया गया.

एंटरनमेंट और डिजिटल इन्फ्लुएंस में, सुश्री तिलोत्तमा शोम और और सुश्री कोंकणा सेन को मनोरंजन के माध्यम से सशक्तिकरण के लिए ऑनस्क्रीन और ऑफस्क्रीन सम्मानित किया गया. सुश्री लीजा मंगलदास को कंटेंट क्रिएटर -एम्पावरमेंट, सुश्री श्रुति सेठ को कंटेंट क्रिएटर – पेरेंटिंग और डॉ. तनया नरेंद्र को कंटेंट क्रिएटर – हेल्थ में उनकी उत्कृष्टता के लिए सम्मानित किया गया.

माननीय अतिथि

सभी पुरस्कार आरटीआई कार्यकर्ता सुश्री अरुणा रॉय, वरिष्ठ अधिवक्ता सुश्री इंदिरा जयसिंह, प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना सुश्री शोवना नारायण और महिला अधिकार कार्यकर्ता एवं राजनीतिज्ञ सुश्री सुभाषिनी अली द्वारा प्रदान किए गए. इन विशिष्ट अतिथियों ने अपने प्रेरणादायक शब्दों के साथ विजेताओं की उपलब्धियों के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया.

जूरी पैनल

पुरस्कारों का निर्णय प्रतिष्ठित और सम्मानित महिलाओं के एक प्रतिष्ठित जूरी पैनल द्वारा किया गया, जिसमें लेखिका और फेमिना की पूर्व संपादक सुश्री सत्या सरन, लोकप्रिय अभिनेत्री सुश्री पद्मप्रिया जानकीरमन, चंपक की संपादक सुश्री ऋचा शाह, लर्निंग लिंक्स फाउंडेशन की अध्यक्ष सुश्री नूरिया अंसारी, आउटवर्ड बाउंड हिमालय की डायरेक्टर सुश्री दिलशाद मास्टर और कारवां की वेब संपादक सुश्री सुरभि कांगा शामिल थीं.

कार्यक्रम में बोलते हुए, दिल्ली प्रेस के प्रधान संपादक और प्रकाशक श्री परेश नाथ ने कहा: “गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड उन लोगों को श्रद्धांजलि है जो आम धारणाओं को चुनौती देते हैं, और बदलाव लाने के लिए और भविष्य को आकार देने के लिए रचनात्मकता और साहस का उपयोग करते हैं. शोर से अभिभूत दुनिया में, ये पुरस्कार विजेता हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा नेतृत्व उन लोगों के शांत लेकिन परिवर्तनकारी प्रभाव में निहित है जो सत्ता के सामने सच बोलने और ईमानदारी के साथ नेतृत्व करने का साहस करते हैं.”

गृहशोभा के बारे में:

गृहशोभा, जिसे दिल्ली प्रेस द्वारा प्रकाशित किया जाता है, भारत की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली हिंदी महिला मैगजीन है, जिस के 10 लाख से अधिक रीडर्स हैं. यह मैगजीन 8 भाषाओं (हिंदी, मराठी, गुजराती, कन्नड़, तमिल, मलयालम, तेलुगु और बंगाली) में प्रकाशित होती है और इस में घरगृहस्थी, फैशन, सौंदर्य, कुकिंग, स्वास्थ्य और रिश्तों पर रोचक लेख शामिल होते हैं. पिछले 45 सालों से गृहशोभा महिलाओं के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत बनी हुई है.

दिल्ली प्रेस के बारे में:

दिल्ली प्रेस भारत के सबसे बड़े और विविध पत्रिका प्रकाशनों में से एक है. यह परिवार, राजनीति, सामान्य रुचियों, महिलाओं, बच्चों और ग्रामीण जीवन से जुड़ी 36 पत्रिकाएं 10 भाषाओं में प्रकाशित करता है. इस की पहुंच पूरे देश में फैली हुई है.

मीडिया से संपर्क करें:
अनंथ नाथ/ एला
9811627143/ 8376833833

मर्द की मार कब तक सहेंगी महिलाएं

कुछ साल पहले एक फिल्म देखी थी. फिल्म का नाम था ‘मृत्युदंड’. सिनेमाघर के अंदर मिडिल क्लास परिवारों के मर्द औरत बैठे थे. फिल्म के एक सीन में तालाब के किनारे 2 औरतें बैठ कर आपस में बातचीत कर रही थीं. पहली औरत ने पूछा, ‘तुझे तेरा मरद मारता है?’

दूसरी औरत बोली, ‘हां, मारता है. अब जब बैल के सींग में खुजली होती है तो सिर हिलाता ही है.’

पहली औरत ने कहा, ‘तुम विरोध नहीं करती हो.’

दूसरी औरत ने बताया, ‘अब क्या है दीदी… मरद कभी कभी हाथ चला देता है. सहना तो पड़ता ही है.’

‘सींग में खुजली’ वाली बात पर आसपास बैठे फिल्म देख रहे दर्शक हंस पड़े. मैं ने गौर किया कि एक भी औरत नहीं हंसी थी. हो सकता है कि डायलौग में मजाक होने की वजह से हंसी आई हो और सिनेमाघर में बैठे दर्शक औरतों के प्रति वैसा नजरिया न रखते हों, जैसा परदे पर दिखाया जा रहा था. पर क्या इस हंसी में कहीं वह न दिखने वाला राज तो नहीं छिपा था जो औरतों पर जोर जुल्म के लिए जाने अनजाने ही सही रजामंदी देता है?

फिल्म का ऐंड एक संदेश के साथ पूरा होता है. साथ ही, इस फिल्म में सालों से समाज में हो रहे जोर जुल्म के खिलाफ विद्रोह को बहुत अच्छी तरह से दिखाया गया, जिस में जमींदार, सामंत, महंत और ठेकेदार शामिल हैं. पूरे दक्षिण एशिया में औरतों पर जोर जुल्म होता है. गरीबी, पढ़ाईलिखाई की कमी, कुपोषण और ज्यादा आबादी जैसी समस्याएं यहां अपनी हद पर हैं.

सामान्य हालात में देखा जाए तो औरतों पर जोर जुल्म के 2 रूप सामने आते हैं. सरकारी आंकड़े तो 2 बिंदुओं पर सिमट जाते हैं. ये हैं बलात्कार और दहेज. पर समाज में औरतों पर कई स्तरों पर जोर जुल्म फैले हुए हैं.

गांवों के सामाजिक हालात शहरों से अलग हैं या फिर तरक्की भी हुई है तो अधकचरी, बेमतलब और उलटी दिशा में.

यहां के समाज में औरतों की दशा तालाब में जमे पानी जैसी है. उन्हें अपने हकों तक का पता नहीं है. यहां के छोटे किसान और मजदूर समाज के पास अपनी जमीन नहीं है, जो मजदूरी या दूसरे के खेतों के सहारे ही अपनी रोजीरोटी चलाता है. इन घरों की औरतें बहुत मुश्किल हालात में अपनी जिंदगी बिताती हैं. घर और बाहर दोनों मोरचों पर इन्हें काम करना पड़ता है.

बीमार और जिस्मानी तौर पर कमजोर औरतें न सिर्फ घर के सारे काम करती हैं, बल्कि उन्हें खेतों, ईंटभट्ठों या दूसरों के घर बनवाने में मजदूरों की तरह भी काम करना पड़ता है. यहां पर एक सामाजिक बीमारी आसानी से देखी जा सकती है कि मर्द घर के काम नहीं करते हैं.

औरतों पर जोरजुल्म का एक दूसरा रूप छोटे शहरों और गांवों में देखा जा सकता है. देश के कई हिस्सों में आज भी सामंती और जमींदारी प्रथा बरकरार है. चाहे बिहार का मैदानी भाग हो या उत्तर प्रदेश का पूर्वी इलाका या फिर भारत का सब से पढ़ालिखा राज्य केरल.

ऐसी बात नहीं है कि मर्द सिर्फ बाहरी औरतों के साथ ही ऐसा बरताव करते हैं, बल्कि अपने घर की औरतों के साथ भी कोई बेहतर सुलूक नहीं करते हैं.

औरतें जागरूक नहीं

इन इलाकों में औरतों पर जोरजुल्म के लिए जाति प्रथा की जकड़ भी कम कुसूरवार नहीं है. ऊंची जाति वालों के तथाकथित नियम निचली जाति की औरतों से जिस्मानी संबंध तो बनाते हैं, पर शादी उन की शान में रुकावट होती है. दलितों पर जोरजुल्म को ऊंची जाति वाले अपना हक मानते हैं.

इसी तरह औरतों को भोग की चीज, बच्चा जनने और पालने के लायक ही मानते हैं, इसलिए यह साफ है कि औरतों की हालत आज के दलितों से अलग कर के नहीं देखी जा सकती है.

तरक्की के इस बदलाव के दौर में कई नए तरह के हालात सामने आए हैं. इलैक्ट्रौनिक मीडिया के चलते इस की पहुंच गांवगांव तक हो गई है. टैलीविजन और अखबार नए रूप में हमारे सामने हैं.

गांव के गरीब और निचले तबके के परिवार काम की तलाश में शहरों में आते हैं और न बयां करने वाली मुसीबतें झेलते हैं. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि झुग्गीझोंपडि़यों में रहने वाली औरतों का क्या हश्र होता होगा.

यहां जोरजुल्म के कई रूप देखने को मिलते हैं. गांव की गरीब औरतें पढ़ाईलिखाई की कमी, कुपोषण के चलते पिसती हैं तो शहर की औरतें खुलेपन के खौफ में.

यहां अपराध के नएनए रूप भी देखने को मिलते हैं. ‘समाज में खुलापन आया है’ इस वाक्य को न जाने हम कितना दोहराते हैं, पर यह खुलापन किसलिए?

राष्ट्रीय महिला आयोग ने औफिसों में औरतों पर हो रहे जोरजुल्म को काफी गंभीरता से लिया है. जिन औफिसों में औरतों का यौन शोषण या दूसरी तरह के जोरजुल्म होते हैं, इस को रोकने के लिए कई तरह के नियम बनाए गए हैं.

उदारीकरण यानी खुलेपन के इस दौर में यह भरम फैल गया है कि अगर औरत माली तौर पर आजाद हो जाएगी तो ऐसे जोरजुल्म बंद हो जाएंगे. पर ऐसी आजादी औरतों पर हो रहे जोरजुल्म को कम नहीं करती. औफिसों में हो रहा जोरजुल्म तो महज एक उदाहरण है.

हमारे समाज में तो ज्यादातर हुनर इसलिए कुंद हो जाते हैं कि यहां शादी सब से बड़ी बात होती है. कई लड़कियों का ‘कैरियर’ अगर शादी के नाम पर कुरबान कर दिया जाता है, तो इस के पीछे वही छिपी हुई साजिश होती है जो औरतों पर जोरजुल्म करने को मंजूरी दिए हुए है.

जरूरत है सोच बदलने की

खुलेपन ने जहां निजी आजादी और शख्सीयत को बनाने के मौके दिए हैं, वहीं परंपरागत सोच को बदलने का कोई उपाय नहीं बताया. असल समस्या की जड़ यही है. औरत एक ‘शख्सीयत’ के रूप में ताकतवर हो, यह हमें गवारा नहीं. हम नहीं चाहते कि औरत अपने तर्क के सहारे दुनिया की रचना करे.

यहां हमें उदारीकरण या खुलापन कोई सहयोग नहीं देता, बल्कि जोरजुल्म करने के लिए उकसाता है, इसलिए सामाजिक तौर पर उदारीकरण ‘अफीम की गोली सा’ लगता है, जो हमें नशे में रखता है.

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