हिमालय की मिट्टी ढीली है, इस में ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की जाए

गहरे अंधेरे में जहां गरीबों और मजदूरों की कोई कीमत नहीं होती, हर कोशिश का इस्तेमाल करना और बिना हिचकिचाहट के पैसा खर्च कर के उत्तराखंड में सिलक्यारा सुरंग के बीच में ढहने से फंसे 41 मजदूरों की जान बचाने के लिए कोशिश एक बहुत अच्छी बात है. सदियों से हर बड़े काम में छोटे लोगों की मौत को कुछ पैसे का नुकसान समझ कर छोड़ दिया जाता था.

यहां 4.5 किलोमीटर की बन रही सुरंग के बीच में फंसे 41 मजदूरों की जान बचाने के लिए रातदिन सैकड़ों लोग लगे हैं, दुनियाभर से मशीनें एयरफोर्स के हवाईजहाजों से मंगाई जा रही हैं. यह सुरंग बनेगी तो 20 किलोमीटर का यमुनोत्री का रास्ता छोटा हो जाएगा. 12 नवंबर को इस बन रही सुरंग के 2 तरफ से मिट्टी ऊपर से नीचे आ गिरी और दोनों ओर से रास्ते बंद हो गए. 41 मजदूरों को अपने हाल पर मरने को न छोड़ कर बेतहाशा कोशिश करना अपनेआप में अजूबा में है क्योंकि इस देश में आमतौर पर गरीब की जान की कोई कीमत नहीं होती. यह देश तो ऐसा है जिस में सिर्फ मृत्यु के बाद स्वर्ग पहुंचने के लिए पुरी में यात्रा के समय बड़े लकड़ी के पहियों के रथों को जिन्हें सैकड़ों लोग खींच रहे होते हैं, लोग जानबूझ कर पहियों के नीचे आ कर मर जाते हैं.

ऐसे देश में धार्मिक चारधाम यात्रा के रास्ते छोटा करने वाली सड़क की सुरंग में फंसे लोगों को सुरंग में पाइपों से खाना पहुंचाने, फोटो खींचने और दोनों तरफ से हवापानी और खाना पहुंचाने का रातदिन का काम जताता है कि देश में लोकतंत्र का कितना लाभ है.

5 राज्यों में हो रहे चुनावों से ऐन पहले हुई इस दुर्घटना में मौतों का असर न सिर्फ चुनावों पर पड़ता, राम मंदिर के पूजापाठी कार्यक्रम पर भी ग्रहण लगता. सरकार किसी भी तरह धार्मिक मार्ग पर मौतों की पगड़ी पहनने को तैयार नहीं थी.

यह सुंरग नेताओं की अपनी खब्त का नतीजा है क्योंकि हिमालय को जानने वाले पहले भी कहते रहे हैं कि हिमालय पर्वत की मिट्टी ढीली है और इस में ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की जाए. लाखों साल पहले यहां समुद्र था जो नीचे के दक्षिण पठार के ऊपर एशिया की तरफ खिसकने की वजह से ऊंचा, दुनिया का सब से ऊंचा पर्वत बन गया है.

जोशीमठ ही नहीं, और बहुत सी जगह के लैंड स्लाइड और बाढ़ का नमूना लोग देख चुके हैं. फिर भी दानदक्षिणा और धर्म के नशे को पिलाने के लिए इस रास्ते को छोटा करने के लिए यह सुरंग बन रही है. इस में जानें जाने से बचाना एक अच्छी बात है और उम्मीद है कि जब तक आप ये लाइनें पढ़ेंगे, जानें बच चुकी होंगी.

सिलक्यारा सुरंग से निकाले गए 41 मजदूर, क्या सरकार को मिला सबक

Uttarkashi Tunnel Rescue Operation: आप को याद होगा कि साल 2018 में थाइलैंड (Thailand) में हुए एक हादसे में जूनियर फुटबाल टीम (Juinor Football Team) के कोच समेत 12 बच्चे पानी से भरी एक गुफा में फंस गए थे. उन्हें बचाने के लिए एक रैस्क्यू मिशन (Rescue Mission) शुरू किया गया था, जिस में तकरीबन 10,000 लोग शामिल हुए थे. उन लोगों में 100 से ज्यादा तो गोताखोर (Diver) ही थे. इस दौरान एक गोताखोर की मौत भी हो गई थी, लेकिन वह आपरेशन चलता रहा था. 15 दिनों की मशक्कत के बाद वे सभी छात्र और कोच उस गुफा से बाहर निकल पाए थे. अब भारत की बात करते हैं, जहां पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की एक नई बन रही सुरंग में 41 मजदूर कुछ इस कदर फंस गए थे कि उन का बचना भी मुश्किल ही लग रहा था. उत्तरकाशी (Uttarkashi) की सिलक्यारा (Silkyara) नामक इस सुरंग में यह हादसा दीवाली पर 12 नवंबर, 2023 की सुबह 4 बजे हुआ था, जब सुरंग में मलबा गिरना शुरू होने लगा था और साढ़े 5 बजे तक मेन गेट से सुरंग के 200 मीटर अंदर तक भारी मात्रा में जमा हो गया था.

फिर शुरू हुआ एक ऐसा बचाव अभियान, जिस में हर दिन उम्मीद जगती थी कि जल्दी ही सारे मजदूरों को बाहर निकाल लिया जाएगा, पर टनों पड़ा मलबा जैसे इस अभियान में जुड़े लोगों का इम्तिहान ले रहा था. पर इनसान की जिद, नई तकनीक और मजदूरों का सब्र रंग लाया और 12 नवंबर की सुबह के साढ़े 5 बजे से 28 नवंबर की रात के 8.35 बजे तक यानी 17 दिन बाद पहला मजदूर शाम को 7.50 बजे बाहर निकाला गया. इस के 45 मिनट बाद 8.35 बजे सभी मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया.

रैट होल माइनिंग तकनीक ने किया कमाल

इस पूरे अभियान में लोगों के साथसाथ कई महाकाय मशीनें भी मलबे को चीर कर मजदूरों तक पहुंचने की जद्दोजेहद कर रही यहीं. जब औगर मशीन मलबे से जूझ कर हार मान गई थी, तब रैट होल माइनिंग तकनीक को इस्तेमाल करने का फैसला लिया गया. रैट का मतलब है चूहा, होल का मतलब है छेद और माइनिंग मतलब खुदाई. इस तकनीक में पतले से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है और धीरेधीरे छोटी हैंड ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल किया जाता है. इस में हाथ से ही मलबा बाहर निकाला जाता है.

भारत में रैट होल माइनिंग तकनीक का इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है. झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तरपूर्व में रैट होल माइनिंग जम कर होती है, लेकिन यह काफी खतरनाक काम है, इसलिए इसे कई बार बैन भी किया जा चुका है.

मिला नया सबक

सिलक्यारा हादसा उत्तराखंड राज्य के साथसाथ पूरी दुनिया को सबक भी सिखा गया खासकर भारत के पहाड़ी राज्यों ने यह सीखा है कि वे आपदा में केंद्रीय एजेंसियों का बारबार मुंह नहीं ताक सकते. उन्हें अपने दम पर तैयार रहना होगा, क्योंकि आपदाएं हर बार सिलक्यारा हादसे जैसा समय नहीं देंगी.

पहाड़ी इलाके में इस तरह के काम में सब से बड़ी बाधा तो खुद कुदरत ही होती है. बारिश के मौसम में लैंड स्लाइडिंग होना आम बात है. बड़ीबड़ी मशीनों को पहाड़ी रास्तों से लाना और ले जाना भी बड़ी चुनौती वाला काम होता है. वर्तमान सरकार पहाड़ों पर नएनए प्रोजैक्ट बना रही है. इस का मतलब यह है कि आगे भी सरकार और मजदूरों को सावधान रहना होगा.

मजदूरों का किया स्वागत

सुरंग से बाहर आए पहले बैच के पहले मजदूर का उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने माला पहना कर स्वागत किया. पाइप के जरीए सब से पहले बाहर आने वाले मजदूर का नाम विजय होरो था. वह खूंटी, झारखंड का रहना वाला था.

मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने ऐलान किया सभी मजदूरों को उत्तराखंड सरकार की ओर से 1-1 लाख रुपए की मदद दी जाएगी. उन्हें एक महीने की तनख्वाह समेत छुट्टी भी दी जाएगी, जिस से वह अपने परिवार वालों से मिल सकें. उन्होंने एक संदेश भी दिया, ‘मैं इस बचाव अभियान से जुड़े सभी लोगों के जज्बे को भी सलाम करता हूं. उन की बहादुरी और संकल्पशक्ति ने हमारे श्रमिक भाइयों को नया जीवन दिया है. इस मिशन में शामिल हर किसी ने मानवता और टीम वर्क की एक अद्भुत मिसाल कायम की है.’

यह बात बिलकुल सही है, क्योंकि इस पूरे अभियान में 42 मजदूरों के साथसाथ उन सभी लोगों की जान दांव पर लगी थी, जो मजदूरों की जिंदगी बचाने के लिए नए से नया जोखिम ले रहे थे.

ये ही वे लोग हैं जो देश को आगे बढ़ाने का काम करते हैं. मजदूरों की अनदेखी तो किसी भी सरकार को नहीं करनी चाहिए. वे ही सही माने में अपने खूनपसीने से देश को खुशहाल बनाते हैं. वे भले ही दो वक्त की रोटी न खाएं, पर शरीर से फुरतीले और मजबूत होते हैं. यह बात इन 41 मजदूरों ने साबित भी कर दी. ये लोग अमूमन जाति से भले ही निचले हों, पर काम हमेशा अव्वल दर्जे का करते हैं. पूरे देश को इन की जीने की इच्छा को सलाम करना चाहिए.

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