राहुल गांधी से भाजपा कितनी डरती है, यह उन की भारत और अमेरिका में ट्रकों में सफर के वीडियो रीलीज होने के बाद सरकार का ट्रक केबिन को एयरकंडीशंड करने के फैसले से साफ है. नीतिन गडकरी ने आदेश दिया है कि 2025 से सभी ट्रकों में ड्राइवर केबिन में एयरकंडिशनर लगाना जरूरी होगा.
यह लक्जरी नहीं है. ट्रक ड्राइवरों को वैसे गर्मी, बरसात और सर्दी सभी की अच्छी आदत होती है क्योंकि वे मूलत: किसानों के बेटे होते हैं जो हर मौसम में खुले में काम करते हैं. यह तो ट्रकों को एक्सीडेंटों से बचाने का तरीका है. ट्रक ड्राइवर आदतन गर्मी के कारण बदन का पसीना पोंछते रहते हैं और एक हाथ स्टेयङ्क्षरग पर रहता है चाहे स्पीड 80-90 किलोमीटर हो. यह एक्सीडेंट का समय होता है.
12-14 घंटे लगातार ड्राइङ्क्षवग में जो थकान होती है वह एयरकंडीशंड केबिन होने पर जरूर कम हो जाएगी. ट्रक आमतौर पर खुद शोर करते है और ऊपर से यदि खिडक़ी खुली हो तो उन का ध्यान दूसरे बाहर के शोर जाएगा ही एयरकंडीशंड केबिन थोड़े से एक्स्ट्रा दाम में जो बचत करेगा वह कहीं ज्यादा फायदेमंद होगी.
ट्रकों को सुविधाजनक न बनाने के पीछे बड़ी वजह है कि हमारे पौलिसी बनाने वाले उन्हें सूई समझ कर गुलाम का गुलाम समझते हैं. ट्रक इंडस्टी में भी यही लोग भरे हैं और ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री में भी.
ट्रकों में अगर एयरकंडीशंड केबिन की वजह से थोड़े से एक्सीडेंट भी कम होंगे तो आम ऊंची जातियों के लोगों को भी फायदा होगा क्योंकि जिन गाडिय़ों से एक्सीडेंट होते हैं वे तो ऊंची जातियों वाले चला रहे होते हैं या उन में ऊंची जातियों के लोग सवार होते हैं. उन्हें अगर गरीब ड्राइवरों की फिक्र न हो तो अपनी फिक्र के लिए तो वे यह सुविधा दें.
जिस दिन अखबार में ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर का यह आदेश छपा था उसी दिन दिल्ली के पास रात 4 बजे एक गाड़ी की सडक़ के बीच खड़ी एक शराब ट्रक से एक्सीडेंट से टक्कर में एक भद्र जन की मौत की खबर छपी है.
आज की तकनीकी ङ्क्षजदगी इस तरह ऊंचीनीची, अमीरगरीब से गुमशुम हो गई है कि सिर्फ इसीलिए कोई सुविधा गरीबों को देने से इंकार नहीं किया जा सकता. देश जो बिखराबिखरा रहता है, पुल टूटते रहते हैं, रेलों के एक्सीडेंट होते रहते हैं, बुलडोजर चला कर कच्चे कमान ढहाए जाते रहते है, बाढ़, तूफान में मरते रहते हैं तो चलिए कि हम साजिश के तौर पर अपने गरीबों को जीने का सलीका ही सिखाते, हमारे यहां उन्हें इस्तेमाल करने की संस्कृति है, इसी का ढोल बजाया जाता है.
ट्रक ड्राइवर अगर कष्ट भोगते हैं तो भोगें. यह उन के पिछले जन्मों के पापों का फल है जिसे वे इस जन्म में भोग रहे हैं. यह सोच ट्रक उत्पादकों और ट्रांसपोर्ट कंपनियों के मालिकों के मन से नहीं निकलती. मोदी जी ने राहुल गांधी के ट्रक सवारों से सबक तो सीखा पर यह फैसला है दिखावटी ही. होगा कुछ नहीं.