क्या पुरुष भी होते हैं ब्रैस्ट कैंसर के शिकार

कई लोगों में यह धारणा आम होती है कि ब्रैस्ट कैंसर केवल महिलाओं को होने वाला रोग है. यह धारणा गलत है. ब्रैस्ट कैंसर ऐसा रोग है जो महिलाओं व पुरुषों दोनों को अपना शिकार बनाता है. हालांकि ये औरतों में ज्यादा पाया जाता है. केवल यूके में हर साल लगभग 250 पुरुष इस बीमारी का शिकार होते हैं. दरअसल, पुरुषों में उन के निप्पल के पीछे कुछ ब्रैस्ट कोशिकाएं होती हैं. जब इन कोशिकाओं में कैंसरस सेल विकसित हो जाते हैं, तो पुरुष भी ब्रैस्ट कैंसर के शिकार हो जाते हैं.

वरिष्ठ कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. समीर कौल के अनुसार, वैसे तो इस का मूल कारण अभी तक कोई समझ नहीं पाया है लेकिन कुछ पुरुषों में यह बीमारी पनपने की बहुत अधिक संभावना होती है. यह कैंसर अकसर 60 वर्ष पार कर चुके पुरुषों में अधिक देखने को मिलता है. यह उन पुरुषों में अधिक पाया जाता है जो ऐसे परिवार के निकट संबंधी हों जहां औरत या पुरुष कोई भी कैंसर से पीडि़त था या किसी ऐसे व्यक्ति के निकट रिश्तेदार हों जिन के दोनों स्तनों का कैंसर का निदान किया गया हो या फिर किसी ऐसे व्यक्ति के रिश्तेदार जिसे 40 वर्ष से पहले ही कैंसर हो गया हो.

जिस परिवार में कई लोग ओवरी या कोलोन कैंसर से पीडित रह चुके हों, उस परिवार से संबंधित पुरुषों में भी ब्रैस्ट कैंसर होने का खतरा होता है. जो लोग यह महसूस करते हैं कि उन के ब्रैस्ट कैंसर होने का खतरा अधिक है उन लोगों के लिए अब विशिष्ट रूप से चिकित्सा केंद्र उपलब्ध हैं. ऐसे चिकित्सा केंद्रों को आनुवंशिक चिकित्सा केंद्र कहा जाता है. जिन पुरुषों में उच्च स्तर का ओइस्ट्रोजन होता है या जो कम उम्र में ही रेडिएशन के संपर्क में आते हैं, उन में भी इस बीमारी के पनपने का खतरा होता है.

बहुत ही कम पुरुषों में फीमेल क्रोमोसोम मौजूद होते हैं, ऐसे पुरुषों में भी खतरा अधिक होता है पुरुषों में भी कई प्रकार का ब्रैस्ट कैंसर हो सकता है. पुरुषों में पाया जाने वाला सब से साधारण ब्रैस्ट कैंसर इंवेसिव डक्टल कैर्सिनोमा कहलाता है. यह औरतों में भी पाया जाता है. इस के अलावा कुछ अन्य कैंसर हैं- इंफ्लेमेटरी ब्रैस्ट कैंसर, पेजेट्स डिसीज औफ ब्रैस्ट कैंसर, डक्टल कैर्सिनोमा इन सीटू आदि. डा. समीर कौल के अनुसार, इस के चिह्न व लक्षण बै्रस्ट में गांठ बनना, ब्रैस्ट के आकार और साइज में बदलाव, त्वचा पर अल्सर, निप्पल में से स्राव होना, निप्पल का पीछे की ओर मुड़ना, निप्पल या आसपास की त्वचा पर चकत्ते होना आदि होते हैं.

जांच और निदान

डाक्टर बाहरी तौर पर जांच कर के यह पता लगा लेते हैं कि ब्रैस्ट कैंसर है या नहीं. इस के अलावा ब्रैस्ट कैंसर का फैलाव जानने के लिए कई टैस्ट किए जाते हैं, जैसे मैमोग्राम ब्रैस्ट एक्सरे. मैमोग्राम से ब्रैस्ट में आए बदलाव को जांचा जाता है. लेकिन अल्ट्रासाउंड से पुरुषों में ब्रैस्ट कैंसर के बारे में ज्यादा अच्छी तरह से पता चलता है.

अल्ट्रासाउंड स्कैन से यह पता किया जाता है कि गांठ में पानी भरा है या फिर वह कठोर है. दरअसल, अल्ट्रासाउंड के दौरान ब्रैस्ट पर एक जैल लगाया जाता है. फिर एक छोटा सा यंत्र उस जगह पर घुमाया जाता है और फिर सामने मौनीटर पर चिकित्सक को सब साफसाफ दिखने लगता है. ब्रैस्ट में एक छोटी सूई डाल कर गांठ के कुछ सैल्स निकाले जाते हैं.

यह अल्ट्रासाउंड के दौरान ही किया जाता है ताकि प्रभावित जगह के ही सैल निकाले जाएं. फिर यह जांच की जाती है कि सैल कैंसरस हैं या नहीं. सूई द्वारा बायोप्सी के तहत, ब्रैस्ट से एक छोटा सा नमूना ले कर प्रयोगशाला में यह जांचा जाता है कि सैल कैंसर के हैं या नहीं. बायोप्सी करने से पहले मरीज को सुन्न कर दिया जाता है.

ब्रैस्ट कैंसर की अवस्थाएं

डा. समीर कौल के अनुसार, ब्रैस्ट कैंसर के आकार और अवस्था से ही पता चलता है कि कैंसर कहां तक फैला है. यह जानने के बाद ही चिकित्सा का कोर्स निर्धारित किया जाता है. कई लोगों में कैंसर खून के द्वारा या फिर लिफैंटिक सिस्टम (शरीर की रोगों और संक्रमण से लड़ने वाली प्रक्रिया) के द्वारा शरीर के अन्य भागों तक भी फैल जाता है. 

दरअसल, डाक्टर कैंसर को 4 अवस्थाओं में विभाजित करते हैं. पहली अवस्था से ले कर चौथी अवस्था तक कैंसर के कई रूप होते हैं. पहली अवस्था में गांठ का आकार 2 सेंटीमीटर से भी कम होता है. इस अवस्था में शरीर का कोई और भाग कैंसर की चपेट में नहीं आया होता है. दूसरी अवस्था में गांठ का आकार 2-5 सेंटीमीटर तक पहुंच जाता है. बगल की लिंफ ग्लैंड कुछ हद तक प्रभावित होती है. लेकिन इस बात का कोई प्रमाण नहीं होता कि कैंसर अन्य भाग तक फैला है.

तीसरी अवस्था में गांठ का आकार 5 सेंटीमीटर से बड़ा हो जाता है और आसपास की मांसपेशियों व त्वचा तक पहुंच जाता है. लिंफ ग्लैंड प्रभावित तो होती हैं लेकिन कैंसर शरीर के अन्य भागों तक नहीं पहुंचता और चौथी अवस्था में गांठ का आकार कुछ भी हो सकता है. बगल की लिंफ ग्लैंड प्रभावित हो जाती हैं और कैंसर हड्डियों व फेफड़ों तक फैल जाता है.

कैंसर से छुटकारा

पुरुष तो सर्जरी को ही प्राथमिकता देते हैं. पुरुष केवल अन्य चुनाव से सिर्फ गांठ को ही नहीं हटवा सकते क्योंकि उन की ब्रैस्ट और कोशिकाएं बहुत छोटी होती हैं. पुरुषों में तो गांठ अकसर निप्पल के आसपास या निप्पल के नीचे ही होती है. इसलिए उन्हें निप्पल और पूरी ब्रैस्ट को ही निकलवाना पड़ता है. वैसे हमारे समाज का सच तो यह है कि कई बार अथक प्रयास करने के बाद भी कैंसर जैसे रोगों का निवारण नामुमकिन हो जाता है.

ऐसे रोगों से ग्रस्त मरीज सभी प्रकार के कैंसरों को असाध्य मान कर तब तक डाक्टर के पास नहीं जाते जब तक रोग बहुत बढ़ न जाए. कहीं न कहीं उन के मन में कैंसर के प्रति डर तो होता है लेकिन साथ ही वे अभी तक उपलब्ध कैंसर से लड़ने वाले सभी उपचारों के दुष्प्रभावों को ले कर भी चिंतित रहते हैं.

लेकिन अब कई अध्ययनों से यह साफ हो चुका है कि आधुनिक चिकित्सा की मदद से किसी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता और बेहद कम समय में कैंसर से छुटकारा पाया जा सकता है. जितनी जल्दी कैंसर का निदान किया जाए और उस का उपचार शुरू हो, उतनी ही जल्दी कैंसर से छुटकारा पाया जा सकता है.

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