ठाकरे : बायोपिक के नाम पर प्रौपेगेंडा फिल्म

रेटिंग : दो स्टार

इन दिनों बौलीवुड में बायोपिक फिल्मों का दौर जारी है. इसी दौर में महाराष्ट्र के राजनीतिक दल ‘शिवसेना’ के नेता व सांसद संजय राउत शिवसेना प्रमुख रहे बाल केशव ठाकरे यानी कि बाला साहेब ठाकरे के कृतित्व पर आधारित फिल्म ’ठाकरे’ लेकर आए हैं, जिसका पहला भाग 25 जनवरी को सिनेमाघरों में पहुंचा है.

बाल केशव ठाकरे अपने समय के सर्वाधिक विवादास्पद इंसान थे. वह महाराष्ट्रियन के लिए समान अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले सम्मानजनक इंसान थे. मगर यह फिल्म एक निष्पक्ष व बेहतरीन बायोपिक फिल्म की श्रेणी में नहीं गिनी जा सकती.

फिल्म की शुरुआत होती है लखनऊ में बाबरी विध्वंस केस की सुनवाई के लिए अदालत के अंदर बाला साहेब ठाकरे के आगमन के साथ. अदालत में वकील के सवालों के जवाब के साथ ही कहानी अतीत में जाती है. बाला साहेब ठाकरे मुंबई के एक अखबार में कार्टूनिस्ट के रूप में नौकरी कर रहे हैं. ठाकरे अपने कार्टून में सच को व्यंग के साथ पेश करते हैं, पर इससे अखबार के मालिक के सामने समस्या पैदा होती है और बाला साहेब ठाकरे नौकरी से त्यागपत्र देकर मुंबई के ‘ईरोज’ थिएटर में महाराष्ट्यिन यानी कि मराठी भाषी लोगों का अपमान करने वाली फिल्म देखकर वह मराठियों के लिए क्रांति लाने का मन बनाते हैं.

उन्हे लगता है कि मुंबई व महाराष्ट्र पर गैर मराठियों, गुजराती, दक्षिण भारतीयों व गैर महाराष्ट्रिट्यन का ही शासन है. इसलिए वह मराठियों की लड़ाई लड़ने के लिए ‘मार्मिक’ नामक मराठी भाषा में साप्ताहिक पत्र निकालने का ऐलान करते हैं, जिसका सर्मथन उनके पिता प्रबोधन ठाकरे भी करते हैं. ‘मार्मिक’ के पहले अंक का विमोचन महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री यशवंतराव चौहाण करते हुए बाला साहेब ठाकरे की काफी तारीफ करते हैं. मार्मिक में समाज के सच का चित्रण होता है.

मार्मिक की लोकप्रियता के बाद वह आम लोगों की समस्याओं का निवारण करने लगते हैं. फिर अपने पिता के कहने पर ‘शिवसेना’ का गठन करते हैं. राजनीति के साथ समाज सेवा के कार्य शुरू होते हैं. गैर मराठी भाषियों के खिलाफ आंदोलन करवाते हैं. शिवसैनिक हिंसा का सहारा लेते हैं, जिसका बाला साहेब ठाकरे पूरा समर्थन करते हैं. पुलिस विभाग में भी तमाम लोग बाला साहेब ठाकरे का समर्थन करने के साथ साथ उनके साथ हो जाते हैं.

बेलगाम व करवार को महाराष्ट्र में शामिल करने के आंदोलन के दौरान प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के मुंबई आगमन पर उनसे मिलने का बाला साहेब ठाकरे असफल प्रयास करते हैं, पर शिवसैनिक व पुलिस के बीच मुठभेड़ और फिर शिवसैनिकों द्वारा मुंबई शहर में जमकर तोड़फोड़ और आगजनी की जाती है. उस वक्त महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री वसंत राव नाइक का उन्हे मौन समर्थन प्राप्त रहता है. केंद्र सरकार के सख्त रवैये के चलते बाला साहेब ठाकरे को गिरफ्तार किया जाता है, पर मुंबई बंद रहती है.

जार्ज फर्नांडिस जेल में ठाकरे से मिलकर उनकी तारीफ करते हैं कि उन्होंने मुंबई को बंद किया. बीच में एक बार वह मुस्लिम लीग के मंच पर जाकर भाषण देते हैं कि उन्हे किसी के धर्म से परहेज नहीं है, पर उन्हे मिलकर काम करना रहना चाहिए और ईद के साथ शिवाजी जयंती भी मनानी चाहिए. पर बात नहीं बनती. 1966 से शिवसेना की गतिविधियों, आपातकाल के दौरान मुंबई आने पर प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से मिलकर बाला साहेब ठाकरे अनुशासन के नाम पर आपातकाल का समर्थन कर‘शिवसेना’ पर बैन लगाने के प्रस्ताव को खारिज कराने में सफल हो जाते हैं. मुंबई महानगर पालिका और फिर महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार बनने पर मनोहर जोशीद्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने तक की कहानी है. इसके आगे की कहानी फिल्म के दूसरे भाग में दिखायी जाएगी.

यूं तो बाला साहेब ठाकरे के जीवन व कृतित्व को ढाई घंटे की फिल्म में समेटना असंभव है, मगर संजय राउत की कहानी पर लेखक व निर्देशक अभिजीत पनसे ने एक बेहतरीन प्रचारात्मक फिल्म बनायी है. उन्होंने फिल्म में बाला साहेब ठाकरे के व्यक्तित्व व सोच को सही ढंग से चित्रित करने का सफल प्रयास किया है. पर यह फिल्म बाला साहेब ठाकरे का महिमा मंडन है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता.

यूं तो राजनीतिक व्यक्ति पर बनने वाली फिल्म में सच व कूटनीति के बीच रेखा खींचना आसान नहीं होता. पर इस फिल्म में फिल्मकार अभिजीत पनसे ने सच की बजाय कूटनीति को ही महत्व देते हुए बाला साहेब के प्रशंसकों को खुश करने का प्रयास किया है. फिल्म में इसी हिसाब से राजनीतिक घटनाक्रमों को भी पिरोया गया है. फिल्म में लोकतंत्र व राजनीति को लेकर उनकी सोच व पसंद को भी सही ढंग से उकेरा गया है. मगर यह निष्पक्ष व बेहतरीन बायोपिक फिल्म की बजाय प्रचारात्मक फिल्म बनकर उभरती है.

राष्ट्रवाद के नाम पर फिल्म में दक्षिण भारतीयों के खिलाफ ‘‘उठाओ लुंगी बजाओ पुंगी’ जैसा संवाद प्रमुखता से है, तो वहीं शिवसैनिकों द्वारा मार्क्सवादी नेता कृष्णा देसाई की हत्या को मील के पत्थर के रूप में चित्रित किया गया है. तो वहीं बाबरी मस्जिद को गिराना व जय श्रीराम के नारों का भी उपयोग है.

फिल्म की विडंबना यह है कि बाला साहेब ठाकरे ने गैर महाराष्ट्यिन के खिलाफ अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू की थी और वह इनके खिलाफ आवाज उठाते रहे, पर यह फिल्म ऐसे ही गैर महाराष्ट्रियन लोगों के सहयोग से बनी है, जिस तरह मुंबई के विकास में इन गैर महाराष्ट्यिन का योगदान रहा है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो एक निडर और कुछ भी कर सकने वाले इंसान की छवि वाले बाला साहेब ठाकरे को परदे पर जिस तरह से नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. नवाजुद्दीन की अभिनय प्रतिभा के बल पर बाला साहेब ठाकरे एक सशक्त चरित्र बनकर उभरते हैं. मीनाताई के किरदार में अमृता राव ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. इंदिरा गांधी का किरदार निभाने वाली अदाकारा पूरी तरह से मात खा गयी हैं. फिल्म में इंदिरागांधी का किरदार महज रोबोट बनकर रह गया है.

लगभग ढाई घंटे की अवधी वाली फिल्म ’ठाकरे’ का निर्माण ‘वायकौम 18 मोशन पिक्चर्स’, डा श्रीकांत भासी, वर्षा संजय राउत, पुर्वशी संजय राउत व विधिता संजय राउत ने किया है. फिल्म के निर्देशक अभिजीत पनसे, कहानीकार संजय राउत, पटकथा लेखक अभिजीत पनसे, संवाद लेखक अरविंद जगताप व मनोज यादव, संगीतकार रोहन रोहन, संदीप शिरोड़कर, पार्श्वसंगीत अमर मोहिले, कैमरामैन सुदीप चटर्जी तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं – नवाजुद्दीन सिद्दिकी, अमृता राव,सुधीर मिश्रा, अब्दुल कादिर अमीन, लक्ष्मण सिंह राजपूत, अनुष्का जाधव, निरंजन जवीर, डा. सचिन ए जयंत, विशाल सुदर्शनवार, राधा सागर, सतीश अलेकर, आनंद विकास पोटदुखे व अन्य.

जो रिकार्ड राजेश खन्ना और अमिताभ ना तोड़ सकें, नवाजुद्दीन तोड़ेंगे

नवाजुद्दीन सिद्दीकी बाला साहेब ठाकरे की बायोपिक लेकर आ रहे हैं. रिलीज होने से पहले ही फिल्म दर्शकों के बीच छाई हुई है. फिल्म की पौपुलैरिटी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके नाम एक ऐसा रिकार्ड दर्ज होने वाला है जो राजेश खन्ना और अमिताभ जैसे दिग्गजों को भी नसीब नहीं हुआ.

असल में फिल्म ठाकरे को महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में सुबह चार बजे का शो भी मिला है. दर्शकों के बीच फिल्म के क्रेज को देखते हुए फिल्म के शोज की संख्या बढ़ाई गई है जिसके कारण फिल्म का शो सुबह चार बजे से ही शुरू हो जाएगा. मुंबई के वडाला इलाके के मल्टीप्लैक्स में यह सुबह सवा चार बजे के शो में रिलीज हो रही है.

हिंदी सिनेमा के इतिहास में पहली बार होगा ऐसा

जी हां, हिंदी सिनेमा के इतिहास में संभवत: यह पहली बार ऐसा होगा कि सुबह चार बजे से ही किसी फिल्म का प्रदर्शन सिनेमाघरों में शुरू हो जाएगा. इससे पहले ऐसी दिवानगी राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के लिए देखी जाती थी. उनकी कुछ फिल्में सिनेमाघरों में सुबह छ: बजे प्रदर्शित की गई हैं. पर संभवत: पहली बार किसी फिल्म को सुबह चार बजे से लगाया जाएगा. इस बात की जानकारी देख के मशहूर ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श ने दी है. आपको बता दें कि वडाला के अलावा महाराष्ट्र के लातूर और अन्य शहरों में भी इस तरह के शो रखे गए हैं। पहले ऐसा क्रेज अमिताभ और राजेश खन्ना को हासिल था.

इस तरह की दीवानगी रजनीकांत की फिल्मों को लेकर साउथ इंडिया में देखी जाती है. इसके बाद नवाज की इस फिल्म के लिए लोगों में ऐसा जुनून देखने को मिल रहा है.

‘ठाकरे’ पर एक्टर सिद्धार्थ का बड़ा बयान

स्व. बाला साहेब ठाकरे की बायोपिक फिल्म ‘ठाकरे’ का निर्माण हिंदी व मराठी, दो भाषाओं में किया गया है. 26 दिसंबर को फिल्म ‘ठाकरे’ के मराठी व हिंदी दोनों भाषाओं मे ट्रेलर रिलीज किया गया. पर दोनो भाषाओं के ट्रेलर में जबरदस्त अंतर है. मराठी भाषा के फिल्म के ट्रेलर में दक्षिण भारतीयों के प्रति कई अपशब्दों का प्रयोग किया गया है. जिन पर सेंसर बोर्ड ने भी आपत्ति जताई है. पर शिवसेना नेता, सांसद व फिल्म ‘ठाकरे’ के निर्माता संजय राउत ने ऐलान कर दिया है कि सेंसर बोर्ड इस फिल्म के किसी भी संवाद को काट नहीं सकता. 25 जनवरी 2019 को प्रदर्शित होने वाली अभिजीत पनसे निर्देशित और नवाजुद्दीन सिद्दिकी व अमृता राव के अभिनय से सजी इस फिल्म के ट्रेलर में महाराष्ट्र खासकर मुंबई में बसे अप्रवासी भारतीयों वो भी खासकर दक्षिण भारतीयों के खिलाफ नफरत सूचक संवाद हैं. इसमें एक संवाद- ‘उठाओ लुंगी बजाओ पुंगी’ कई बार दोहराया गया है. यह संवाद विशेषकर दक्षिण भारतीयों के बारे में ही है. दक्षिण भारतीय ही लुंगी ज्यादा पहनते हैं. उल्लेखनीय है कि यह संवाद हिंदी फिल्म के ट्रेलर में नहीं है.

ट्रेलर आने के बाद कुछ ही घंटों में ही इसका विरोध शुरू हो गया है. सबसे पहले दक्षिण भारतीय अभिनेता सिद्धार्थ ने ट्वीटर पर लिखा, ‘यह दक्षिण भारतीयों के प्रति नफरत वाला भाषण है.’

बता दे कि 1966 में शिवसेना नेता के ‘मराठी माणुस’ को लेकर यह संवाद ‘स्लोगन’ हुआ करता था.1966 में शिवसेना पार्टी का गठन करते समय बाल ठाकरे ने मांग की थी कि महाराष्ट्र में स्थानीय लोगों को ही नौकरी में प्राथमिकता दी जानी चाहिए. इतना ही नहीं मुंबई में रह रहे अप्रवासी भारतीयों के खिलाफ उस वक्त बाला साहेब ठाकरे ने कई तरह की मुहीमें चलाई थी.

वैसे फिल्म ‘ठाकरे’ के हिंदी ट्रेलर में भूमिपुत्रों का मुद्दा जरुर उठाया गया है, मगर दक्षिण भारतीयों के खिलाफ किसी तरह के स्लोगन नहीं है. इससे यह साफ जाहिर होता है कि शिवसेना पार्टी की तरफ से फिल्म ‘ठाकरे’ के ट्रेलर व इस फिल्म का उपयोग मराठी भाषी लोगों को एकजुट कर वोट बटोरने का प्रयास किया जा रहा है.

उधर सेंसर बोर्ड ने भी फिल्म के तीन संवादों को हटाने के लिए कहा है, मगर शिवसेना नेता व फिल्म के निर्माता संजय राउत का कहना है कि सेंसर बोर्ड किसी संवाद को हटा नहीं सकता. संजय राउत का दावा है कि फिल्म ‘ठाकरे’ में कुछ भी काल्पनिक नही है, सब कुछ वास्तविक है. मगर यह उनका सबसे बड़ा झूठ है. इतिहास इस बात का साक्षी है कि बाला साहेब ठाकरे अपने जीवन में कभी भी किसी भी अदालत के कटघरे में खड़े होकर वकीलों या जज के सवालों के जवाब देने नहीं गए. मगर हिंदी व मराठी दोनों भाषाओं के ट्रेलर में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद बाला साहेब ठाकरे अदालत के कटघरे में खड़े होकर वकील व जज के सवालों के जवाब देते हुए नजर आ रहे हैं, जो कि पूर्णरूप से गलत है.

siddharth on movie thackrey

फिल्म ‘ठाकरे’ में बाला साहेब ठाकरे का किरदार मूलतः उत्तर प्रदेश निवासी अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने निभाया है. बाला साहेब ठाकरे पूरी जिंदगी माइनौरिटी और उत्तर प्रदेश के लोगों के खिलाफ बयानबाजी करते रहे हैं. इसी पर कटाक्ष करते हुए अभिनेता सिद्धार्थ ने कहा, ‘फिल्म मंटो’ तक में नवाजुद्दीन सिद्दिकी का प्रशंसक रहा हूं. इसलिए नहीं कि इस फिल्म में उन्होने एक अच्छे इंसान का किरदार निभाया है. उन्होने कई फिल्मों में बुरे इंसान का भी किरदार निभाया है. पर उन फिल्मों में बुरे को बुरा ही दिखाया गया.मगर अब उन्होने फिल्म ‘ठाकरे’ में बाला साहेब ठाकरे का किरदार निभाया है, जिसमें बाला साहेब ठाकरे का महिमा मंडन किया गया है.जब माइनौरिटी के खिलाफ बात करने वाले मराठी भाषी को महिमा मंडित करने वाले का किरदार एक उत्तर भारतीय मुस्लिम अभिनेता निभाए, इसे भी न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता.’

नावजुद्दीन सिद्दिकी पर कटाक्ष करते हुए सिद्धार्थ ने आगे ट्वीट किया है, ‘फिल्म के निर्माताओं के लिए बाला साहेब ठाकरे का किरदार नवाजुद्दीन सिद्दकी द्वारा निभाया जाना काफी किफायती रहा, क्योंकि नवाज ही खुद को उस दृश्य में थप्पड़ मार सकते हैं, जिसमें बाला साहेब ठाकरे उत्तर भारतीयों की पिटाई करते हैं.’

दक्षिण के अभिनेता सिद्धार्थ द्वारा ट्वीटर पर फिल्म ‘ठाकरे’ के खिलाफ हमला बोले जाने के बाद ट्वीटर पर मराठी फिल्म ‘ठाकरे’ के ट्रेलर के खिलाफ जमकर हमले जारी हैं.

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