सूर्य ग्रहण और अंधविश्वास के उल्लू

संसार में ऐसी बहुत सी घटनाएं है जो नियति है उनसे घबरा करके शुतुरमुर्ग की तरह अपना सर छुपा लेना क्या जायज है. हां, यह भी ठीक है कि जब विज्ञान का आविर्भाव नहीं हुआ था और हमारे देश में अशिक्षा और पुरातन पंथी समाज था तब तक तो सूर्यग्रहण को लेकर के जो भी किंवदंतियां थी उन्हें आम आदमी सर झुका कर के मान लेता था. मगर आज 21 वी शताब्दी में सूर्य ग्रहण को लेकर के भारतीय समाज में जो रुख दिखाई दे रहा है वह चकित करने वाला है और यह सवाल आज हमारे सामने है कि क्या हम आज भी अंधविश्वास के उल्लू बने हुए हैं. विज्ञान की प्रगति के बाद भी अगर हम चंद धार्मिक झंडाबरदारों के चंगुल में बुरी तरह फंसे हुए हैं तो यह एक बड़ी चिंता का सबब है और आने वाले समय में इसका नुकसान समाज और देश को होने की पूरी संभावना है. इसलिए आज इस आलेख में हम कुछ ऐसे प्रश्न उठा रहे हैं जो हमें चिंतित कर रहे हैं और समाज और देश की सरकार को, बौद्धिक वर्ग को चाहिए कि इन पर चिंतन करें और समाज में एक बदलाव लाने का प्रयास किया जाए ताकि आने वाले समय में सूर्य ग्रहण जैसी घटनाओं को लेकर के भय और अफवाहों का वातावरण नहीं बनना चाहिए. इसे विज्ञान के अनुसार एक घटना मान करके हमें सहज भाव से स्वीकार करना चाहिए क्योंकि सबसे बड़ा सवाल यह है कि आने वाली पीढ़ी सूर्यग्रहण को लेकर के क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगी.

मंदिरों के द्वार बंद हो गए

दरअसल, हमारा समाज धर्म से संचालित होने वाली ऐसी इकाईयां है जो धर्म के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना नहीं करता. और ऐसे में धर्म के चंद ठेकेदार जो कहते हैं समाज उन्हें के कथन पर विश्वास करता है और आगे पीछे देखे बिना दौड़ पड़ता है. यह एक विद्रूप सच है कि धार्मिक हुए बैगर समाज और उसकी इकाई अपने अस्तित्व को मानो शून्य मानते हैं और उसी रास्ते पर आंख बंद करके चलते हैं.
यहां हम कार्ल मार्क्स को स्मरण करते हुए उनका सुप्रसिद्ध वाक्य उद्धृत कर रहे हैं उन्होंने कहा था कि धर्म अफीम की मानिंद होता है. उनका यह प्रसिद्ध कथन पूरी दुनिया में चर्चित है और मानव सभ्यता को उद्वेलित करता रहता है मगर इसके बावजूद धर्म की जकड़न ऐसी है कि भारतीय मानव समाज उससे बाहर नहीं निकल पा रहा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण एक बार पुनः 25 अक्टूबर को दिखाई दिया जब सूर्य ग्रहण की घटना घटित हुई जैसा कि सदैव होता रहा है. सूर्य ग्रहण के समय वही सब कुछ हुआ जो हर हमेशा होता रहा है लोग अपने घरों में दुबक गए धार्मिक ग्रंथों का पाठ होने लगा. यहां तक की चारो धार्मिक केंद्रों के द्वार बंद हो गए लाखों लोग पवित्र कही जाने वाली नदियों में स्नान करने लगे और गर्भवती महिलाओं को यह कर करके घर में निकलने से मनाही की गई कि इससे नवजात शिशु पर असर होता है.
इस संपूर्ण घटनाक्रम पर अगर आप दृष्टि बात करेंगे तो पाते हैं कि आज के समय में भी विज्ञान को मानने की जगह धर्म की ही जय जयकार है फिर चाहे यह धर्म हमें कूप मंडूक ही सिद्ध क्यों ना करता हो.
यहां सबसे बड़ा सच यह भी है कि जहां हमें विज्ञान का लाभ मिलता है, वहां विज्ञान के सारे लाभ लेने से कोई गुरेज नहीं करते है.

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