कुश्ती में घमासान: नफरत का तूफान

साल 2022 में हुए टोकियो ओलिंपिक खेलों में भारतीय महिला पहलवान विनेश फोगाट ने वहां के खेलगांव में रहने और दूसरे भारतीय खिलाडि़यों के साथ ट्रेनिंग करने से मना कर दिया था. इस के साथ ही उन्होंने भारतीय दल के आधिकारिक प्रायोजक ‘शिव नरेश’ की जर्सी पहनने से भी इनकार कर दिया था. उन्होंने अपनी बाउट्स के दौरान ‘नाइक’ के लोगो वाली ड्रैस पहनी थी.

इस के बाद भारतीय कुश्ती महासंघ ने विनेश फोगाट को अस्थाई रूप से निलंबित और सभी रैसलिंग ऐक्टिविटी से प्रतिबंधित कर दिया था. तब यह भी कहा गया था कि विनेश फोगाट जब तक इस पर अपना पक्ष नहीं रखती हैं और भारतीय कुश्ती महासंघ इस पर आखिरी फैसला नहीं लेता है, तब तक वे किसी भी नैशनल या डोमैस्टिक इवैंट में हिस्सा नहीं ले सकेंगी.

इस पूरे मामले पर भारतीय कुश्ती महासंघ को इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन की ओर से फटकार का सामना करना पड़ा था कि वह अपने खिलाडि़यों को कंट्रोल में क्यों नहीं रख पाता है? अब सीधा 18 जनवरी, 2023 पर आते हैं. दिल्ली के ऐतिहासिक जंतरमंतर पर बुधवार को भारत के कई नामचीन पहलवान जमा हुए और उन्होंने भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ मोरचा खोल दिया.

धरना देने वाले खिलाडि़यों में बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक समेत 30 नामीगिरामी पहलवान शामिल थे. छरहरे बदन और तीखे नैननैक्श की 28 साला विनेश फोगाट हरियाणा की पहलवान हैं. बचपन में ही उन के पिता राजपाल सिंह फोगाट का देहांत हो गया था. मां प्रेमलता फोगाट ने ही उन का लालनपालन किया था.

5 फुट, 3 इंच कद की विनेश फोगाट ने साल 2014 में हुए कौमनवैल्थ गेम्स में कुश्ती के 48 किलोग्राम भारवर्ग और साल 2018 के कौमनवैल्थ गेम्स में 50 किलोग्राम भारवर्ग में गोल्ड मैडल अपने नाम किया था. विनेश फोगाट ने साल 2019 में नूर सुलतान वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी कांसे का तमगा जीता था. वे 2 बार की एशियन गेम्स पदक विजेता भी रह चुकी हैं.

उन्होंने साल 2018 के जकार्ता एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल और साल 2014 के इंचियोन एशियन गेम्स में कांसे का तमगा जीता था. नाटे कद की तेजतर्रार पहलवान साक्षी मलिक का जन्म 3 सितंबर, 1992 को हरियाणा के रोहतक में हुआ था. उन के पिता सुखबीर मलिक डीटीसी में बस कंडक्टर और माता सुदेश मलिक एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं.

साल 2016 में ब्राजील के रियो ओलिंपिक खेलों में साक्षी मलिक कांसे का मैडल अपने नाम कर के भारत के लिए ओलिंपिक मैडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनी थीं. साल 2016 के बाद से साक्षी मलिक के कैरियर में एक लंबा ब्रेक आ गया था. साल 2020 में वे टोकियो ओलिंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई करने से भी चूक गई थीं, लेकिन साल 2020 और 2022 की एशियन चैंपियनशिप में उन्होंने कांसे के 2 मैडल अपने नाम किए थे.

साल 2022 की शुरुआत में ही साक्षी मलिक ने यूडब्ल्यूडब्ल्यू रैंकिंग सीरीज में गोल्ड मैडल जीता था. विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया ने जंतरमंतर पर मोरचा संभाला था. ओलिंपिक मैडलिस्ट बजरंग पुनिया ने भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर बेहूदा शब्दों का इस्तेमाल कर के गाली देने का आरोप लगाया. कई पहलवानों ने उन्हें ‘तानाशाह’ तक करार दिया. विनेश फोगाट ने तो भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगा दिया.

उन्होंने यह भी कहा कि कई और कोच भी यौन उत्पीड़न करते हैं. जंतरमंतर पर जमा हुए पहलवानों का कहना था कि वे इस लड़ाई को आखिर तक लड़ेंगे और बृजभूषण शरण सिंह को पद से हटाने तक चुप नहीं बैठेंगे. विनेश फोगाट ने रोते हुए कहा था, ‘‘प्रैसिडैंट ने मुझे ‘खोटा सिक्का’ बोला. फैडरेशन ने मुझे मैंटली टौर्चर किया. मैं इस के बाद सुसाइड करने की सोच रही थी.’’ बजरंग पुनिया ने कहा, ‘‘महासंघ द्वारा हमें मानसिक रूप से प्रताडि़त किया जा रहा है.

फैडरेशन द्वारा एक दिन पहले ही नियम बना लिए जाते हैं. सारी भूमिका प्रैसिडैंट निभा रहे हैं. प्रैसिडैंट हम से गालीगलौज करते हैं. उन्होंने प्लेयर्स को थप्पड़ तक मार दिया था.’’ कुश्ती जगत में हुए इस धमाके से यह साफ हो गया है कि जिस तरह से भारतीय कुश्ती महासंघ का संचालन बृजभूषण शरण सिंह कर रहे हैं, उस से कुश्ती खिलाड़ी तंग आ चुके हैं.

वैसे, बता दें कि बृजभूषण शरण सिंह उत्तर प्रदेश की कैसरगंज लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं. बृजभूषण शरण सिंह अपने इलाके के वे एक दबंग नेता माने जाते हैं. आज की तारीख में उन का असर गोंडा के साथसाथ बलरामपुर, अयोध्या और आसपास के जिलों में काफी बढ़ा है. उन के बेटे प्रतीक भूषण भी गोंडा से भाजपा विधायक हैं.

बृजभूषण शरण सिंह साल 2011 से ही कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष हैं. साल 2019 में वे कुश्ती महासंघ के तीसरी बार अध्यक्ष चुने गए थे. उन्होंने 2 साल पहले रांची में भरे मंच पर एक पहलवान को थप्पड़ मार दिया था. भारतीय कुश्ती महासंघ का चुनाव एक निर्वाचक मंडल से होता है.

इस महासंघ की वैबसाइट पर दी गई जानकारी के आधार पर कार्यकारी समिति के पदाधिकारियों और सदस्यों के चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल होता है. इस में 26 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 51 सदस्य शामिल होते हैं. धरने पर बैठे बजरंग पुनिया ने साफ किया, ‘‘पहलवान इस तानाशाही को बरदाश्त नहीं करना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रबंधन में बदलाव किया जाए. हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री हमारा समर्थन करेंगे.’’ खिलाडि़यों और भारतीय कुश्ती महासंघ के बीच हुए इस घमासान को खेल मंत्रालय ने बहुत गंभीरता से लिया है.

मंत्रालय ने फैडरेशन से 72 घंटे के भीतर इन आरोपों पर जवाब मांगा और ऐसा नहीं करने पर सख्त कार्यवाही की चेतावनी दी. इसी बीच बहुत से पहलवान भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के पक्ष में भी खड़े दिखाई दिए. साल 2010 में कौमनवैल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल जीतने वाले नरसिंह यादव ने बृजभूषण शरण सिंह की तारीफ की और उन का पक्ष लिया. केरल की पहलवान रोज मार्या और उन की बहन शालिनी भी बृजभूषण शरण सिंह के समर्थन में सामने आईं. उन का कहना था, ‘हम दोनों नैशनल मैडलिस्ट हैं.

हम साल 2014 में लखनऊ के सांईं सैंटर में हुए नैशनल कैंप का हिस्सा थीं. हम वहां पूरी तरह से सेफ थीं. हमें वहां कोई समस्या नहीं हुई. इस के लिए हम रैसलिंग फैडरेशन औफ इंडिया की शुक्रगुजार हैं.’ इस पूरे मसले पर कौन कितना सच्चा या झूठा है, यह तो जांच समिति की रिपोर्ट आने से पता चलेगा. हालांकि जब तक रिपोर्ट आएगी, तब तक कुश्ती मैट फट चुके होंगे.

सोशल मीडिया पर बवाल भारत के मुक्केबाज विजेंदर सिंह ने धरने पर बैठे पहलवानों का समर्थन करते हुए फेसबुक पर एक फोटो डाला था, तो उस के एक कमैंट में एक यूजर ने लिखा, ‘बृजभूषण बोल रहा है कि एक जाति विशेष के पहलवान धरने पर बैठे हैं, उस को बोलो कि मैडल भी तो जाति विशेष के पहलवान ही लाए थे.’ यहां जाति विशेष का मतलब जाट से है.

इस कमैंट के जवाब में दूसरे यूजर ने लिखा, ‘विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया, साक्षी मलिक जैसे खिलाडि़यों को शर्म आनी चाहिए, जो नए खिलाडि़यों की चुनौतियां स्वीकार करने के बजाय बेबुनियाद आरोप संघ अध्यक्ष पर लगा रहे हैं. एक और यूजर का कहना था, ‘हर खेल का नियम है कि नए खिलाड़ी आने पर पुराने खिलाडि़यों को रिटायर होना पड़ता है. अपनी कमजोरी छिपाने के लिए अनावश्यक दबाव बनाने के लिए भारतीय कुश्ती संघ को बदनाम कर रहे हैं.

मेरा इन खिलाडि़यों के प्रति सम्मान है, किंतु इन्हें अपने स्वार्थ के लिए संघ को बदनाम नहीं करना चाहिए…’ किसी यूजर ने लिखा, ‘खास वर्ग को तकलीफ है. जय राजपुताना.’ एक यूजर ने इस तरह अपनी भड़ास निकाली, ‘ब्रजभूषण के बयान से जाहिर है, उन्हें परेशानी एक खास वर्ग से ही है. उन का बयान उन की मानसिकता का साफ चित्रण करता दिख रहा है. जब हम मैडल ले कर आते हैं तो हिंदू और अब सिर्फ जाट. वाह रे, ब्रजभूषण.’ ये तो चंद उदाहरण हैं, जबकि सोशल मीडिया पर ऐसी न जाने कितनी अनर्गल बातें चल रही थीं, जो हमारी जनता की सोच को सामने ले आईं. यह एक खतरनाक ट्रैंड है.

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