हकीकत: जाति और धर्म की देन बेरोजगारी

पौराणिक समय में शूद्रों को पढ़नेलिखने का हक नहीं था. अगर शूद्र पढ़ालिखा हो जाता था तो उस को इस बात का दंड दिया जाता था. पौराणिक समय की यही सोच आज भी दलितों को पढ़ाईलिखाई और रोजीरोजगार से दूर रखना चाहती है. उन के मन में यह भरा जाता है कि कौन सा तुम को पढ़लिख कर कलक्टर बनना है? समय से पहले स्कूल छोड़ने वालों में सब से बड़ा हिस्सा दलितों का ही है.

एकलव्य की कहानी महाभारत काल की है. महाभारत काल में प्रयागराज में एक श्रृंगवेरपुर राज्य था. हिरण्यधनु इस आदिवासी राज्य के राजा थे. गंगा के तट पर श्रृंगवेरपुर उन की राजधानी थी. श्रृंगवेरपुर राज्य की शक्ति मगध, हस्तिनापुर, मथुरा, चेदि, चंदेरी जैसे बड़े राज्यों जैसी ही थी.

निषादराज हिरण्यधनु और रानी सुलेखा के बेटे का नाम अभिद्युम्न था. अस्त्रशस्त्र विद्या में निपुण होने के चलते अभिद्युम्न को ‘एकलव्य’ के नाम से पहचान मिली.

एकलव्य अपनी धनुर्विद्या से संतुष्ट न थे. ऊंची पढ़ाईलिखाई हासिल करने के लिए वे गुरु द्रोणाचार्य के पास गए, पर एकलव्य के निषाद होने के चलते गुरु द्रोणाचार्य ने उसे धनुर्विद्या देने से इनकार कर दिया.

इस के बाद एकलव्य ने जंगल में रह कर धनुर्विद्या हासिल करने के लिए द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उन्हीं का ध्यान कर धनुर्विद्या में महारत हासिल कर ली.

एक दिन आचार्य द्रोण अपने शिष्यों और एक कुत्ते के साथ आखेट के लिए उसी वन में पहुंच गए, जहां एकलव्य रहते थे. उन का कुत्ता राह भटक कर एकलव्य के आश्रम पहुंच गया और भूंकने लगा. एकलव्य उस समय धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहे थे.

कुत्ते के भूंकने की आवाज से एकलव्य की साधना में बाधा पड़ रही थी. उन्होंने ऐसे बाण चलाए कि कुत्ते को जरा सी खरोंच भी नहीं आई और उस का मुंह भी बंद हो गया.

कुत्ता असहाय हो कर गुरु द्रोण के पास जा पहुंचा. द्रोण और उन के शिष्य ऐसी श्रेष्ठ धनुर्विद्या देख कर हैरत में पड़ गए. वे सब एकलव्य के आश्रम पहुंचे और वहां एकलव्य की धनुर्विद्या को देख कर अचरज में पड़ गए.

द्रोणाचार्य ने जब एकलव्य से उस के गुरु के बारे में जानने की बात कही, तो एकलव्य ने उन्हें द्रोणाचार्य की ही प्रतिमा दिखा दी. इस के बाद द्रोणाचार्य ने कहा, ‘अगर तुम मु?ो अपना गुरु मानते हो तो मु?ो गुरु दक्षिणा दो.’

एकलव्य ने हां कर दी, तो गुरु दक्षिणा में द्रोणाचार्य ने उन के अंगूठे की मांग कर दी. इस के पीछे की वजह यह थी कि कहीं एकलव्य सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर न बन जाए.

एकलव्य ने बिना हिचकिचाहट अपना अंगूठा गुरु द्रोणाचार्य को अर्पित कर दिया.

यह पौराणिक कथा बताती है कि जाति और धर्म हमेशा से ही पढ़ाईलिखाई और रोजगार में ऊंची जातियों को अहमियत देते रहे हैं. इसी गैरबराबरी को दूर करने के लिए देश की आजादी के बाद एससी, एसटी और ओबीसी जातियों को सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन देने का कानून बनाया गया. पर उस कानून को दरकिनार करते हुए आजादी के बाद भी सरकारों ने रिजर्वेशन को सही तरह से लागू नहीं किया.

धीरेधीरे सरकारों ने सरकारी नौकरियों को बंद करने के तमाम उपाय किए. करार पर नौकरियों में रिजर्वेशन का कोई कानून नहीं है. इस के अलावा निजी क्षेत्रों की नौकरियों में रिजर्वेशन नहीं है, जिस की वजह से एससी, एसटी और ओबीसी जातियां नौकरियों के मामले में पिछड़ रही हैं. ऊंची पढ़ाईलिखाई महंगी होने के चलते भी ये गरीब जातियां उस से दूर होती जा रही हैं.

लिहाजा, गरीब लोग अपने बच्चों को ऊंची पढ़ाईलिखाई दिलाने की जगह यह कोशिश करते हैं कि वे जैसे भी हो, कोई छोटामोटा रोजगार कर के कमाई करने लगें. इस वजह से वे केवल मजदूर बने रहते हैं.

ऊंची पढ़ाईलिखाई से मोह भंग

बिहार में तकरीबन सवा करोड़ पढ़ेलिखे बेरोजगार हैं. इन में से 50 लाख ऐसे हैं, जो 10वीं जमात पास है. 12वीं जमात पास 35 लाख बेरोजगार हैं और ग्रेजुएट बेरोजगारों की तादाद तकरीबन 25 लाख है.

ये आंकड़े बेरोजगारी के हैं, पर इस से यह भी पता चलता है कि ऊंची पढ़ाईलिखाई में जाने वालों की तादाद लगातार कम होती जाती है. ऐसा क्यों है? इस सवाल का सीधा और आसान सा जवाब यह है कि ज्यादा पढ़ने के बाद भी रोजगार तो मिलता नहीं है.

रोजगार का मतलब सरकारी नौकरी है. बाकी नौकरी को रोजगार नहीं माना जाता है. कम काम, भविष्य की सुरक्षा और ऊपरी कमाई सरकारी नौकरी के प्रति मोह की सब से बड़ी वजह है.

नौकरी न मिलने के चलते मांबाप अपने बच्चों को ऊंची पढ़ाईलिखाई दिलाने से कतराते रहते हैं. वे लड़कों को एक बार कर्ज ले कर पढ़ा भी दें, पर लड़कियों को पढ़ाने के बजाय उन की शादी में पैसा खर्च करना बेहतर सम?ाते हैं.

इस की ठोस वजह है. देश में ग्रेजुएट होने यानी ऊंची पढ़ाईलिखाई हासिल करने के बाद भी नौजवान बड़ी तादाद में बेरोजगार हैं. सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी यानी सीएमआईई के आंकड़े इस के गवाह हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि देश के ज्यादातर प्रदेशों में हर दूसरा या तीसरा ग्रेजुएट बेरोजगार है.

बढ़ रही ग्रेजुएट बेरोजगारों की तादाद

प्रदेशवार कुछ आंकड़ों को देखते हैं. पिछले 4 सालों में यानी दिसंबर, 2017 से दिसंबर, 2021 के बीच यह तुलना की गई है. इस के मुताबिक, राजस्थान की हालत सब से ज्यादा खराब है. वहां कुल 65 लाख बेरोजगार हैं. इन में से ग्रेजुएट बेरोजगारों की तादाद 21 लाख के आसपास है. दूसरे नंबर पर हिमाचल प्रदेश है, जिस में 2 लाख, 55 हजार बेरोजगारों में से ग्रेजुएट की तादाद तकरीबन एक लाख, 39 हजार है.

इस के अलावा बिहार में 38 लाख, 84 हजार बेरोजगारों में से ग्रेजुएट बेरोजगारों की तादाद 10 लाख, 6 हजार है. ?ारखंड में कुल 18 लाख, 19 हजार बेरोजगारों में से 3 लाख, 82 हजार ग्रेजुएट हैं. हरियाणा में 24 लाख, 80 हजार बेरोजगारों में से 6 लाख, 2 हजार ग्रेजुएट बेरोजगार हैं.

पंजाब में 8 लाख, 2 हजार बेरोजगारों में से ग्रेजुएट बेरोजगारों की तादाद 2 लाख, 56 हजार है. उत्तर प्रदेश में 28 लाख, 41 हजार बेरोजगारों में से 13 लाख, 89 हजार ग्रेजुएट बेरोजगार हैं.

छत्तीसगढ के 2 लाख, 85 हजार बेरोजगारों में से एक लाख, 48 हजार ग्रेजुएट बेरोजगार हैं. दिल्ली में 7 लाख, 26 हजार बेरोजगारों में से 3 लाख,

56 हजार ग्रेजुएट बेरोजगार हैं. महाराष्ट्र में 19 लाख, 12 हजार बेरोजगारों में से 7 लाख, 85 हजार ग्रेजुएट बेरोजगार हैं.

मध्य प्रदेश में 6 लाख, 27 हजार बेरोजगारों में से ग्रेजुएट बेरोजगारों की तादाद 3 लाख, 23 हजार है. गुजरात में  4 लाख, 92 हजार बेरोजगारों में से एक लाख, 90 हजार ग्रेजुएट बेरोजगार हैं.

इस की वजह देखें, तो पता चलता है कि देश में नई नौकरियां नहीं पैदा हो रही हैं. इस की सब से ज्यादा कीमत पढ़ेलिखे नौजवानों को चुकानी पड़ रही है.

लड़कियों की हालत और भी खराब

अगर इन आंकड़ों में लड़कियों की हालत देखें, तो पता चलता है कि देश की हर 5वीं शहरी लड़की बेरोजगार है. गांवदेहात में हर दूसरी लड़की बेरोजगार है. लड़कियों की पढ़ाईलिखाई के मामले में समाज जागरूक नहीं है.

कई मामलों में देखें, तो लड़कियां खुद भी यह मान लेती हैं कि शादी कर के बच्चे पैदा करना और परिवार की देखभाल करना ही सब से जरूरी काम है. ऐेसे में जो मौके मिलते हैं, ज्यादातर लड़कियां उन का फायदा नहीं उठाती हैं.

धर्म, जाति और पौराणिक व्यवस्था ऐसी है, जो लड़कियों को बहुत ज्यादा आजादी देने या पढ़लिख कर समाज में लड़कों से बराबरी करने की सोच बनने नहीं देती है. लड़कियों को यही सिखाया जाता है कि परदा करना उन के लिए जरूरी है.

बहुत सारी लड़कियों को शहर में अकेले रह कर पढ़ाई करने के मौके नहीं दिए जाते हैं. मांबाप लड़कियों को पढ़ाने से अच्छा उन का घर बसाना सम?ाते हैं. जो लड़कियां पढ़लिख कर नौकरी कर लेती हैं, उन्हें समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है.

कई बार उम्र ज्यादा होने से लड़कियों की अच्छी जगह शादी भी नहीं होती है. यह मान लिया जाता है कि नौकरी करने वाली लड़कियां परिवार के दबाव में नहीं रहती हैं.

लड़कियों की उम्र बढ़ने से अच्छे रिश्ते नहीं मिलते हैं और दहेज भी ज्यादा देना पड़ता है. इस के चलते बहुत से मांबाप कम उम्र में ही अपनी लड़कियों की शादी करने को बेहतर सम?ाते हैं. सरकारी नौकरी करने वाली लड़कियों के हालात थोड़े बेहतर होते हैं. पर परेशानी की बात यह है कि देश में सरकारी नौकरियां कम होती जा रही हैं.

बेरोजगारी की अहम वजह

पढ़ाईलिखाई में जाति और धर्म का बड़ा योगदान होता है. पौराणिक समय में पढ़नेलिखने का हक केवल ऊंची जातियों को ही था. तब ब्राह्मण और साधुसंत पढ़ाने का काम करते थे.

ब्राह्मणों और क्षत्रियों को ही गुरुकुल में पढ़ाया जाता था. वहां कमजोर और निचली जातियों को पढ़ने का हक नहीं था. पौराणिक किताबों में इस के तमाम उदाहरण मिलते हैं. उन में ऐसी तमाम कहानियां दर्ज हैं.

आज के दौर में पढ़ाईलिखाई महंगी हो गई है. सरकारी स्कूलों में जहां पढ़ाईलिखाई सस्ती है, वहां उस का वह लैवल नहीं है कि आगे चल कर गरीब घरों के बच्चे सरकारी नौकरी लायक कंपीटिशन में हिस्सा ले कर उन को हासिल कर सकें.

रिजर्वेशन का फायदा भी वही एससी, एसटी और ओबीसी ले पा रहे हैं, जो पैसे से मजबूत हैं. यह एक तरह से समाज में अलग तरह की ऊंची जातियों का तबका तैयार हो गया है. इस फायदा लेने के लिए एससी, एसटी और ओबीसी का जाति प्रमाणपत्र लगाता है, पर खुद को ऊंचा ही सम?ाता है. यह तबका अपनी जाति के लोगों से उसी तरह से भेदभाव करता है, जिस तरह से ऊंची जातियां करती हैं.

इस तरह से देखें, तो ऊंची जातियों के पास ही पढ़नेलिखने की ताकत रह गई है. निचली और गरीब जातियों के लिए महंगी और ऊंची पढ़ाईलिखाई नहीं रह गई है. जहां सस्ती पढ़ाईलिखाई है, वहां उस की क्वालिटी खराब हो गई है.

‘मनुस्मृति’ में नहीं था यह हक

‘मनुस्मृति’ के पहले अध्याय में प्रकृति के निर्माण, 4 युगों, 4 वर्णों, उन के पेशों, ब्राह्मणों की महानता जैसे विषय शामिल हैं. दूसरा अध्याय ब्रह्मचर्य और अपने मालिक की सेवा पर आधारित है. तीसरे अध्याय में शादियों की किस्मों, विवाहों के रीतिरिवाजों और श्राद्ध यानी पूर्वजों को याद करने का वर्णन है. चौथे अध्याय में गृहस्थ धर्म के कर्तव्य, खाने या न खाने के नियमों और 21 तरह के नरकों का जिक्र है. 5वें अध्याय में महिलाओं के कर्तव्यों, शुद्धता और अशुद्धता आदि का जिक्र है. छठे अध्याय में एक संत और 7वें अध्याय में एक राजा के कर्तव्यों का जिक्र है. 8वां अध्याय अपराध, न्याय, वचन और राजनीतिक मामलों आदि पर बात करता है. 9वें अध्याय में पैतृक संपत्ति, 10वें अध्याय में वर्णों के मिश्रण, 11वें अध्याय में पापकर्म और 12वें अध्याय में 3 गुणों व वेदों की प्रशंसा है.

हिंदू धर्म ‘मनुस्मृति’ के हिसाब से चलता है. ‘मनुस्मृति’ ने पूरे समाज को 6,000 जातियों में विभाजित किया था. शूद्रों को पढ़नेलिखने का हक नहीं था. उस समय तालीम देने की विधि मौखिक हुआ करती थी. ऐसे में कुछ ब्राह्मणों को छोड़ कर कोई यह नहीं जानता था कि ‘मनुस्मृति’ में आखिर क्या है?

ब्रिटिश राज के दौरान यह किताब कानूनी मामलों में इस्तेमाल होने की वजह से खासा चर्चित हो गई थी. विलियम जोनास ने ‘मनुस्मृति’ का अंगरेजी में अनुवाद किया है. इस की वजह से लोगों को यह पता चल सका कि इस किताब में क्या लिखा गया है.

महात्मा ज्योतिबा फुले ‘मनुस्मृति’ को चुनौती देने वाले पहले आदमी थे. खेतिहर मजदूरों, सीमांत किसानों और समाज के दूसरे वंचित और शोषित तबकों की बदहाली देख कर उन्होंने ब्राह्मणों व व्यापारियों की आलोचना की और शूद्रों के पढ़ने पर जोर दिया.

‘मनुस्मृति’ का मतलब ‘मनु’ द्वारा लिखा गया ‘धर्मशास्त्र’ है. इस में कुल 12 अध्याय हैं, जिन में 2,684 श्लोक हैं. कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2,964 है.

तमाम दलित महापुरुषों ने समयसमय पर अपने विचारों में साफतौर पर यह माना कि ‘मनुस्मृति’ उन की राह को मुश्किल बनाती है. इस के चलते ही धार्मिक और जातीय आधार पर उन से भेदभाव किया गया था.

हिंदू राष्ट्र की सोच की मूल में ‘मनुस्मृति’ ही है, जो हमें वापस जाति और धर्म के खांचे में बांटने में दिलचस्पी रखती है. धार्मिक आधार पर यह दूसरों से भेदभाव की तरफ ले जाना चाहती है. दलितपिछड़ों को पढ़ाईलिखाई के हक से कैसे दूर रखा जा सके, इस के लिए आधुनिक उपाय किए जा रहे हैं. इस वजह से सरकारी तालीम को खत्म और बेमतलब का कर दिया गया है.

सरकारी स्कूल देख कर आप समझ सकते हैं कि वे पूरी तरह से खानापूरी भर हैं, जिस से गरीब पढ़लिख कर रोजगार न पा सके. महंगी होती तालीम में उसे अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ जाए.

तालीम को ले कर अगर सर्वे हो, तो यह बात सच निकलेगी कि पढ़ाई अधूरी छोड़ने वालों में सब से ज्यादा तादाद दलितों की है. ग्रेजुएशन करने के बाद भी नौकरियों के मौके सब से कम उन के ही पास हैं.

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