यौनजनित बीमारियां: बताने में शर्म कैसी

यौनजनित एलर्जी एवं रोगों का पता नहीं चल पाता, क्योंकि यह थोड़ा निजी सा मामला है. इस बारे में बात करने में लोग झिझकते हैं और अकसर चिकित्सक या परिजनों को भी नहीं बताते. जहां यौन संसर्ग से होने वाले रोग (एसटीडी) कुछ खास विषाणु एवं जीवाणु के कारण होते हैं, वहीं यौनक्रिया से होने वाली एलर्जी लेटेक्स कंडोम के कारण हो सकती है. अन्य कारण भी हो सकते हैं, परंतु लेटैक्स एक प्रमुख वजह है.

यौन संसर्ग से होने वाले रोग

एसटीडीज वे संक्रमण हैं जो किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संसर्ग करने पर फैलते हैं. ये रोग योनि अथवा अन्य प्रकार के सैक्स के जरिए फैलते हैं, जिन में मुख एवं गुदा मैथुन भी शामिल हैं. एसटीडी रोग एचआईवी वायरस, हेपेटाइटिस बी, हर्पीज कौंपलैक्स एवं ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) जैसे विषाणुओं या गोनोरिया, क्लेमिडिया एवं सिफलिस जैसे जीवाणु के कारण हो सकते हैं.

इस तरह के रोगों का खतरा उन लोगों को अधिक रहता है जो अनेक व्यक्तियों के साथ सैक्स करते हैं, या फिर जो सैक्स के समय बचाव के साधनों का प्रयोग नहीं करते हैं.

कैंकरौयड : यह रोग त्वचा के संपर्क से होता है और अकसर पुरुषों को प्रभावित करता है. इस के होने पर लिंग एवं अन्य यौनांगों पर दाने व दर्दकारी घाव हो जाते हैं. इन्हें एंटीबायोटिक्स से ठीक किया जा सकता है और अनदेखा करने पर इन के घातक परिणाम हो सकते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर इस रोग के होने की आशंका बहुत कम हो जाती है.

क्लैमाइडिया : यह अकसर और तेजी से फैलने वाला संक्रमण है. यह ज्यादातर महिलाओं को होता है और इलाज न होने पर इस के दुष्परिणाम भी हो सकते हैं. इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते, परंतु कुछ मामलों में योनि से असामान्य स्राव होने लगता है या मूत्र त्यागने में कष्ट होता है. यदि समय पर पता न चले तो यह रोग आगे चल कर गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब या पूरी प्रजनन प्रणाली को ही क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिस से बांझपन की समस्या हो सकती है.

क्रेब्स (प्यूबिक लाइस) : प्यूबिक लाइस सूक्ष्म परजीवी होते हैं जो जननांगों के बालों और त्वचा में पाए जाते हैं. ये खुजली, जलन, हलका ज्वर पैदा कर सकते हैं और कभीकभी इन के कोई लक्षण सामने नहीं भी आते. कई बार ये जूं जैसे या इन के सफेद अंडे जैसे नजर आ जाते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर भी इन जुंओं को रोका नहीं जा सकता, इसलिए बेहतर यही है कि एक सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ ही यौन संसर्ग किया जाए. दवाइयों से यह समस्या दूर हो जाती है.

गोनोरिया : यह एक तेजी से फैलने वाला एसटीडी रोग है और 24 वर्ष से कम आयु के युवाओं को अकसर अपनी चपेट में लेता है. पुरुषों में मूत्र त्यागते समय गोनोरिया के कारण जलन महसूस हो सकती है, लिंग से असामान्य द्रव्य का स्राव हो सकता है, या अंडकोशों में दर्द हो सकता है. जबकि महिलाओं में इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते. यदि इस की चिकित्सा समय से न की जाए, तो जननांगों या गले में संक्रमण हो सकता है. इस से फैलोपियन ट्यूब्स को क्षति भी पहुंच सकती है जो बांझपन का कारण बन सकती है.

हर्पीज : यह रोग यौन संसर्ग अथवा सामान्य संपर्क से भी हो सकता है. मुख हर्पीज में मुंह के अंदर या होंठों पर छाले या घाव हो सकता है. जननांगों के हेर्पेस में जलन, फुंसी हो सकती है या मूत्र त्याग के समय असुविधा हो सकती है. य-पि दवाओं से इस के लक्षण दबाए जा सकते हैं, लेकिन इस का कोई स्थायी इलाज मौजूद नहीं है.

एचआईवी या एड्स : ह्यूमन इम्यूनोडैफिशिएंसी वाइरस अथवा एचआईवी सब से खतरनाक किस्म का यौनजनित रोग है. एचआईवी से पूरा तंत्रिका तंत्र ही नष्ट हो जाता है और व्यक्ति की जान भी जा सकती है. एचआईवी रक्त, योनि व गुदा के द्रव्यों, वीर्य या स्तन से निकले दूध के माध्यम से फैल सकता है. सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ यौन संबंध रख कर और सुरक्षा उपायों का प्रयोग कर के एचआईवी को फैलने से रोका जा सकता है.

पैल्विक इन्फ्लेमेटरी डिसीज : पीआईडी एक गंभीर संक्रमण है और यह गोनोरिया एवं क्लेमिडिया का ठीक से इलाज न होने पर हो जाता है. यह स्त्रियों के प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है, जैसे फैलोपियन ट्यूब. गर्भाशय या डिंबग्रंथि में प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण स्पष्ट नहीं होते. परंतु इलाज न होने पर यह बांझपन या अन्य कई समस्याओं का कारण हो सकता है.

यौनजनित एलर्जी : इस तरह की एलर्जी की अकसर लोग चर्चा नहीं करते. सैक्स करते वक्त कई बार हलकीफुलकी एलर्जी का पता भी नहीं चलता. परंतु, एलर्जी से होने वाली तीव्र प्रतिक्रियाओं की अनदेखी नहीं हो सकती, जैसे अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण, और एनाफाइलैक्सिस. इन में से कई एलर्जिक प्रतिक्रियाएं तो लेटैक्स से बने कंडोम के कारण होती हैं. कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं, जैसे कि वीर्य से एलर्जी, गस्टेटरी राइनाइटिस आदि.

लेटैक्स एलर्जी : यह एलर्जी कंडोम के संपर्क में आने से होती है और स्त्रियों व पुरुषों दोनों को ही प्रभावित कर सकती हैं. लेटैक्स एलर्जी के लक्षणों में प्रमुख हैं- जलन, रैशेस, खुजली या अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण और एनाफाइलैक्सिस आदि. ये लक्षण कंडोम के संपर्क में आते ही पैदा हो सकते हैं.

यह एलर्जी त्वचा परीक्षण या रक्त परीक्षण के बाद पता चल पाती है. यदि परीक्षण में एलजीई एंटीबौडी मिलते हैं तो इस की पुष्टि हो जाती है, क्योंकि वे लेटैक्स से प्रतिक्रिया करते हैं. लेटैक्स कंडोम का प्रयोग बंद करने से इस एलर्जी को रोका जा सकता है.

वीर्य से एलर्जी : बेहद कम मामलों में ऐसा होता है, लेकिन कुछ बार वीर्य में मौजूद प्रोटीन से स्त्री में इस तरह की प्रतिक्रिया हो सकती है. कई बार भोजन या एनसैड्स व एंटीबायोटिक्स में मौजूद प्रोटीन पुरुष के वीर्य से होते हुए स्त्री में एलर्जी करने लगते हैं. इस का लक्षण है- योनि संभोग के 30 मिनट के भीतर योनि में जलन. अधिक प्रतिक्रियाओं में एरियूटिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा और एनाफाइलैक्सिस आदि शामिल हैं. प्रभावित महिला के साथी के वीर्य की जांच कर के इस एलर्र्जी की पुष्टि की जा सकती है.

दरअसल, नियमित यौन जीवन जीने वाले महिलाओं व पुरुषों को किसी विशेषज्ञ से प्राइवेट पार्ट्स की समयसमय पर जांच कराते रहना चाहिए. इस से यौनजनित विभिन्न रोगों का पता चलेगा और उन से आप कैसे बचें, इस का भी पता चल सकेगा. यदि ऐसी कोई समस्या मौजूद हुईर्, तो आप उचित इलाज करा सकते हैं. यह अच्छी बात नहीं है कि झिझक या शर्र्म के चलते ऐसी बीमारियों का इलाज रोक कर रखा जाए. यदि आप को या आप के साथी को ऐसी कोईर् बीमारी या एलर्जी हो, तो तत्काल विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए.

बेहतर सैक्स के लिए यौन रोगों से बचिए

16प्रतिभा की शादी को कई साल हो गए थे. समय पर 2 बच्चे भी हो गए पर कुछ समय के बाद प्रतिभा को लगा कि उस के अंग से कभी कभी तरल पदार्थ निकलता है. शुरुआत में प्रतिभा ने इसे मामूली समझ कर नजरअंदाज कर दिया. मगर कुछ दिनों बाद उसे महसूस हुआ कि इस तरल पदार्थ में बदबू भी है जिस से अंग में खुजली होती है. प्रतिभा ने यह बात स्त्रीरोग विशेषज्ञा को बताई. उस ने जांच कर के प्रतिभा से कहा कि उस को यौनरोग हो गया है, लेकिन इस में घबराने वाली कोई बात नहीं है. प्रतिभा ने तो समय पर डाक्टर को अपनी समस्या बता दी पर बहुत सारी औरतें प्रतिभा जैसी समझदार नहीं होतीं. वे इस तरह के रोगों को छिपाती हैं. पर यौनरोगों को कभी छिपाना नहीं चाहिए. दीपा जब अपने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती थी, तो उसे दर्द होता था. इस परेशानी के बारे में उस ने डाक्टर को बताया. डाक्टर ने दीपा के अंग की जांच कर के बताया कि उसे यौनरोग हो गया है. डाक्टर ने उस का इलाज किया. इस के बाद दीपा की बीमारी दूर हो गई.

प्रदीप को पेशाब के रास्ते में जलन होती थी. वह नीमहकीमों के चक्कर में पड़ गया पर उसे कोई लाभ नहीं हुआ. तब उस ने अच्छे डाक्टर से इस संबंध में बात की तो डाक्टर ने कुछ दवाएं लिखीं, जिन से प्रदीप को लाभ हुआ. डाक्टर ने प्रदीप को बताया कि उस को यौनरोग हो गया था. इस का इलाज नीमहकीमों से कराने के बजाय जानकार डाक्टरों से ही कराना चाहिए.

क्या होते हैं यौनरोग

मक्कड़ मैडिकल सैंटर, लखनऊ के डाक्टर गिरीश चंद्र मक्कड़ का कहना है कि यौनरोग शरीर के अंदरूनी अंग में होने वाली बीमारियों को कहा जाता है. ये पतिपत्नी के शारीरिक संपर्क करने से भी हो सकते हैं और बहुतों के साथ संबंध रखने से भी हो सकते हैं. अगर मां को कोई यौनरोग है, तो बच्चे का जन्म औपरेशन के जरिए कराना चाहिए. इस से बच्चा योनि के संपर्क में नहीं आता और यौनरोग से बच जाता है.

कभीकभी यौनरोग इतना मामूली होता है कि उस के लक्षण नजर ही नहीं आते. इस के बाद भी इस के परिणाम घातक हो सकते हैं. इसलिए यौनरोग के मामूली लक्षण को भी नजरअंदाज न करें. मामूली यौनरोग कभीकभी खुद ठीक हो जाते हैं. पर इन के बैक्टीरिया शरीर में पड़े रहते हैं और कुछ समय बाद वे शरीर में तेजी से हमला करते हैं. यौनरोग शरीर के खुले और छिले स्थान वाली त्वचा से ही फैलते हैं.

हारपीज : यह बहुत ही सामान्य किस्म का यौनरोग है. इस में पेशाब करने में जलन होती है. पेशाब के साथ कई बार मवाद भी आता है. बारबार पेशाब जाने का मन करता है. किसीकिसी को बुखार भी हो जाता है. शौच जाने में भी परेशानी होेने लगती है. जिस को हारपीज होता है उस के जननांग में छोटेछोटे दाने हो जाते हैं. शुरुआत में यह अपनेआप ठीक हो जाता है, मगर यह दोबारा हो तो इलाज जरूर कराएं.

वाट्स : वाट्स में शरीर के तमाम हिस्सों में छोटीछोटी गांठें पड़ जाती हैं. वाट्स एचपीवी वायरस के चलते फैलता है. ये 70 प्रकार के होते हैं. ये गांठें अगर शरीर के बाहर हों और 10 मिलीमीटर के अंदर हों तो इन को जलाया जा सकता है. इस से बड़ी होने पर औपरेशन के जरिए हटाया जा सकता है. योनि में फैलने वाले वायरस को जेनेटल वाट्स कहते हैं. ये योनि में बच्चेदानी के द्वार पर हो जाते हैं. समय पर इलाज न हो तो इन का घाव कैंसर का रूप ले लेता है. इसलिए 35 साल की उम्र के बाद एचपीवी वायरस का कल्चर जरूर करा लें.

गनोरिया : इस रोग में पेशाब नली में घाव हो जाता है जिस से पेशाब नली में जलन होने लगती है. कई बार खून और मवाद भी आने लगता है. इस का इलाज ऐंटीबायोटिक दवाओं के जरिए किया जाता है. अगर यह रोग बारबार होता है, तो इस का घाव पेशाब नली को बंद कर देता है. इसे बाद में औपरेशन के जरिए ठीक किया जाता है. गनोरिया को सुजाक भी कहा जाता है. इस के होने पर तेज बुखार भी आता है. इस के बैक्टीरिया की जांच के लिए मवाद की फिल्म बनाई जाती है. शुरू में ही यह बीमारी पकड़ में आ जाए तो अच्छा रहता है.

सिफलिस : यह यौनरोग भी बैक्टीरिया के कारण फैलता है. यह यौन संबंधों के कारण ही फैलता है. इस रोग के चलते पुरुषों के अंग के ऊपर गांठ सी बन जाती है. कुछ समय के बाद यह ठीक भी हो जाती है. इस गांठ को शैंकर भी कहा जाता है. शैंकर से पानी ले कर माइक्रोस्कोप के सहारे देखा जाता है. पहली स्टेज पर माइक्रोस्कोप के सहारे ही बैक्टीरिया को देखा जा सकता है. इस बीमारी की दूसरी स्टेज पर शरीर में लाल दाने से पड़ जाते हैं. यह बीमारी कुछ समय के बाद शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करने लगती है. इस बीमारी का इलाज तीसरी स्टेज के बाद संभव नहीं होता. यह शरीर की धमनियों को प्रभावित करती है. इस से धमनियां फट भी जाती हैं. यह रोग आदमी और औरत दोनों को हो सकता है. दवा और इंजैक्शन से इस का इलाज होता है.

क्लामेडिया : यह रोग योनि के द्वारा बच्चेदानी तक फैल जाता है. यह बांझपन का सब से बड़ा कारण होता है. बीमारी की शुरुआत में ही इलाज हो जाए तो अच्छा रहता है. क्लामेडिया के चलते औरतों को पेशाब में जलन, पेट दर्द, माहवारी के समय में दर्द, शौच के समय दर्द, बुखार आदि की शिकायत होने लगती है.

यौनरोगों से बचाव

  • अंग पर किसी भी तरह के छाले, खुजलाहट, दाने, कटनेछिलने और त्वचा के रंग में बदलाव की अनदेखी न करें.
  • जब भी शारीरिक संबंध बनाएं कंडोम का प्रयोग जरूर करें. यह यौनरोगों से बचाव का आसान तरीका है.
  • कंडोम का प्रयोग ठीक तरह से न करने पर भी यौनरोगों का खतरा बना रहता है.
  • ओरल सैक्स करने वालों को अपनेअपने अंग की साफसफाई का पूरा खयाल रखना चाहिए.
  • यौनरोग का इलाज शुरुआत में सस्ता और आसान होता है. शुरुआत में इस से शरीर को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता है.
  • गर्भवती औरतों को अपनी जांच समयसमय पर करानी चाहिए ताकि उस से बच्चे को यौनरोग न लग सके.
  • नीमहकीमों के चक्कर में पड़ने के बजाय डाक्टर की सलाह से ही दवा लें.
  • अंग की साफसफाई से यौनरोगों से दूर रहा जा सकता है.
  • औरतों को यौनरोग ज्यादा होते हैं. अत: उन्हें पुरुषों से ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.
  • यौनरोगी के संपर्क में जाने से बचें. बाथरूम की ठीक से साफसफाई न करने से भी एक व्यक्ति का यौनरोग दूसरों को लग सकता है.

सुरक्षित सेक्स के इन खतरों के बारे में भी जानिए

हम सभी की तरह मार्केटिंग प्रोफैशनल प्रिया चौहान को भी पूरा भरोसा था कि कंडोम का इस्तेमाल उन्हें हर तरह की सैक्स से फैलनेवाली बीमारियों (एसटीडीज) से महफूज रखेगा. आखिरकार इस बात को लगभग सभी स्वीकार करने लगे हैं. वे तब अचरज से भर गईं, जब उन्हें वैजाइनल हिस्से में लाली और जलन की वजह से डाक्टर के पास जाना पड़ा.

‘‘डाक्टर ने मुझे बताया कि मुझे सिफलिस का संक्रमण हुआ है, जो एक तरह की एसटीडी है.’’

गायत्री आगे बताती हैं, ‘‘मुझे लगता था कि कंडोम मुझे इस तरह की बीमारियों से सुरक्षित रखता है और जलन की वजह के बारे में मैं सोचती थी कि शायद मैं सही मात्रा में पानी नहीं पी रही हूं.’’

ये चुंबन से भी हो सकता है

गायत्री और उन के बौयफ्रैंड को कुछ ब्लड टैस्ट कराने कहा गया और ऐंटीबायोटिक्स दिए गए, ताकि सिफलिस के वायरस को फैलने से रोका जा सके. ये वह सब से आम एसटीडी है, जिसे रोकने में कंडोम कारगर नहीं है.

सैक्सोलौजिस्ट डा. राजीव आनंद, जो कई जोड़ों को कंडोम और एसटीडीज से जुड़े इस मिथक की सच्चाई बता चुके हैं, कहते हैं, “ज्यादातर लोग कंडोम को एसटीडीज से बचने का सबसे सुरक्षित तरीका मानते हैं, लेकिन कुछ इंफैक्शंस ऐसे हैं, जो ओरल सैक्स या चुंबन के जरिए भी फैल सकते हैं.

‘‘ये भ्रांति शायद इसलिए है कि एड्स से जुड़ी जानकारी के केंद्र में कंडोम ही है. हालांकि यह एड्स की रोकथाम में कारगर है, लेकिन यह कुछ एसटीडीज की रोकथाम में कारगर नहीं है,’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘कंडोम प्रेगनेंसी और कुछ एसटीडीज से बचाव करता है, लेकिन हरपीज वायरस के इंफैक्शन से बचाने में यह कारगर नहीं है. यह एचपीवी (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) और कुछ फंगल इंफैक्शंस, जो त्वचा के उन हिस्सों के संपर्क के कारण फैलते हैं, जो कंडोम से नहीं ढके हैं, से भी बचाव नहीं कर पाता.’’

कंडोम के इस्तेमाल से शारीरिक स्राव का विनिमय तो रुक जाता है, लेकिन हरपीज, एचपीवी और गोनोरिया आदि होने की संभावना बनी रहती है.

इस खतरे को कम करें

अपने साथी को अच्छी तरह जानना तो जरूरी है ही, पर ऐसे लोगों की संख्या को सीमित रखें, जिन से आप सैक्शुअल संबंध रखती हैं, ताकि आप एसटीडीज के खतरे से बच सकें. यदि आप किसी नए साथी के साथ संबंध बना रही हैं तो उस का चैकअप जरूर कराएं.

“यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने साथी से चैकअप कराने को कहें और उस की रिपोर्ट्स देखें. मुझे पता है कि यह थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन हमें समय के साथ चलना होगा,’’ यह कहती हैं रश्मि बंसल, जो 2 साल तक लिवइन रिश्तों में थीं.

‘‘यदि वह आप को सच में पसंद करता है तो ऐसा करने में उसे कोई समस्या नहीं होगी.’’

इसके अलावा हेपेटाइटिस बी और एचपीवी के लिए वैक्सीन लेना भी अच्छा रहता है.

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