सिबली अपने कमरे में एक छोटी सी खिड़की से बाहर देख रही थी. ऐसी छोटी खिड़की जो पूरी तरह शीशे से बंद थी और उस से बाहर की ओर तो देखा जा सकता था, पर बाहर से अंदर की ओर नहीं देखा जा सकता था. वैसे भी बाहर देखने जैसा कुछ भी नहीं था. एक सन्नाटा सा छाया हुआ था. अंधेरे और सन्नाटे को पुलिस की गाड़ी का सायरन तेजी से चीर देता, क्योंकि आज शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था. सिबली के मन में थोड़ी खुशी भी थी. न जाने कितने दिनों के बाद उस के थके हुए शरीर को आराम मिलेगा, नहीं तो रोजाना 30-35 ग्राहक तो निबटाने ही पड़ते हैं.
मुमताज सिबली के लिए चाय बना कर लाई. सिबली ने मुसकरा कर शुक्रिया कहा और वे दोनों वहीं बैठ कर चाय पीने लगीं. ‘‘ऐ… सिबली… आजकल ये फिल्म वाले हम वेश्याओं की जिंदगी पर बहुत फिल्में बनाने लगे हैं,’’ खुश होते हुए मुमताज ने कहा. ‘‘बहुत कम फिल्मों में ही हमारी सचाई को दिखाया जाता है… बाकी फिल्मों में जैसा वे लोग हमारे बारे में दिखाते हैं न, असल जिंदगी में वैसा नहीं होता…’’ सिबली ने कहा. ‘‘अरे, वह सब छोड़… भला हमारी असली जिंदगी में फिल्में देखने के लिए समय कहां… यह मुआ कर्फ्यू हटे तो अपना कामधंधा जोर पकड़े तो मजा आए,’’ मुमताज ने कहा. ‘‘पर… मैं तो सोच रही थी कि कुछ और दिन यह कर्फ्यू लगा रहे तो इन दुखती रगों को थोड़ा आराम मिल जाता,’’ सिबली ने मुमताज से कहा. ‘‘पगला गई हो क्या… अगर कर्फ्यू लगा रहेगा तो हमारे पास ग्राहक नहीं आएंगे और अगर ग्राहक नहीं आएंगे, तो क्या खाएंगे हम? और तू क्या सोच रही है कि अन्ना हम लोगों को मुफ्त में बिठा कर खाना खिलाएगा,’’ मुमताज ने कहा. अन्ना का नाम सुनते ही सिबली का मुंह मानो कसैला सा हो गया. उस की आंखों में नफरत के भाव आ गए. सिबली अन्ना से बहुत नफरत करती थी. यही तो वह आदमी था, जो सिबली के इस हाल के लिए जिम्मेदार था. वैसे पूरी तरह से तो अन्ना भी जिम्मेदार नहीं था, सिबली की जिंदगी में कई ऐसे वाकिए थे, जो उस को यहां तक लाने की वजह बने. एक छोटे से कसबे में सिबली का घर था. घर में उस के मांबाप के अलावा उस के साथ 2 बहनें और रहती थीं. 3 बहनों में 16 साल की सिबली सब से बड़ी थी. सिबली का बाप एक हलवाई की दुकान पर मजदूरी करता था और मजदूरी से मिले हुए ज्यादातर पैसे वह शराब पीने में उड़ा देता था. इसलिए घर का खर्चा बामुश्किल ही चल पाता था.
कभीकभी तो सब को खाना खिलाने के बाद अम्मां और सिबली के लिए तो खाने के लिए कुछ भी नहीं बचता था. सिर्फ पानी पी कर ही सोना पड़ जाता था दोनों को. कसबे में कमला नाम की एक औरत रहती थी. वह हर समय पान का बीड़ा मुंह में दबाए रहती थी. कमला का शरीर लंबा तो था ही, साथ ही थोड़ा थुलथुला सा भी हो गया, जिस के चलते एक औरत होने के नाते उस का डीलडौल बहुत बड़ा लगने लगा था. कमला अकसर कसबे के मर्द लोगों से ही बात करती थी. कसबे में आनेजाने वाले सभी छोटेबड़े नेता भी कमला से ही मिलते थे और उस के घर पर ही चायपानी भी करते थे. शायद वह कोई चुनाव भी लड़ना चाहती थी. पिछले कई दिनों से कमला जब भी सिबली को देखती, तो उसे ऐसे घूरती जैसे उस के उभरते अंगों को टटोल रही हो. कमला वही रुक कर सिबली से कुछ बात भी करने की कोशिश करती, पर पता नहीं क्यों कमला को देख कर सिबली की त्योरियां चढ़ जातीं और वह कमला के पास न आती. उस दिन तो कमला सिबली के घर ही आ गई और बापू से पता नहीं क्या गुपचुप बात करने लगी. उस की बातों से सिबली का बापू पहले तो कुछ नाराज होता सा दिखा, पर फिर थोड़ा धीमा हो कर बात करने लगा. उस दिन के बाद से तो कमला हर दूसरे दिन सिबली के घर आती और उस के बापू के आने तक रुकती. इस बीच वह सिबली से अनेक तरह के सवाल किया करती. ज्यादातर तो उस के जवाब सिबली को पता ही नहीं होते थे. सिबली की मां भी कमला की लल्लोचप्पो में लगी रहती.
कमला ने यही कोई 20 दिन सिबली के घर के चक्कर लगाए. एक दिन सिबली के बापू उस से कहने लगे, ‘‘कमलाजी की लड़की शहर में नौकरी भी करती है और पढ़ाई भी… इसलिए हम लोग और कमलाजी भी चाहते हैं कि तू शहर जा कर नौकरी कर ले, तो हम लोगों के घर का खर्चा भी ठीक से चल जाएगा. और रही नौकरी और ठहरने की बात, तो वे सब इंतजाम कमलाजी खुद ही करा देंगी.’’ सिबली ने कभी सोचा भी नहीं था कि उस के अम्मां और बापू उस को किसी के हाथों बेच भी सकते हैं, पर यहां तो उस के मांबाप ने गरीबी के चलते और पैसों के लालच में अपनी ही बेटी को कमला के हाथों बेच दिया था. उसी दिन शाम की बस में कमला के साथ में सिबली को एक बैग में कपड़े दे कर बिठा दिया गया. कमला ने खिड़की से पीछे देखा तो उस के बापू के चेहरे पर खुशी और दुख दोनों ही भाव थे. कमला उसे ले कर ‘सीप के मोती’ नामक एक जगह पर पहुंची और अंदर आ कर कमला ने उसे एक कमरे में बिठा दिया और खुद बाहर से कुंडी चढ़ा कर चली गई.
थोड़ी देर बाद ही वहां पर एक लंबाचौड़ा और काला सा आदमी आया. यही अन्ना था. उस के साथ 2-3 गुरगे भी थे, जो उसे बातबात में बहुत इज्जत के साथ अन्नाजीअन्नाजी कह रहे थे. अन्ना सिबली को खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था. वह उस के पास आया और सिबली के सीने को मसलने लगा. सिसक पड़ी थी सिबली. अन्ना की हरकतें बढ़ती गईं. वह सिबली के बदन से कपड़े उतारने लगा. सिबली रो पड़ी और अपने सीने को ढकने की कोशिश की, पर अन्ना ने बेदर्दी से उस के हाथों को मरोड़ते हुए उस के सीने को खोल दिया.