किसी भी मुकाम तक पहुंचने के लिए कोई भी काम असान नहीं है उसके लिए कड़ी मेहनत और स्मार्ट आइडियाज की जरूरत होती है. भारत में कुछ ऐसे जानेमाने करोड़पति हैं जो अपनी कड़ी मेहनत के दम पर आज दुनिया के अमीर लोगों में शामिल हैं, लेकिन इन लोगों का ये सफर इतना असान नहीं रहा. उन्होंने कैसे गरीबी को दूर कर अमीर होने का सफर तय किया है आज यहां जानेंगे.
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सौरभ जोशी
भारत के मशहूर ब्लौगर बन चुके सौरभ जोशी अपनी वीडियोज को लेकर काफी चर्चा में रहते हैं. सौरभ लाइफस्टाइल पर वीडियोज बनाते हैं. सौरभ जोशी और पीयूष जोशी दोनों ही नाम ब्लौगर्स की दुनिया का बड़ा नाम है. इनकी हर महीने की कमाई 20 से 22 लाख रुपये हैं. 84.5 मिलियन सब्सक्राइबर्स हैं और उनके सभी वीडियोज पर 38 से 40 लाख तक व्यूज आते हैं. बता दें सौरभ के पिता मजदूर है और ये उत्तराखंड के रहने वाले है. पीयूष इनका चचेरा भाई है.
तुषार जैन
अपने पिता के स्टॉक ब्रोकिंग घोटाले में सबकुछ गंवा देने के बाद मुंबई की सड़कों पर बैग बेचने को मजबूर तुषार जैन की कहानी भी गरीब से अमीर बनने की हैं. तुषार और उनके पिता ने अपनी बैग बनाने वाली छोटी कंपनी को स्कूल बैग, कौलेज बैग, डफ़ल बैग, बिज़नेस और लैपटौप केस और बहुत कुछ बेचने वाली एक बड़ी कंपनी में बदल दिया. तुषार की देखरेख में साल 2012 मेंइसबिजनेस का नाम हाई स्पिरिट कमर्शियल वेंचर्स रखा गया. बूटस्ट्रैप्ड कंपनी तेज़ी बढ़ी. अब यह बैकपैक और लगेज बनाने वाली भारत की चौथी सबसे बड़ी कंपनी है.
धीरूभाई अंबानी
गुजरात के चोरवाड़ कस्बे में जन्मे, एक स्कूल शिक्षक के बेटे, धीरूभाई ने भजिया (पकौड़े) बेचकर अपनी सफलता की यात्रा शुरू की. वे 16 साल की उम्र में ही कौलेज से स्नातक हो गए थे. जिसके बाद वे अदन, यमन चले गए.जहाँ उन्होंने एक पेट्रोल स्टेशन क्लर्क और एक तेल कंपनी के क्लर्क के रूप में काम किया. वे 1958 में 50,000 रुपये लेकर भारत लौटे और एक कपड़ा व्यापार कंपनी की स्थापना की. जो साल 1992 में, रिलायंस इंडस्ट्रीज ग्लोबल मार्केट में पूंजी जुटाने वाली पहली भारतीय कंपनी बनज गई. आज धीरूभाई अंबानी नहीं हैं लेकिन उनकी कंपनी इस बात का जीताजागता सबूत है कि एक साधारण आदमी भी मेहनत कर ऊंचाई तक पहुंच सकता है.
गुलशन कुमार
गुलशन कुमार जिनके नाम से टी-सीरीज कंपनी चल रही है. वे गुलशन कुमार के पिता चंद्रभान दुआ एक समय में दिल्ली के दरियागंज में जूस बेचा करते थे. गुलशन कुमार जूस की दुकान पर अपने पिता का हाथ बंटाते थे और वहीं से उनमें बिजनेस करने की रुचि पैदा हुई.जब वह 23 साल केहो गए थे, तब उन्होंने परिवार की मदद से एक दुकान संभाली और रिकोर्ड और औडियो कैसेट बेचना शुरू किया. उसके बाद, उन्होंने नोएडा में अपनी कंपनी खोली और इसके तुरंत बाद वह म्यूजिक इंडस्ट्री में एक बड़ा नाम बन गए. धीरे-धीरे वह म्यूजिक इंडस्ट्री के सफल बिजनेसमैन में शामिल हो गए और ऑडियो कैसेट्स में उनकी सफलता के बाद, गुलशन कुमार ने फिल्म उद्योग की ओर एक कदम बढ़ाया, जहां से उनका करियर शुरू हुआ.
करसनभाई पटेल
करसन भाई का बचपन गरीबी में बीता और उनके पास कोई खास डिग्री भी नहीं थी.इन्होंने 1969 में वाशिंग पाउडर ‘निरमा’ शुरू किया. निरमा को इन्होंने लोगों से इस कदर जोड़ा कि लोग आज भी जनरल स्टोर में वॉशिंग पाउडर खरीदने जाते हैं, तो निरमा मांगने लगते हैं. अहमदाबाद के रहने वाले करसन भाई ने अपने घर के अहाते में ही निरमा पाउडर बनाने की शुरुआत की. यह काम तब कोई कंपनी नहीं बल्कि एक आदमी कर रहा था. जिसे उन्होंने हिम्मत जुटा कर अपना माल लेकर घर घर पहुंचाने का काम किया.
आज करसन भाई की कंपनी में करीब14 हजार कर्मचारी हैं. 2004 के आंकड़ों के अनुसार, निरमा कंपनी का टर्नओवर 50 करोड़ डौलर से भी ज्यादा है जो अब 100 करोड़ डौलर हो गया होगा. फोर्ब्स के अनुसार, एक साल में आठ लाख टन निरमा डिटर्जेंट बिकता है.
कल्पना सरोज
दो रुपये की मजदूरी से शुरुआत कर करोड़ों के साम्राज्य की मालकिन बनने का सफर कल्पना सरोज के लिए आसान नहीं था. पारिवारिक, सामाजिक संकट झेलकर भी कल्पना सरोज ने एक सफल बिजनेसवुमन बनकर सभी को प्रेरणा दी है. कपल्पना की शादी 9 साल बड़े युवक से कर दी गई. ससुराल में उन्होंने घरेलू हिंसा झेली. जुर्म सहने के बाद पिता उन्हे वापस घर ले आए. इसके बाद कल्पना मुंबई आ गई और एक गारमेंट कंपनी में महीने के 60 रुपए, यानी दिन के दो रुपये मजदूरी में काम शुरू किया. इसके बाद वह खुद सिलाई करने लगी. उस समय उन्हें एक ब्लाउज सीने के 10 रुपये मिलते थे. दिन में 16 घंटे काम करती और चार ब्लाउज सिलकर 40 रुपये कमाती थी.उन्होंने अपना एक बुटीक शौप खोला. जबकल्पना 22 साल की हुईं तो उन्होंने फर्नीचर का बिजनेस शुरू किया.कल्पना सरोज एक या दो नहीं, बल्कि आज आठ कंपनियों की मालकिन हैं.