मैंने भोजपुरी सिनेमा की 3 पीढ़ियों के साथ काम किया है – संजय पांडेय

बृहस्पति कुमार पांडेय

भोजपुरी सिनेमा में अगर सब से फेमस चेहरों की बात की जाए, तो उन में से एक नाम सब से ऊपर उभर कर आता है और वह नाम है संजय पांडेय का. भोजपुरी सिनेमा में पिछले 20 साल से काम कर रहे कलाकार संजय पांडेय ने तकरीबन 300 फिल्मों में अपनी ऐक्टिंग का लोहा मनवाया है.

भोजपुरी सिनेमा में एक विलेन के रूप में उन की तुलना अमरीश पुरी और प्राण तक से की जाती है. भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के वे ऐसे कलाकार हैं, जो हर तरह के रोल में आसानी से खुद को ढाल लेने में माहिर हैं.

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के कम्हरिया गांव के रहने वाले संजय पांडेय ने अपने फिल्म कैरियर की शुरुआत साल 2001 में फिल्म ‘कहिया डोली लेके अईबा’ से की थी. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश :

आप को फिल्मों में जगह बनाने के लिए किस तरह की जद्दोजेहद का सामना करना पड़ा था?

मैं ने अपने ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत बतौर रंगकर्मी से की थी. जब मुझे लगा कि मैं ने अदाकारी सीख ली है, तो मैं 90 के दशक में मुंबई आया था, वह भी सिर्फ इसलिए कि यह जान पाऊं कि फिल्मों में कदम जमाने के लिए क्याक्या करना पड़ता है. यहां आ कर मैं ने 3 चीजें सीखीं. वे ये थीं कि फिल्मों में काम उसी को मिल सकता है, जिस के पास पैसे हों या कोई आप का गौडफादर, हो या फिर आप में इतना टैलेंट हो, जिस के आधार पर लोग आप को बुला कर काम दें.

आप थिएटर के मंजे हुए कलाकार रहे हैं. फिल्मों में पैर जमाने में थिएटर से आप को  कितनी मदद मिल पाई?

यह थिएटर का ही कमाल था कि अपने शुरुआती दौर में ही मुझे एक टीवी चैनल के सीरियल ‘पंचायत’ में काम करने का मौका मिला. मेरी अदाकारी को देख कर मुझे एक बड़ी फिल्म ‘कहिया डोली लेके अईबा’ का औफर आया था, जिस ने मुझे बुलंदियों पर पहुंचाने में बड़ी मदद की.

ऐक्टिंग सीखने के लिए आप ने किसी तरह की ट्रेनिंग ली है या नैचुरल रूप से ऐक्टिंग सीखते गए?

मैं ने शुरूआती दौर में एक थिएटर ग्रुप में 2 साल तक ऐक्टिंग की ट्रेनिंग ली है. वहां मैं ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के बंशी कौल से ऐक्टिंग की सभी बारीकियां सीखीं, जिस ने मेरे अंदर के नैचुरल ऐक्टर को निखारने का काम किया.

आप ने भोजपुरी फिल्मों में सब से ज्यादा नैगेटिव किरदार निभाए हैं. ऐसे किरदारों का आप की निजी और पारिवारिक जिंदगी पर कैसा असर पड़ा है?

नैगेटिव किरदार निभाने से निजी जिंदगी पर कोई असर तो नहीं पड़ता है, लेकिन पब्लिक इमेज पर बड़ा असर पड़ता है. लोग परदे की दुनिया के बाहर भी आप को उसी विलेन के रूप में देखने लगते हैं.

जहां तक परिवार का सवाल है, तो मेरी बेटी मुझे फिल्मों में पिटते हुए नहीं देख पाती है. मेरी पत्नी मेरे पिटने वाले सीन पर टीवी बंद कर देती थी.

आप की तुलना हिंदी सिनेमा के विलेन अमरीश पुरी और प्राण तक से की जाती है. इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?

अगर मेरी ऐक्टिंग की तुलना बौलीवुड के महान ऐक्टर प्राण और अमरीश पुरी से की जाती है, तो यकीनन ही यह मेरे लिए फख्र की बात है. मैं इन दोनों कलाकारों की अदाकारी को बहुत मानता हूं.

आप भोजपुरी फिल्मों के एकमात्र चेहरे हैं, जो नैगेटिव रोल के साथ ही कौमिक और सीरियस रोल में बखूबी फिट बैठते हैं. इस की क्या वजह है?

नैगेटिव किरदार के साथ कौमिक और सीरियस रोल करना बहुत ही मुश्किल होता है. जहां तक इस तरह के रोल के लिए मेरी तैयारियों का सवाल है, तो मैं एक रंगकर्मी रहा हूं, इसलिए ऐसे किसी भी रोल के लिए मैं खुद को हर समय तैयार रखता हूं.

आप ने लौकडाउन के दौर को कैसे जिया?

लौकडाउन का दौर सब के लिए दुखदायी रहा है. लेकिन मैं ने इस दौर को बहुत ही पौजिटिव तरीके से जिया. इस दौरान मैं घर के कामों में अपनी पत्नी की मदद करता था, म्यूजिक सुनता था, किताबें पढ़ना मेरे रूटीन का हिस्सा थीं. मैं ऐक्सरसाइज भी करता था.

फिल्मों में नैगेटिव रोल में अकसर विलेन को पिटना पड़ता है. इस के लिए खुद को फिट रखना आप कितना अहम मानते हैं?

मैं खुद के खानपान और कसरत पर खासा ध्यान देता हूं. इसी की बदौलत मैं ने भोजपुरी सिनेमा की 3 पीढि़यों के साथ काम किया है और आने वाली चौथी पीढ़ी के साथ भी आगे कर रहा हूं.

फाइट सीन करने के लिए किस तरह की तैयारियां करनी पड़ती हैं?

फिल्मों में फाइट सीन को ले कर खासा सजग रहना पड़ता है,क्यों कि जब तक क्लाईमैक्स चलता है, तो हमारी हालत एकदम अस्तव्यस्त होती है, क्योंकि भोजपुरी का इतना बजट नहीं होता है कि नकली धूल लगाएं या कीचड़ की जगह चौकलेट लगाएं. हमें फाइट के दौरान असल में कीचड़ में कूदना पड़ता है. खुद ही यह ध्यान रखना पड़ता है कि कहीं कंकड़पत्थर न लग जाए.

इस के अलावा कई बार धमाके के सीन में आप को चोट भी लगने का डर बना रहता है, क्योंकि इस में पटाखों का इस्तेमाल होता है, जो आप को घायल भी कर सकता है. ऐसा मेरे साथ एक बार हो भी चुका है. और मेरी आंख में चोट लग गई थी, जिस का निशान आज भी बना हुआ है.

भोजपुरी सिने इंडस्ट्री से सीखी गई अब तक की सब से खास बात क्या है?

भोजपुरी सिनेमा से मैं ने सब से बड़ी बात जो सीखी है, वह है लोगों की मदद करना. इस इंडस्ट्री में मदद करने का जज्बा कूटकूट कर भरा है.

ऐक्टिंग के लिए जद्दोजेहद करने वाले नौजवानों के लिए आप क्या कहना चाहेंगे?

उन के लिए बस इतना ही कहना चाहूंगा कि ऐक्टिंग के लिए खुद को तैयार करें, तभी इस क्षेत्र में आएं. आप के पास जो साधन उपलब्ध हैं, उन के जरीए साधना कीजिए और फिर इस क्षेत्र में कदम रखिए.

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