बलात्कारी बहादुर नहीं बल्कि डरपोक है

हाल ही में दिल्ली पुलिस की वार्षिक रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा हुआ है, जिस के अनुसार हर घंटे एक महिला अपराध का शिकार हो रही है. चाहे वह दुष्कर्म की घटना हो या फिर छेड़छाड़ का मामला. साथ ही यह भी खुलासा किया गया है कि महिलाओं से दुष्कर्म की करीब 97त्न घटनाओं में उन के जानकारों का ही हाथ होता है. वहीं ऐसी वारदातों में 3त्न अपरिचित आरोपी निकले. हकीकत यह है कि दुष्कर्म या बलात्कार के ज्यादातर मामले लोकलाज के भय से या तो दबा दिए जाते हैं या उन की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती, लेकिन दुष्कर्म के बाद जो मानसिक पीड़ा या त्रासदी महिला को झेलनी पड़ती है वह अकल्पनीय है.

सब से बड़ा सवाल यह है कि एक बलात्कारी किन मानसिक परिस्थितियों में इस तरह के कुकृत्य को अंजाम देता है? क्या वह उस के बाद होने वाले परिणामों को भूल जाता है या फिर उन के बारे में सोचता ही नहीं.

दुष्कर्म या बलात्कार सब से घृणास्पद कुकृत्यों में शामिल है. ऐसे कुकृत्यों को अंजाम देने के बाद कोई बहादुर नहीं बन जाता या फिर समाज उसे कोई बड़ा तमगा नहीं दे देता. इस के उलट सचाईर् सामने आने पर वह घृणा या दुराव का ही शिकार होता है. उस की सोशल आईडैंटिटी खतरे में पड़ जाती है और उसे सजा के साथसाथ रिजैक्शन भी भोगना पड़ता है.

हद तो तब होती है जब ये दुष्कर्मी सरेआम सीना ठोक कर ऐसे घूमते हैं मानो उन्होंने कोई बड़ा तीर मारा हो. देश के सुदूर ग्रामीण आदिवासी इलाकों में उच्चजाति के लोगों द्वारा दलित आदिवासी महिलाओं की अस्मत लूटने और उन्हें जिंदा जलाए जाने की खबरें सुर्खियां बनती रहती हैं पर पीड़ाजनक स्थिति तब होती है जब ऐसे लोग अपने कुकृत्यों का सरेआम ढिंढोरा पीटते हैं. पुलिस और कानून को धताबता कर ये अपनी जांबाजी में एक तमगा और जोड़ लेते हैं, पर यह विडंबना है कि हम आंख मूंदे इन बलात्कारियों का साथ देते हैं.

दुष्कर्मियों का कोई नैतिक बल नहीं होता. न ही कोई चारित्रिक संबल. असंतुलित भावनाओं के उन्माद में वे दुष्कर्म के दलदल में जा गिरते हैं पर एक सच यह भी है कि इस क्षणिक ज्वार के ठंडा पड़ते ही वे अपने पुराने स्वरूप में लौट आते हैं और ताउम्र पश्चात्ताप व ग्लानि की पीड़ा में अपनी बची जिंदगी गुजार देते हैं.

इस की सब से बड़ी बानगी दिल्ली में घटा निर्भया कांड है. बलात्कारियों ने क्षणिक आवेश में वह कर डाला जो उन्हें नहीं करना चाहिए था. इस के बदले उन आरोपियों को मिला क्या? केवल सामाजिक बहिष्कार, अलगाव, घृणा और सजा.

सामाजिक बहिष्कार इन आरोपियों पर इस कदर हावी हुआ कि उन में से एक ने तो खुदखुशी कर ली. बाकी या तो सजा भुगत रहे हैं या अदालती ट्रायल के चक्कर काटते हुए भारी मानसिक तनाव व कुंठा से गुजर रहे हैं.

अपराध छोटा हो या बड़ा उसे कभी सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलती. दुष्कर्मियों के लिए तो समाज में कोई स्थान है ही नहीं. अपराध हमेशा कुंठा, पीड़ा व सजा ही दिलवाता है, सम्मान नहीं.

हमें चाहिए कि इन दुराचारियों को किसी भी स्तर पर बिलकुल न सराहें और न सहें. इन्हें बढ़ावा तभी मिलता है जब हम मौन साध लेते हैं. हमारी दहाड़ इन के हौसले पस्त करेगी. सामाजिक और पारिवारिक बहिष्कार से ये अलगथलग पडे़ंगे और इन का वहशीपन कमजोर पड़ेगा.

ऐसे प्रयास सिर्फ अपराधियों की तरफ से ही नहीं करने होंगे बल्कि हमें महिलाओं का पक्ष भी मजबूत करना होगा. दुष्कर्म की शिकार पीडि़ताओं के लिए स्वाभिमान कार्यक्रम चलाने होंगे. उन के भीतर के ग्लानि और कुंठा के भाव को स्नेह व प्रेम से निकालना होगा. उन्हें समाज व परिवार में दोबारा उचित स्थान दिलाने के लिए उन का मनोबल बढ़ाना होगा. तभी हम इन बलात्कारियों को मजबूत इरादों वाली महिलाओं से टक्कर दे सकेंगे.

बलात्कारियों का बहिष्कार और पीडि़ताओं की सम्मानजनक वापसी उन के होश ठिकाने लगाने का सब से बड़ा मूलमंत्र है.

बुझ गई दूसरों की उम्मीदें जगाने वाली ‘ज्योति’

दिल्ली महिला आयोग की काउंसलर रहीं ज्योति की साजिशन हत्या हुई या उन्होंने आत्महत्या की/ रविवार रात आखिरी साढ़े चार घंटे में छिपी है मौत की ये मिस्ट्री. बवाना पुलिस हर पहलू से तफ्तीश कर रही है. 304बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है. ज्योति का सोमवार को पोस्टमौर्टम नहीं हो सका. परिजनों ने आशंका जताई है कि ज्योति का पति संजू खुद बाड़ा हिंदूराव अस्पताल में कार्यरत है, इसलिए मेडिकल बोर्ड की निगरानी में पोस्टमौर्टम की मांग की है. परिवार व जानकार ज्योति की खुदकुशी पर यकीन करने को तैयार नहीं.

जानकारों का कहना है कि औरों के जीवन में उम्मीद की रोशनी बिखरने वाली आखिर खुदकशी कैसे कर सकती है. पुलिस का कहना है कि शादी के बाद से ही पति उसपर शक करता था. मौत के बाद पति अस्पताल लेकर नहीं गया था, बल्कि शव घर पर ही पुलिस को मिला.

परिवार के मुताबिक, रविवार रात ज्योति से वौट्सऐप चैट हुई थी. आखिरी मेसेज 7:09 बजे आया था. आरोप है कि ज्योति ने चैट में बताया था कि अब ये लोग कैश की डिमांड भी कर रहे हैं. उसके बाद अचानक क्या हुआ कि उसने चैट में लिखा ‘प्लीज डोंट रिप्लाई नाउ’. उसके करीब साढ़े तीन घंटे बाद 11:36 पर पति ने ज्योति के परिवार को कौल करके बताया कि वह स्यूसाइड की कोशिश कर रही हैं. फिर 11:46 की कौल में पति ने बताया कि ज्योति ने स्यूसाइड कर लिया है और वो मर गई है. उसके बाद ज्योति के परिवारवालों ने पीसीआर कौल की.

पीसीआर के साथ मायके वाले घर पहुंचे. पुलिस के साथ देखा कि ज्योति का शव बेड पर था. उसका शरीर अकड़ चुका था. आरोप है कि उसके गले पर चोट के निशान थे. जबकि पति व ससुराल वाले पास ही थे. आंबेडकर में मोर्चरी में शव को रखवाया. ज्योति का मोबाइल व मौके से मिले कुछ सामान क्राइम टीम ने जांच के लिए सील कर लिए. गौरतलब है कि ज्योति की मौत पर मायकेवालों ने हत्या का आरोप लगाया है. जबकि पति व ससुराल वालों ने खुदकुशी का दावा किया.

वौट्सऐप पर आखिरी चैट ‘प्लीज डोंट रिप्लाई

एमएसडब्ल्यू (मास्टर इन सोशल वर्क) की डिग्री हासिल कर चुकीं 27 साल की ज्योति सहरावत तीन बहनों में सबसे छोटी थीं. बवाना के दरियापुर में ज्योति का परिवार रहता है. पिता रोहताश एयरफोर्स में औफिसर रैंक से रिटायर्ड हैं, फिलहाल इलेक्ट्रौनिक्स शोरूम है. शुरू से ही यह लोग ओम शांति मिशन से जुड़े हुए हैं.

ज्योति की मां का साढ़े चार साल पहले बीमारी की वजह से निधन हो चुका है. बड़ी बहन आकाश पीएचडी कर रही हैं, छोटी बहन रंजू बैंक में जॉब करती हैं. दोनों बड़ी बहनों ने शादी नहीं की. क्योंकि बड़ी बहन ने पीएचडी की वजह से शादी नहीं की. रंजू भी ओम शांति से जुड़ी हुई हैं. घर में ज्योति और छोटा भाई शक्ति सहरावत की ही शादी हुई है.

बहन रंजू ने बताया कि इसी साल 25 जून को मुंगेशपुर निवासी संजू राणा से शादी हुई थी. मायके और ससुराल में 15 मिनट का फासला है. ज्योति के परिवारवालों ने पुलिस को बताया कि शादी में 50 लाख के आसपास खर्च किया था. ज्योति पिछले पांच साल से आउटर जिले में दिल्ली महिला आयोग में रेप विक्टिम काउंसलर थीं.

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