हरियाणा की राजनीति में जेल में बंद आरोपी और कैद की सजा भुगत रहे तथाकथित ‘बाबा’ राम रहीम के सामने एक बार फिर राजनीति ने हाथ जोड़ लिया है और सिर झुका कर साष्टांग करती दिखाई दे रही है. यह तो एक उदाहरण मात्र है, हमारे देश में धार्मिक पाखंड के आगे नेता सत्ता पाने के लिए लंबे समय से साष्टांग करते रहे हैं. दरअसल, इस की वजह हरियाणा विधानसभा चुनाव हैं, जहां के 9 जिलों के तकरीबन 30 सीटों पर लाखों की संख्या में उन के ‘भगत’ हैं. इन्हीं की वोट की ताकत के आगे बाबा विभिन्न चुनावों में उलटफेर की कोशिश करते रहे हैं. इस में कभी पास हो जाते हैं और कभी फेल. जेल जाने के बाद उन के जादू में कमी जरूर आई है, लेकिन बाहर आते ही भक्त और नेता चरण वंदना शुरू कर देते हैं.
वोटिंग से पहले राम रहीम का फिर पैरोल पर सशर्त बाहर आना यह बताता है कि नेताओं का वजूद किस तरह कमजोर होता जा रहा है. उन पर से लोगों का भरोसा उठ चुका है और उन्हें ऐसे अपराधियों की जरूरत है, जो उन्हें कुरसी तक पहुंचाएं.
अब यह चर्चा छिड़ गई है कि बाबा राम रहीम इस बार कितना चुनाव में कितना असर डालेंगे? आइए, आप को बताते हैं कि पैरोल पर रिहाई के बाद राम रहीम की क्या स्थिति है. राम रहीम मुसकराते हुए सुबहसुबह भारी सुरक्षा के बीच रोहतक की सुनारिया जेल से बाहर आ गए हैं. इधर चुनाव आयोग ने सशर्त उन्हें 20 दिनों की पैरोल दी है. निर्देश है कि वे न तो हरियाणा में रहेंगे और न ही चुनाव प्रचार करेंगे. मगर इस के बावजूद नेताओं को उन की जरूरत महसूस हो रही है. ऐसा लग रहा है कि उन के भक्त उन के कहे पर वोट देंगे.
दरअसल, ऐसा अनेक बार हो चुका है. राम रहीम के नाम यह रिकौर्ड है कि जेल में रहते हुए वे बारबार बाहर आते रहे हैं और उस का एक ही सबब है, सत्ता पक्ष की मदद करना. अगर देखें तो पाएंगे अब तक तथाकथित ‘बाबा’ राम रहीम तकरीबन 275 दिन पैरोल या फरलो पर बाहर रह चुके हैं. यह कैसा संयोग है कि वह अमूमन वे उन्हीं दिनों जेल से बाहर आते हैं, जब कहीं न कहीं चुनाव चल रहे होते हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि देश की सुप्रीम कोर्ट को इस पर स्वयं संज्ञान ले कर इस की जांच करानी चाहिए और नरेंद्र मोदी की सीबीआई को भी इसे संज्ञान में लेना चाहिए.
याद रहे कि तकरीबन महीनाभर पहले ही पैरोल पर रह कर राम रहीम जेल गए थे. पूछा जा रहा है कि एक तरफ संगीन मामलों में सजायाफ्ता कैदी को पैरोल मिल जाती है, वहीं बहुत सारे आरोपियों को जमानत तक नहीं मिल पाती. बहुत सारे कैदियों को बहुत जरूरतमें भी पैरोल नहीं मिलती है.
शायद नेताओं को यह जानकारी है कि राम रहीम का हरियाणा के कुछ जिलों में खासा असर है, इसलिए अनुयायियों को राजनीतिक संदेश देने उन्हें बाहर लाया आता है. बता दें कि इससे पहले वे हरियाणा नगरनिकाय चुनाव के समय 30 दिन की पैरोल पर बाहर आए थे. आदमपुर विधानसभा उपचुनाव से पहले उन्हें 40 दिन की पैरोल मिली थी. हरियाणा पंचायत चुनाव से पहले भी उन्हें पैरोल मिली थी. राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले उसे 29 दिन की फरलो दी गई थी.
कुलमिला कर जब तक देश की सब से बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट का डंडा नहीं चलेगा, यह मजाक जारी रहेगा.
हरियाणा में लगभग 20 फीसदी दलित मतदाता हैं. इसे अपने पक्ष में लेने के लिए बाबा जैसे अपराधी को भी जेल से बाहर ला कर के नेताओं ने दिखा दिया है कि वे सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं.
कहते हैं न कि दूध का जला छाछ को भी फूंकफूंक कर पीता है, हरियाणा में भी राजनीति और नेता यही कर रहे हैं, राम रहीम हर बार कोशिश करते हैं कि उन का असर दिखे. साल 2019 के में चुनाव में सिरसा (डेरा सच्चा सौदा मुख्यालय) में भी भाजपा जीत नहीं पाई. इसी तरह साल 2012 में कैप्टन अमरिंदर सिंह की डूबती नैया भी बाबा नहीं बचा पाए थे, जबकि बाबा का आशीर्वाद लेने कैप्टन सपत्नीक सिरसा पहुंचे थे. इतना ही नहीं डबवाली सीट पर डेरा सच्चा सौदा ने खुल कर इनेलो का विरोध किया था, पर इनेलो उम्मीदवार जीत गए. साल 2009 में अजय चौटाला भी डेरा के विरोध के बावजूद इस सीट से जीत गए थे. कुलमिला कर राम रहीम का जादू कभी चलता है, कभी नहीं चलता मगर नेता उन का आशीर्वाद लेने के लिए उन के अपराधी चेहरे को भूल जाते हैं और यह बताते हैं कि उन का जनता से सरोकार हो या फिर नहीं हो, वे राम रहीम बाबा को सिर पर बैठाने के लिए तैयार हैं.