दुनिया का मौसम बदल रहा है. पर्यावरण तो प्रदूषित हो ही रहा है, हर देश में शासन ऐसे लोगों के हाथों में आ रहा है जो संकुचित सोच वाले हैं और जब बोलते हैं तो जहर उगलते हैं और कुछ करते हैं तो शहर ही नहीं पूरे देश गंदे हो जाते हैं. हम तो ऐसे नेताओं के आदी हैं ही लेकिन अब अमेरिका हम से बाजी मार ले गया. अमेरिका ने राष्ट्रपति चुनावों में डौनल्ड ट्रंप को चुना, जो 2 माह बाद भी अपना सही कैबिनेट नहीं बना सका है, पर उसे परवा नहीं है. वह जब बोलता है या व्हाइट हाउस के ओवल रूम में बैठ कर कोई आदेश निकालता है तो उसे इस की चिंता नहीं होती कि इस से कहां किस का दम घुटेगा. इंगलैंड की जनता ने भी यूरोपीय यूनियन से निकलने का फैसला ले कर ट्रंप को जिताने जैसा बरबादी वाला कदम उठाया है. फ्रांस में ला पेन नाम की पुरातनपंथी पार्टी कोयले से चलने वाले इंजन मानो वापस लाने को तैयार है, जो धुएं से दम घोट दें.
भारत में नोटबंदी के जहर का असर अभी भी बाकी है पर फिर भी राज्यों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी दमखम से उतरी. यानी दुनिया के ज्यादातर देशों की जनता को न प्रकृति के पर्यावरण की चिंता है न राजनीतिक प्रदूषण की. लोकतंत्र ने हरेक को वोट देने का हक दिया है कि आगे आने वाली पीढि़यों की सुरक्षा का बंदोबस्त उन के अपने मातापिता वोट देते समय कर सकें, पर यहां तो लगता है कि लोकतंत्र के वोटरों और इसलामी देशों के हथियारबंद जिहादियों में कुछ खास फर्क नहीं. दोनों ही अपनेअपने देशों को नष्ट करने में लगे हैं.
यह दुनिया बनी भी तो जंगलों में रहने लायक थी. बस लाखों ने आज और अब की नहीं कल की सोची. तरहतरह की किताबें लिखी गईं. दुनिया के रहस्य जानने के लिए कोई एवरेस्ट पर चढ़ा तो कोई गहरे समुद्र में गया. लोगों ने चांद पर जाने के लिए वाहन बनाए तो आम आदमी को दुनिया भर में घंटों में पहुंचाने के लिए हवाईजहाज बनाए. सरकारों ने इन का कितना साथ दिया यह आकलन करना कठिन है पर सरकारों ने बहुतों को रोका, यह साफ है.
अब इस रुकावट को शासन का तरीका माना जाने लगा है. हर देश में शासक अपने बाशिंदों को काले मध्य युग के से आदेश देने लगा है. दुनिया की जेलों में जगह नहीं बची है. हर जगह एक डर बैठ रहा है कि अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने, शहरों के प्रदूषण से, समुद्र में गंद भरने से ज्यादा नुकसान होगा या शासकों की गैर जिम्मेदारियों से.
आज का किशोर भ्रमित है कि कल क्या होगा? जिन्होंने अमेरिकाइंगलैंड जा कर पढ़ने की सोची थी उन का सपना धुंधला पड़ गया है. कल किस देश में सीरियाई आपसी युद्ध की बीमारी न फैल जाए यह अंदेशा होने लगा है. सारी दुनिया एक है, यह भ्रम टूट रहा है. जैसे गरमी के अंधड़ अपने साथ धूल लाते हैं, वैसा डर हर मन में धीरधीरे आ रहा है. उम्मीद करिए कि सद्बुद्धि जागेगी और लोग दुनिया को तोड़ेंगे नहीं, जोड़ेंगे.