मसला: तलाक इतना मुश्किल क्यों है कि…

12 जून, 2019. मध्य प्रदेश के मंदसौर की बात है. इस रात जीवागंज इलाके का बाशिंदा चंद्रशेखर अपनी अलग रह रही बीवी मंजू के पास गया और उस के साथ मारपीट की.

पुलिस में की गई अपनी रिपोर्ट में मंजू ने बताया कि शौहर ने यह मारपीट तलाक चाहने के एवज में की थी. पुलिस ने चंद्रशेखर के खिलाफ मारपीट का मामला दर्ज कर उसे जेल भेज दिया.

* दूसरा मामला फरीदाबाद, हरियाणा का है. 12 जून, 2019 की ही रात को पुलिस को एक औरत झाडि़यों में घायल हालत में मिली थी.

पुलिस ने जब मामले की जांच की तो पता चला कि तृषा नाम की इस औरत पर जानलेवा हमला उस के ही शौहर एनआईटी 3 में रहने वाले राजन अदलखा ने किया था.

राजन ने पुलिस को बताया कि तृषा से उस का तलाक का मुकदमा अदालत में डेढ़ साल से चल रहा है. इस के लिए उसे बारबार अदालत के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं, जिसे ले कर उस के मन में रंजिश आ गई थी, इसलिए बहस हो जाने के बाद उस ने बीवी पर पत्थर व चाकू से हमला किया.

* तीसरा मामला हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले का है. 1 जून, 2019 को आरती शर्मा ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उस का शौहर आएदिन उसे तलाक के लिए मारतापीटता रहता था. उस ने तलाक देने से मना किया तो शौहर ने उस के मुंह में फिनाइल उड़ेल दी.

* चौथा मामला 17 जून, 2019 का है. बिहार के भागलपुर जिले के कसबे नवगछिया में स्वीटी जायसवाल के हाथ की नस उस के शौहर और ससुराल वालों ने इसलिए काट दी कि वह तलाकनामा पर दस्तखत नहीं कर रही थी.

इस बाबत पति व ससुराल वाले कई दिनों से उसे तंग कर रहे थे. पुलिस ने स्वीटी के पति सुमित जायसवाल और दूसरे आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

दूसरा पहलू

ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब ऐसी खबर नजरों के सामने से हो कर न गुजरती हो, जिस में शौहर ने बीवी पर तलाक के लिए या तो हमला किया, या फिर उस की हत्या ही कर दी हो.

विलाशक पहली नजर में यह शौहरों की बेरहमी ही मानी जाएगी, लेकिन ऐसे मामले और फसाद, जो तेजी से बढ़ रहे हैं, को एक दूसरी नजर से भी देखने की जरूरत है, जिन के चलते औरतों पर जिस्मानी और दिमागी जुल्म ढाए जाते हैं.

यह वजह है तलाक, जो आसानी से नहीं हो जाता. यहां बताए मामलों से 2 बातें उजागर होती हैं कि शौहर तलाक चाहते थे, लेकिन उन्हें अहसास था कि यह शादी की तरह आसान नहीं, जो 2-4 दिन में हो जाए. इस के लिए सालोंसाल अदालत के चक्कर काटने पड़ते हैं. इस कार्यवाही में पैसा भी खूब खर्च होता है, साथ ही साथ परेशानियां, बदनामी भी झेलनी पड़ती हैं और तलाक के मुकदमे के दौरान दूसरी शादी भी नहीं की जा सकती.

दूसरी अहम बात यह उजागर होती है कि तीनों ही मामलों में पिसी और पिटी बीवी ही है, लेकिन शौहरों को भी जेल की हवा खानी पड़ी है, जिन का तलाक का मकसद पूरा नहीं हुआ.

यह मकसद अगर आसानी से पूरा होने लगे, तो जाहिर है कि लाखों बीवियां जुल्मोसितम से बच जाएंगी और लाखों शौहर मुजरिम बनने से बच जाएंगे.

अगर शौहरों को नहीं, बल्कि बीवियों को भी यह गारंटी मिल जाए कि तलाक की अदालती और कानूनी कार्यवाही में दिक्कतें नहीं आएंगी और पेशियों पर पेशियां नहीं लगेंगी, तो विलाशक मियांबीवी बड़ी तादाद में अदालत का रुख करेंगे और तलाक के बाद आजादी और खुशहाली से जिंदगी गुजार सकेंगे.

लकीर का फकीर कानून

तलाक के बढ़ते मामलों पर हर कोई चिंता जताता रहता है. इन में नेता, समाजसेवी और धर्म के ठेकेदारों के साथसाथ मीडिया भी शामिल है. ये लोग नहीं चाहते कि तलाक आसानी से हो. इस के पीछे इन की दलीलें बेहद बासी और बेकार हैं कि यह 2 जिंदगियों का सवाल है. इन लोगों का ध्यान अपनी खुदगर्जी के चलते इस तरफ नहीं जाता कि तलाक न होने पर बीवी यानी औरत ज्यादा सताई जाती है, क्योंकि वह माली और सामाजिक तौर पर शौहर की मुहताज होती है.

औरत को इतना काबिल और मजबूत बनाने की बात कोई नहीं करता कि वह तलाक के बाद अपने पैरों पर खड़ी रह कर सिर उठा कर जी सके.

यह सोचने वाले भी कम ही हैं कि तलाक की कानूनी कार्यवाही इतनी मुश्किल नहीं होनी चाहिए कि लोग मारपीट, खुदकुशी और हिंसा पर उतारू हो आएं. तलाक के कानून चूंकि धर्म की बिना पर बनते और बिगड़ते हैं. इस से साफ होता है कि धर्म के दुकानदार नहीं चाहते कि तलाक फटाफट हो.

भोपाल के एक नामी वकील की मानें, तो अगर तलाक शादी की तरह 2-4 दिन में होने लगे, तो 50 फीसदी बीवी सस्ते राशन की दुकान की तरह अदालतों में लाइन लगाए नजर आएंगी.

बात गलत कहीं से नहीं है, क्योंकि अदालती लेटलतीफी और मुश्किल कानूनों के चलते मियांबीवी एक छत के नीचे घुटन भरी जिंदगी जी लेते हैं, लेकिन इंसाफ मांगने अदालत की चौखट पर नहीं जाते, क्योंकि उन्हें मालूम है कि वहां जब तक इंसाफ होगा, तब तक वे बूढ़े भी हो सकते हैं.

लाखों मामले देख यह न कहने की कोई वजह नहीं रह जाती कि तलाक में देरी की वजह से मियांबीवी एकदूसरे की जान के दुश्मन बन रहे हैं और कानून टस से मस होने को तैयार नहीं. कानून की धाराओं में बदलाव की पहल न तो संसद करती है और न ही अदालतें करती हैं, तो तय यह भी है कि हिंसा के ये मामले बढ़ते रहेंगे और आज नहीं तो कल कानून बनाने वाले और उन पर अमल करने वालों के माथे पर चिंता की लकीरें पड़ेंगी, लेकिन तब तक करोड़ों मियांबीवी या तो घुटघुट कर जीने को मजबूर होंगे और बीवियां यों ही पिटती रहेंगी.

यहां मंशा कतई शौहरों की वकालत करने की नहीं, बल्कि एक नजर उन वजहों पर भी डालने की है, जिन के चलते वे बीवी से मारपीट कर खुद जेल जा कर जिंदगी बरबाद करना पसंद करते हैं, लेकिन तलाक के लिए अदालत जाने से कतराते हैं, तो बारी कानून से जुड़े लोगों की है कि वे इन हादसों की तह में जा कर कोई हल निकालें, जिस में तलाकशुदा औरतों को भी कोई राहत हो.

नेताओं, मंत्रियों, वकीलों, पत्रकारों और जजों को अब सोचना यह चाहिए कि तलाक के कानून की कार्यवाही इतनी मुश्किल क्यों है कि उस का कहर भी ज्यादातर बीवियों पर टूट रहा है. इस संजीदा मसले पर इन लोगों की खामोशी औरतों के हक में ज्यादती नहीं तो और क्या है?

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